बिहार में अघोषित आपातकाल है

बिहार में अघोषित आपातकाल है?
बिहार में अघोषित रूप से आपातकाल लगा हुआ है और मैं ऐसा खिंज कर या फिर गुस्से में आकर नहीं कह रहा बल्कि जो इन दो खुली आंखों से देखता वह हमेशा उद्वेलित करता है। कई घटनाऐं है जिसमें कुछ वानगी मैं यहां रखना चाहूंगा। पहली घटना फारविसगंज की जहां एक एसपी के सामने पुलिस के जवान ने नृशंस रूप से राक्षसी प्रवृति का परिचय देते हुए एक युवक की हत्या इस लिए कर दिया कि वह प्रदर्शन कर रहा था पर इस घटना के बाद सरकार का जो पक्ष रहा वह पुलिस के पक्ष मंे रहा और छोटे अधिकारियों की गर्दन नाप कर हमेशा की तरह इस घटना की भी लीपा पोती कर दी गई।

दूसरी एक बड़ी घटना नीतीश कुमार के गृह जिला नालान्दा की है जहां तीन युवकों को अपराधियों मोटरसाईकिल सहित जला कर दिन दहाड़े मार दिया वहीं प्रशासन के द्वारा पहले यह कोशिश की जाती रही कि मामल सड़क दुर्धटना को लगे पर बाद में मीडिया के पहल पर मामला सामने आया तो पुलिस गलथेथरी करती नजर आई।
अब मैं अपने अनुभव की बात कहता है। दो ताजी पुलिस करतूत। पहली यह कि बरबीघा के सामाचक में महेन्द्र पंडित के द्वारा एक बृद्व महिला का घर ढाह दिया गया और यह सब हुआ पुलिस कें ईशारे पर। हुआ यूं कि पुलिस के पास महेन्द्र कोर्ट की डीग्री लेकर आया कि जिस जमीन पर बुढ़ी महिला रहती है वह उसकी है उसे खाली करा दिया जाय। कानून के अनुसार खाली कराने मंे लंबा समय लगेगा और पुलिस ने मोटी रकम लेकर महेन्द्र को स्वतः ही घर खाली करा लेने की बात कह दी और फिर बुढ़ी महिला का पुरा घर ढाह दिया गया। सामान को सड़क पर फेंक दिया गया। उसकी बहु की गोद में पांच दिन का बच्चा था जिसे खिंच कर बाहर कर दिया गया और वह घूप में रह रही है।

दूसरी घटना अहियापुर की सोनी कुमारी एक महिला सुबह सात बजे यह फरीयद लेकर थाना आती है कि उसका पति दूसरी शादी कर रहा है कृप्या इसे रोका जाय और शाम तीन बजे तक किसी ने उसे इंटरटेन नहीं किया। शाम में पहले पुलिस उस पर समझौता का दबाब बनाया और जब वह नहीं मानी तो थाने से उसे भगा दिया गया।

इस तरह की घटनाऐ प्रति दिन घटती है जिससे हमेशा इस बात का संदेश जाता है कि बिहार मंे नौकरशाह और पुलिस मिलकर अपनी निरंकुश सत्ता चला रही है जिसमें जनता की आवाज नहीं सुनी जाती। पुलिस ने तो एक नायाब तरीका खोज लिया है कमाई का पहले पीड़ित का केश दर्ज करो फिर नामजद लोगों से मोटी रकम लेकर उसका केश उससे भी पहले दर्ज कर लो।

जनप्रतिनिधियों में आम नेताओं का तो कहीं कोई सुनता ही नहीं और सारी ताकत एको अहं द्वितीयांे नास्ति की तर्ज पर केन्द्रित हो गयी है जिसका परिणाम है कि विघायक भी किसी आम पीड़ित के लिए इंसाफ नहीं कर पाता, उसकी कोई सुनता ही नहीं?

भ्रष्टाचार चरम पर है और मुख्यमंत्री के जनता दरबार से जब पत्र थानेदार के पास जांच के लिए आता है तो वह पिड़ीत को बुला कर कहता है देख लिया न, कोई फायदा हुआ जब सब कुछ मुझे ही करना है तो वहां जाने से क्या फायदा। पर ढीढोरा ऐसा पीटा जा रहा है जैसे बिहार किसी दूसरे ग्रह की कोई जगह है जिसमें सबकुछ नायाब हो रहा है।

यहां यह बात भी सही है कि इस सब के बाद भी बिहार बदल रहा है पर इस बदलाव में जिस फर्मुले का प्रयोग किया जा रहा है उसका दुस्परिणाम अब सामने आने लगा है और यह सब देख कर लगता है जहां जनता की आवाज सुनने वाला कोई नहीं उसे आपातकाल नही तो क्या कहेगें?
जहां जनता की आवाज सुनने वाला कोई नहीं उसे आपातकाल नही तो क्या कहेगें?








अरुण साथी की रिपोर्ट
अरुण साथी बिहार के पत्रकारों के बीच के वह चेहरा हैं जिसे समझने के लिये उनके बहुत करीब जाना पडेगा। अरुण साथी बेबाक विचार के लिये जाने जाते हैं। सच बोलना , सच के लिये लडना यही सही पहचान है उनकी ।

Comments

Popular posts from this blog

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

भडास मीडिया के संपादक यशवंत गिरफ़्तार: टीवी चैनलों के साथ धर्मयुद्ध की शुरुआत