अपराध और भ्रष्टाचार की विश्वविद्यालय हैं बिहार की जेलें

अपराध और भ्रष्टाचार की विश्वविद्यालय हैं बिहार की जेलें
कैदी होमो सेक्स के आदी हैं
जेल के सिपाही महिला कैदियों के साथ करते हैं बलात्कार
बंधुआ मजदुरी आज भी कायम है जेलों में
इलाज के बिना मरते हैं कैदी
अभी एक डाक्टर की जेल में कैदियों के द्वारा पीट-पीट कर मार डालने के मामले ने बिहार की राजनीति को गर्मा दिया है । बिहार के डाक्टर् हडताल पर चले गये हैं यह अपराधिक हरकत है , डाक्टरों पर मुकदमा चलना चाहिये । डाक्टरों की मांग एक करोड रुपये मुआवजा तथा जेल के अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की है । यह निश्चित रुप से एक दुखद हादसा था और न सिर्फ़ डाक्टर बल्कि सभी विभाग के अधिकारियों को इससे सबक लेना चाहिये । इस पूरे प्रकरण को सिर्फ़ कैदियों द्वारा हत्या की नजर से देखने की जरुरत नही है । यह घटना दर्शाती है कि अगर आप गलत करेंगे तो अंजाम भुगतना पडता है । जेल हर जिले के मुख्यालय में है लेकिन सिवा्य उस व्यक्ति के जो वहां गया हो आम लोगों को पता भी नही है जेलों के अंदर क्या होता है । जेल एक नरक है और उसे नरक में तब्दील किया है जेल प्रशासन ने । डाक्टर जो जेल में नियुक्त हैं वे न सिर्फ़ भ्रष्टाचार का हिस्सा हैं बल्कि व्याभिचार के भी अंग हैं। जेल में दो प्रकार के कैदी हैं । एक तो वह जो सामान्य कैदी हैं यानी किसी कारण बस मुकदमे में फ़ंस गये हैं । दुसरे प्रकार में हैं रंगदार कैदी । रंगदार कैदियों का अलग-अलग ग्रुप है जो कभी-कभी आपस में भी टकराते हैं। जेल प्रशासन इन रंगदार कैदियों के साथ सांठ-गांठ करके रहता है । अगर जेल प्रशासन द्वारा रंगदार कैदियों के खिलाफ़ कोई कदम उठाया जाता है तो ये कैदी जेल में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आंदोलन खडा कर देते हैं। मांग भी इनकी बहुत जायज होती है जैसे नियमानुकूल भोजन की मांग। जेल में कैदियों के लिये जो निर्धारित मात्रा है अनाज की वह नही मिलता है । जेल के जेलर तक के घर में जेल के कैदियों के लिये खरीदे गये खाद्यान से भोजन बनता है । रंगदार कैदी जेल अधिकारियों के भ्रष्टाचार को लक्ष्य करके हंगामा खडा करते हैं। सामान्य कैदी उन रंगदार कैदियों के भय से उनके हंगामें में भागीदार होता हैं। जेल के अंदर जाने के साथ हीं शुरु हो जाता है कैदियों की गुंडागर्दी का दौर। सबसे पहले जानेवाले की तलाशी ली जाती है । अगर वह पैसा देनेवाले घर का हुआ तो जेल में बंद रंगदार कैदी अपने वार्ड यानी जहां वे रहते हैं उस वार्ड में उसको रखवाते हैं और यह जेल प्रशासन के द्वारा होता है । जेल में परिजनों से मुलाकात का नियम है , वह अंग्रेजों के काल का है , उस नियम के अनुसार हफ़्ता में एक बार हीं मुलाकात हो सकती है, यही नियम भ्रष्टाचार और शोषण का एक रास्ता है । जेल पर अपने परिजनों से मुलाकात करनेवालों को एक पुर्जी लगानी पडती है जिसके लिये नाजायज रकम ४०-५० रु० देना होता है । जेल के अंदर बंद कैदी अगर किसी कारण मुलाकाती कक्ष में आना चाहता है तो उसे जेल के अंदर स्थित मुलाकाती कक्ष के सिपाही को दस रु० देने पडते हैं। मिलने आने वाले परिवार को अगर बंदी के लिये खाने का सामान या कपडा देना है तो उसके भी पैसे लगते हैं और यह सारा काम जेल में नियुक्त जेल अधीक्षक तथा जेल के जेलर की निगरानी में होता है । जेल के अंदर होमो सेक्स आम है । वर्षों से बंद कैदी अपनी सेक्स इच्छा की पूर्ति के लिये आपस में हीं संबंध बनाते हैं। बहुत सारे आपस में पति- पत्नी की तरह के रिश्ते स्थापित कर लेते हैं जिसमें भावना का भी समावेश होता है । महिला वार्ड में बंद महिला कैदी भी आपस में लेस्बियन रिश्ते में बंधी होती हैं। यह तो बात हुई सामान्य कैदियों की जो सिर्फ़ अपनी सेक्स की इच्छा केलिये इस तरह के रिश्ते में बंध जाते हैं। दबंग कैदी चाहे वह बाहुबली हीं क्यों न हो वे भी अपनी सेक्स इच्छा के लिये जेल में बंद कम उम्र के लड्को को अपने हवस का शिकार बनाते हैं। जेल प्रशासन की मदद से कम उम्र के लड्के जो किसी छोटे अपराध या विदाउट टिकट के कारण जेल में चले आते हैं उन्हें द्बंग कैदी अपने रहने वाले वार्ड में तबादला करा लेते हैं । रात में जेल की बैरक बंद हो जाने के बाद उन लड्कों के साथ बलात्कार किया जाता है । महिला वार्ड में पुरुष सिपाहियों का प्रवेश वर्जित है परन्तु गरीब महिला कैदी को जरुरत का सामान ला देने के नाम पर जेल के पुरुष सिपाही और अगर वह महिला कैदी सुंदर हुई तो जेलर तक उस तरह की महिला कैदी के साथ सेक्स संबंध स्थापित करते हैं इस काम में जेल की महिला सिपाही मदद करती हैं। । लड्को के साथ बलात्कार के कारण जख्म होने की स्थिति में यही डाक्टर उन लडकों का इलाज करते है तथा महिला कैदियों का एबार्सन करते हैं। जेल के इन डक्टरों को पता होता है कि लडकों के साथ या महिला कैदियों के साथ क्या हुआ लेकिन आजतक जेल के किसी डाक्टर ने इस अपराध की खबर जेल के आला अधिकारियों को नही दी। ये डाक्टर अपराध छुपाने के दोषी हैं। जेल के अस्पताल में मरीज कम और सामान्य कैदी ज्यादा रहते हैं। बिना किसी बीमारी के जेल के अस्पताल में भर्ती रहने की एक मासिक राशि देनी पडती है । कैदी की हैसियत के हिसाब से वह रकम हजार रुपये से लेकर तीन हजार रुपये महीना तक है। डाक्टर झुठी बीमारी दिखाकर स्वस्थ कैदी को नाजायज रकम के लिये अस्पताल में भर्ती रखते हैं। इसमे एक और फ़ायदा डाक्टरों को है वह है दवा का । स्वस्थ कैदियों के नाम पर दवायें निर्गत होती हैं और उन्हें बाजार में डाक्टर बेचते हैं। बंधुआ मजदूरी आज भी जेलों में है और उसमें जेल पशासन भी अपराधी है। जेल में मिलने वाला खाना घटिया किस्म का होता है । गरीब कैदी भोजन के लिये रंगदार कैदियों का खाना बनाते हैं , कपडा धोते हैं, हाथ-पैर दबाते हैं। प्रशासन भी इन्हीं गरीब कैदियों से जेल की सफ़ाई करवाता है । ये कैदी सजायाफ़्ता नही होते हैं। इन्हें विचाराधीन कैदी कहा जाता है और कानूनन इनसे कोई भी काम नही कराया जा सकता है । जेल में लंबी सजा काट रहे कैदियों की मासिक आय दस हजार रुपये तक है यह नाजायज कमाई है। सजायाफ़्ता कैदियों को विभिन्न कार्यों पर लगाने का प्रावधान है । कैदियों को जो ड्यूटी दी जाती है , कैदी उसी में कमाई की व्यवस्था कर लेते हैं। जेल की बैरकों के इंचार्ज भी रात में कैदी हीं होते हैं और बिहार की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी बंद हैं। कैदियों को बैरक के अंदर स्थित शौचालय तक के पास बिस्तर लगाकर सोना पडता है । बैरक में सोने के लिये साफ़-सुथरी जगह मिले इसलिये विचाराधीन कैदी बैरक के प्रभारी कैदी को पैसे देते हैं। कैदी को कमानेवाली जगह पर ड्यूटी मिले इसके लिये सजायाफ़्ता कैदी जेल के अधिकारियों को पैसे देते हैं। यानी तबादले के लिये घुस का सिस्टम यहां भी है । गोपालगंज जेल में हुई डाक्टर की हत्या भ्रष्टाचार का परिणाम है । अगर डाक्टर एक गलत काम पैसे लेकर करेगा तो दुसरा गलत काम करने के लिये उसके उपर दबाव पडेगा हीं । नही मानने की स्थिति में जो हुआ उसी तरह की घटनाएं होंगी। बिहार में पहले भी जेल के कर्मचारियों की हत्या हुई है लेकिन कभी भी सरकार या उच्चाधिकारियों ने समस्या की जड तक जाने का प्रयास नही किया । इसबार भी डाक्टर की हत्या को प्रशासनिक चूक बताया है नीतीश कुमार ने । आज डाक्टर की हत्या हुई तो सभी रो गा रहे हैं जब गरीब कैदी इलाज के बिना मर जाता है जेल में तो किसी के कान पे जूं तक नही रेंगती। एक और बात का जिक्र यहां करना जरुरी है वह है कि जेल में सजा काट रहे कैदियों में आधे से ज्यादा निर्दोष हैं तथा देश की भ्रष्ट न्यायिक व्यवस्था और अक्षम जजों के गलत फ़ैसले के शिकार हैं। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि निर्दोष कैदियों की सजा उच्चतम न्यायालय तक से बहाल रहती है यानी देश की उच्चतम न्यायालय में भी सक्षम जज नही हैं। ।

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