सरकार ने की प्रजातंत्र की हत्या
सरकार ने की प्रजातंत्र की हत्या
रामदेव ने किया लोगों के विश्वास का खुन
साम्यवादियों का चेहरा बेनकाब हुआ
रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उससे हमारा प्रजातंत्र शर्मसार हुआ है । रात के समय रामदेव को हटाने के लिये बल प्रयोग के दरम्यान बच्चों और महिलाओं को भी नही बख्शा गया । जनता के उपर लाठीचार्ज करना, गोलियां बरसाना सता के लिये कोई नई बात नही है । देश का कोई भी दल यह नही कह सकता कि उसकी सरकार में ऐसा नही हुआ है । लाठियां खाते-खाते ममता कम्यूनिस्टों को हीं खा गईं लेकिन कम्यूनिस्टों ने कोई सबक नही लिया। उतराखंड के निशंक आज रामदेव को सत्याग्रह के लिये निमंत्रण दे रहे हैं जो स्वंय जनता के आंदोलन तथा अपने खिलाफ़ उठनेवाली आवाज को दबाने के लिये पत्रकारों तक पर झुठे मुकदमें करवा चुके हैं । एन एन आई के उमेश कुमार ने जब निशंक के खिलाफ़ लिखा तो उतराखंड की पुलिस उमेश की गिरफ़्तारी के लिये नोयडा तक पहुंच गई। बिहार के नीतीश कुमार भी लाठीचार्ज की निंदा कर रहे हैं। बिजली का पावर प्लांट बैठाने के लिये जबरद्स्ती किसानों की जमीन ली गई , जब किसानों ने विरोध किया तो लाठी, गोली खानी पडी। अभी अररिया जिले के फ़ारबिसगंज में एक कंपनी को जमीन देने के मामले में स्थानीय लोगों के विरोध को दबाने के लिये लाठी भांजी गई और गोली भी मारी गई जिसमे एक छह माह के बच्चे समेत चार लोगों की मौत हो गई . बिहार रोज शासन की गुंडागर्दी झेल रहा है । नक्सलवाद के नाम पर निर्दोष ग्रामीणों को उठाकर , उनकी हत्या कर के लाश को फ़ेक देना फ़िर उस हत्या को मुखबीरी के नाम पर नक्सलियों द्वारा की गई हत्या करार देना यही बिहार पुलिस का काम है । रामदेव के साथ जो दिल्ली में हुआ और बाकी लोगों के साथ जो राज्यों में हो रहा है उनके बीच बस इतना हीं अंतर है कि रामदेव के मामले को मीडिया ने पूरे देश का मुद्दा बना दिया जबकी राज्यों में हो रहे पुलिस दमन को बिकी हुई मीडियााराज्य तक का भी मुद्दा नही बनने देती। हालांकि रामदेव और केन्द्र की सरकार के बीच जो डील हुई उसने रामदेव के असली चरित्र को उजागर कर दिया। दिल्ली में हुये लाठीचार्ज का असली कारण क्या है यह पता लगाना मुश्किल है । रामदेव कांग्रेस सरकार से करोडों का अनुदान फ़ुड प्रोसेसिंग यूनिट के नाम पर ले चुके हैं और यही एक कारण था कि सुबोधकांत सहाय को रामदेव को मनाने के लिये लगाया गया था।ारामदेव के दुलारे बालकिशन ने सरकार को जो लिखित आश्वासन दिया था उसे पूरे अनशन के दौरान राममदेव ने कभी सार्वजनिक नही किया । रामदेव अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जेल जाते या रामदेव की पिटाई होती तो कोई गलत नही होता लेकिन रामलीला मैदान में रामदेव के बहकावे में आये हुये निर्दोष लोगों पर लाठीचार्ज हुआ वह गलत हुआ। भाजपा रामदेव के उपर हुये लाठीचार्ज के खिलाफ़ आंदोलन की बात कर रही है लेकिन उतराखंड के निशंक और बिहार के नीतीश की सरकार के खिलाफ़ खामोश है । इस मुल्क के सभी दल जनता के आंदोलन को कुचलने का काम करते हैं इसलिये अच्छा होता की भाजपा पहले स्व शासित प्रदेशों में हो रहे अत्याचार को देखे बाद में कांग्रेस की खामियों को तलाशे। रामदेव ने लोगों के विश्वास को क्षति पहुचाई है । सत्याग्रह शुरु होने के पहले हीं समझौता कर लिया और भोले-भाले समर्थकों को इसकी हवा भी नही लगने दी। रामदेव का संतरुपी चोले की भी कलई खुल गई। पुलिस को देखकर जैसे कोई अपराधी भागता है ठीक उसी तर्ज पर रामदेव महिलाओं के बीच घुसकर , महिलाओं का वस्त्र धारण कर के भागने लगें। बात में अपने इस कार्य के औचित्य को सही साबित करने के लिये बयान दिया कि उनकी हत्या हो सकती थी इसलिये भागने लगें। एक संत ऐसी हरकत नही करता । मौत के डर से भागनेवाला कभी आंदोलन का नेतर्त्व नही कर सकता । गांधी के आंदोलन में जब लाठियां चलती थी तो एक के घायल हो जाने के बाद दुसरा आंदोलनकारी उसकी जगह ले लेता था। रामदेव ने भ्रष्टाचार से दौलत हासिल की है , उनके अंदर नैतिक बल नही है । हालांकि इन सभी बातों के बावजूद सरकार ने जो तरीका अपनाया सत्याग्रह को खत्म करने का वह निंदनीय है लेकिन रामदेव द्वारा गुप्त रुप से सरकार के साथ समझौते के बाद यह संभावना भी है कि रामदेव तथा सरकार ने मिलजुलकर इस सारे ड्रामे की रचना की हो , क्योंकि लाठीचार्ज में किसी को भी गंभीर चोट नही पहुंची है । रामदेव न तो संत हो सकते है और न हीं अन्ना । अन्ना ने छोटे स्तर पर हीं सही , समाज के हित के लिये कार्य किया है । भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस पुरे प्रकरण में साम्यवादियों की सहभागिता का न होना आश्चर्य जनक है । साम्यवादी शायद गेरुआ वस्त्र और राष्ट्रीय गान को संप्रदायिक समझते है , यही कारण हो सकता है भ्रष्टाचार के आंदोलन से दुरी का। दुसरा चेहरा कांग्रेस की सरकार का मुस्लिमतुष्टी करण का दिखा । यह सबको पता था कि हिंदु मानसिकतावाले लोग इस आंदोलन से जju डे हैं । सत्याग्रह में मुसलमानों की सहभागिता न के बराबर थी । अगर इसी तरह का आंदोलन मुसलमानों की किसी संस्था द्वारा किया जाता चाहे वह दाउद इब्राहीम के पक्ष में हीं क्यों न होता , कांग्रेस की सरकार की हिम्मत नही होती लाठी चलवाने की । सरकार ने प्रजातंत्र की और रामदेव ने लोगों के विश्वास की हत्या की
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