सीएम निशंक और पीएम मनमोहन ने की एक संत की हत्या



सीएम निशंक और पीएम मनमोहन ने की एक संत की हत्या
रामदेव, अन्ना, शिवशंकर जैसे चोरों से महान थें निगमानंद
नाम और पाखंड से दुर रहनेवाले निगमानंद वाकई संत थें । हरिद्वार को खनन माफ़ियाओं से मुक्त कराने और गंगा को बचाने के लिये ७३ दिनों तक अनशन पर बैठे रहें । ६८ दिनों के बाद सरकारी तंत्र को होश आया और उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया , जहां २ मई २०११ को वे कौमा में चले गयें। रामदेव और अन्ना के साथ दोस्ताना मैच खेल रही कांग्रेस और राजनीति कर रही भाजपा को निगमानंद के अनशन से कोई पीडा नही महसुस हुई। सरकार की जिम्मेवारी है किसी भी नागरिक के जिवन की रक्षा करना। यह जांच का मुद्दा है कि आखिर निगमानंद को ६८ दिनो तक क्यों अनशन पर बैठे रहना पडा और उतराखंड के मुख्यमंत्री निशंक ने उनका अनशन को समाप्त करवाने के लिये क्या का्र्रवाई की । प्रधानमंत्री बहुत संवेदशील होने का दिखावा करते हैम , वह भी जिम्मेवारी से नही बच सकते हैं। एक ब्रांड नेम वाले बाबा के अनशन पर बैठने के पहले हीं मनाने की कवायद शुरु हो जाती है , दुसरी तरह गंगा की रक्षा के लिये ६८ दिनों तक अनशन पर बैठे रहनेवाले संत की सुध भी नही ली जाती है । पाप के दोषी हैं , मनमोहन और निशंक । यह पाप तभी धुलेगा जब इन दोनो को दर्दनाक मौत किसी हादसे में हो। राजीव गांधी ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने वाले मुलायम का समर्थन कर सरकार बचाई थी , वह एक पाप था । सजा इश्वर ने दी , सबको पता है । यह इशवर के लिये भी परीक्षा है । एक संत ्को मरने के लिये छोड दिया जाता है जबकि एक पाखंडी के लिये पुरी सरकार नंगी खडी हो जाती है । भाजपा और कांग्रेस दोनो दोषी है , यह हत्या है , दोनो की लापरवाही से हुई मौत ।
हरिद्वार की गंगा में खनन रोकने के लिए कई बार के लंबे अनशनों और जहर दिए जाने की वजह से मातृसदन के संत निगमानंद अब नहीं रहे। हरिद्वार की पवित्र धरती का गंगापुत्र अनंत यात्रा पर निकल चुका है। उनका निधन उसी हिमालयन अस्पताल में हुआ जिसमें पिछले कुछ दिनों से बाबा रामदेव के कारण साधु संतों की भीड़ लगी हुई है लेकिन विडंबना देखिए कि वहां जानेवाले संतों में से किसी ने यह जहमत नहीं उठाई कि एक बार उस सन्यासी को भी देख लेते जो 73 दिन के आमरण अनशन के कारण कोमा में चला गया और फिर वापस संसार में नहीं लौट पाया.
गंगा के लिए संत निगमानंद ने 2008 में 73 दिन का आमरण अनशन किया था। उसी समय से उनके शरीर के कई अंग कमजोर हो गए थे और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के भी लक्षण देखे गए थे। और अब 19 फरवरी 2011 से शुरू संत निगमानंद का आमरण अनशन 68वें दिन (27 अप्रैल 2011) को पुलिस गिरफ्तारी के साथ खत्म हुआ था, उत्तराखंड प्रशासन ने उनके जान-माल की रक्षा के लिए यह गिरफ्तारी की थी। संत निगमानंद को गिरफ्तार करके जिला चिकित्सालय हरिद्वार में भर्ती किया गया। हालांकि 68 दिन के लंबे अनशन की वजह से उन्हें आंखों से दिखाई और सुनाई पड़ना कम हो गया फिर वे जागृत और सचेत थे और चिकित्सा सुविधाओं की वजह से स्वास्थ्य धीरे-धीरे ठीक हो रहा था। लेकिन अचानक 2 मई 2011 को उनकी चेतना पूरी तरह से जाती रही और वे कोमा की स्थिति में चले गए। जिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक पीके भटनागर संत निगमानंद के कोमा अवस्था को गहरी नींद बताते रहे। बहुत जद्दोजहद और वरिष्ठ चिकित्सकों के कहने पर देहरादून स्थित दून अस्पताल में उन्हें भेजा गया। अब उनका इलाज जौली ग्रांट स्थित हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल में चल रहा था।

हिमालयन इंस्टिट्यूट हॉस्पिटल के चिकित्सकों को संत निगमानंद के बीमारी में कई असामान्य लक्षण नजर आए और उन्होंने नई दिल्ली स्थित ‘डॉ लाल पैथलैब’ से जांच कराई। चार मई को जारी रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि ऑर्गोनोफास्फेट कीटनाशक उनके शरीर में उपस्थित है। इससे ऐसा लगता है कि संत निगमानंद को चिकित्सा के दौरान जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी।
गंगा रक्षा मंच, गंगा सेवा मिशन, गंगा बचाओ आंदोलन आदि-आदि नामों से आए दिन अपने वैभव का प्रदर्शन करने वाले मठों-महंतों को देखते रहे हैं पर गंगा के लिए निगमानंद का बलिदान इतिहास में एक अलग अध्याय लिख चुका है।जहर देकर मारने की इस घिनौनी कोशिश के बाद उनका कोमा टूटा ही नहीं। और 42 दिनों के लंबे जद्दोजहद के बाद वे अनंत यात्रा के राही हो गये। पर संत निगमानंद का बलिदान बेकार नहीं गया। मातृसदन ने अंततः लड़ाई जीती। हरिद्वार की गंगा में अवैध खनन के खिलाफ पिछले 12 सालों से चल रहा संघर्ष अपने मुकाम पर पहुँचा। 26 मई को नैनीताल उच्च न्यायालय के फैसले में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि क्रशर को वर्तमान स्थान पर बंद कर देने के सरकारी आदेश को बहाल किया जाता है।

मातृसदन के संतों ने पिछले 12 सालों में 11 बार हरिद्वार में खनन की प्रक्रिया बंद करने के लिए आमरण अनशन किए। अलग-अलग समय पर अलग-अलग संतों ने आमरण अनशन में भागीदारी की। यह अनशन कई बार तो 70 से भी ज्यादा दिन तक किया गया। इन लंबे अनशनों की वजह से कई संतों के स्वास्थ्य पर स्थाई प्रभाव पड़ा।

मातृसदन ने जब 1997 में स्टोन क्रेशरों के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका था, तब हरिद्वार के चारों तरफ स्टोन क्रेशरों की भरमार थी। दिन रात गंगा की छाती को खोदकर निकाले गए पत्थरों को चूरा बनाने का व्यापार काफी लाभकारी था। स्टोन क्रेशर के मालिकों के कमरे नोटों की गडिडयों से भर हुए थे और सारा आकाश पत्थरों की धूल (सिलिका) से भरा होता था। लालच के साथ स्टोन क्रेशरों की भूख भी बढ़ने लगी तो गंगा में जेसीबी मशीन भी उतर गयीं। बीस-बीस फुट गहरे गड्ढे खोद दिए। जब आश्रम को संतों ने स्टोन क्रेशर मालिकों से बात करने की कोशिश की तो वे संतों को डराने और आतंकित करने पर ऊतारू हो गये। तभी संतों ने तय किया कि गंगा के लिए कुछ करना है। और तब से उनकी लड़ाई खनन माफियाओं के खिलाफ चल रही थी।

Comments

  1. रामदेव की १-१ साँस गिनने वाला मीडिया कंहा सोया हुआ था ?
    Kya apne nakarapan ke liye media jimmedar nahi? Media ki laparvahi ne ki Swami Nigamanand ki hatya.

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  2. हां बाजारु मीडिया भी जिम्मेवार है । लेकिन वेब जर्नलिस्टों ने हमेशा आवाज उठाई थी। बिहार मीडिया पर भी मई माह में इसे प्रकाशित किया गया था ।

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  3. यह मीडिया तो है ही। भाजपा कहाँ थी, रामदेव कहाँ थे? सब के सब डकैती में लगे हुए हैं, तो बेचारे सन्त की खबर कौन लेता?

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