हजारों बच्चों की मौत
हजारों बच्चों की मौत
मुख्यमंत्री चीन में व्यस्त
नीतीश और अश्वनी चौबे के कारण बच्चे हो रहे हलाल
बिमारी का पता नही चला
बिहार में जानलेवा बिमारी से अभीतक तकरीबन सौ से ज्यादा बच्चों की मौत अस्पताल में हो चुकी है । बिमारी का पता नही चल रहा है । पह्ले यह आशंका थी की यह जापानी इंसेफ़ालाइटिस है लेकिन जांच में उसके लक्षण नही पाये गयें। अब यह अंदाज लगाया जा रहा है कि यह वायरल इंसेफ़ालाइटिस है जो जानवरों से इंसान में एक मच्छर कुलेक्स के काटने से फ़ैलता है । हाई फ़िवर , चक्कर तथा बेहोशी इस बिमारी के प्रमुख लक्षण हैं। शुरुआत में अंधेरे में तीर मारते हुये इसे लिच्ची नामक फ़ल को खाने से हुआ बताया गया , बाद में उससे इंकार किया सरकार ने परन्तु सरकार के इस एक बयान ने लिच्ची की बिक्री खत्म कर दी । बेचारे लिच्ची उपजाने वाले किसान भुख से मरने के कगार पर आ गयें। अस्पताल के बाहर गांवों में मरनेवालों की संख्या हजार से ज्यादा है । बमुश्किल १०० में एक – दो बिमार हीं अस्पताल पहुंचते हैं। सरकारी अस्पतालों की दयनिय स्थिति और डाक्टरों की उदासीनता के कारण निजी चिकित्सक से हीं इलाज कराना लोग सही मानते हैं। गांवों की स्थिति तो और भी दयनीय है , वहां सरकारी डाक्टर रहते नही हैं , गांवों की जनता का इलाज वही झोला छाप डाक्टर करते हैं। बिमारी का पता लगाने का कोई गंभीर प्रयास राज्य सरकार के द्वारा नही किया । आज एक माह हो चुका है । अब तो मीडिया की संवेदनशीलता भी मर रही है । बिहार से प्रकाशित होनेवाले अखबार , दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, आज , प्रभात खबर और वयवसाइयों के चैनल ईटीवी, न्यूज २४, कशिश टीवी , साधना , मौर्या को सरकार की दलाली और चाटुकारिता से फ़ुर्सत नही है । अखबारों में तो होड ्लगी है दिखाने की , कौन सबसे अछ्छी तरह चाट सकता है मुख्यमंत्री के चरण को । फ़िलहाल प्रभात खबर अभी सबसे आगे निकल चुका है चाटुकारिता में , उसने दैनिक जागरण को पछाड दिया है । जब बच्चें मर रहे थें नीतीश जी चीन में ट्रेन की रफ़्तार नाप रहे थें। अखबार वाले फ़ोटुक छापने में व्यस्त थें। अब नीतीश के चीन जाने का असली मकसद क्या था यह छापने की हिम्मत तो किसी अखबार की है नही । खैर नेताओं को भी निजता चाहिये इसलिये इस तरह के दौरों पर ज्यादा टिपण्णी क्या करना , लेकिन कम से कम दौरों को बढा चढाकर दिखाने से अखबारों को बाज आना चाहिये था। नीतीश जब वापस आयें बिहार में हरित क्रांति कैसे हो इसपे सेमिनार के लिये विदेशी विशेषग्य जिनकी दी हुई समस्या है खेतो की उपज आ जहरीला होना , उन्हें बुला लिया । पंच सितारा होटल में बैठकर बिहार के किसानों को बताया गया खेती कैसे और किस चीज की करें। बीज और खाद कौन सा डालें। इन सबके बीच बच्चे मरते रहें और साथ हीं सरकारी अफ़सरों तथा नेताओं की संवेदना भी । महंगाई को बढाने में तथा भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने में आगे रहने वाली भाजपा व्यस्त रही कांग्रेस को गरियाने में। काअंग्रेस व्यस्त रही जदयू को कोसने में , रामविलास फ़ारबिसगंज से अधिक देख हीं नही पा रहे हैं। लालू यादव तो वैसे भी अभी हार के सदमें से नहि उबर पाये हैं । लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा तकलीफ़देह रहा आम जनता का रवैया । कोई आवाज किसी कोने से नही उठी। कोई सामाजिक संस्था आगे नही आई । रामदेव और अन्ना के समर्थन में भरपेट खाकर अनशन करने वाले बिहार के बुद्धिजिवियों की बुद्धि जंतर – मंतर और रामलीला मैदान में हीं अभी तक भटक रही है इसलिये वे बेचारे क्या करतें । केन्द्र की बात हीं बेकार है , वह तो चाहेगा और ज्यादा मौत हो । मरनेवाले बच्चों की संख्या बढती जा रही है , राजा सो रहे हैं । राजा अंदर हीं अंदर खुश भी हैं , उनकी सता को स्वास्थ मंत्री अश्वनी चौबे से खतरा था । बिहार के चुनिंदा अच्छे चरित्र के नेताओं में चौबे माने जाते हैं। चौबे वैसे भी नीतीश की चमचागिरी से दुर रहते हैं। ये भजपा के मंत्री हैं। भजपा के कार्यकर्ताओं के उत्साह को बनायें रखने के लिये चौबे नीतीश की तर्ज पर स्वास्थ रथ तथा रैली निकालते रहे हैं जो नीतीश को खलता था । भजपा को नीतीश अपनी रखैल बनाकर रखना चाहते हैं और उनके इस काम में सुशील कुमार मोदी तथा प्रेम कुमार मंत्री जो भाजपा के पिछडी लाबी का नेतर्त्व करते हैं , नीतीश कुमार के साथ हैं नीतीश के लिये यह बदला साधने का अच्छा मौका था और उन्होने शुरु कर दिया लाशों पर राजनीति । सरकार और अखबारों की उदासीनता का एक और बहुत बडा कारण मरनेवाले बच्चों का गरीब तथा निम्न वर्ग का होना।
टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें
मुख्यमंत्री चीन में व्यस्त
नीतीश और अश्वनी चौबे के कारण बच्चे हो रहे हलाल
बिमारी का पता नही चला
बिहार में जानलेवा बिमारी से अभीतक तकरीबन सौ से ज्यादा बच्चों की मौत अस्पताल में हो चुकी है । बिमारी का पता नही चल रहा है । पह्ले यह आशंका थी की यह जापानी इंसेफ़ालाइटिस है लेकिन जांच में उसके लक्षण नही पाये गयें। अब यह अंदाज लगाया जा रहा है कि यह वायरल इंसेफ़ालाइटिस है जो जानवरों से इंसान में एक मच्छर कुलेक्स के काटने से फ़ैलता है । हाई फ़िवर , चक्कर तथा बेहोशी इस बिमारी के प्रमुख लक्षण हैं। शुरुआत में अंधेरे में तीर मारते हुये इसे लिच्ची नामक फ़ल को खाने से हुआ बताया गया , बाद में उससे इंकार किया सरकार ने परन्तु सरकार के इस एक बयान ने लिच्ची की बिक्री खत्म कर दी । बेचारे लिच्ची उपजाने वाले किसान भुख से मरने के कगार पर आ गयें। अस्पताल के बाहर गांवों में मरनेवालों की संख्या हजार से ज्यादा है । बमुश्किल १०० में एक – दो बिमार हीं अस्पताल पहुंचते हैं। सरकारी अस्पतालों की दयनिय स्थिति और डाक्टरों की उदासीनता के कारण निजी चिकित्सक से हीं इलाज कराना लोग सही मानते हैं। गांवों की स्थिति तो और भी दयनीय है , वहां सरकारी डाक्टर रहते नही हैं , गांवों की जनता का इलाज वही झोला छाप डाक्टर करते हैं। बिमारी का पता लगाने का कोई गंभीर प्रयास राज्य सरकार के द्वारा नही किया । आज एक माह हो चुका है । अब तो मीडिया की संवेदनशीलता भी मर रही है । बिहार से प्रकाशित होनेवाले अखबार , दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, आज , प्रभात खबर और वयवसाइयों के चैनल ईटीवी, न्यूज २४, कशिश टीवी , साधना , मौर्या को सरकार की दलाली और चाटुकारिता से फ़ुर्सत नही है । अखबारों में तो होड ्लगी है दिखाने की , कौन सबसे अछ्छी तरह चाट सकता है मुख्यमंत्री के चरण को । फ़िलहाल प्रभात खबर अभी सबसे आगे निकल चुका है चाटुकारिता में , उसने दैनिक जागरण को पछाड दिया है । जब बच्चें मर रहे थें नीतीश जी चीन में ट्रेन की रफ़्तार नाप रहे थें। अखबार वाले फ़ोटुक छापने में व्यस्त थें। अब नीतीश के चीन जाने का असली मकसद क्या था यह छापने की हिम्मत तो किसी अखबार की है नही । खैर नेताओं को भी निजता चाहिये इसलिये इस तरह के दौरों पर ज्यादा टिपण्णी क्या करना , लेकिन कम से कम दौरों को बढा चढाकर दिखाने से अखबारों को बाज आना चाहिये था। नीतीश जब वापस आयें बिहार में हरित क्रांति कैसे हो इसपे सेमिनार के लिये विदेशी विशेषग्य जिनकी दी हुई समस्या है खेतो की उपज आ जहरीला होना , उन्हें बुला लिया । पंच सितारा होटल में बैठकर बिहार के किसानों को बताया गया खेती कैसे और किस चीज की करें। बीज और खाद कौन सा डालें। इन सबके बीच बच्चे मरते रहें और साथ हीं सरकारी अफ़सरों तथा नेताओं की संवेदना भी । महंगाई को बढाने में तथा भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने में आगे रहने वाली भाजपा व्यस्त रही कांग्रेस को गरियाने में। काअंग्रेस व्यस्त रही जदयू को कोसने में , रामविलास फ़ारबिसगंज से अधिक देख हीं नही पा रहे हैं। लालू यादव तो वैसे भी अभी हार के सदमें से नहि उबर पाये हैं । लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा तकलीफ़देह रहा आम जनता का रवैया । कोई आवाज किसी कोने से नही उठी। कोई सामाजिक संस्था आगे नही आई । रामदेव और अन्ना के समर्थन में भरपेट खाकर अनशन करने वाले बिहार के बुद्धिजिवियों की बुद्धि जंतर – मंतर और रामलीला मैदान में हीं अभी तक भटक रही है इसलिये वे बेचारे क्या करतें । केन्द्र की बात हीं बेकार है , वह तो चाहेगा और ज्यादा मौत हो । मरनेवाले बच्चों की संख्या बढती जा रही है , राजा सो रहे हैं । राजा अंदर हीं अंदर खुश भी हैं , उनकी सता को स्वास्थ मंत्री अश्वनी चौबे से खतरा था । बिहार के चुनिंदा अच्छे चरित्र के नेताओं में चौबे माने जाते हैं। चौबे वैसे भी नीतीश की चमचागिरी से दुर रहते हैं। ये भजपा के मंत्री हैं। भजपा के कार्यकर्ताओं के उत्साह को बनायें रखने के लिये चौबे नीतीश की तर्ज पर स्वास्थ रथ तथा रैली निकालते रहे हैं जो नीतीश को खलता था । भजपा को नीतीश अपनी रखैल बनाकर रखना चाहते हैं और उनके इस काम में सुशील कुमार मोदी तथा प्रेम कुमार मंत्री जो भाजपा के पिछडी लाबी का नेतर्त्व करते हैं , नीतीश कुमार के साथ हैं नीतीश के लिये यह बदला साधने का अच्छा मौका था और उन्होने शुरु कर दिया लाशों पर राजनीति । सरकार और अखबारों की उदासीनता का एक और बहुत बडा कारण मरनेवाले बच्चों का गरीब तथा निम्न वर्ग का होना।
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