बेलगाम हो गई है बिहार पुलिस
बेलगाम हो गई है बिहार पुलिस
जनता के लिये दुश्मन है पुलिस
बिहार पुलिस अपनी बहादुरी जनता के उपर लाठी चलाकर तथा निर्दोष लोगों को झुठे मुकदमें में फ़ंसाकर दिखाती है लेकिन जब नक्सलवादियों से निपटने की बात आती है तो सारी बहादुरी धरी की धरी रह जाती है । नक्सलवादियों के खौफ़ के कारण गया जिले के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित थानों में रात को ताला लगा रहता है और आवारा कुत्ते पुलिस की रखवाली करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाली जनता को नक्सलियों का खौफ़ नही है , बल्कि नक्सलवाद के पहले ग्रामीण क्षेत्रों में जो पुलिस का आतंक कायम था उसमें कमी आई है । ग्रामीण क्षेत्रों में दबंगों की रंगदारी खत्म हो गई है । पहले जहां हरिजन और गरीब , मजदुर परिवार की लडकियां तथा औरतों को गांव के दबंग अपनी हवस का शिकार बनाते थें वह बंद हो गया है । हां, एक चीज को नक्सलवादी भी नही रोक पाये हैं , वह है पंचायत स्तर पर फ़ैला भ्रष्टाचार । अभी पंचायतों के चुनाव हुये , चुनाव से लेकर मतगणना तक कहीं से यह नही लगा कि प्रशासनिक पदाधिकारी इस चुनाव के प्रति गंभीर हैं। निचले स्तर के चुनाव में हिंसा तथा भ्रष्टाचार की संभावना सबसे ज्यादा होती है परन्तु चुनाव कार्य से जुडा सरकारी महकमा सबसे ज्यादा लापरवाही निचले स्तर के चुनाव में हीं बरतता है। बिहार के गया जिले के टिकारी थाना अन्तर्गत आनेवाला एक ग्राम पंचायत है बेलहडिया । इस पंचायत के चुनाव की मतगणना के दिन पुनर्मतगणना का विवाद पैदा हुआ । विवाद का कारण था कम मतों से जीत-हार। असद राईन नामक एक उम्मीदवार चार मतो से चुनाव में विजयी हो चुका था । विपक्ष में खडे उम्मीदवार के द्वारा पुन: मतगणना की मांग पर पुनर्मगणना की कई और इसबार पराजित उम्मीदवार को विजेता घोषित करते हुये प्रमाणपत्र भी निर्गत कर दिया गया । विवाद की शुरुआत भी यहीं से हुई . । मतगणना सभी मतदान केन्द्रों की होनी चाहिये थी परन्तु हुई मात्र ९ केन्द्रों की । मतदान केन्द्रों की संख्या थी चौदह । असद के विरोध को दबाने के लिये टेकारी थाने के थानाध्यक्ष सुभाष चन्द्र प्रसाद ने रायफ़ल के बट्ट तथा लाठियों से उसकी पिटाई शुरु कर दी । उपस्थित उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद उसे बख्शा गया तबतक वह बेहोश हो चुका था। यह एक उदाहरण मात्र था । पंचायत चुनाव में बिहार चुनाव आयोग पुरी तरह असफ़ल रहा । चुनाव आयोग ने प्रखंड पदाधिकारी , अंचल पदाधिकारी तथा निचले स्तर के प्रशासनिक पदाधिकारियों को आब्जर्वर बनाया था। ये अधिकारी गण बिहार में भ्रष्टाचार की नींव हैं। पंचायत चुनावों में उच्चाधिकारी पुरी तरह उदासीन रहें। बुथ पर कार्यरत पोलिंग पार्टी से लेकर मतगणना कार्य में लगे हुये सरकारी कर्मचारी या तो पक्षपात करते नजर आयें या लापरवाही पूर्वक मतगणना कार्य को अंजाम दिया । चुनाव आयोग ने किसी भी शिकायत का निराकरण नही किया । बिहार के हर जिले में मतगणना स्थल पर हंगामा हुआ और पुलिसिया गुंडागर्दी नजर आई । बिहार में वैसे भी पुलिस की गुंडागर्दी बढती जा रही है । जिले के स्तर के न्यायिक अधिकारी पुलिस विभाग के अधिकारियों के खिलाफ़ दायर मुकदमों में पक्षपातपूर्ण कार्य करते हैं। पंचायत चुनाव में हुये हंगामे पर अधिकारी यह कहकर खुद को दिलासा देते रहें कि निचले स्तर के चुनाव में सबसे ज्यादा तनाव रहता है इसी कारण से हंगामा हुआ । पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी । यह चुनाव एक मजाक बनकर रह गया। बिहार चुनाव आयोग की असफ़लता को देखते हुये बिहार चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त सहित चुनाव आयोग के सभी पदाधिकारियों को त्यागपत्र दे देना चाहिये । भारत के चुनाव आयोग के नियंत्रण में राज्य चुनाव आयोग रहता है इस नाते भारत का चुनाव आयोग भी अपनी जिम्मेवारी से नही बच सकता है ।
जनता के लिये दुश्मन है पुलिस
बिहार पुलिस अपनी बहादुरी जनता के उपर लाठी चलाकर तथा निर्दोष लोगों को झुठे मुकदमें में फ़ंसाकर दिखाती है लेकिन जब नक्सलवादियों से निपटने की बात आती है तो सारी बहादुरी धरी की धरी रह जाती है । नक्सलवादियों के खौफ़ के कारण गया जिले के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित थानों में रात को ताला लगा रहता है और आवारा कुत्ते पुलिस की रखवाली करते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाली जनता को नक्सलियों का खौफ़ नही है , बल्कि नक्सलवाद के पहले ग्रामीण क्षेत्रों में जो पुलिस का आतंक कायम था उसमें कमी आई है । ग्रामीण क्षेत्रों में दबंगों की रंगदारी खत्म हो गई है । पहले जहां हरिजन और गरीब , मजदुर परिवार की लडकियां तथा औरतों को गांव के दबंग अपनी हवस का शिकार बनाते थें वह बंद हो गया है । हां, एक चीज को नक्सलवादी भी नही रोक पाये हैं , वह है पंचायत स्तर पर फ़ैला भ्रष्टाचार । अभी पंचायतों के चुनाव हुये , चुनाव से लेकर मतगणना तक कहीं से यह नही लगा कि प्रशासनिक पदाधिकारी इस चुनाव के प्रति गंभीर हैं। निचले स्तर के चुनाव में हिंसा तथा भ्रष्टाचार की संभावना सबसे ज्यादा होती है परन्तु चुनाव कार्य से जुडा सरकारी महकमा सबसे ज्यादा लापरवाही निचले स्तर के चुनाव में हीं बरतता है। बिहार के गया जिले के टिकारी थाना अन्तर्गत आनेवाला एक ग्राम पंचायत है बेलहडिया । इस पंचायत के चुनाव की मतगणना के दिन पुनर्मतगणना का विवाद पैदा हुआ । विवाद का कारण था कम मतों से जीत-हार। असद राईन नामक एक उम्मीदवार चार मतो से चुनाव में विजयी हो चुका था । विपक्ष में खडे उम्मीदवार के द्वारा पुन: मतगणना की मांग पर पुनर्मगणना की कई और इसबार पराजित उम्मीदवार को विजेता घोषित करते हुये प्रमाणपत्र भी निर्गत कर दिया गया । विवाद की शुरुआत भी यहीं से हुई . । मतगणना सभी मतदान केन्द्रों की होनी चाहिये थी परन्तु हुई मात्र ९ केन्द्रों की । मतदान केन्द्रों की संख्या थी चौदह । असद के विरोध को दबाने के लिये टेकारी थाने के थानाध्यक्ष सुभाष चन्द्र प्रसाद ने रायफ़ल के बट्ट तथा लाठियों से उसकी पिटाई शुरु कर दी । उपस्थित उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद उसे बख्शा गया तबतक वह बेहोश हो चुका था। यह एक उदाहरण मात्र था । पंचायत चुनाव में बिहार चुनाव आयोग पुरी तरह असफ़ल रहा । चुनाव आयोग ने प्रखंड पदाधिकारी , अंचल पदाधिकारी तथा निचले स्तर के प्रशासनिक पदाधिकारियों को आब्जर्वर बनाया था। ये अधिकारी गण बिहार में भ्रष्टाचार की नींव हैं। पंचायत चुनावों में उच्चाधिकारी पुरी तरह उदासीन रहें। बुथ पर कार्यरत पोलिंग पार्टी से लेकर मतगणना कार्य में लगे हुये सरकारी कर्मचारी या तो पक्षपात करते नजर आयें या लापरवाही पूर्वक मतगणना कार्य को अंजाम दिया । चुनाव आयोग ने किसी भी शिकायत का निराकरण नही किया । बिहार के हर जिले में मतगणना स्थल पर हंगामा हुआ और पुलिसिया गुंडागर्दी नजर आई । बिहार में वैसे भी पुलिस की गुंडागर्दी बढती जा रही है । जिले के स्तर के न्यायिक अधिकारी पुलिस विभाग के अधिकारियों के खिलाफ़ दायर मुकदमों में पक्षपातपूर्ण कार्य करते हैं। पंचायत चुनाव में हुये हंगामे पर अधिकारी यह कहकर खुद को दिलासा देते रहें कि निचले स्तर के चुनाव में सबसे ज्यादा तनाव रहता है इसी कारण से हंगामा हुआ । पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी । यह चुनाव एक मजाक बनकर रह गया। बिहार चुनाव आयोग की असफ़लता को देखते हुये बिहार चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त सहित चुनाव आयोग के सभी पदाधिकारियों को त्यागपत्र दे देना चाहिये । भारत के चुनाव आयोग के नियंत्रण में राज्य चुनाव आयोग रहता है इस नाते भारत का चुनाव आयोग भी अपनी जिम्मेवारी से नही बच सकता है ।
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