पुर्णिया में बलात्कारी की पत्नी विजयी
पुर्णिया में बलात्कारी की पत्नी विजयी
भाजपा की उम्मीदवार
पुर्णिया की जनता बलात्कार से प्रसन्न
बिहार के बारे में अक्सर सुनने में आता है कि महाराष्ट्र से लेकर अन्य राज्यों में यहां के लडकों को लतियाया जाता है । नौकरी के लिये परीक्षा देने जाने पर इनकी पिटाई होती है । शीला दिक्षीत से लेकर बाल ठाकरे तक सभी मानते हैं बिहारी गंदे और चोर भी हैं। यानी नैतिक रुप से बुरे हैं। यह सच है । लाख कोई विरोध करे , इससे मुंह नही मोड सकता । बिहारियों में जातिवाद और संप्रदायिकता कुट कुट कर भरी है । अभी एक बलात्कारी विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या हुई । वह पुर्णिया का विधायक था । वहां उप – चुनाव हुयें । उक्त बलात्कारी की पत्नी वहां से भाजपा की उम्मीदवार बनी , वह जीत गई । ५३ हजार से ज्यादा मत उसे मिलें। राजकिशोर केसरी ने अपने गुर्गों के साथ एक शिक्षिका का यौन शोषण किया था । केसरी जब उक्त महिला की बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था तब उसने केसरी की हत्या कर दी थी। इस जीत ने एक बात तो साफ़ कर दी , बिहार के लोग अभी भी उतने हीं गंदे हैं जितने आज से ५०-६० पहले थें कुछेक अपवादों को छोडकर । जो बिहार से बाहर चले गये हैं उनके अंदर सभ्यता और संस्कार विकसित हुआ है लेकिन यहां रहने वालों के अंदर नही। यहां अपनी बेटी के साथ बलात्कार होनेपर लोग खुब चिल्लाते हैं लेकिन दुसरे साथ होने पर तमाशा देखते हैं। पुर्णिया के चुनाव परिणाम ने यह तो साफ़ कर ्दिया की लोगों ने बलात्कारी विधायक को अपनी श्रंद्धाजली दी , उसकी पत्नी को विजयी बनाकर । अब वह सारे लोग जिन्होने बलात्कारी की पत्नी को मत दिये हैं उन्हें अपनी बेटी या बहन के साथ बलात्कार होने की स्थिति में शिकायत नही करनी चाहिये । मजेदार बात यह है कि चरित्र की ठेकेदार भाजपा के समर्थक हैं ये सारे लोग तो क्या यह मान लिया जाय कि भाजपा बलात्कारियों की पार्टी है ? और बलात्कार करनेवालों के लिये सही जगह भाजपा हीं है .
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भाजपा की उम्मीदवार
पुर्णिया की जनता बलात्कार से प्रसन्न
बिहार के बारे में अक्सर सुनने में आता है कि महाराष्ट्र से लेकर अन्य राज्यों में यहां के लडकों को लतियाया जाता है । नौकरी के लिये परीक्षा देने जाने पर इनकी पिटाई होती है । शीला दिक्षीत से लेकर बाल ठाकरे तक सभी मानते हैं बिहारी गंदे और चोर भी हैं। यानी नैतिक रुप से बुरे हैं। यह सच है । लाख कोई विरोध करे , इससे मुंह नही मोड सकता । बिहारियों में जातिवाद और संप्रदायिकता कुट कुट कर भरी है । अभी एक बलात्कारी विधायक राजकिशोर केसरी की हत्या हुई । वह पुर्णिया का विधायक था । वहां उप – चुनाव हुयें । उक्त बलात्कारी की पत्नी वहां से भाजपा की उम्मीदवार बनी , वह जीत गई । ५३ हजार से ज्यादा मत उसे मिलें। राजकिशोर केसरी ने अपने गुर्गों के साथ एक शिक्षिका का यौन शोषण किया था । केसरी जब उक्त महिला की बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाना चाहता था तब उसने केसरी की हत्या कर दी थी। इस जीत ने एक बात तो साफ़ कर दी , बिहार के लोग अभी भी उतने हीं गंदे हैं जितने आज से ५०-६० पहले थें कुछेक अपवादों को छोडकर । जो बिहार से बाहर चले गये हैं उनके अंदर सभ्यता और संस्कार विकसित हुआ है लेकिन यहां रहने वालों के अंदर नही। यहां अपनी बेटी के साथ बलात्कार होनेपर लोग खुब चिल्लाते हैं लेकिन दुसरे साथ होने पर तमाशा देखते हैं। पुर्णिया के चुनाव परिणाम ने यह तो साफ़ कर ्दिया की लोगों ने बलात्कारी विधायक को अपनी श्रंद्धाजली दी , उसकी पत्नी को विजयी बनाकर । अब वह सारे लोग जिन्होने बलात्कारी की पत्नी को मत दिये हैं उन्हें अपनी बेटी या बहन के साथ बलात्कार होने की स्थिति में शिकायत नही करनी चाहिये । मजेदार बात यह है कि चरित्र की ठेकेदार भाजपा के समर्थक हैं ये सारे लोग तो क्या यह मान लिया जाय कि भाजपा बलात्कारियों की पार्टी है ? और बलात्कार करनेवालों के लिये सही जगह भाजपा हीं है .
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अपराधियों का चुनाव जीतना हमेशा गलत होता है मगर शीर्षक और शेष आलेख में जैसी भाषा लिखी गयी है उससे यही सिद्ध होता है कि लिखने वाला एक बदतमीज़ और बददिमाग इंसान है.
ReplyDeleteमिर्च को चीनी में लपेट देने से वह चीनी नही बन जाती। जनता सारी मुसीबत की जड है । वह अपराधियों को जिताती है दुसरी तरफ़ भ्रष्टाचार के खिलाफ़ भी बोलती है , कैसा है यह दोगला चरित्र .
ReplyDeleteइसी साल महाराष्ट्र में एक विधायक पर भी बलात्कार का आरोप लगा था. अगर लेखक महोदय महाराष्ट्र में बैठकर वहां के लोगों के बारे में हिन्दीभाषी होकर ऐसे सुवचन लिखते तो ठाकरे बन्धु सारी बौद्धिकता झाड देते. बिहार में ऐसी राजनीतिक विचारधारा नहीं रही है इसीलिए गैर प्रांत का होकर भी (लेखक ने स्वयं एक दूसरे आलेख में कहा है कि वह यूपी का है) लेखक बिहार में बैठकर बिहार के लोगों को नैतिक रूप से बुरा, गंदा और तमाम ऐसी उपाधियों से विभूषित कर रहा है. लेखक समाज को दोगला कहते हुए खुद कैसे अद्भुत दोगलेपन का परिचय दे रहा है?
ReplyDeleteपह्ली बात मैं यूपी का ्नही हूं । हां खानदानी घर है वहां। पैदा हुआ , पला बढा बिहार में। आप शब्दों से अपनी गंदगी नहीं ढक सकतें। मैने वही लिखा जो सच हैऽगर आपको यह नही दिखता तो क्या करें। बाला साहब जैसे तो क्षेत्रवाद की देन हीं हैं.
ReplyDeleteअब तो यह स्पष्ट हो चला है कि लिखने वाला बदतमीज़ ही नहीं पागल भी है.
ReplyDeleteधन्यवाद आपके मधुर वचन के लिये ।
ReplyDeleteसाधु, साधु! पूर्णतया सहमत तमाम आदरसूचक विशेषणों से......गंदे, चोर, नैतिक रूप से बुरे, सभ्यता और संस्कार से विहीन, आदि इत्यादि. मगर "कुछेक अपवादों" की क्या आवश्यकता पड़ गयी मित्र? डर लगने लगा था कि कहीं खुद भी ऐसे ही न समझे जाएँ? मगर यह तो होगा ही.खुदा खैर करे आपकी औलादों की, लेकिन मौजूदा सूरतेहाल में तो "लतियाया" उनको भी जाएगा ही बंधुवर.....शीला दीक्षित, बाल ठाकरे, जिनकी राय को आप इतनी तरजीह दे रहे हैं, आपको थोड़े ही न अलग करके देखेंगे. वे तो आपको उसी गलीज़ स्थिति में मानेंगे जिसमें आपके बन्धु-बांधव, आपके ही शब्दों में, पचास-साठ सालों से हैं. वैसे यह भी अचरज का विषय है कि पचास-साठ साल पहले की स्थिति से आप अवगत हैं जबकि स्वयं अपने प्रोफाइल में अपनी उम्र अडतालीस बतलाते हैं. शायद कोई अतीन्द्रिय अनुभूति रही होगी.
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