बिहार : यादववाद से निकला भुमिहारवाद में फ़सा
बिहार : यादववाद से निकला भुमिहारवाद में फ़सा
बिहार की किस्मत हीं शायद खराब है। वीपी सिंह के मंडल कमिशन के खतरनाक खेल ने बिहार की धरती को टुकडे –टुकडे में बांट दिया। पिछडावाद की राजनीति करनेवाले शरद , नीतीश, रंजन यादव जैसौ ने लालू को सामने करके जातिगत विभाजन को सैद्धांतिक जामा पहनाया और लालू यादव सता पर काबिज हुयें। ऐसा लगा बिहार अब स्वर्ग बन जायेगा , सारी समस्या सिर्फ़ अगडी जातियों की देन थी । आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान ट्रेनों में जाति पुछ-पुछकर लोगों को मारा गया , पटना की कालोनियों में तथाकथित उच्च जाति की महिलाओं के साथ घर में घुसकर बलात्कार किया गया। सामने चेहरा था यादवों का और बुद्धि तथा सलाह थी कु्र्मी –कोयरी की । मुझे अच्छी तरह से याद है , गया के जगजीवन कालेज में एक प्रोफ़ेसर तिवारी थे , आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान उनकी निर्मम हत्या कोयरी जाति के गुंडो ने कर दी । बाद में उनमें से एक को भाजपा के द्वरा विधायक का टिकट भी मिला। अपने शासन के प्रारम्भिक सात वर्षों मे लालू ने पिछडे वाद को यादवों की जागीर बना दिया । लालू के साथी रहे नीतीश ने जब देखा कि लालू का पिछडावाद यादवों तक सिमट कर रह गया है और मुस्लिम समाज पर पकड कायम कर चुके लालू का मजबुत होने का अर्थ होगा नीतीश जैसे लताओं का समय के साथ समाप्त हो जाना तो उन्होने बगावत के स्वर तेज कर दिये । खुद नैपथ्य में रहकर जार्ज जैसे महान नेता को मोहरा बनाया । चारा घोटाला में फ़सने के बाद लालू के उपर उनके साले और दल के गुंडा तत्व पुरी तरह हावी हो चुके थें। जातिवाद का सबसे बडा नकरात्मक पहलू यह है कि सता के संरक्षण में अत्याचार करने वाली जाति , धीरे-धीरे अन्य जातियों की नजरों में गिरती चली जाती है । दुष्परिणाम होता है कि बाकी जातियां उसके खिलाफ़ हो कर चुनाव में बदला लेती हैं। कुछ ऐसा हीं प्रकरण उतर प्रदेश का है । मुलायम यादव के यादववाद ने मायावती को ब्राह्मणो के साथ एक मंच पर ला खडा किया , ब्राह्मण भी बहुत दिनों से सता से दूर थे , यारी पट गई। लेकिन हर द्ल टिकट बांटने के लिये एक हीं पैमाने को प्राथमिकता देता है , वह है जितने की क्षमता रखने वाला उम्मीदवार , यानी धनपशु या बाहुबली । उतरप्रदेश में चुन-चुनकर अपराधी ब्राह्मणो को टिकट दिया । परिणाम सामने है । अधिकांश बलात्कार और अत्याचार के मामले में ब्राह्मण विधायक या नेताओं का नाम आ रहा है , यह यूपी के सभी ब्राह्मणो को प्रभावित करेगा , पुरी ब्राह्मण जाति अन्य जातियों की नजरों में गिर जायेगी । यूपी का जिक्र इसलिये कर दिया कि स्वयं भी यूपी का हूं और ब्राह्मण भी हूं। खैर अब आता हूं, बिहार पर , यादवों के अत्याचार और सता द्वारा मिल रहे संरक्षण का परिणाम हुआ , अन्य जातियों का विरोध । विरोध की इस लडाई में भुमिहार सबसे आगे थें। कारण था लालू के सतासीन होने के पहले गांवो में अघोषित शासन भुमिहारों का हीं था। पहली बार उनकी सता को यादवो से चुनौती मिली थी । सता छीन गई । लेकिन एक जुझारु जाति होने के कारण भुमिहारों ने लडाई जारी रखी । नीतीश ने एक रणनिति के तहत भुमिहारों को आगे रखा । उनके पहले हालांकि आनंद मोहन यादववाद के विरोध में जंग छेड चुके थें, युवा चे्हरा आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री देख रहा था , लेकिन फ़िर सडे हुये पक चुके राजनितिग्यो को यह रास नही आया । भुमिहारों के बीच भी नये चेहरे राजनीतिक पटल पर जगह बना चुके थें, उनमें से कुछ बदनाम चेहरे भी थे जो लालू के यादववाद की प्रतिक्रिया की उपज थें। खुरार्ट नेताओं ने आनंदमोहन को खत्म करने की साजिश शुरु कर दी , बाकी कसर राजपुतों ने पुरी कर दी । लालू के मंच की तरह आनंद मोहन के हर मंच पर सिर्फ़ राजपुत चेहरे नजर आने लगे। अपने राजनीतिक कैरियर के ताबुत में अंतिम किल खुद आनंदमोहन ने ठोकी , लालू से समझौता कर के । आज आनंदमोहन जेल में एक ऐसे हत्या की सजा काट रहे है , जो उन्होने नही की है । आनंद मोहन के पतन के बाद नीतीश को लालू के विरोध की ्तैयार जमीन मिल गई । जनता को लालू का विकल्प चाहिये था , उस विकल्प के रुप में नीतीश ने खुद को परोसना शुरु किया , भुमिहारों को भी एक-केन प्रकरेण यादवों को सबक सिखाना था , एकजुट खडे हो गये नीतीश के पीछे । भुमिहार जाति आर्थिक , सामाजिक एवं शैक्षिक स्तर पर अन्य सभी जातियों से आगे है , ्प्रशासन से न्यायपालिका तक सभी अच्छे पदो पर काबिज होने का फ़ायदा मिला और एक मुहिम छिड गई , नीतीश को मसीहा तथा लालू को अत्याचारी प्रोजेक्ट करने की । मीडिया की ताकत से वाकिफ़ बुद्धिजिवियों ने इस मुहिम का संचालन बडे सुलझे तरीके से व्यापक स्तर पर किया । जातिगत गोलबंदी बिना किसी सम्मेलन के शुरु हो गई । मुस्लिम समाज को लालू से अलग करने के लिये कांग्रेस के अंदर बैठे लोगो ने नीतीश के लिये काम करना शुरु कर दिया । महाचंद्र सिंह जैसा कांग्रेस का पुराने नेता और अवधेश सिंह ने इसकी बागडोर संभाली । लोक सभा के चुनाव में कांग्रेस ने अलग होकर चुनाव लडा । वह चुनाव लालू के लिये वाटर लू साबित हुआ । कांग्रेस मुस्लिम मतो को विभाजित करने में सफ़ल रही । लेकिन लोक सभा चुनाव के तुरंत बात १८ विधान सभा के उप चुनाव हुये और लालू –रामविलास गठबंधन ने १२ सीटे हासिल करके भाजपा –जदयू को धुल चटा कर यह साबित कर दिया की लालू को कमजोर समझना भूल है । एक बार फ़िर कवायद शुरु हुई लालू को खत्म करने की । नीतीश के रणनीतिकार यह समझ चुके थें कि लालू को समाप्त करने के लिये अभी बहुत मेहनत की जरुरत है । बिना तिकडमबाजी के लालू को समाप्त नही किया जा सकता । मीडिया मैनेजमेंट से लेकर जाति मैनेजमेंट की रणनीति तैयार की गई । मीडिया के क्षेत्र में बिहार में शीर्ष स्तर पर ब्राह्मण , कायस्थ और भुमिहार की अपनी –अपनी लाबी है । इन्होने कमान संभाली और एक बार फ़िर नीतीश के पक्ष में महिमा मंडन शुरु हुआ । राजनीतिक स्तर पर कम्यूनिस्ट से लेकर कांग्रेस के बडे नेताओं तक फ़िलरों के माध्यम से यह विचार विभिन्न श्रोतों से पहुंचाया गया की जनमत लालू के विरोध में है , जो दल लालू के विरोध में सबसे आगे नजर आयेगा जनता उसी को प्राथमिकता देगी। अधिकारियों के स्तर पर भी जातीय गोलबंदी शुरु कर दी गई । रामबिलास को खत्म करने के लिये अति दलित का ड्रामा शुरु हुआ। कमान केपी रमैया जैसे आई ए एस अधिकारी के हाथ में दी गई । रमैया ने खुलकर यह संदेश दिया कि जबतक नीतीश हैं महादलित जिंदा है । नीतीश को महादलितों का महानायक बना दिया । हालांकि इन सभी कवायदों के बाद भी विधान सभा उप चुनाव के नतीजे डर पैदा किये हुये थे। परिस्थितियों में भी कोई खास बदलाव नही हुआ था। अब एक नई तैयारी शुरु हुई । वह थी तकनीक के स्तर पर लालू को समाप्त करने की और इसमे अहम भुमिका अदा की तकनीक के जानकार उच्च अधिकारियों ने ईवीएम मे नई तकनीक के सहारे मतों के फ़ेरबदल करने की तकनीक अपनाई गई। चुनाव परिणाम अविश्वसनीय था। लेकिन मीडिया मैनेजमेंट ने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के माध्यम से यह जमीन तैयार कर दी थी कि लोग यह विश्वास कर ले की चुनाव के नतीजे सही हैं। एक कहावत है अपराधी सबुत छोड जाता है। चुनाव के बाद यह स्पष्ट हो गया कि कहीं न कहीं कुछ गडबड है। मैं स्वंय ईवीएम के दुरुपयोग से संबंधित दो राज्यों के नतिजे पर काम कर रहा था । एक था उडीसा दुसरा बिहार । सबुत हाथ आये, स्वंय जितने और हारने वाले दोनो ने स्वीकार किया ईवीएम में खराबी थी । यह नही स्वीकार किया की ईवीएम को प्रभावित किया गया था । कारण था यह सारा मामला सीएम और डीएम के बीच था। खैर यह अलग जांच का विषय है । जे हेल्डर मैन जो मिशीगन विश्वविद्यालय के कम्प्यूटर सांईस के प्रोफ़ेसर है और उन्होने यह साबित किया था की ईवीएम के नतिजों को प्रभावित करना बहुत आसान है , उनको भारत की सरकार ने दिल्ली हवाई अड्डे से वापस भेज दिया , देश में दाखिल होने की अनुमति नही दी । खैर पुन: आता हूं मुख्य मुद्दे पर । चुनाव के नतिजे आश्चर्यचकित करनेवाले थें। लालू को भी यह अहसास नही था की तकनीक का फ़ायदा उठाकर चुनाव जिता सकता है । चुनाव के बाद सरकार का गठन हुआ । २० मंत्री बनायेगयें। ठेके –पट्टे का दौर शुरु हो चुका है और उसके साथ हीं परवान चढने लगा है एक नया जातिवाद । लालू के शासन के दौरान मन मसोस कर रहने वाली जाति भुमिहार ने सभी क्षेत्रों में पैर फ़ैलाना शुरु कर दिया है । इस शिक्षित जाति की पकड हर क्षेत्र में है । यहां तक की न्यायपालिका जिसने लालू के शासन के दौरान अंकुश लगाने का कार्य किया था , वहां भी निचली अदालतों से लेकर उच्च न्यायालय तक भुमिहार जाति की एक अपनी लाबी है । कोई भी ठेका , लाईसेंस या नियुक्ति बिना भुमिहार लाबी के नही हो सकती है । लोग भी यह महसुस करने लगे हैं। थानों में मुकदमे दर्ज नही होते परिणाम न्यायालयों में मुकदमा दर्ज करने वालो की भीड लग गई है । हर काम के लिये मंत्री की सिफ़ारिश चाहिये और किसी मंत्री की हिम्मत नही है भुमिहार जाति से संबंधित मामलों में उसके खिलाफ़ जायज पैरवी भी करे। अचानक भुमिहार जाति के लोगो पर मुकदमों की संख्या में कमी आ गई है । पंचायतों से लेकर नगरपालिकाओं तक भुमिहार जाति के संरक्षण के बगैर कोई काम नही हो सकता । मामला चाहे राज्य के मद से राशि या अनुदान लाने का हो या नई योजनाओं की स्वीकर्ति की । हर काम के लिये एक भुमिहार नेता की जरुरत है । थाने में कोई मुकदमा हो जाये , एक अदना सा भुमिहार जाति का व्यक्ति तुरंत मंत्री को फ़ोन लगाता है और मंत्री महोदय फ़ोन से हीं निर्देश देते है , कुछ ऐसा हीं जलवा यादव जाति के लोगो का लालू यादव के शासन में देखने में आया था। अंदर बस इतना सा है कि लालू के समय यादववाद का बहुत हीं विभत्स रुप और भौडा प्रदर्शन देखने में आता था , कारण था यादव जाति का अशिक्षित होना , अब भुमिहार जाति के लोग वैसा नही करते , ये राईफ़ल लेकर चलते हैं लेकिन उसकी नाल गाडी के बाहर नही दिखती । ये यादवों की तरह दारु पीकर सडको पर लोगो को खुलेआम गालियां नही बकते बल्कि जिसको गाली देनी होती है उसके घर में घुसकर गाली देते हैं। केस भी दर्ज नही होता अगर हुआ तो अंकल जजो की बदौलत जमानत मिलना तय है । धीरे-धीरे बिहार जातिवाद के खतरनाक भंवर में फ़सता जा रहा है । यह भंवर राजनितिक दलों की देन है । नीतीश कहते है बिहार ने विकास को जातिवाद की जगह तरजीह दी लेकिन यह इस सदी का सबसे बडा झूठ है । वस्तुतु: नीतीश ने जातिवाद को निचले स्तर तक पहुंचा दिया है और उसे अपनी उपलब्धि बताते हैं , महिलाओं को आरक्षण देने की उपलब्धि। यह कुछ ऐसा हीं है की विधायक निधी समाप्त करके मुख्यमंत्री निधी का गठन करने जैसा । मुख्यमंत्री कोष का उपयोग , मुख्यमंत्री की मर्जी से होगा और जहां वह चाहेंगे उसी विधानसभा क्षेत्र में होगा । दलितों को भी टुकडे-टुकडे में विभाजित कर दिया है । दुर्भाग्य शायद बिहार का पिछा नही छोडने वाला । हम कह सकते है अब तक तो जो भी यार मिले बेवफ़ा मिले।
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