राष्ट्रद्रोही हैं अन्ना ग्रुप





अमेरिका की मदद से चल रहा है अन्ना का आंदोलन



कश्मीरी अलगावादियों का समर्थक है अन्ना ग्रुप



अन्ना ग्रुप अराजकता फ़ैलाना चाहता है



मानीष सिसोदिया, अरविंद , किरन, भुषण किसको कितना पैसा अमेरिका से मिला यह बताओ.



गांधिवादियों को आगे आने की जरुरत है




अन्ना १६ अगस्त से अनशन शुरु करने की धमकी दे रहे हैं । मात्र दो दिन बाद । अन्ना को स्वंय नही पता कि लोकपाल बिल क्या है । अन्ना मात्र एक चेहरा हैं , दो अति महत्वकांक्षी व्यक्तियों की देन है यह जनलोकपाल नाक का ड्रामा।एक है अरविंद केजरीवाल , दुसरा मनीष सिसोदिया । अरविंद केजरीवाल आईआरएस में था एलायड सर्विस है यह । मनीष सिसोदिया पत्रकार है , इसकी एक संस्था है कबीर । इनलोगों की संस्थायें सामाजिक काम के लिये नही बनी है बल्कि सरकार के अनुदान और विदेशों से मिले दान को भी हासिल करने की नियत से बनाई गई है । मनीष की एक संस्था है कबीर जो संस्था निबंधित है । समाजसेवा के लिये संस्था का निबंधित होना जरुरी नही है ।




निबंधन की जरुरत तभी पडती है , जब सरकार से अनुदान या दान लेना हो । कबीर आयकर से भी निबंधित है यानी अगर कोई व्यक्ति कबीर को दान देता है तो दान दाता को उस राशी पर आयकर नही देना पडेगा । मनीष सिसोदिया की संस्था कबीर को विदेशो से भी अच्छा –खासा दान मिलता है । संस्थाओं का खेल बहुत पेचीदा है ।संस्था के माध्यम से आयकर की चोरी सबसे आसान है । अगर किसी व्यक्ति को आयकर बचाना है तो वह संस्था को एक करोड रुपया अपनी आय मे से देगा , उस एक करोड पर दान देने वाले को आयकर नही देना पडेगा । जिस संस्था को दान दिया है , वह संस्था आयकर की जो बचत हुई है , उसमें से आधी रकम ले लेगी , बाकी पैसा को विभिन्न माध्यम से खर्च दिखला दिया जायेगा और उसे दान दाता को वापस कर दिया जायेगा ।




विदेश से भी विभिन्न कार्यो के लिये धन प्राप्त होता है मनीष सिसोदिया की संस्था कबीर को दो लाख डालर का दान फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन नाम की अमेरिकी संस्था ने दिया है । अमेरिका की एक कुख्यात संस्था है सीआईए । सभी को पता है सीआईए अमेरिकी हितों की रक्षा के लिये विदेशो में काम करती है । इसके काम का तरीका सबसे अलग होता है । मुख्य रुप से सीआईए किसी भी देश की सरकार को अमेरिका का पक्षधर बनाये रखने का कार्य करती है । यह संस्था मंत्रियों से लेकर सांसद , सामाजसेवी, अधिकारी और विपक्षी दलों को अप्रत्यक्ष तरीके से मदद पहुचाती है ताकी वक्त पर अमेरिकी हितो की रक्षा हो सके ।


मदद का तरीका भी अलग – अलग होता है विभिन्न दलों के राज्यों के मुख्यमंत्रियों को समारोहों में निमंत्रित करना , विपक्षी दलों के कद्दावर नेता तथा सांसदो को किसी न किसी बहाने से विदेश भ्रमण कराना । सामाजिक कार्यकर्ताओं की संस्था को अमेरिकी संस्थाओं द्वारा दान दिलवाना । सीआईए नेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तथा अधिकारी तक की कमजोर नस को पकडती है अगर किसी की कमजोर नस लडकी है तो उसकी भी व्यवस्था की जाती है। बच्चों के लिये स्कालरशिप से लेकर नौकरी तक की भी व्यवस्था यह सीआईए करती है . फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन का कार्य हमेशा संदिग्ध रहा है ।


उसी फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से मदद मिलती है मनीष सिसोदिया की संस्था कबीर को और अन्ना के आंदोलन के संचालन का सारा खर्च मनीष सिसोदिया तथा अरविंद केजरीवाल वहन कर रहे हैं। वस्तुत: इन दोनो अति महत्वकांक्षियों ने हीं, जनलोकपाल नाम के एक कानून की स्थापना के लिये आंदोलन की रुपरेखा तय की । इन दोनो को पता था कि अगर सिर्फ़ ये दोनो इस आंदोलन की शुरुआत करेंगे तो यह टायं-टायं फ़िस्स हो जायेगा । हो सकता था कि रामदेव की तर्ज पर इनकी संस्थाओं की जांच भी होने लगे , वैसी स्थिति में इनका क्या हश्र होगा इनको पता था।


इन्हें कुछ नामी –गिरामी चेहरों की तलाश थी । शुरुआत में किरन बेदी, शांतिभुषण , रामदेव और रविशंकर को जोडने का प्रयास इन दोनो ने किया । बात नही जमी। किरन बेदी खुद आरोपो से घिरी थीं। भुषण बाप-बेटे पर इलाहाबाद के एक परिवार को ७० साल तक मुकदमे में फ़साकर अपनी संपति इन्हें बेचने के लिये बाध्य करने का आरोप लगा था। भुषण पिता-पुत्र की कहानी भी किसी जमीन कब्जा करने वाले गुंडे से कम रोचक नही है । अपने नामी वकील होने का सबसे गलत फ़ायदा दोनो पिता – पुत्र ने उठाया है । लेकिन उसकी चर्चा बाद में करेंगे।


एक मोहरे की खोज जारी रही । अन्ना के रुप में इन्हें संभावना नजर आई । महाराष्ट्र में अपने गांव में कुछ सामाजिक काम अन्ना ने किये थें। वह भी एक संस्था चलाते थें। अन्ना के भूत के बारे में बहुत कम लोगों को पता था । राष्ट्रीय स्तर पर भी अन्ना को बहुत कम लोग जानते थें। लेकिन वर्तमान तकनीक के इस दौर यह कोई समस्या नहि थी । अन्ना सबसे उम्दा बकरा थें इनदोनों के लिये । नाम के भुखे थें। शिक्षा मात्र सातवीं पास हिंदी – अंग्रेजी का ग्यान नही था। गांधी टोपी पहनते थें संप्रदायिक कहलाने का भी भय नही था। बहुत आराम से गांधीवादी कहकर अन्ना ब्रांड को लांच किया जा सकता था।

आज भी अन्ना की पिछली जिंदगी को छुपाया जाता है । अभीतक जो सूचना अन्ना के बारे में उपलब्ध है , उसके अनुसार अन्ना का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के भिंगर नामक गांव में हुआ था । इनके पिता का नाम बाबूराव हजारे तथा माता का नाम लक्षमी बाई था। पांच एकड जमीन के मालिक अन्ना के पिता एक मजदूर या कर्षक थें। परिवारिक कारणो से १९५२ में इनका परिवार रालेगांव सिद्धि नामक जगह पर जा बसा ।

अन्ना का बचपन इनकी एक संतानहीन चाची जो बंबई में रहती थी वहां बीता । अन्ना ने सातवीं तक शिक्षा ग्रहण की । इसके बाद के कुछ सालों को अन्ना के जिंदगी की कहानी से हटा दिया गया है और इन्हें सेना की नौकरी में दिखलाने का प्रयास सभी जगह किया गया है । अन्ना जब बंबई में थें तो ये फ़ूल बेचने का धंधा बचपन में करते थें । कुछ पैसे आ जाने के बाद अन्ना ने फ़ूलों की दुकान खोल ली ।

अन्ना का एक अपना ग्रुप था आवारा लडकों का जो खुद को अपने क्षेत्र का दादा समझते थें। अन्ना का ग्रुप मारपीट करने में आगे रहता था । अन्ना की इन्हीं हरकतों के कारण परिवार का दबाव उनके उपर पडा और उन्हें सेना की नौकरी में जाना पडा । अन्ना खुद भी अपनी जिंदगी के बहुत सारे पहलू को उजागर नही करना चाहते हैं।


वर्तमान में मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल के इशारे पर अन्ना काम कर रहे हैं । अमेरिकी संस्था अप्रत्यक्ष रुप से अन्ना के आंदोलन को आर्थिक मदद दे रहा है । फ़ोर्ड फ़ाऊंडेशन ने मदद का नाम दिया है पारदर्शी , जिम्मेवार और प्रभावशाली सरकार के लिये प्रयास करना यानी सरकार के खिलाफ़ विद्रोफ़ करना। अन्ना के आंदोलन देश के वैसे बिजनेसमैन जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं आर्थिक मदद पहुंचा रहे है । अराजकता फ़ैलाना उनका उद्देश्य है ताकि उनके खिलाफ़ जो जांच चल रही है वह बाधित हो जाय । अन्ना की टीम को अरुंधती राय तथा स्वामी अग्नीवेश जैसे लोग मदद कर रहे हैं।


अग्नीवेश नक्सल आंदोलन के समर्थक है । वस्त्र गेरुआ पहनते हैं। नक्सल आंदोलन का उद्देश्य सही हो सकता है लेकिन उद्देश्य प्राप्ति का रास्ता हिंसा है जो गलत है । भारत मिश्र या अफ़गानिस्तान नही बन सकता और न हीं किसी को इजाजत दी जा सकती है इसे वैसा बनाने की । अरुंधती और अग्नीवेश दोनो कश्मीर के अलगावादियों के समर्थक है । वैसे सारे लोग जोआज अन्ना का समर्थन कर रहे हैं देश के दुसरे विभाजन की पर्ष्ठभूमि तैयार कर रहे हैं।यहां हम फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन की सूची दे रहे हैं और मनीष सिसोदिया की संस्था कबीर के विषय में भी दे रहे हैं


Kabir is a society registered under Societies Registration Act. It was registered on January 7, 1999 with number S34169. It is also registered under section 10A and 80G of the Income Tax Act. We are also authorized under the Foreign Contribution Regulation Act to receive foreign funding for our organization.


।Manish Sisodia is a founding member of Kabir and is currently the Chief Functionary of Kabir. He is the chief executive responsible for general management of the organization, particularly its strategy and direction. He is also the public face of Kabir and is responsible for Kabir’s relationships with external groups and individuals. Prior to joining Kabir, Manish was a journalist and a Producer and News Reader with Zee News. Even during that time, Manish served as an active volunteer with Parivartan, the citizens’ initiative working on Right to Information in Delhi. He holds a BSc from Meerut University in Uttar Pradesh.



Kabir comprises of a team of young, dedicated social activists who have the zeal and passion and are working on spreading awareness about RTI and Swaraj. We envision a culture of transparency and accountability in government that allows for meaningful participation of citizens in their own governance. It is with this mission and vision that Kabir spun off of Parivartan (the activist group led by Arvind Kejriwal that was critical in raising public support for the passage of the RTI Act) and began operations on August 15th, 2005.
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Comments

  1. beatiful post.... superlike investigation. i am sharing it on my blog. http://punarnavbharat.wordpress.com
    pls confirm firm.

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  2. rakesh.rgec@gmail.com

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  3. आपने अन्ना की इतनी पड़ताल क्यों की?

    सत्ता के गलियारों में बिछे रेशमी कालीनों के नीचे कितने घिनौने सच बुहार के छिपा दिए गए और वो अनावृत होने के इंतज़ार में मृत हो गए..किसी को खबर नहीं हुई..

    अभी बहुत से बुद्धिजीवी, सत्यान्वेषक और सत्ता प्रायोजित ताकतें अन्ना आन्दोलन के सत्य की चीर फाड में जुट गए हैं...

    सत्य अन्वेषण में आजकल google, ctrl+c और ctrl+v बड़े मददगार हैं, घर बैठे आसानी से हो जाता है...

    अन्ना का चरित्रचित्रण भी क्या खूब किया है आपने..
    अन्ना ईमानदार कैसे हैं, बचपन में अपने पिता की जेब से पैसे तो चुराए होंगे...अन्ना बचपन में आवारागर्दी करते थे, अब कैसे ईमानदारी की बात कर रहे हैं.. तो भैया, डाकू अंगुलिमाल, वाल्मीकि बन के रामायण लिख सकता है, अन्ना, अन्ना क्यों नहीं बन सकते...

    आपकी अरुंधति, अग्निवेश वाली बात गलत साबित हो चुकी है..

    बाकी रही बात कबीर, फोर्ड फाउंडेशन आदि की, मुझे उसमें भी बहुत दम दिख नहीं रहा, इतने बड़े आंदोलन के लिए पैसे तो चाहिए ही थे... हमारे क्रन्तिकारी अपने आन्दोलनों के लिए बैंक लूटा करते थे, अच्छे प्रयोजन के लिए था तो सब ठीक है... जब मैंने आज तक चुनावी दलों के पास इतना सब पैसा कहाँ से आता है, नहीं पूछा, सोनिया के विदेशी दौरों हुए पे खर्च को नहीं पूछा, सरकारी कर्मचारियों को सरकारी धन और सुविधाओं को अपनी व्यक्तिगत एश के लिए इस्तेमाल करते देख भी चुप रहा तो मुझे क्या हक है कि मैं अन्ना से पूछूँ कि पैसा कहाँ से लिया...?
    जब अन्ना अपना कोठी, बँगला बना लेंगे, तब ज़रूर पूछूँगा...

    अन्ना अभी तक विश्वसनीय दिख रहे हैं,
    सामने आ के लड़ना जानते हैं, लुंज पुंज नहीं हैं, दृढ़ निश्चयी हैं. वही चाहिए....!!

    गुलज़ार सिंह
    gulzar_artist@yahoo.co.in

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  4. very good...do you even know that with 1Cr. you cannot even buy a house in a metro in india anymore? so when ford foundation has given this money, trust me its a lot less than the 1.76l cr that the government has been accused of stealing. Please think before writing

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  5. अच्छा है लेकिन गुलज़ार जी को जवाब दे दिया जाय।

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