प्रकाश झा थीम चोर हैं
प्रकाश झा थीम चोर हैं
आरक्षण एक वाहियात फ़िल्म
उल्लू बना गये प्रकाश झा
इस फ़िल्म को देखने के बाद यह अहसास हो जायेगा कि इसकी थीम आंनद और अभ्यानंद की सुपर थर्टी के कंसेप्ट पर आधारित है । थीम की चोरी की है प्रकाश झा ने।
आरक्षण पर अच्छा खासा विवाद पैदा हुआ है । यहां तक की लालू, पुनिया, भुजबल जैसे महारथी हाय तौबा मचा रहे थें। ये वह जातिवादी चेहरे थें जिन्होनें समाज और देश को सबसे ज्यादा क्षति पहुचाई है । अमिताभ विशुद्ध व्यवसायिक कलाकार नजर आयें। कहानी में बिखराव है । एक्टिंग से फ़िल्म को बांधे रहने का प्रयास अमिताभ ने किया है , सफ़ल हुये हैं । आरक्षण जैसे गंभीर मुद्दे को सतही बना दिया गया है । मैने अपने लेख में आशंका व्यक्त की थी कि कहीं इस फ़िल्म के नाम पर किया जा रहा विवाद फ़िल्म को व्यवसायिक रुप से सफ़ल बनाने के लिये तो नही किया जा रहा है ।मेरी आशंका सही थी। हां भावनात्मक रुप से फ़िल्म को हिट बनाने का प्रयास अमिताभ ने किया है , बहुत हदतक सफ़ल भी लगते हैं।
फ़िल्म का न तो आरक्षण से कोई संबंध है और न हीं शिक्षा के व्यवसायीकरण से । हां ये दोनो विषयों को फ़िल्म का आधार दिखलाने का उम्दा प्रयास प्रकाश झा ने किया है । फ़िल्म मात्र कालेज के दो प्रोफ़ेसरो कि बीच की लडाई भर बन कर रह गई है । ये दोनो प्रोफ़ेसर दो विचारधाराओं के प्रतीक नही हैं। शिक्षा का व्यवसायीकरण व्यवस्था की देन है । व्यवस्था के बदलाव के साथ हीं इसे समाप्त किया जा सकता है । व्यवस्था पुंजीवादी है । हर चीज की किमत तय करता है पुंजीवाद , यहां तक की भीख की भी , भीख का नाम होता है अनुदान ।
आरक्षण फ़िल्म का नाम आरक्षण क्यों रखा प्रकाश झा ने यह समझ में नही आता है । आप भी देखेंगे तो आश्चर्य होगा । मैंने २० सालों से कोई भी फ़िल्म सिनेमा हाल में नही देखी है । जिस फ़िल्म को देखना जरुरी समझता हूं , उसे घर पर हीं देख लेता हूं। यहां आरक्षण फ़िल्म को आठ टुकडे में दे रहा हूं । आपकी समीक्षा के लिये ।
शिक्षा के व्यवसायिकरण को पैसे से प्रदान की जा रही कोचिंग और मुफ़्त में सेवा भावना से दी जा रही कोचिंग के बीच का विवाद के रुप में फ़िल्माया गया है । शिक्षा के व्यवसायिकरण को मुफ़्त में कोचिंग प्रदान कर नही रोका जा सकता है । जरुरत है , एक समान शिक्षा , एक समान चिकित्सा की और व्यवस्था परिवर्तन से हीं हो सकता है । जो लोग मुफ़्त कोचिंग प्रदान कर अपने सेवा भाव का प्रदर्शन कर रहे हैं , वस्तुत: वे सारे लोग व्यवस्था के पोषक है और शोषणवादी व्यवस्था कायम रखना चाहते हैं।
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आरक्षण एक वाहियात फ़िल्म
उल्लू बना गये प्रकाश झा
इस फ़िल्म को देखने के बाद यह अहसास हो जायेगा कि इसकी थीम आंनद और अभ्यानंद की सुपर थर्टी के कंसेप्ट पर आधारित है । थीम की चोरी की है प्रकाश झा ने।
फ़िल्म का न तो आरक्षण से कोई संबंध है और न हीं शिक्षा के व्यवसायीकरण से । हां ये दोनो विषयों को फ़िल्म का आधार दिखलाने का उम्दा प्रयास प्रकाश झा ने किया है । फ़िल्म मात्र कालेज के दो प्रोफ़ेसरो कि बीच की लडाई भर बन कर रह गई है । ये दोनो प्रोफ़ेसर दो विचारधाराओं के प्रतीक नही हैं। शिक्षा का व्यवसायीकरण व्यवस्था की देन है । व्यवस्था के बदलाव के साथ हीं इसे समाप्त किया जा सकता है । व्यवस्था पुंजीवादी है । हर चीज की किमत तय करता है पुंजीवाद , यहां तक की भीख की भी , भीख का नाम होता है अनुदान ।
आरक्षण फ़िल्म का नाम आरक्षण क्यों रखा प्रकाश झा ने यह समझ में नही आता है । आप भी देखेंगे तो आश्चर्य होगा । मैंने २० सालों से कोई भी फ़िल्म सिनेमा हाल में नही देखी है । जिस फ़िल्म को देखना जरुरी समझता हूं , उसे घर पर हीं देख लेता हूं। यहां आरक्षण फ़िल्म को आठ टुकडे में दे रहा हूं । आपकी समीक्षा के लिये ।
शिक्षा के व्यवसायिकरण को पैसे से प्रदान की जा रही कोचिंग और मुफ़्त में सेवा भावना से दी जा रही कोचिंग के बीच का विवाद के रुप में फ़िल्माया गया है । शिक्षा के व्यवसायिकरण को मुफ़्त में कोचिंग प्रदान कर नही रोका जा सकता है । जरुरत है , एक समान शिक्षा , एक समान चिकित्सा की और व्यवस्था परिवर्तन से हीं हो सकता है । जो लोग मुफ़्त कोचिंग प्रदान कर अपने सेवा भाव का प्रदर्शन कर रहे हैं , वस्तुत: वे सारे लोग व्यवस्था के पोषक है और शोषणवादी व्यवस्था कायम रखना चाहते हैं।
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Agar hai SUPER 30 par to problem kya hai. Isse SUPER 30 ko koi nuksaan ho raha hai ya samaj mein koi galat baat ja rahi hai. READY, DABBANG, TEES MAAR KHAN aur WANTED jaisi wahiyaad, bakwaas aur samaj ko gandagi parosane wali filmo ko to award dilwa maare. SHAME ON YOU.
ReplyDeleteसमस्या यह नही है कि थीम का आधार क्या है , शिक्षा के व्यवसायिकरण को सतही तौर पर दर्शाया गया है निदान भी वैसा हीं है। आरक्षण से इसका कोई वास्ता नही है । आप पुरा लेख पढे मैने समान शिक्षा , समान स्वास्थय पर जोर दिया है । मुफ़्त में कोचिंग दे देने से शिक्षा की व्य्वसायिकता पर कोई असर नही पडता .
ReplyDelete'शिक्षा के व्यवसायिकरण को मुफ़्त में कोचिंग प्रदान कर नही रोका जा सकता है । '---लाजवाब!
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