एस सी आयोग के अध्यक्ष पी एल पुनिया को औकात बताने की जरुरत है

एस सी आयोग के अध्यक्ष पी एल पुनिया को औकात बताने की जरुरत है



प्रकाश झा की फ़िल्म आरक्षण से रोज एक नया विवाद पैदा हो रहा है । अभी तक जो पढने में आ रहा है उसके अनुसार यह फ़िल्म जातीय आरक्षण की विसंगतियों को उजागर करती है । एक आयोग है एस सी एस टी आयोग , इसके अध्यक्ष है एक पूर्व नौकरशाह पी एल पुनीया । यह आयोग हरिजन एवं आदिवासियों के हितो को ध्यान मे रखने और उनके खिलाफ़ कही कोई अत्याचार हो रहा है , उसकी जांच करने के लिये बनाया गया है । देश में एक नई परंपरा शुरु हो गई है , वह है राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिये अयोग्य लोगों को राज्यपाल , विभिन्न आयोगों का अध्यक्ष बनाना । आरक्षण फ़िल्म को अब यह पुनीया भी देखना चाहता है । उसने न सिर्फ़ नोटिस भेजी है प्रकाश झा को, बल्कि यह भी कहा है कि यह फ़िल्म दलित विरोधी है।


जातीय आरक्षण एक नासूर है , यह न सिर्फ़ बुरा है बल्कि मैं मानता हूं कि इसके कारण तथाकथित सवर्ण जातियों का एक संपूर्ण वर्ग दक्षिण अफ़्रीका की तरह जातिभेद का शिकार हो चुका है । आज देश में कोई भी जाति अमीर और गरीब नहीं रह गई है । हर जाति मे दो वर्ग पैदा हो चुका है , एक वह जो संपन्न है जिसके पास कार , बंगला, करोडो की दौलत है , दूसरा है वंचित वर्ग, खाने के लिये रोज संघर्ष करना उसकी नियति है । दलित आयोग के अध्यक्ष पद पर पुनिया जैसे लोगो को बैठाना हीं गलत है । पुनिया दलित के संपन्न वर्ग का प्रतीक है । वह सामंतवाद का प्रतीक है । उसी प्रकार उच्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जज के जी बालाकर्ष्णण को मानवाधिकार का अध्यक्ष बना दिया गया है , जो खुद भ्रष्टाचार में घिरा है । अनिल अंबानी और मुकेश अंबानी के बीच गैस विवाद वाले मुकदमें में बालाकर्ष्णण द्वारा दिया गया फ़ैसला कहीं से भी एक विद्वान न्यायाधीश के द्वारा दिया गया नही लगता है । मुरली देवडा भी गैस विवाद वाले फ़ैसले में मुकेश के पक्ष में काम कर रहे थें। राडिया ने लाबिंग की थी। उसने यह स्वीकार भी किया था कि वह मुकेश के लिये लाबिंग यानी दलाली करती थी । आजतक यह जांच नही हुई कि कैसी लाबिंग करती थी राडिया । राडिया को सीबीआई ने सरकारी गवाह बनाना है टूजी घोटाले में , क्या यह दबाव के कारण हुआ है या राडिया के पास नेताओं की कमजोरी का साक्ष्य है ? नेताओं को खुबसुरत बालायें पसंद हैं जिसकी सप्लाई एस्कार्ट एजेंसिया करती हैं।



आरक्षण फ़िल्म मात्र एक व्यावसायिक फ़िल्म भर है जिसका उद्देश्य पैसे कमाना है । मुझे तो यह भी भय है कि जैसे अन्ना ने भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दे को मात्र एक लोकपाल जैसी संस्था के निर्माण से जोडकर , उसकी गंभीरता को समाप्त कर दिया बल्कि अप्रत्यक्ष रुप से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आंदोलन की हीं हत्या कर दी, उसी तर्ज पर प्रकाश झा का आरक्षण वास्तव में आरक्षण के खिलाफ़ चल रहे आंदोलन की गंभीरता को समाप्त कर देगा
मैं हमेशा जातीय आरक्षण के खिलाफ़ रहा हूं । जातीय आरक्षण का लाभ सिर्फ़ आरक्षित जाति के संपन्न लोगों तक सिमट चुका है । साठ वर्ष पहले जो गरीब था , आज भी वही है । चमार , डोम, दुसाध , भुईंया या पासवान किसी भी जाति के सिर्फ़ अमीरजादों को आरक्षण का फ़ायदा मिला है । वहीं पंडित, भूमिहार , कायस्थ, राजपूत जाति के पचास प्रतिशत से ज्यादा आबादी की हालत बद से बदतर होती चली गई है , कारण मात्र इतना सा है कि इनको इनके अधिकार से वंचित किया गया। अगर आरक्षण जाति आधारित नही होता तो अभी जो अमीर- गरीब के बीच की खाई है , वह इतनी चौडी नहीं होती । आज जातीय आरक्षण के पक्षधर भी वही सामंतवादी अमीर हरिजन हैं। वंचित हरिजन तो आज भी रिक्सा -ठेला चला रहा है । आरक्षण जैसे गंभीर मुद्दे को एक ढाई घंटे की फ़िल्म का विषय बना देना उचित नही है। लेकिन उस फ़िल्म के लिये विवाद पैदा करना और उसे प्रतिबंधित करने का प्रयास तो अत्यंत हीं निंदनीय है।


अगर यह फ़िल्म जातिगत विसंगतियों को भी उजागर करती है तभी भी पुनिया जैसे को यह अधिकार नही दिया जा सकता कि वह इस फ़िल्म को दलित विरोधी करार देकर रोक लगाने का प्रयास करे। फ़िल्म जातीय आरक्षण की विसंगतियों को दर्शाती है और इसके खिलाफ़ सवर्ण जाति के युवाओं में जो आक्रोश है उसका फ़िल्म के माध्यम से दिखलाने का एक प्रयास मात्र है आरक्षण । हालांकि कभी-कभी नेगेटिव प्रचार ज्यादा फ़ायदेमंद होता है । जानबूझकर भी नेगेटिव प्रचार कराया जाता हो शायद यह पुनिया भी प्रकाश झा के फ़िल्म का प्रचारक हो और सारी कवायद मात्र फ़िल्म को हिट कराने के लिये कर रहा हो


इन आयोगो को एक हथियार मिला हुआ है किसी को भी बुला लेने का , सजा सुनाने का । इस अधिकार का दुरुपयोग करते हैं सारे आयोग , यहां तक की लोकसभा और राज्यसभा भी अपने विशेषाधिकार का दुरुपयोग करते हैं। इन आयोगों को खरी खोटी सुनाने वाले की जरुरत है । अगर ये अपने विशेषाधिकार का दुरुपयोग करते हैं तो इनके सामक्ष हाजिर होकर मुंह पर यह बोलने की जरुरत है कि नौकरशाह पुनिया तुम दलित नही है , तुम राजनीति का एक मोहरा मात्र है , सामंतवादी हो । अगर ये आयोग सजा करते हैं तब भी इनके खिलाफ़ बोलते रहने की जरुरत है , कब तक जेल में रखेंगें। २७-३० वर्षो तक जेल में रह कर आंदोलन करनेवालों से दुनिया का इतिहास भरा पडा है। दलित उत्पीडन का एक कानून बना है , वह भी गलत है ।




अगर मैं पुनिया को यह कहता हूं कि साला चमार तू तो भ्रष्ट है तो मेरे उपर दलित उत्पीडन कानून के अंतर्गत मुकदमा चलेगा , लेकिन अगर पुनिया मुझे यह कहता है कि हरामी के पिल्ले पंडित तूं तो जातिवादी है तो पुनिया पर कोई मुकदमा नही चलेगा , क्यों ?



भारत का जातिवाद दक्षिण अफ़्रिका के रंगभेद की तरह है :



चाहे व्यवसाय हो या शिक्षा , हर क्षेत्र में जातीय आरक्षण के आधार पर हीं दाखिला और नौकरी की व्यवस्था है । आरक्षण की अवधारणा हीं भेदभाव पूर्ण है । भारत में आरक्षण जो प्रक्रिया है उसके अनुसार आरक्षण में दो तत्वों का समावेश किया गया है ।
एक : आरक्षित क्षेत्र में कुछ प्रतिशत स्थान का वर्ग विशेष के पक्ष में आरक्षित रखना ।
दुसरा : आरक्षित स्थानों को , नि्र्धारित योग्यता से कम योग्यता रखनेवालों से भरना ।
यानी अगर किसी शिक्षण संस्थान में दाखिले के लिये १०० में से २० स्थान आरक्षित हैं तो उन स्थानों को आरक्षित वर्ग से भरना तथा दाखिले के लिये सामान्य वर्ग के लिये नि्र्धारित अंक से कम अंक का मानक रखना । अगर सामान्य वर्ग के लिये निर्धारित अंक ५० प्रतिशत है तब आरक्षित वर्ग के लिये निर्धारित अंक २२ प्रतिशत या इससे भी कम हो सकता है ।
यानी आरक्षित वर्ग को सिर्फ़ वर्ग का हीं फ़ायदा नही दिया जाता है बल्कि कम योग्य होने पर भी उसे आरक्षण का लाभ मिलता है ।



आरक्षण की अवधारणा संविधान की समानता की मूल भावना के सिद्धांत के खिलाफ़ है । लेकिन आरक्षण के प्रावधान का समावेश संविधान में इसलिये किया गया था कि जो सामाजिक , आर्थिक तथा शैक्षिक रुप से पिछडे हों उनको भी बराबरी के स्तर पर लाया जा सके ।


जब आरक्षण का प्रावधान लागू किया गया तो इन तीनो तत्वों को एक मे मिला दिया गया , तथा वर्ग में जातियों को शामिल कर दिया । आज कोई आर्थिक , शैक्षिक रुप से सक्षम है लेकिन जातिवादी व्यवस्था में सामाजिक रुप से पिछडा है, उसे भी आरक्षण के सभी लाभ मिलेंगें।


यह व्यवस्था दक्षिण अफ़्रिका के रंगभेद की नीति जिसके खिलाफ़ गांधी ने आंदोलन चलाया था , उसी की तरह है ।


एक आइएएस न तो सामाजिक , न हीं आर्थिक और शैक्षणिक रुप से पिछडा माना जा सकता है फ़िर उसे और उसके बच्चो को आरक्षण का लाभ देने का औचित्य क्या है ?



भारत पर प्रतिबंध की जरुरत है ;



दक्षिण अफ़्रिका की तर्ज पर भारत में भी जातिगत आरक्षण का विरोध होना चाहिये । यहां की व्यवस्था दक्षिण अफ़्रिका से खराब है । आरक्षण का फ़ायदा सिर्फ़ आर्थिक , सामाजिक और शैक्षिक रुप से सक्षम व्यक्ति हीं उठा रहे हैं। देश के अंदर कोई आंदोलन पैदा नही हो रहा है । भारत की इस जातिभेद नीति के खिलाफ़ संयुक्त राष्ट्र संघ में पहल की जरुरत है । अगर हम रंगभेद को गलत ठहरा सकते हैं , मानवाधिकार के हनन के लिये इराक, अफ़गानिस्तान, लिबिया, सिरिया, मिश्र पर प्रतिबंध की बात कर सकते हैं तो फ़िर जातिभेद के लिये अपने मुल्क भारत के खिलाफ़ क्यों नही आवाज उठा सकते हैं।


मै वर्तमान जातिगत आरक्षण का विरोधी हूं । यह वंचितों के लिये नही है । मेरी एक कामना हमेशा रही , अगर कभी पैसा आया तो इस जातिगत भेदभाव की व्यवस्था के खिलाफ़ संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष अपनी बात रखने का और इसके उन्मूलन के लिये जरुरत पडने पर भारत के खिलाफ़ प्रतिबंध लगाने की मांग करने का। सपना में भी यही देखता हूं कि कहीं से भी एक करोड रुपया आ जाये । कभी- कभी यह कल्पना करता हूं कि अगर मैने अमिताभ के कौन बने करोडपति कार्यक्र्म में भाग लिया और एक करोड आ गया तो उस पैसे से जातीय आरक्षण की इस भेदभाव और मानवाधिकार के शोषण वाली नीति के खिलाफ़ संघर्ष करुंगा , दुनिया के हर उस मुल्क को जहां मानवाधिकार कायम है , उनतक अपनी बात पहुंचाने का , संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने इस मुद्दे को उठाने का ।




मैं खुद को एक आजाद मुल्क का गुलाम मानता हूं । १५ अगस्त , २६ जनवरी को वैसे दिन के रुप में याद करता हूं जिस दिन भारत अंग्रेजो से आजाद तो हुआ लेकिन हम गुलाम बन गयें। मैं तिरंगा नही फ़हरता । गम मनाता हूं इस जातिवाद व्यवस्था के खिलाफ़ कुछ न कर पाने का।



अब पुनिया का परिचय दे देता हूं । अपने जीवन में पुनिया हमेशा मालाईदार पदो पर रह चुका है । कभी मायावती के आंख का तारा पुनिया आजकल कांग्रेस के एजेंट के रुप में काम कर रहा है ।

पी एल पुनिया
निर्वाचन क्षेत्र : बाराबंकी
पिता का नाम: भरत सिंह
माँ का नाम : दखन देवी
1945/01/23 जन्म की तारीख: 23/01/1945
जन्म स्थान ग्राम. सल्हावास, जिला. झज्जर (हरियाणा)

विवाह की तिथि 161/01/974
पत्नी का नाम श्रीमती. इंदिरा पुनिया
दो की संख्या बेटियाँ: 1 बच्चों की संख्या संस की संख्या
राज्य का नाम उत्तर प्रदेश
पार्टी का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
स्थायी पता 2 / 21 विपुल खंड, गोमती नगर, लखनऊ - 226 010, उत्तर PradeshTels. (0522) 2393253, 09839224705 फैक्स (एम). 4022894 (0522)
वर्तमान पता 167, साउथ एवेन्यू, नई दिल्ली - 110 001 Tels. 23795332 (011) 9013180051 (एम)
ईमेल आईडी pl.punia @ sansad.nic.in
शैक्षिक योग्यता एम.ए., पीएच.डी. पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ और लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश में शिक्षित
व्यवसाय
धारित पद
2009/01/01 उपाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी
2009/01/02 15 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित
2009/01/03 सदस्य, ग्रामीण विकास संबंधी समिति
2009/01/04 सदस्य, नियम समिति
2009/01/05 सदस्य, सलाहकार समिति, सामाजिक न्याय मंत्रालय और अधिकारिता
2010/01/01 सदस्य, श्रम संबंधी समिति
विशेष रूचियाँ संकट में लोगों को मदद
खेल और क्लब राष्ट्रपति, (i) लखनऊ गोल्फ़ कोर्स (ii) उत्तर प्रदेश क्लब राज्य तायक्वोंडो एसोसिएशन
पसंदीदा pastimes और मनोरंजन किताबें पढ़ना और संगीत सुनने
देश व्यापक यात्रा का दौरा किया
अन्य सूचना पूर्व आईएएस, उत्तर प्रदेश, 1971-2005
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Comments

  1. मैं मानता हूं कि इसके कारण तथाकथित सवर्ण जातियों का एक संपूर्ण वर्ग दक्षिण अफ़्रीका की तरह जातिभेद का शिकार हो चुका है ।


    उधार कर रख दिया... कमीनों को समझ में सब आता है पर सब पोल्टीक्स करता है।

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