समाजवादियों ने बताई अन्ना और कांग्रेस - भाजपा को उनकी औकात
ससंद की कार्यवाही जिसने भी देखी होगी , उसे मालूम होगा कि सिर्फ़ समाजवादी विचारधारा वालों नें अन्ना ग्रुप और अमेरिका परस्त भाजपा एवं कांग्रेस दोनो को लताड लगाई । समाजवादी पार्टी के रेवतीरमन सिंह , जनता दल यूनाईटेड के शरद यादव , राजद के लालू यादव , सभी ने एक स्वर में चेताया कि संसद की अवहेलना बर्दाश्त नही होगी । कांग्रेस और भाजपा दोनो कारपोरेट घराने तथा एन जी ओ को लोकपाल के दायरे में नही लाना चाहते थें। अन्ना ग्रुप के अरविंद केजरीवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा था किजो एन जी ओ सरकार से अनुदान प्राप्त नहीं करते हैं , उन्हें लोकपाल के दायरे में लाने की जरुरत नही है ।
जैसे नियमित कामगारों की जगह ठेके के मजदूरों ने ले ली है , उसी तरह किसी देश को अस्थिर करने के लिये कार्यरत जासूस संगठनों की जगह एन जी ओ ने ले ली है । चाहे काश्मीर के अलगाववादी संगठन हों या आसाम का उल्फ़ा । इन सभी को अन्य देशों से आर्थिक मदद एन जी ओ के नाम पर हीं मिलती हैं।
भारत के कारपोरेट घराने भी अपने स्वार्थ के लिये अलगाववादी संगठनों की मदद करते हैं।
पत्रकार जगत के लोगों को याद होगा , टाटा के अधिकारियों ने आसाम के एक अलगाववादी नेता की पत्नी को दिल्ली लाकर ईलाज कराया था और उनपर मूकदमा भी हुआ था।
समाजवादियों को जातिवाद से उपर उठने की जरुरत है । यह यथार्थ है कि अधिकांश समाजवादी पिछडी जात से आते हैं। वह समाजवाद को जातिवाद में तब्दील कर देते हैं। उनका मानना है कि समाजवाद तभी आ सकता है जब पिछडे वर्ग के लोग बराबरी के स्तर आ जायेंगें ।
यह भी कडवा सच है कि जातिवाद हमारे नस - नस में पैठ चुका है । लेकिन वैश्यीकरण की बयार बहने के साथ हीं , समाज के सिर्फ़ दो हिस्से रह गयें , एक जो अमीर है , दुसरा जो गरीब है , हैव एंड हैव नाट्स ।
आज उसी गरीब तबके के लिये लडने की जरुरत है , वह गरीब हर जात में है।
जैसे नियमित कामगारों की जगह ठेके के मजदूरों ने ले ली है , उसी तरह किसी देश को अस्थिर करने के लिये कार्यरत जासूस संगठनों की जगह एन जी ओ ने ले ली है । चाहे काश्मीर के अलगाववादी संगठन हों या आसाम का उल्फ़ा । इन सभी को अन्य देशों से आर्थिक मदद एन जी ओ के नाम पर हीं मिलती हैं।
भारत के कारपोरेट घराने भी अपने स्वार्थ के लिये अलगाववादी संगठनों की मदद करते हैं।
पत्रकार जगत के लोगों को याद होगा , टाटा के अधिकारियों ने आसाम के एक अलगाववादी नेता की पत्नी को दिल्ली लाकर ईलाज कराया था और उनपर मूकदमा भी हुआ था।
समाजवादियों को जातिवाद से उपर उठने की जरुरत है । यह यथार्थ है कि अधिकांश समाजवादी पिछडी जात से आते हैं। वह समाजवाद को जातिवाद में तब्दील कर देते हैं। उनका मानना है कि समाजवाद तभी आ सकता है जब पिछडे वर्ग के लोग बराबरी के स्तर आ जायेंगें ।
यह भी कडवा सच है कि जातिवाद हमारे नस - नस में पैठ चुका है । लेकिन वैश्यीकरण की बयार बहने के साथ हीं , समाज के सिर्फ़ दो हिस्से रह गयें , एक जो अमीर है , दुसरा जो गरीब है , हैव एंड हैव नाट्स ।
आज उसी गरीब तबके के लिये लडने की जरुरत है , वह गरीब हर जात में है।
सही है जी!
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