अन्ना ग्रुप का षडयंत्र

अन्ना के पक्ष में जो जुलुस निकाला जा रहा है उनमे शहर के बदनाम और भ्रष्ट चेहरों की जमात है । यह सबकुछ नियोजित है । अन्ना का जेल से बाहर निकलने से इंकार करना सिवाय गुंडागर्दी के और कुछ नही है । अन्ना ्वैसे भी मुंबई में आवारा लडकों के ग्रुप के नेता थें । शायद वही गुंडागर्दी वाला भाव उबाल मार रहा है । समर्थन दे रहे लोग अराजकता को बढावा दे रहे हैं और अति उत्साह में यह सबकुछ कर रहे हैं। अमेरिकी षडयंत्र का शिकार हो चुका है मुल्क । जैसे मिश्र में हंगामा पैदा करवाया वैसा हीं भारत में करने का प्रयास है । आज मिश्र में कट्टरपंथी ब्रदरहुड संस्था हावी हो चुकी है । भारत बर्बादी के कगार पर खडा है भेड जनता सिर्फ़ समस्या पैदा करना जानती है निदान नही ।

अन्ना हजारे अब रिहा होंगें



अन्ना हजारे की गिरफ़्तारी के चौबीस घंटे भी नहीं गुजरे कि उनकी रिहाई सुनुश्चित हो गई । यह पुरे देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन के कारण संभव हुआ । सरकार जनमत के दबाव के सामने झुक गई ।




रिहाई के बाद अन्ना ग्रुप और बुलंद हौसले के साथ अपनी असंवैधानिक मांग को पुरा करने के लिये डट जायेगा । मनमोहन सिंह अक्षम प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं । उनके सलाहकार भी सक्षम नहीं हैं। अन्ना की टीम में शातिर किस्म के लोग हैं , उनसे निपटने के लिये उतना हीं शातिर दिमाग चाहिये । वस्तुत: कांग्रेस अन्ना को हिरो बना रही है । भाजपा तथा अन्य दल अन्ना के बहाने सता हासिल करना चाहते हैं। जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है और जनता के इसी भावना का शोषण कर रही है अन्ना की टीम ।


जनलोकपाल एक तानाशाही शासन की स्थापना वाला बिल है । नई पीढी को नई तकनीक के सहारे भडकाने और बरगलाने में सफ़ल हुआ है अन्ना ग्रुप । सरकार नई तकनीक की लडाई में शातिर मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल से हार गई । अगर जनलोकपाल बिल पास होता है तो देश एक तानाशाही प्राधिकार के हाथों गिरवी बनकर रह जायेगा लेकिन प्रजातंत्र में बहुमत सर्वोपरि होता है ।




हिंदुस्तान का दुर्भाग्य रहा कि आजाद होते दो टुकडे में बट गया । उस समय गांधी की जिद्द थी , आज अन्ना की जिद्द है । दुसरा एक दौर आया जब आपातकाल लगा । आपातकाल के दौरान अफ़सरशाही चरम पर थी । परिणाम छात्र आंदोलन के रुप में सामने आया । हालांकि आपातकाल के दौरान दक्षिण भारतीय राज्यों में कोई खास विरोध नही हुआ तथा कांग्रेस ने १५३ लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त की थी । दक्षिण के चार राज्यों से कांग्रेस को ९२ सीटें प्राप्त हुई थी। लेकिन उतर भारत से कांग्रेस का सफ़ाया हो गया था , कारण था उतर भारत के राज्यों में आपातकाल के दौरान हुई ज्यादती ।




जयप्रकाश नारायन ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था । बिहार जयप्रकाश नारायन के आंदोलन का केन्द्र बिंदु था । सता का परिवरतन तो हुआ लेकिन पहले से भी बुरी जनता पार्टी की सरकार सता में आई जो अपने हीं अन्तर्विरोधो के कारण १९८० में सता से बाहर हो गई। जयप्रकाश नारायन ने भी अपनी जिंदगी के अंतिम काल में यह महसुस किया था कि उनका आंदोलन बुरी तरह असफ़ल हुआ , उससे सिर्फ़ अराजकता पैदा हुई । आज देश तिराहे पर खडा है । एक तरफ़ भ्रष्टाचार में आकंठ डुबी कांग्रेस है दुसरी तरफ़ सतालोलुप विपक्ष और इन दोनो के बीच अपनी गोटी लाल करने के लिये आतुर शातिर दिमाग अन्ना ग्रुप । कांग्रेस और विशेषकर मनमोहन सिंह अपनी विश्वसनियता खो चुके हैं। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये कोई ठोस कदम नही उठा पा रहे हैं ।




भ्रष्टाचार का खात्मा आसान है बस मजबुत इरादे की जरुरत है । हर वह शख्स जो दस लाख की कार का मालिक है भ्रष्ट है । जिसके पास भी बीस लाख का मकान है वह भ्रष्ट है । एक बार जांच बैठा दो सभी जेलें भर जायेंगी । लेकिन यह संभव नही है । खैर फ़िलहाल मुद्दा जनलोकपाल का है । कांग्रेस को चाहिये की वह विपक्ष को इसकी जिम्मेवारी सौंप दे। यानी विपक्ष और अन्ना ग्रुप मिलकर लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करें। लोकपाल एक साथ सभी राज्यों में लागू हो और उसके दायरे में स्वंयसेवी संस्थाओं को भी लाने का प्रावधान हो ।




दुसरी बात अन्ना ग्रुप का कोई आदमी लोकपाल न बनाया जाय । कांग्रेस लोकसभा में तटस्थ रहे , न तो विरोध करे और न हीं समर्थन । एक बार अगर अन्ना का लोकपाल बिल पास हो गया तो सबसे पहले जो जेल जायेगा वह शांति भुषण होगा । मनीष सिसोदिया को भी विदेशो से मिल रहे धन का हिसाब देना होगा । वैसे तो जैसे हीं यह प्रस्ताव आयेगा सभी दल भाग खडे होंगें । अन्ना ग्रुप तो सबसे पहले भागेगा ।




लोकपाल कि नियुक्ति भी ला कालेज के छात्रों के बीच से हो । उसके लिये आईएएस की तरह परीक्षा का आयोजन किया जाय । उनका वेतन सबसे ज्यादा हो तथा नौकरी की अवधि मात्र पांच वर्ष की हो और रिटार्यड होनेवाले लोकपाल को किसी भी सरकारी, गैर सरकारी या स्वंयसेवी संगठन में नौकरी करने की अनुमति न हो । वह व्यक्तिगत रुप से सिर्फ़ समाजसेवा का कार्य बिना किसी से आर्थिक मदद के करे। दुनिया की महाशक्ति अमेरिका भारत को अस्थिर करना चाहता है । पुंजीवाद दम तोड रहा है , समाजवाद संभावना बढ रही है । यह अमेरिकी हितों के खिलाफ़ है ।




मनीष सिसोदिया जैसे लोग अमेरिकी हितो के पोषक हैं। बाकी रही देश की वह जनता जो आज सडको पर प्रदर्शन कर रही थी तो उसकी नियति हीं वही है । सुभाष चन्द्र बोस को गांधी ने अपमानित किया तब भी यह जनता गांधी जिंदाबाद करती रही । देश के दो टुकडे हुये तब भी इसका व्यवहार वही था। वस्तुत: हमे आजादी समय से पहले मिल गई । समय से पहले पैदा हुये बच्चे को जिन बिमारियों का सामना करना पडता है , उसका सामना तो मुल्क को करना हीं पडेगा ।

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