जनता love भ्रष्टाचार



जनता love भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार से जंग , भ्रष्टाचारियों से प्यार
टूजी घोटाला , कामनवेल्थ गेम, आदर्श सोसायटी , कालाधन सहित ढेर सारे आरोपो से घिरी कांग्रेस और उसके सिपहसलार मनमोहन सिंह को लोग पानी पी-पीकर कोस रहे थें। जंतर – मंतर पर अनशन का दौर चल रहा था , दिल्ली के इंडिया गेट को तहरीर चौक बनाने की घोषणा हो रही थी । देश की सारी जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना के साथ खडी थी , पुरे मुल्क में आंदोलन की बात हो रही थी । चुनाव हुआ , नतिजा सामने है । आसाम में तिसरी बार , बंगाल में ममता का साथ लेकर मार्क्सवादी पार्टी से ज्यादा सीट लाना , केरल में मुस्लिम लीग के साथ सता की कवायद के लिये जुगाड बैठाने योग्य सीटे आना , पांडिचेरी में भी सम्मानजनक सीट के साथ सता के लिये जोडतोड करना , वाह रे जनता वाह तेरा जवाब नही । आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ़ और वोट भ्रष्टाचार के पक्ष में। यरवो मीठ , और भतरो मीठ , रात में कैंडल मार्च जंतर – मंतर पर दिन में प्रेक्टिकल लाईफ़ आफ़िस में। वाह – वाह । घर में बीबी के साथ जिने मरने की कसम बाहर प्रेमिका के गले में हाथ डालकर बीबी की ऐसी की तैसी। करुणानिधी गयें , जय ललिता आई। दोनो में कोई खास फ़र्क नही है । अब यही जनता कुछ दिनो बाद फ़िर चिल्लाना शुरु करेगी , जिसे वोट दिया है उसे गरियाना शुरु करेगी । बिहार में अब सभी गरिया रहें हैं , बिजली नही, पानी नही, भ्रष्टाचार चरम पर । पुछो तो कहते हैं किसको चुने , सब तो एक जैसे हीं है , थोडा कम या ज्यादा । कोई ऐसा चुनाव क्षेत्र नही होगा जहां कम से कम एक ईमानदार उम्मीदवार न खडा हो , अगर नही खडा है तो मत दो वोट , जरुरत क्या है । वस्तुत: हम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संगीन नहीं हैं। एक खेल की तरह बस खेल रहे हैं , अन्ना आओ , ममता आओ , जया आओ , गोगई आओ , इससे ज्यादा कुछ नही । जनता अपनी गलती को सही साबित करने के लिये बडे – बडे तर्क तलाश लेती है , फ़िर खुद हीं एक दुसरे के तर्क को यथोचित ठहराने लगती है , कुछ-कुछ मेरी पीठ तुम , तुम्हारी पीठ मैं खुजलाउं जैसा । खुद हीं प्रश्न पैदा करती है और खुद जवाब भी तलाश लेती है । यह नही स्विकार करती कि गलती की है । बडी लंबी लडाई है । पहले यह तय करना होगा क्या सही है , फ़िर निर्णय लेना होगा क्या करें। कोई आया , हाथ पैर जोडा , चल दिये वोट देने। ऐसा नही चलेगा । अगर जान बुझकर गलती करोगे तो सजा भुगतनी होगी , नो इफ़, बट । विकल्पहीनता की बात नही कर सकते । विकल्प हमेशा मौजूद है । चलिये अभी जश्न का माहौल है , ३४ वर्षों के शासन के अंत का , उस शासन के अंत का जिसने मंहंगाई पर काबू रखा , जहां २०० रु० महिने पर आज भी लोग रह रहे हैं । बसो के किराये में चार आना भी बढने पर आंदोलन होता है । आइये अम्मा का स्वागत करें १० सालों के वनवास से वापसी हुई है । कभी करुणानिधी को पुलिस से बेइज्जत कर के घर से उठवाया था , शायद उसी श्राप का दंश झेल रहीं थी दस साल । लेकिन अभी स्वागत गान का समय है , मर्सिया पढने का नही । रेगिस्तान में मर्‍गतर्‍ष्णा भी राहत देती है ।

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