गंगा के लिए गये कोमा में
By शिराज केसर, हरिद्वार से लौटकर
Visfot.com से साभारहरिद्वार की भूमि पर हजारों संतों, मठों, आश्रमों, शक्तिपीठों के वैभव का प्रदर्शन तो हम आये दिन देखते रहते हैं, पर हरिद्वार के मातृसदन के संत निगमानंद के आत्मोत्सर्ग की सादगी का वैभव हम देख रहे हैं। वैसे तो संत का अंत नहीं होता, संत देह मुक्त होकर अनंत हो जाता है, लेकिन गंगा में खनन को रोकने के लिए पिछले तीन-चार सालों के अंदर ही लंबे अनशन के कारण मातृसदन के संत निगमानंद अनंतबेला में पहुंच चुके हैं।
देश की स्वाभिमानी पीढ़ी तक शायद यह खबर भी नहीं है कि गंगा के लिए एक संत 2008 में 73 दिन का आमरण अनशन करता है जिसकी वजह से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का शिकार होता है। और अब 19 फरवरी से शुरू हुआ उनका आमरण अनशन 27 अप्रैल को पुलिस हिरासत से पूरा होता है। संत निगमानंद ने घोषणा की थी कि अगर उनकी मांगे न मान करके सरकार अगर जबर्दस्ती खिलाने की कोशिश करती है, तो वो आजीवन मुंह से अन्न नहीं ग्रहण नहीं करेंगे।
मातृसदन, कनखल, जगजीतपुर, हरिद्वार; यह पता है उन लोगों का जिन्होंने हरिद्वार में बह रही गंगा और उसके सुन्दर तटों और द्वीपों के विनाश को रोकने के लिए पिछले 12 सालों से अपनी जान की बाजी लगा रखी है। मातृसदन के कुलगुरु संत शिवानंद हैं। संत शिवानंद को गंगा से बेहद प्यार है। वे सच्चे अर्थों में गंगा भक्त हैं, और सच्चे अर्थों में पर्यावरणविद् योद्धा संत हैं। मातृसदन और उनके संतों का खरेपन का ही परिणाम था कि प्रो. जीडी अग्रवाल ने भागीरथी-गंगा में अविरल प्रवाह के लिए अनशन के लिए मातृसदन को चुना।
संत शिवानंद के शिष्य स्वामी यजनानंद 28 जनवरी से अनशन पर बैठे। उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद स्वामी निगमानंद 19 फरवरी 2011 को उत्तराखंड के नैनीताल उच्चन्यायालय के खिलाफ अनशन पर बैठे। उनके अनशन के 68 दिनों के बाद 27 अप्रैल 2011 को पुलिस ने उनको उठा लिया। इतने लम्बे अनशन की वजह से अब उनको आंखों से दिखना बंद हो गया है, अब सुनाई कम पड़ता है और वे बोल नहीं पाते। स्वामी निगमानंद के गिरफ्तारी के बाद फिर से स्वामी यजनानंद ने अनशन जारी रखा है। नैनीताल उच्चन्यायालय के दो जज तरुण अग्रवाल और बी.एस वर्मा को संत शिवानंद और उनके गुरुकुल के लोग खननमाफिया का सहयोगी मानते हैं। संत शिवानंद का कहना है कि गंगा में अनियंत्रित खनन को रोकने के लिए दिए गए उत्तराखंड सरकार के आदेश पर इन जजों ने ‘स्टे आर्डर’ दिया है।
देश की स्वाभिमानी पीढ़ी तक शायद यह खबर भी नहीं है कि गंगा के लिए एक संत 2008 में 73 दिन का आमरण अनशन करता है जिसकी वजह से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का शिकार होता है। और अब 19 फरवरी से शुरू हुआ उनका आमरण अनशन 27 अप्रैल को पुलिस हिरासत से पूरा होता है। संत निगमानंद ने घोषणा की थी कि अगर उनकी मांगे न मान करके सरकार अगर जबर्दस्ती खिलाने की कोशिश करती है, तो वो आजीवन मुंह से अन्न नहीं ग्रहण नहीं करेंगे।
मातृसदन, कनखल, जगजीतपुर, हरिद्वार; यह पता है उन लोगों का जिन्होंने हरिद्वार में बह रही गंगा और उसके सुन्दर तटों और द्वीपों के विनाश को रोकने के लिए पिछले 12 सालों से अपनी जान की बाजी लगा रखी है। मातृसदन के कुलगुरु संत शिवानंद हैं। संत शिवानंद को गंगा से बेहद प्यार है। वे सच्चे अर्थों में गंगा भक्त हैं, और सच्चे अर्थों में पर्यावरणविद् योद्धा संत हैं। मातृसदन और उनके संतों का खरेपन का ही परिणाम था कि प्रो. जीडी अग्रवाल ने भागीरथी-गंगा में अविरल प्रवाह के लिए अनशन के लिए मातृसदन को चुना।
संत शिवानंद के शिष्य स्वामी यजनानंद 28 जनवरी से अनशन पर बैठे। उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद स्वामी निगमानंद 19 फरवरी 2011 को उत्तराखंड के नैनीताल उच्चन्यायालय के खिलाफ अनशन पर बैठे। उनके अनशन के 68 दिनों के बाद 27 अप्रैल 2011 को पुलिस ने उनको उठा लिया। इतने लम्बे अनशन की वजह से अब उनको आंखों से दिखना बंद हो गया है, अब सुनाई कम पड़ता है और वे बोल नहीं पाते। स्वामी निगमानंद के गिरफ्तारी के बाद फिर से स्वामी यजनानंद ने अनशन जारी रखा है। नैनीताल उच्चन्यायालय के दो जज तरुण अग्रवाल और बी.एस वर्मा को संत शिवानंद और उनके गुरुकुल के लोग खननमाफिया का सहयोगी मानते हैं। संत शिवानंद का कहना है कि गंगा में अनियंत्रित खनन को रोकने के लिए दिए गए उत्तराखंड सरकार के आदेश पर इन जजों ने ‘स्टे आर्डर’ दिया है।
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