अपराधी हैं डाक्टर
अपराधी हैं डाक्टर
डाक्टरों को जेल हो
बिहार के डाक्टरों के संगठन बिहार राज्य स्वास्थ्य सेवा संघ ने निजी प्रेक्टिस पर प्रतिबंध लगाने तथा नान – प्रेक्टिस भत्ता की मांग की है । वस्तुत: सरकारी नौकरी में रहकर निजी प्रेक्टिस करने पर रोक की मांग बहुत दिनों से सामाजिक कार्यकर्ता करते आ रहे हैं। सरकारी नौकरी करते हुये निजी व्यवसाय न करने के लिये डाक्टरों को भत्ता चाहिये । नियमत: कोई भी व्यक्ति सरकारी नौकरी करते हुये निजी व्यवसाय नही कर सकता । अगर डाक्टरों को भत्ता मिलता है तो फ़िर आभियंता, क्लर्क , चपरासी, ड्राईवर, सरकारी अधिकारियों को भी मिलना चाहिये , आखिर ये लोग भी तो निजी व्यवसाय नही करते हैं। डाक्टरों की मांग एक तरीके से गुंडागर्दी है । डाक्टरों की संख्या कम है , इनकी जरुरत है , इसलिये ये और इनका संगठन इस तरह की गुंडागर्दी पर उतारु है । डाक्टरों का वेतन भी ज्यादा है । ये अनैतिक कार्यों में भी संलग्न हैं। एक-एक डाक्टर की फ़ीस १५० से ३०० तक है , घर पर जाकर देखने की फ़ीस ५०० है , ये बिहार के डाक्टरों की फ़ीस है। पहले एक फ़ीस में पुरे महिने तक दिखाया जा सकता था अब वह अवधि घटाकर डाक्टरों ने १५ दिन कर दी । इस पन्द्रह दिन के लिये भी ढेर सारी दवायें डाक्टर लिख देते हैं ताकि १५ दिन के बाद हीं आने की जरुरत महसुस हो । दवाएं भी एक नही अनेको , कारण मात्र दवा कंपनियों से मिलनेवाला कमिशन अन्यथा पैथालाजिकल टेस्ट के बाद मात्र १-२ दवाओं की हीं जरुरत है। मरीज अगर जानना चाहता है कि इतनी सारी दवायें क्यों तो डाक्टर नही बताते हैं, ये सभी मरीजों को जाहिल और गवांर समझते है । विदेशों में डाक्टर ऐसा नही कर सकतें उन्हें मरीजों को बताना पडता है किसी भी द्वा को क्यों लिखा और कितने दिनों के लिये लिखा है । वहां ज्यादा दवा लिखने पर जुर्माना के अलावा जेल की भी सजा है । दवा कंपनियों से डाक्टर अपने घर की जरुरत से लेकर पत्नी और बच्चे तक की जरुरत का सामान तक वसुलते हैं । हो सकता है आने वाले समय में पुरुष डाक्टर खुबसुरत लडकियों की , तथा महिला डाक्टर खुबसुरत लड्कों की मांग भी दवा कंपनियों से करने लगें। उपभोक्ता फ़ोरम द्वारा डाक्टरों की सुनवाई का विरोध भी डाक्टरों का संगठन कर रहा है, यानी ये नही चाहते की इनकी मनमानी हरकत और अपराध पर अंकुश लगाया जाय । ये खुद को कानून से उपर समझते हैं । ्सरकारी स्तर पर जिलाधिकारी द्वारा चिकित्सा केन्द्रों की जांच का भी ये विरोध कर रहे हैं। ्सरकारी महकमे में कार्य करने वाले किसी तबके के लिये अगर गुंडा शब्द का उपयोग किया जा सकता है तो वह डाक्टर हैं। इनकी संपतियों की जांच आयकर विभाग भी नही करता है , आयकर विभाग भी दोषी है कालेधन को बढावा देने के लिये । डाक्टरों के निजी क्लिनिक तथा नर्सिंग होम में स्वास्थ्य मानकों का पालन नही होता है , परिणाम है मरीजों की मौत या अपंगता । डाक्टर इस तरह की गुंदागर्दी करने और सरकार तथा जनता को ब्लैकमेल करने में सफ़ल हो रहे हैं इसका कारण है जरुरत के अनुसार डाक्टरों की संख्या का न होना । भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लडाई में डाक्टर भी एक वर्ग है जिसके खिलाफ़ जन आक्रोश है । डाक्टरों की काली कमाई और अमानवीय व्यवहार के कारण इनके अपहरण की घटनाओं में वर्द्धि हुई थी । बिहार के सिवान जिले के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन जिसे न्यायालय विभिन्न मुकदमों में लगातार सजा देने का कार्य कर रहा है , उसने सबसे पहले डाक्टरों की गुंडागर्दी के खिलाफ़ कदम उठाया था । डाक्टरों की निर्धारित कर दी थी , सारी हेकडी निकल गई थी वहां के डाक्टरों की और इनके संगठन की भी हिम्मत नही थी बोलने की क्योंकि शहाबुद्दीन का कदम आम जन के हित में था। आज सरकारी स्तर पर इसकी जरुरत है । सबसे पहले तो सरकारी सेवा में कार्यरत डाक्टरों की निजी प्रेक्टिस पर रोक लगे , निजी डाक्टरों की फ़ीस निर्धारित हो और वह राज्य से प्रति व्यक्ति आय को ध्यान में रखकर हो न की दुसरे राज्यों के डाक्टरों की फ़ीस के आधार पर । बिहार में जिवन यापन व्यय दुसरे राज्यों से आधा से भी कम है । डाक्टर अगर हडताल पर जाने की धमकी देते हैं तो तत्क्षण इनको गिरफ़्तार करके साल – दो साल के लिये जेल भेजा जाय , जमानत का कोई प्रावधान न हो। डाक्टरों की संपति की जांच हो तथा नये बने कानून के तहत संपति जप्त की जाय । आम जन डाक्टरों के खिलाफ़ है, गया मेडिकल कालेज में डाक्टरों की हडताल हुई थी , शहर की जनता में डाक्टरों के खिलाफ़ भयानक आक्रोश था , अगर पुलिस का पहरा नही होता तो पब्लिक दौडा-दौडा कर डाक्टरों की पिटाई करती । सरकार अगर समझती है वह डाक्टरों पर नियंत्रण नही रख सकती तो नक्सलवादियों को इसका जिम्मा दे दे । नक्सलवादियों की जन अदालत , देश की अदालतों से ज्यादा सक्षम तरीके से न्याय प्रदान करती हैं। आम जनता के स्तर पर भी डाक्टरों की गुंडागर्दी का विरोध होना चाहिये । सरकार को जनता के विरोध के दबाने का कोई प्रयास नही करना चाहिये। आज अगर डाक्टरों के खिलाफ़ कडे कदम नही उठायें गयें तो आने वाले कल में जनता खुद कदम उठायेगी । इमानदार न्यायाधिशों का भी फ़र्ज है कि अगर डाक्टर का सताया हुआ कोई व्यक्ति , डाक्टर के खिलाफ़ कानून हाथ में लेकर उसकी पिटाई करता है तो उसे अविलंब जमानत दे। डाक्टरों के आंदोलन से जनता कि सहाननुभुति पुरी तरह खत्म है , यह संकेत है जनता के आक्रोश का ।
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