बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में चोरी से पास हुये हैं छात्र
बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में चोरी से पास हुये हैं छात्र
अभी बिहार बोर्ड ने दसवीं की परीक्षा का रिजल्ट प्रकाशित किया है । पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत सत्तर है यानी परीक्षा में शामिल कुल छात्रों मे से सत्तर प्रतिशत उर्तीण हुये हैं । फ़र्स्ट एवं सेकंड श्रेणी में पास होनेवालों की अच्छी खासी तादात है। बिहार के मुख्यमंत्री आज या कल भाषण देंगे और अपनी पीठ थपथपायेंगे। शिक्षा मंत्री हैं पी के शाही , पहले श्रीमान राज्य सरकार के महाधिवक्ता थें । इन्हीं की देन है बीएड पास शिक्षको की नियुक्ति का मामला , उसमें लिस्ट तैयार करने में इतना घपला हुआ है की उच्चतम न्यायालय भी हैरान है । बिहार बोर्ड का अध्यक्ष है राजमणि प्रसाद सिंह तथा सचिव हैं अनूप कुमार सिन्हा। परीक्षाफ़ल के प्रकाशन के बाद यह पी के शाही सफ़ल छात्रों को बधाई दे रहा था पट्ना में और असफ़ल छात्रों को तथा उनके अभिभावक के साथ सहानुभूति दिखा रहा था। वैसे सारे अधिकारी तथा मंत्री शुतुरमुर्ग की तरह हरकत कर रहे हैं । बिहार बोर्ड की परीक्षा का यह आलम है कि ग्रामीण क्षेत्र में स्थित स्कुलों में अगर आपका परीक्षा केन्द्र है तो सफ़लता की शत प्रतिशत गारंटी है । कुकुरमुते की तरह विद्यालय खुले हुये हैं , ये आपको फ़ार्म भरवाने से लेकर पास करवाने तक का ठेका लेते हैं। बिहार बोर्ड की परीक्षा में हुई सामुहिक चोरी की जांच बहुत आसान है , शहरों में , जहां उच्चाधिकारी रहते हैं , वहां के स्कुलों का रिजल्ट और ग्रामीण क्षेत्र के स्कुलों के रिजल्ट की तुलना करने मात्र से सब पता चल जायेगा । शहरों में बडे अधिकारी परीक्षा केन्द्रों पर जांच के लिये जाते थें , अगर एक विषय की परीक्षा में भी कडाई हो गई तो छात्र फ़ेल। शहरों में स्थित परीक्षा केन्द्र के परीक्षार्थियों के फ़ेल होने का प्रतिशत ज्यादा है । तकरीबन ९ लाख छात्र बिहार बोर्ड की परीक्षा में शामिल हुये थें । छह लाख छात्र पास हुये हैं । चोरी से पास हुये छात्रों का भविष्य क्या होगा यह सबको पता है । दो सरकारों ने बिहार की शिक्षा को समाप्त करने का कार्य किया है एक थें कर्पूरी ठाकुर उन्होने अंग्रेजी की अनिवार्यता हीं नही खत्म की थी बल्कि उनके समय में खुलेआम चोरी की छुट हासिल थी , उसी प्रकार नीतीश कुमार के कार्यकाल में खुलेआम चोरी की छुट है । बिहार सरकार पंचायतों में शिक्षकों की तथा अंगनबाडी केन्द्रों में सेविका और सुपरवाईजर की मार्क्स के आधार पर ठेके पर नियुक्ति करती है । शिक्षको की बहाली के लिये कोई परीक्षा नही होती है वहीं सिपाही की बहाली में लिखित परीक्षा ली जाती है । चोरी से पास ये छात्र कोई अच्छी नौकरी नही पा सकते हैं। ये सभी अयोग्य छात्र बिहार के हीं किसी न किसी स्कुल में घुस देकर शिक्षक बनेंगे । बिहार के शिक्षा स्तर को खत्म करने के बाद जहां सरकार , मंत्री और अधिकारियों को शर्मिंदगी महसुस करनी चाहिये वहीं इसे ये अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। बिहार के सभी अखबारों को यह मालूम है लेकिन कोई इस पर लिखना नही चाहता , विग्यापन खोने का भय जो है। बिहार के विश्वविद्यालयों की स्थिति तो और भी दयनीय है । आज से तकरीबन २० वर्ष पूर्व प्रायवेट कालेजों को अंगीभूत किया गया था , प्रायवेट कालेजों में बिना भुगतान के शिक्षक पढाते हैं इस आशा में कि आज न कल कालेजों का सरकारीकरण होगा तो नौकरी पक्की हो जायेगी । २० वर्ष पहले ऐसा हुआ भी था , ्परिणाम यह है कि बिहार के विश्वविद्यालयों के नब्बे प्रतिशत से ज्यादा शिक्षक अयोग्य हैं , इसी तरह चोरी से पास होनेवाले छात्र रहे हैं वे सभी शिक्षक । उन अयोग्य शिक्षको में से बहुत सारे विश्वविद्यालयों में उच्च पद पर यहां तक की कुलपति तक बन चुके हैं। बिहार में शिक्षा का स्तर अगर बचा हुआ है तो सीबीएसई के स्कुलों के कारण , लेकिन उन स्कुलों की फ़ीस देना सभी छात्रों के बस की बात नही है । बिहार में अपराधियों के नाम पर कालेज खुले हुये हैं , उन कालेजों का काम है बिहार इंटरमिडियेट कांसिल में घुस देकर मन मुताबिक परीक्षा केन्द्र नियुक्त करवाना , जहां आराम से चोरी कराई जा सके। इस काम के लिये अच्छी खासी रकम वसूलते हैं कालेज वाले । निजी कालेज खोलने का एक नियम है , उसके अनुसार कालेज की जमीन का निबंधन राज्यपाल के नाम पर होना चाहिये । गया में एक कालेज है , महेश सिंह यादव कालेज , अभी कुछ दिन पहले उसका नाम बदल कर संजय सिंह यादव का्लेज हो गया , संजय सिंह महेश सिह यादव के पुत्र हैं। महेश सिंह यादव राजद के विधायक रह चुके हैं। उनके पुत्र संजय सिंह शायद मैट्रिक बोर्ड की भी परीक्षा उर्तीण न कर सके लेकिन उनके नाम से कालेज स्थापित हो गया है , नाम का परिवर्तन कैसे हुआ यह भी रहस्य है । खैर यह एक उदाहरण मात्र था । हजारों की संख्या में इस तरह के कालेज संचालित हो रहे हैं। । जिसे चोरी से पास होना हो वह सबसे पहले इसी तरह के कालेजों में दाखिला लेता है । चोरी से पास होने के इस गेम का सबसे मजेदार पहलू यह है कि छात्र इन कालेजों में नाम लिखाकर अच्छे कालेजों में क्लास करते हैं , कारण है चोरी से ज्यादा मार्क्स लाना जिससे की मार्क्स के आधार पर नौकरी प्राप्त करने का मौका आये तो उसका फ़ायदा उठाया जा सके । बिहार के कैबिनट मंत्री हैं प्रेम कुमार गया के निवासी हैं । एक होमियोपैथिक कालेज है उसके सचिव हैं । वह होमियोपैथिक कालेज लूट का अड्डा है । छात्रो से ज्यादा रकम वसूली जाती है , अधिकांश छात्र यूपी के हैं कोई विरोध नही कर पाते हैं। पढाई – लिखाई की तो बात ही बेकार है । इंटर्नशिप के लिये पैसे लिये जाते हैं और विकास के नाम पर रसीद निर्गत की जाती है , बिना इंटर्नशिप किये हुये मात्र एक निर्धारित रकम दे देने पर इंटर्नशिप की सारी औपचारिकता पुरी कर दी जाती है । अब जब राज्य के मंत्री के कालेज की ऐसी स्थिति है तो बाकी कालेजों के बारे में बात करना हीं बेकार है । जब नीतीश की विदाई होगी तो प्रमाण पत्र धारक अशिक्षितों की एक बडी फ़ौज ्खडा करके जायेंगे ये।
अभी बिहार बोर्ड ने दसवीं की परीक्षा का रिजल्ट प्रकाशित किया है । पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत सत्तर है यानी परीक्षा में शामिल कुल छात्रों मे से सत्तर प्रतिशत उर्तीण हुये हैं । फ़र्स्ट एवं सेकंड श्रेणी में पास होनेवालों की अच्छी खासी तादात है। बिहार के मुख्यमंत्री आज या कल भाषण देंगे और अपनी पीठ थपथपायेंगे। शिक्षा मंत्री हैं पी के शाही , पहले श्रीमान राज्य सरकार के महाधिवक्ता थें । इन्हीं की देन है बीएड पास शिक्षको की नियुक्ति का मामला , उसमें लिस्ट तैयार करने में इतना घपला हुआ है की उच्चतम न्यायालय भी हैरान है । बिहार बोर्ड का अध्यक्ष है राजमणि प्रसाद सिंह तथा सचिव हैं अनूप कुमार सिन्हा। परीक्षाफ़ल के प्रकाशन के बाद यह पी के शाही सफ़ल छात्रों को बधाई दे रहा था पट्ना में और असफ़ल छात्रों को तथा उनके अभिभावक के साथ सहानुभूति दिखा रहा था। वैसे सारे अधिकारी तथा मंत्री शुतुरमुर्ग की तरह हरकत कर रहे हैं । बिहार बोर्ड की परीक्षा का यह आलम है कि ग्रामीण क्षेत्र में स्थित स्कुलों में अगर आपका परीक्षा केन्द्र है तो सफ़लता की शत प्रतिशत गारंटी है । कुकुरमुते की तरह विद्यालय खुले हुये हैं , ये आपको फ़ार्म भरवाने से लेकर पास करवाने तक का ठेका लेते हैं। बिहार बोर्ड की परीक्षा में हुई सामुहिक चोरी की जांच बहुत आसान है , शहरों में , जहां उच्चाधिकारी रहते हैं , वहां के स्कुलों का रिजल्ट और ग्रामीण क्षेत्र के स्कुलों के रिजल्ट की तुलना करने मात्र से सब पता चल जायेगा । शहरों में बडे अधिकारी परीक्षा केन्द्रों पर जांच के लिये जाते थें , अगर एक विषय की परीक्षा में भी कडाई हो गई तो छात्र फ़ेल। शहरों में स्थित परीक्षा केन्द्र के परीक्षार्थियों के फ़ेल होने का प्रतिशत ज्यादा है । तकरीबन ९ लाख छात्र बिहार बोर्ड की परीक्षा में शामिल हुये थें । छह लाख छात्र पास हुये हैं । चोरी से पास हुये छात्रों का भविष्य क्या होगा यह सबको पता है । दो सरकारों ने बिहार की शिक्षा को समाप्त करने का कार्य किया है एक थें कर्पूरी ठाकुर उन्होने अंग्रेजी की अनिवार्यता हीं नही खत्म की थी बल्कि उनके समय में खुलेआम चोरी की छुट हासिल थी , उसी प्रकार नीतीश कुमार के कार्यकाल में खुलेआम चोरी की छुट है । बिहार सरकार पंचायतों में शिक्षकों की तथा अंगनबाडी केन्द्रों में सेविका और सुपरवाईजर की मार्क्स के आधार पर ठेके पर नियुक्ति करती है । शिक्षको की बहाली के लिये कोई परीक्षा नही होती है वहीं सिपाही की बहाली में लिखित परीक्षा ली जाती है । चोरी से पास ये छात्र कोई अच्छी नौकरी नही पा सकते हैं। ये सभी अयोग्य छात्र बिहार के हीं किसी न किसी स्कुल में घुस देकर शिक्षक बनेंगे । बिहार के शिक्षा स्तर को खत्म करने के बाद जहां सरकार , मंत्री और अधिकारियों को शर्मिंदगी महसुस करनी चाहिये वहीं इसे ये अपनी उपलब्धि बता रहे हैं। बिहार के सभी अखबारों को यह मालूम है लेकिन कोई इस पर लिखना नही चाहता , विग्यापन खोने का भय जो है। बिहार के विश्वविद्यालयों की स्थिति तो और भी दयनीय है । आज से तकरीबन २० वर्ष पूर्व प्रायवेट कालेजों को अंगीभूत किया गया था , प्रायवेट कालेजों में बिना भुगतान के शिक्षक पढाते हैं इस आशा में कि आज न कल कालेजों का सरकारीकरण होगा तो नौकरी पक्की हो जायेगी । २० वर्ष पहले ऐसा हुआ भी था , ्परिणाम यह है कि बिहार के विश्वविद्यालयों के नब्बे प्रतिशत से ज्यादा शिक्षक अयोग्य हैं , इसी तरह चोरी से पास होनेवाले छात्र रहे हैं वे सभी शिक्षक । उन अयोग्य शिक्षको में से बहुत सारे विश्वविद्यालयों में उच्च पद पर यहां तक की कुलपति तक बन चुके हैं। बिहार में शिक्षा का स्तर अगर बचा हुआ है तो सीबीएसई के स्कुलों के कारण , लेकिन उन स्कुलों की फ़ीस देना सभी छात्रों के बस की बात नही है । बिहार में अपराधियों के नाम पर कालेज खुले हुये हैं , उन कालेजों का काम है बिहार इंटरमिडियेट कांसिल में घुस देकर मन मुताबिक परीक्षा केन्द्र नियुक्त करवाना , जहां आराम से चोरी कराई जा सके। इस काम के लिये अच्छी खासी रकम वसूलते हैं कालेज वाले । निजी कालेज खोलने का एक नियम है , उसके अनुसार कालेज की जमीन का निबंधन राज्यपाल के नाम पर होना चाहिये । गया में एक कालेज है , महेश सिंह यादव कालेज , अभी कुछ दिन पहले उसका नाम बदल कर संजय सिंह यादव का्लेज हो गया , संजय सिंह महेश सिह यादव के पुत्र हैं। महेश सिंह यादव राजद के विधायक रह चुके हैं। उनके पुत्र संजय सिंह शायद मैट्रिक बोर्ड की भी परीक्षा उर्तीण न कर सके लेकिन उनके नाम से कालेज स्थापित हो गया है , नाम का परिवर्तन कैसे हुआ यह भी रहस्य है । खैर यह एक उदाहरण मात्र था । हजारों की संख्या में इस तरह के कालेज संचालित हो रहे हैं। । जिसे चोरी से पास होना हो वह सबसे पहले इसी तरह के कालेजों में दाखिला लेता है । चोरी से पास होने के इस गेम का सबसे मजेदार पहलू यह है कि छात्र इन कालेजों में नाम लिखाकर अच्छे कालेजों में क्लास करते हैं , कारण है चोरी से ज्यादा मार्क्स लाना जिससे की मार्क्स के आधार पर नौकरी प्राप्त करने का मौका आये तो उसका फ़ायदा उठाया जा सके । बिहार के कैबिनट मंत्री हैं प्रेम कुमार गया के निवासी हैं । एक होमियोपैथिक कालेज है उसके सचिव हैं । वह होमियोपैथिक कालेज लूट का अड्डा है । छात्रो से ज्यादा रकम वसूली जाती है , अधिकांश छात्र यूपी के हैं कोई विरोध नही कर पाते हैं। पढाई – लिखाई की तो बात ही बेकार है । इंटर्नशिप के लिये पैसे लिये जाते हैं और विकास के नाम पर रसीद निर्गत की जाती है , बिना इंटर्नशिप किये हुये मात्र एक निर्धारित रकम दे देने पर इंटर्नशिप की सारी औपचारिकता पुरी कर दी जाती है । अब जब राज्य के मंत्री के कालेज की ऐसी स्थिति है तो बाकी कालेजों के बारे में बात करना हीं बेकार है । जब नीतीश की विदाई होगी तो प्रमाण पत्र धारक अशिक्षितों की एक बडी फ़ौज ्खडा करके जायेंगे ये।
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