जय ललिता और शशिकला : अजब प्यार की गजब कहानी
जय ललिता को फ़िर से मिला है ताज । लेकिन आज हम चर्चा करते हैं जयललिता और शशिकला के अनाम रिश्ते की । यह एक प्रेम कहानी है , औरत की औरत के साथ प्यार की जिसे आम बोलचाल की भाषा में लेस्बियन संबंध कहते हैं । जय ललिता और शशिकला की प्रेम कहानी कोई रहस्य नही है , अब तो जयललिता ने भी सांकेतिक रुप से इसे स्वीकार कर लिया है । जिवन के उतार –चढाव को झेलते हुये जय ललिता एम जी रामाचंद्रन की करीबी बन गई । दोनो की मुहबत की दास्ता: ने एक नया इतिहास रचा और जयललिता रामचंद्रन की राजनीतिक उतराधिकारी बनी। शशिकला नटराजन के पति एम नटराजन सरकारी सेवा में थें। १९८० में नटराजन जयललिता के संपर्क में आयें और उनके प्रबंधक के रुप में काम करने लगें। शशिकला भी उसी दरम्यान जयललिता के नजदीक आई , वही से शुरु हुई दोनो की प्रेम कहानी । एम नटराजन और शशिकला , दोनो पति पत्नी के बीच जयललिता एक तिसरे कोण के रुप में आईं। दोनो के बीच प्यार परवान चढने लगा , जहां ्जयललिता और शशिकला नजदीक आते गयें वहीं एम नटराजन से शशिकला की दुरी बढती गई और १९९० आते-आते दोनो पति पत्नी एक दुसरे से अलग हो गयें। एम नटराजन को जयललिता ने भी हटा दिया । शशिकला ने भी जयललिता के प्रेम को पति के रिश्ते से ज्यादा महत्व दिया । जयललिता ने शशिकला के बेटे को अपने बेटे की तरह माना । शशिकला और जयललिता दोनो एक दुजे के लिये समर्पित हो गयें। उन दोनो को प्यार करने की सजा भी भुगतनी पडी । १९९६ के दरम्यान जयललिता पर भ्रष्टाचार के अनेको आरोप लगें , मुकदमे भी हुये , उन मुकदमों में शशिकला भी अभियुक्त बनीं। १९९६ के चुनाव के दरम्यान जयललिता की पराजय के बाद दोनो के रिश्ते में कुछ खटास भी आई लेकिन २००१ में जयललिता की सता में वापसी ने सारे गिले-शिकवे दुर कर दियें। शशिकला किसी समर्पित पत्नी की तरह जयललिता का ख्याल रखती हैं। उनके खान-पान से लेकर , बेडरुम तक की सारी जिम्मेवारी निभाती हैं। जयललिता ने भी अपनी साठवे जन्मदिन पर भगवान के समक्ष रिश्ते को स्वीकार किया । २००८ के २४ फ़रवरी को जयललिता का साठवां जन्मदिन था लेकिन हिंदु तिथी से वह २२ फ़रवरी को पड रहा था । उस दिन जयललिता अपनी सखा शशिकला के साथ नागापटिनम्म जिले में स्थित अमर्तघाटेश्वर मंदिर पहुंची और वहा जन्म दिन के अवसर पर पुजा पाठ करने के उपरांत जयललिता ने शशिकला को और शशिकला ने जयललिता को माला पहनाया । उस मंदिर में अपने जिवन के साठ एवं अस्सी वर्ष की आयु पुरी कर चुके लोग आते हैं तथा पुजा पाठ के बाद एक रस्म निभाई जाती है जिसे षष्ठीबापुर्थी कहते हैं। इस रस्म में पति-पत्नी एक दुसरे को माला पहनाते हैं तथा इसे सेकेंड मैरिज या पुन: विवाह के रुप में माना जाता है । जयललिता ने जुबान से तो कुछ नही कहा लेकिन माला पहनाने वाली रस्म ने उनके दिल के दर्द को दर्शा दिया । दकियानूसी हिंदु समाज लेस्बियन रिश्ते को गलत मानता है । चाहकर भी इसे इजहार नही करते इस रिश्ते में बंधे लोग । खैर रिश्ता तो रिश्ता होता है , वह भी प्यार का , छुपाये नही छुप सकता । शायद आनेवाले कल में जयललिता और शशिकला अपने रिश्ते को खुलेआम स्वीकार करें ।
VO TO SAB THEEK HAI SATH RAHE, SATH SOYEIN LEKIN LAND MERA HIIN DONO KAAM ME LEIN .
ReplyDelete