जेल की पाठशाला मे यशवंत

जेल की पाठशाला मे यशवंत

कुमार सौवीर



किताबें और तस्‍वीरेंजिस तरह किसी भी जिज्ञासु में लगातार जानकारियों की इमारत को तैयार करती हैं, ठीकवैसे ही जेल की दीवारों-सलाखों की भूमिका आत्‍मविश्‍लेषण के लिए अनिवार्य होती है।और फिर यशवंत सिंह तो जन्‍मजात जिज्ञासु है। 36 साल के यशवंत के बालमन नेगाजियाबाद की डासना जेल में खुद के लिए एक बेमिसाल और रोचक विद्यालय खोज लिया है। वहवहां पर खोज रहा है वहां बंद लोगों को, लोगों के व्‍यवहारों को, उनकी दिनचर्या को,उनके मकसद को, उनके लक्ष्‍य को। वह समझ रहा है कि आखिर वहां की ऊंची प्राचीरों मेंकैद लोगों को यहां क्‍यों और कैसे मुकाम किस तरह मिले और कैसे अब वे क्‍या करेंगे।छूटेंगे भी तो आखिर कैसे। छूटने के बाद क्‍या करेंगे।
यशवंत सिंह से भेंट हो ही गयी। लखनऊ के एक बड़े पत्रकार ने दोरंतो ट्रेन का टिकट कटवाया। स्‍नेही इसपत्रकार ने ही रेलवे हेडक्‍वार्टर से कोटा रिलीज करवाकर सीट पक्‍की करायी। सुबह नईदिल्‍ली स्‍टेशन पर पहुंचा। गर्मी और उमस के शहर में फिर मेट्रो और ऑटो की सवारीऔर तैयार होने के बाद सीधे गाजियाबाद में अपने एक मित्र के घर अर्ली-भोजन सेनिपटा। अगले 17 किलोमीटर की यात्रा का साधन इसी मित्र ने मुहैया कराया। और मैंपहुंच गया डासना जेल।

 मायावती ने इस जेल को बनवाया था, लेकिन दिलचस्‍प बात यह है कि मायावती के कुशासन के खिलाफ जेहाद करने वाले यशवंत सिंह को समाजवादी पार्टी की सरकार ने जेल में बंद करा दिया। नोएडामें तैनात अखिलेश सरकार के पुलिसिया कारिंदों ने यह जानते-समझे हुए भी कि यशवंतसिंह पूरी तरह निर्दोष है, उस पर न केवल कई मुकदमे दर्ज कर उसे जेल में बंद करदिया, बल्कि बाद के  दिनों बाद उस पर कई औरआपराधिक धाराएं जड़ डालीं। प्रदेश सरकार और उसकी सरकारी मशीनरी की इस पूरी कवायदतब हुई जबकि यशवंत की खबरों को आधार बनाकर मायावती सरकार के खिलाफ तब मुलायम औरअखिलेश ने अपनी तलवारें खूब चमकाईं थीं। अभिव्‍यक्ति की आजादी के नारे लगाने वालीसमाजवादी पार्टी के हुक्‍मरान अब चुप हैं और यशवंत सिंह जेल में बंद हैं।
यशवंत सिंह। भड़ास4मीडियाके जांबाज और जोश से लबरेज इस युवा पत्रकार ने सैकड़ों ही नहीं, हजारों पत्रकारोंको अपने होने का मतलब खोजने की मदद की है। हक-तलफी पर हल्‍ला किया है, पत्रकारोंपर पुलिसिया आतंक और उत्‍पीड़न के खिलाफ इतना धारधार हमला किया है कि बड़ा से बड़ाअफसर और मंत्री भी भौंचक्‍का और डर कर त्राहि-त्राहि कर चुका। ऐसे हर बार मौकों परपुनीत पत्रकारिता की दहलीज लगातार पवित्र होती रही है। खबरों के धंधे में पीछेपीछेकितनी गंदगी फैली है, कितने निर्दोष पत्रकारों का खून बह रहा है, कितने आहेंआर्तनाद कर रही हैं, पीडि़त पत्रकार अब भड़ास4मीडिया दरबार में जहांगीरी घंटा पर लगातारअरदास बजा रहे हैं। हजारों पत्रकार अब अनेक समाचार संस्‍थानों की गंदगी के खिलाफ छुप-छुपकर ही सही, लेकिन आवाज उठे रहे हैं। त्रस्‍त पत्रकार अब भड़ास4मीडिया में अपनीमुरादें पाने-खोजने में लगे हैं।

 तो, मैं डासना जेलपहुंच गया। गेट के बाहर ही टोक दिया गया मुझे। बताया गया कि यशवंत को उस समय वहांसे करीब 55 किलोमीटर दूर ग्रेटर नोएडा कोर्ट भेजा गया था। मैं आसपास ही भटकने लगाकि मुझसे कहा गया कि उन्‍हें जेल के बाहर जाना पड़ेगा। करीब चार साल बाद मैं जेलके पास फटका था, लेकिन वहां पुलिसिया आतंक मुझे नहीं मिला। सहज माहौल, तनाव सेकोसों दूर। मैं सड़क पर चहलकदमी करने लगा। जेलकर्मियों के अभद्रता से नहीं, केवल वहांकी व्‍यवस्‍था के चलते।
खैर, आखिरकार यशवंतसे मुलाकात हो ही गयी। पहले कोर्ट से लौटते समय बंद गाड़ी में उचक कर मुझे आवाजदेता यशवंत मुझे दिखा। और क्षण बाद ही वह गाड़ी जेल के गेट में दाखिल होकर आंखोंसे ओझल हो गयी। बाद में भेंट भी हो गयी। मुलाकात क्‍या, केवल दो मिनट। जैसेकाशी-विश्‍वनाथ मंदिर के कपाट के अंदर शिव-पिण्‍ड दर्शन हुआ और जबतक कि मैं कोई मन्‍नतमांग पाता, जेल-मंदिर के प्रहरी ने मुझे बाहर निकलने का फरमान जारी कर दिया। बोला:बाहर निकलिये, टाइम हो गया।

 लेकिन इसी बीचमोटी-मोटी बातचीत तो हो ही गयी। सिर और हाथ को छटकाती अपनी चिरपरिचित शैली मेंठहाके लगाता यशवंत सिंह बोला: नहीं, कोई दिक्‍कत नहीं। जेल ही सही, लेकिन यहां भीतो सब अपने साथी जैसे हैं। बच्‍चों की याद आती है, लेकिन यहां भी तो सभी लोगों केसाथ ऐसा ही है। तो जैसे उनके दर्द होते हैं, मेरे भी हैं। बस हम एकदूसरों के बीचदर्द बांटते हैं और वक्‍त बीत रहा है। हां, मैं और भी गंभीरता के साथ सीख रहा हूं लोगोंका व्‍यवहार। आगे दिनों में यह मेरे काफी काम आयेगा।

 यशवंत बोला: मेरा क्‍याहै। कुछ नहीं। मैंने लम्‍बा संघर्ष किया है पत्रकारों के लिए। आवाम के लिए आवाज उठाने वालों को अपनी खुद की आवाज उठाने के लिए एक भरापूरा मंच मुहैया कराया है मैंने लेकिन यकीन मानिये, कि यह काफिला अब ठहरने वाला नहीं। मैं जेल मैंहूं तो क्‍या। पोर्टल तो चल ही रहा है ना। ऐसा ही चलता भी रहेगा। जब लौटूंगा तो धार और तेज करूंगा। नहीं---नहीं--- कोई शिकायत नहीं। किसी से कोई शिकायत नहीं है।पुलिस ने अपना काम किया, जेल अपना काम कर रही है, वकील अपना काम कर रहे हैं, कोर्टअपना काम करेगा और मैं अपना काम करता रहूंगा। अब इस पर ऐतराज हो सकता है कि किसने,क्‍या, कैसे, क्‍यों, कब और कहां किया, लेकिन फिलहाल सचाई यह है कि, खैर-----हा हाहा।





कुमार सौवीर

लो, मैं फिर हो गया बेरोजगार।

अब स्‍वतंत्र पत्रकार हूं और आजादी की एक नयी लेकिन बेहतरीन सुबह का साक्षी भी।

जाहिर है, अब फिर कुछ दिन मौज में गुजरेंगे।

मौका मिले तो आप भी आइये। पता है:-

एमआईजी-3, सेक्‍टर-ई

आंचलिक विज्ञान केंद्र के ठीक पीछे

अलीगंज, लखनऊ-226024

फोन:- 09415302520



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