मजिस्ट्रेट ने खारिज की यशवंत की जमानत याचिका


मजिस्ट्रेट ने  खारिज की यशवंत की जमानत याचिका

·         पुलिस ने लिया समय : गलत धारा मे हुआ है मुकदमा

·        वेब मीडिया मे छिडी बहस



यशवंत सिंह की जमानत  याचिका आज मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दी । वस्तुत: कल जमानत याचिका दाखिल हीं नही हुई थी । कल सिर्फ़ यशवंत को न्यायिक हिरासत मे लेते हुये जेल भेजा गया था याचिका पर सुनवाई आज हुई । दो मुकदमे यशवंत पर हुये हैं । एक मुकदमे मे जमानत याचिका खारिज हो गई तथा दुसरे मुकदमे मे पुलिस ने दो दिन का समय लिया है ।
जिला न्यायाधीश के यहां अभी कोई जमानत याचिका नही दाखिल की गई है । लेकिन इस बदलते घटनाक्रम मे वेब मीडिया के कुछ लोगों ने जो बहस छेड दी है वह निराशाजनक है । अधिकांश महानुभावों के कथन का जो सार है , उसके अनुसार यशवंत मे शराब पीकर गाली देने की आदत थी, रातबिरात किसी को भी फ़ोन लगा कर तंग करना भी उसकी आदत मे शामिल था । हालांकि सभी ने एक स्वर में यह माना की यशवंत ने हमेशा आम पत्रकारो के मामलो को पुरी शिद्दत के साथ उठाया है  बडे अखबार और मीडिया घरानों के लिये यशवंत नाम एक आतंक था । कुछ मित्रो ने जिनमे अविनाश भी शामिल हैं उनके  अनुसार यशवंत  को सुधारने के लिये इस तरह के एक झटके की जरुरत थी ।
 मुझे लगता है कि हम विद्वत सभा यानी विद्वानो की सभा में बैठे हुये हैं । यह सभा एक अस्पताल के आपरेशन रुम मे हो रही  है। सामने एक मरीज आपरेशन टेबल पर है उसका पेट चिरा हुआ है , वह दर्द से कराह रहा है, उस मरीज को किसी ने छूरा मारा है । मरीज की गलती यही थी कि वह नशे मे चुर होकर अक्सर गाली गलौज करता था । दुनिया के नियमो के हिसाब से हटकर रात को अपने मित्रो पर भी भडास निकालता था (दिन में फ़ोन करता तो कोई गलत नही  ) , एक दिन उसने एक बडे आदमी के उपर भडास निकाल दी । खुब पिया , जमकर ऐसी की तैसी की , वह बडा आदमी खुद बहुत बडा  नशेबाज था , उसके पास एक ऐसा लाउडस्पीकर था जिसकी आवाज बहुत गुंजती थी , उस लाउडस्पीकर से वह जिसे चाहे उसे अच्छा या बुरा बनाने का प्रचार करने लगता था । लोग भी उसकी बात को सही समझते थें , इतनी तेज आवाज वाला लाउडस्पीकर है , भला यह कभी गलत बोल सकता है । लेकिन उस बडे आदमी को जब इस कंगले शराबी ने दे दनादन गरियाना शुरु किया तो उसके होश उड गयें , उसे लगा कि यह तो मेरे लाउडस्पीकर के प्रभाव को खत्म कर देगा , बडे आदमी ने सबक सिखाने के लिये सोचा , बडे लोगो की परिषद जहां इस लाउडस्पीकर की मदद से साधु बन गये डकैत व्यक्ति बैठते थें , वहा इस मामले को रखा गया । उस परिषद के सदस्यों ने कहा अरे यह कंगला तुमको तंग कर रहा है , मारो  साले को , बहुत विचार विमर्श के बाद यह निर्णय हुआ कि मारो साले को , लेकिन दिक्कत यह थी थप्पड वगैरह से मारने पर कोई खास असर होगा नही । परिषद के सदस्यों ने निर्णय लिया साले कंगले को गोली मार दो । फ़िर किसी ने कहा नही छूरा मारो काफ़ी है । उस बडे आदमी ने  दुसरे दिन कंगले को दे दनादन चारपाच छूरा मार दिया । अब विद्वानजन हाथ मे आपरेशन का हथियार लिये हुये आपरेशन के पहले यह चर्चा कर रहे हैं कि कंगले को सुधारने  के लिये बडे आदमी ने जो किया वह ठिक था या गलत , अगर इसे थोडी देर और तडपने  दे तो शायद यह सुधर जाए  , छोड देते हैं थोडी देर उसके बाद  आपरेशन करेंगें ।
 यशवंत के उपर जो मुकदमा हुआ उससे एक घटना याद आ गई । सच्ची घटना है । कुछ बच्चे सेना की छावनी की चारदिवारी पर चढकर रोजाना अनार का फ़ल चुरा लेते थें , बार बार मना करने पर भी नही मानते थें । सेना के एक अफ़सर ने बच्चो को सबक सिखाने के लिये एक दिन चारदिवारी पर चढे एक लडके को गोली मार दी । लडका मर गया । सेना के अफ़सर  को जेल हुई और सजा भी । मुझे यह कहते हुई तनिक  भी झिझक नही हो रही है कि हमारे विद्वानजनो के पास ब्लाग पर क्रांति पैदा करने का भले बहुत अनुभव हो वास्तविक जिवन मे संघर्ष क्या होता है उसका रत्ती भर अनुभव नही है । यशवंत पर हुआ मुकदमा पुर्णत: गलत है । जैसे फ़ल चोरी की सजा गोली मारना नही हो सकता वैसे हीं फ़ोन पर गाली देने या धमकी देने की सजा धारा ३८६ नही हो सकती ।
 रह गई एस एम एस की बात तो साईबर एक्ट नही लगा है , जब लगेगा तब देखा जायेगा । अभी विद्वता छोडकर के संघर्ष करने की जरुरत है । अगर सभी एकजूट होकर नही लडे तो आज न कल खुन की स्वाद चख चुका शेर किसी दुसरे को भी खा जायेगा । अविनाश जी आपके साईट पर भी दलित संघर्ष के नाम पर जातिवादी गालियां दी जाती है । आपके मुसाफ़िर बैठा के साथ कई बार मेरी तकरार हुई है लेकिन जब उन्हें बिहार सरकार ने बर्खास्त किया था तो सबसे पहले मैने अबतक बिहार सांध्य दैनिक मे इस मुद्दे पर नीतीश कुमार की बखिया  उधेडी थी । मैं भुल गया था मुसाफ़िर बैठा से अपने तकरार को । आज वही समय है । अगर मुकदमा सही होता तो आप सबकी बहस का कोई अर्थ भी था लेकिन यहां तो फ़ल चुराने के लिये गोली मारी गई है ।  यशवंत पर जो मुकदमा हुआ है उसमे आज या कल जमानत तो हो हीं जायेगी । कोई बहुत बडी सजा का प्रावधान नही है । अखबार वालों के पास कानूनी पहलू जानने वाले पत्रकार नही होते हैं । धारा ३८६ मे सजा की अवधि भले हीं दस वर्ष हो लेकिन यह मजिस्ट्रेट के यहां ट्रायल होने वाला केस है तथा प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को तीन साल सजा से ज्यादा का अधिकार नही है । नियमत: जो मुकदमा हुआ है वह धारा ३८५ के तहत आता है लेकिन पुलिस ने केस को गैरजमानतीय बनाने के लिए धारा ३८६ लगाया है । हालांकि जमानत का जो प्रावधान है तथा उच्चतम न्यायालय का बहुत सारे मामलों मे जो निर्णय आये हैं , उसके अनुसार जमानत की सुनवाई के दौरान कोर्ट को पुलिस द्वारा लगाई गई धारा को नही देखना है बल्कि अपराध के स्वभाव को देखना है ।




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