मैं हूं उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़...


मैं हूं उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़...
धीरज भारद्वाज


किसी ने मुझसे पूछा, "क्या आपको इंडिया टीवी के संपादक विनोद कापड़ी से कोई निजी दुश्मनी है जो आप उनके खिलाफ़ अपने पोर्टल 'मीडिया दरबार' पर अभियान चला रहे हैं और अपने साथी पोर्टल 'मीडिया खबर' के संचालक पुष्कर पुष्प को दोषी ठहरा रहे हैं?" तो मैं आवाक रह गया।

मैंने उन्हें फ़ौरन जवाब दिया कि अगर विनोद कापड़ी और यशवंत के बीच मुझे किसी को चुनना होगा तो मैं बेशक यशवंत को चुनुंगा क्योंकि मैं कोई चोरी करके 'ब्लैकमेल' होने वाले की जगह 'ब्लैकमेलर' बनने वाले को ज्यादा पसंद करता हूं, लेकिन इसके लिए पुष्कर, अविनाश या संजय तिवारी जैसे सहयोगियों को दोषी ठहराने की मूर्खता मैं नहीं करूंगा, वो भी ऐसे वक्त पर जब हम सबको एक होने की और भी अधिक जरूरत है।

'मीडिया दरबार' एक ऐसा मंच था जिसे मैंने ही करीब साल भर की कड़ी मेहनत से खड़ा किया था। उसे मैंने राजस्थान के एक 'बेस्ट वेब डिज़ाइनर' नामक फर्म से बनवाया था। उस डिज़ाइनर ने बड़ी ही चतुराई से इसे अपने नाम से रजिस्टर करवा लिया और अचानक मेरा कंट्रोल पैनल डिलीट कर दिया। इतना ही नहीं, उसने न सिर्फ मेरे निजी फेसबुक और ई-मेल अकाउंट आदि हैक कर लिए बल्कि वेबसाइट प्रमोशन के लिए बनाए गए 'रेया शर्मा' जैसे कुछ अकाउंटों को भी हैक कर लिया। उसके कई अन्य अपराधों का भी मुझे पता है, जिनका ज़िक्र यहां करना उचित नहीं होगा।
उस डिज़ाइनर ने मेरे महीनों की मेहनत पर भी पानी फेरने की कोशिश की है और कई महीने पहले वेब के ज़रिए चलाए मेरे अभियानों के आलेखों पर से भी मेरा नाम हटा दिया है। इन दिनों वो डिज़ाइनर अखबारों से बलात्कार और सेक्स संबंधी अपराधों की ख़बरें कॉपी-पेस्ट कर पोर्टल को नया लुक देने की कोशिश में जुटा है। इन मामलों की शिक़ायत उचित ऑथारिटी को कर दी गई है और फिलहाल उनकी जांच चल रही है। उम्मीद है इंटरनेट कानूनों के तहत उसपर कार्रवाई भी की जाएगी, लेकिन तबतक वो पोर्टल शायद इस लायक न बचे कि उससे कोई सिद्धांतों वाला पत्रकार अपना नाम जोड़ने की हिम्मत करे।

हालांकि एक हिम्मती पत्रकार कुमार सौवीर को वह डिज़ाइनर अपने झांसे में लेने में कामयाब हो गया है, लेकिन शायद वो भी यूट्यूब अपलोड और पोर्टल की खबर में फर्क़ नहीं समझ पाए हैं। दिलचस्प बात यह है कि वो यूट्यूब लिंक दो दिनों से बिहार के वकील मदन तिवारी के ब्लॉग पर लगा था, लेकिन तब किसी का ध्यान उस पर नहीं गया। इतना ही नहीं, यूट्यूब वीडियो डिलीट होने पर हंगामा मचाने वाले इतने बड़े-बड़े इंटरनेट के महारथियों को उसे डाउनलोड कर सुरक्षित रखने की बात क्यों नहीं सूझी थी?

खैर, मुझे उस वीडियो की संवेदनशीलता का पता पुष्कर पुष्प के पोर्टल मीडिया खबर से ही लग गया था, जहां उनका पोस्ट अब भी मौज़ूद है। उस वीडियो के डिलीट होते ही मैंने उसे तभी दोबारा दरबारीलाल पर अपलोड कर दिया। ज़ाहिर तौर पर मैं विनोद कापड़ी के झूठ को बेनकाब करने के लिए दिल और दिमाग दोनों से काम कर रहा हूं।
बहरहाल, एक बार फिर साफ कर दूं कि मैं चोरों की तरह चेहरा छुपा कर जीने की बजाय 'ब्लैकमेलर' की तरह सीना तान कर जीने वालों की क़द्र करता हूं। यहां हरिवंश राय बच्चन की एक कविता का मुखड़ा जोड़ना चाहूंगा, "मैं हूं उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़..."
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