साकेत गुप्ता हत्याकांड: दर्ज प्राथमिकी में फंस सकते हैं पेंच
साकेत गुप्ता हत्याकांड: दर्ज प्राथमिकी में फंस सकते हैं पेंच
- पुलिसिया कार्यवाही आई शक के दायरे में
- साकेत की मां नहीं थी घटनास्थल पर
- आखिर पुलिस के सामने क्या मजबूरी थी की मां को बनाया चश्मदीद
- घटना के वक्त साकेत की मां का घटनास्थल पर होने के कोई सबूत नहीं
- पुलिस की गलती लाभ दिला सकती है ट्रायल के दौरान नामजद अभियुक्तों को
- आलाधिकारियों द्वारा किसी मामले में सच्चाई और पारदर्शिता के दावे की खुली पोल
- ऐसी प्राथमिकी पुलिस के लिए मजबूरी, अनुसंधान में आएगा सच: एसएसपी
डीजी सह पुलिस भवन निर्माण निगम के एमडी अशोक कुमार गुप्ता के
ठेकेदार व शराब व्यवसरायी भाई साकेत कुमार गुप्ता की हत्या मामले में अगमकुआं थाने
में दर्ज प्राथमिकी ही संदेह के घेरे में आ गई है। गौरतलब है कि साकेत गुप्ता की
वृद्ध मां गीता देवी के फर्दबयान के आधार पर पुलिस ने गीता देवी को चश्मदीद बनाते
हुए आठ लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की है जिस प्राथमिकी में गीता देवी ने कहा है कि
वह अपने बेटे के सरथ कुम्हरार पार्क में मार्निंग वॉक के लिए गई थी। साकेत
हत्याकांड में गीता देवी द्वारा दर्ज कराए गए इस प्राथमिकी ने पटना पुलिस और उसके
आलाधिकारियों के उस दावे पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है जिस दावे में अधिकारी किसी
मामले की जांच निष्पक्ष, सच्चाई और पारदर्शिता के साथ करने
के दावे करते रहे हैं। घटना के दिन कुम्हरार पार्क में मार्निंग वॉक करने वाले और
इस घटना के कई चश्मदीद भी गुरुवार को गीता देवी के फर्दबयान के आधार पर प्राथमिकी
दर्ज होने की खबर पढ़कर हैरान हैं जबकि वास्तविकता यह है कि घटना के समय न तो मृतक
की मां वहा मौजूद थीं न ही परिवार का कोई
सदस्य। अब सवाल यह उठ रहा है कि सबकुछ जानते हुए पुलिस ने एक वृद्ध महिला जो उम्र
के अंतिम पड़ाव में हैं और जिन्हें ट्रायल के दौरान कोर्ट में आने-जाने में
मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है को आखिर चश्मदीद और कंपलेनेन्ट क्यों बनाया।
घटना के बारे में न तो किसी समाचार पत्र, न ही न्यूज किसी
न्यूज चैनलों में इस आशय के चल रहे समाचार में ही इसकी पुष्टि या इस आशय के समाचार
दिखए गए जिससे यह साबित हो कि घटना के वक्त मृतक की मां साथ थी। यहां तक कि घटना
के बाद पुलिस अधिकारियों द्वारा दिए गए आधिकारिक बयान में भी कहीं यह जिक्र नहीं
आया कि घटना के वक्त मृतक की मां गीता देवी भी पार्क में थीं आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि
पुलिस को सच्चाई दरकिनार करनी पड़ी। पुलिस चाहती तो उन क्वीक मोबाइल के कांस्टेबलों
के बयान के आधार पर भी प्राथमिकी दर्ज कर सकती थी जिन्होंने घटना के वक्त फायरिंग
की आवाज सुनकर मोटरसाइकिल से भागते अपराधियों का पीछा किया और दो अपराधियों को
हत्या में प्रयुक्त हथियार के साथ दबोच लिया। यह माना जाता है कि न्यायालय साक्ष्य
और सबूत के आधार पर फैसला देती है। जब साक्ष्य और सबूत यह कह रहे हैं कि बेटे की
हत्या की खबर पाकर मां और पत्नी घर में बेहोश हो गर्इं, चिकित्सक
ने घर में आकर सास-पतोहू का इलाज किया वैसे में उसी मां को कंम्पलेनेंट और चश्मदीद
बनाना पुलिस की दुरदर्शिता है या नासमझी या फिर नामजद अभियुक्तों को फायदा
पहुंचाने की कोई साजिश। इधर इस मामले पर पूछे जाने पर एसएसपी अमृतराज ने कहा कि
आपका सवाल पिंच करने वाला है। उन्होंने कहा कि जब विक्टिम यह लिखित दे रही है कि वह घटनास्थल पर घटना के समय थीं तो पुलिस के
समाने उनकी बातों को मानने की मजबूरी है सच्चाई क्या है यह जांच के दौरान सामने आएगी। एसएसपी ने
दावा किया कि पूरे मामले की जांच निष्पक्षता से की जाएगी ताकि कोई बेकसुर न फंसे।
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