पत्रकारों ने डीजी को बना डाला एडीजी
पत्रकारों ने डीजी को बना डाला एडीजी
पत्रकारिता में निष्पक्षता की बात तो अब गुजरे जमाने की चीज हो
गई है। जैसे राजनीति में ईमानदारी । हो सकता है आनेवाले दिनों में निष्पक्ष एवं
निर्भीक पत्रकारो को अजायबघर या मानसिक आरोग्यशाला में रखने की व्यवस्था सरकार
करे। लेकिन उससे भी ज्यादा गिरावट आई है पत्रकारों की क्वालिटी में। पढने -लिखने
से मतलब नही बन बैठे पत्रकार । वैसे दोष उनका भी नही है । अब हजार रुपया , चार हजार
रुपया में मजदूर तो महीने भर काम करेगा नही तो एक पढा लिखा पत्रकार क्या करेगा। कट
पेस्ट ने गदहो को भी पत्रकार बना दिया है। आज सुबह पटना में डीजी अशोक कुमार
गुप्ता के भाई साकेत गुप्ता की हत्या अपराधियों ने कर दी ।हत्या का कारण रंगदारी मांगना बताया गया है । साकेत गुप्ता ठिकेदारी का काम करते थें । डीजी अशोक गुप्ता पुलिस
भवन निर्माण निगम के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक हैं तथा इसी वर्ष 31 अक्टूबर को रिटायर्ड होनेवाले हैं । विगत साल २०११ में १९७७ बैच के तीन आइपीएस अधिकारियों
को डीजी के पद पर प्रोन्नति प्रदान की गई थी । शफ़ी आलम, अशोक
कुमार गुप्ता और आर सी सिंहा । वर्तमान में छह डीजी हैं तीन कैडर एवं तीन नन कैडर
। इस हत्या के संबंध में सभी चैनलों पर जो समाचार दिखा ये जा रहे हैं , उसमें अशोक कुमार गुप्ता को एडीजी बताया जा रहा है । यह है आजकल के
पत्रकारों की क्वालिटी। टीवी चैनल वालों ने स्टिंगर बहाल कर दिये हैं जो डान गोबरा
की तरह काम करते हैं , उन्हें पैसा वसूली से मतलब है ,
नजायज रकम दे कर चैनलों का लोगो ले लेते हैं और लग जाते हैं वसूली
के काम पर । पत्रकार तो पत्रकार , राजनेता भी डीजी को एडीजी बता रहे हैं । राजद के रामकर्पाल यादव ने भी अपने बयान में अशोक कुमार गुप्ता को एडीजी बताया है .
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