नारायण दत तिवारी ब्लड सैंपल विवाद : उच्चतम न्यायालय का आदेश संवैधानिक प्रावधानों का उलंघन्न तो नही


नारायण  दत तिवारी ब्लड सैंपल विवाद : उच्चतम न्यायालय का आदेश संवैधानिक प्रावधानों का उलंघन्न तो नही

उच्चतम न्यायालय को  पहले  रोहित शेखर के पिता, दादा या चाचा का डीएनए टेस्ट करवाना चाहिये था ।

नारायण दत तिवारी के मामले में न्यायालय तथा एन डी तिवारी , दोनो एक दुसरे से टकराव की मुद्रा मे हैं। उपर से देखने में यह विवाद जितना सामान्य दिखता है उतना है नही । न्यायालय द्वारा ब्लड सैंपल देने के आदेश और एन डी तिवारी द्वारा ब्लड सैंपल देने से इंकार करने ने एक नई बहस पैदा कर दी है । दोनो में कौन सही हैं और देश के संविधान के अनुरुप क्या जायज है यह एक बहुत बडा मुद्दा बन चुका है । सबसे पहले तो इस मामले के मानवीय या भावनात्मक पहलू को दर किनार कर देना होगा । एन डी तिवारी के जैविक पुत्र होने का दावा करनेवाला शख्स उनका जैविक पुत्र है या नही यह निश्चित रुप से विवाद का विषय है लेकिन इसका फ़ैसला करने के पहले न्यायपालिका को यह देखना होगा कि याचिका का उद्देश्य क्या है । यह सबसे अहम पहलू है जिसकी लगातार उपेक्षा न्यायपालिका ने की है यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी इस पुरे विवाद में इस पहलू  पर गौर करने की जरुरत नही समझी ।

एन डी तिवारी के पुत्र होने का दावा करने वाले शख्स रोहित शेखर  का कहना है कि वह अपने सम्मान के लिये चाहता है कि न्यायालय जांच करवाये। रोहित शेखर का कहना है कि नारायण दत तिवारी उसके बायलोजिकल पिता हैं । पिता शब्द का कानूनी पहलू है । सिर्फ़ शारिरिक संबंध स्थापित हो जाने के कारण पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति पुत्र होने का दावा नही कर सकता । देश के कानून के अनुसार शादी के लिये धार्मिक कानून हैं जैसे हिंदुओ के लिये हिंदु मैरिज एक्ट । धार्मिक विवाह कानून के लिये दोनो पक्षो का उस धर्म का होना जरुरी है लेकिन एक विशेष ब्याह अधिनियम भी है जिसके प्रावधानो के अनुसार लडका और लडकी अलग-अलग धर्म के रहते हुये बगैर धर्मांतरण  किये शादी कर सकते हैं । शादी के नियमों के अनुसार प्रचलित धार्मिक रिति रिवाजो का पालन आवश्यक है । यह कानून हीं किसी को पति या पत्नी होने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है । कोई मर्द या औरत किसी के साथ चाहे हजार रात सोये कानूनन वे पति पत्नी नहीं हो सकते हैं । हां शर्त यह होनी चाहिये की दोनो में से किसी ने शादी करने का वादा न किया हो । अब एक और कानून की चर्चा जरूरी है । एक पत्नी के जिवित रहते दुसरी शादी अवैध है ।

पहले हम शादी के कानून , रोहित शेखर द्वारा पुत्र होने का दावा और इससे जुडे वैधानिक प्रावधानो की चर्चा करते हैं , उसके बाद हम चर्चा करेंगे उच्चतम न्यायालय के ब्लड देने वाले आदेश और नारायण दत तिवारी का ब्लड देने से ईंकार के संविधानिक पहलूओ की ।

नारायण दत तिवारी के शारिरिक संबंध रोहित शेखर की मां के साथ होने को आधार बनाकर रोहित ने एन डी तिवारी पर बायोलोजिकल पिता होने का दावा किया है । इस घटना का जो समय है उस के अनुसार नारायण दत तिवारी  की पत्नी तथा रोहित की मां के पति दोनो जिवित थें। उज्जवला शर्मा ने अपने पति की सहमति से नारायण दत तिवारी के साथ सेक्स संबंध बनाया या नही यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन यह सत्य है कि उज्जवला शर्मा के पति ने कभी भी नारायण दत तिवारी के उपर अपनी पत्नी के साथ सेक्स संबंध बनाने का मुकदमा नही किया था । एक कानून का जिक्र यहां आवश्यक है , वह है धारा ४९७ भादवि । इस धारा के प्रावधान के तहत अगर कोई व्यक्ति यह जानते हुये किसी महिला के साथ शारिरिक संबंध बनाता है कि वह शादीशुदा है तथा संबंध बनाने  में महिला के पति की कोई सहमति या सहभागिता नही है तभी वह अपराध की श्रेणी में आयेगा । इस धारा ४९७ के कुछ रोचक पहलू हैं ।

1.    शादीशुदा महिला के साथ शारिरिक संबंध अगर उक्त महिला के पति की सहमति या सहयोग से बना है तो वह अपराध नही है ।

2.    अगर महिला के पति की सहमति नही भी है तभी भी मुकदमा सिर्फ़ मर्द के उपर हीं हो सकता है । पति अपनी पत्नी के उपर पराये मर्द के साथ सेक्स संबंध बनाने के लिये  इस धारा के तहत मुकदमा नही कर सकता ।

3.    जिस व्यक्ति ने शादीशुदा महिला के साथ उसके पति की सहमति से शारिरिक संबंध बनाया है उस व्यक्ति की पत्नी अपने पति के उपर दुसरी औरत के साथ शारिरिक संबंध बनाने के आधार पर इस धारा के तहत  मुकदमा नही कर सकती है ।

       इस कानून के जिक्र करने का मात्र एक हीं उद्देश्य था कि इसके अनुसार नारायण दत तिवारी और उज्जवला शर्मा के बीच स्थापित सेक्स संबंध अपराध नही था ।

अब दुसरा प्रश्न यह है कि क्या नारायण दत तिवारी ने उज्जवला शर्मा के साथ शादी का वादा करके शारिरिक संबंध बनाया था ? अगर उज्जवला शर्मा का ऐसा दावा है तो उन्हें बहुत पहले हीं मुकदमा करना चाहिये था ।

रोहित शेखर का यह कहना कि वे नारायण दत तिवारी की संपति के लिये नही लड रहे हैं बल्कि चाहते हैं कि नारायण दत तिवारी को उनका बायलोजिकल पिता घोषित किया जाय । पढने में बहुत भावनात्मक लगता है रोहित का कथन और शायद यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय भी सिनेमाइ स्टाईल में भावुक हो गया । कुछकुछ अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की उस फ़िल्म की तरह जिसमें अमिताभ बच्चन डायलाग मारते हैंमेरे पास कार है , बंगला है दौलत है , तुम्हारे पास क्या है , शशि कपूर भी नहले पे दहला जड देते हैं , मेरे पास मा हैदर्शक की तालियों से सिनेमाहाल गुंज उठता है । अगर मध्यम वर्ग की तालियों के लिये उच्चतम न्यायालय ने ब्लड सैंपल देने का आदेश दिया है तो यह एक खतरनाक शुरुआत है इसके दुरगामी परिणाम होंगें ।

अब रही बात रोहित शेखर को नारायण दत तिवारी का पुत्र घोषित करने की । पुत्र का अर्थ हुआ जिसे कानूनी अधिकार प्राप्त हो । देश के कौन से कानून तहत मात्र डीएनए ( Deoxyribonucleic acid (DNA)  टेस्ट के नतीजे के आधार पर उच्चतम न्यायालय रोहित शेखर को पुत्र घोषित कर सकता है । जब शादी हुई नही तो रोहित शेखर कानूनी वारिस कैसे हो सकते हैं ? और जब वह कानूनी वारिस नही हो सकते तो उन्हें पुत्र कैसे घोषित किया जा सकता है ?

एक प्रश्न और उठ सकता है कि क्या कोई भी व्यक्ति किसी के साथ सेक्स करके बच्चे पैदा कर सकता है और वैसे हालात में उस बच्चे का अस्तित्व क्या होगा ?

पहला जवाब यह है कि कोई भी व्यक्ति किसी के साथ आपसी रजामंदी से सेक्स कर सकता है । रह गई बच्चे पैदा करने की बात तो यह पुर्णत: महिला के उपर निर्भर है , वह सेक्स के बाद बच्चे को जन्म देना चाहती है या नही । कानूनन मर्द किसी महिला को अबार्शन के लिये बाध्य नही कर सकता ।



संपति के अधिकार से संबंधित कानून के तहत पति की मौत के बाद उसकी पत्नी का और पत्नी न रहने के हालात में बेटेबेटी या संतान न रहने के हालात में मा-बाप, भाइबहन को संपति का अधिकार प्राप्त है ।

बायलोजिकल पिता घोषित होने के बाद मात्र गुजारा भत्ता धारा १२५ भाप्रसं के तहत मांगने के अधिकारी है रोहित शेखर,  वह भी उस हालात में जब वह मानसिक या अन्य विकलांगता के कारण स्वंय नही कमा सकते तब ।

  न्यायालय के इस आदेश का प्रतिकुल प्रभाव

1.      न्यायालय में इस तरह के मुकदमों का ढेर  लग जायेगा । संपति के सैकडो साल पुराने विवाद की सुनवाइ पुन: करनी पडेगी अगर रोहित शेखर जैसे दावेदार पैदा होने लगेंगे तो ।

2.      तलाक के हर मुकदमें में यह एक आधार होगा ।

3.      पत्नी द्वारा पति से अपने बच्चो के लिये गुजारा भत्ता मांगने के हालात में पति द्वारा पैटरनिटी टेस्ट की मांग की जायेगी । न्यायालय इस आधार पर पति की मांग को खारिज नही कर सकता कि शादी की अवधि के दौरान बच्चा पैदा हुआ है इसलिये वह हीं बच्चे का पिता है । रोहित शेखर का जन्म  भी अपने पिता के जिंदा रहते हुये हुआ है लेकिन न्यायालय उसके पिता कौन है इसके लिये नारायन दत तिवारी का पैटरनिटी टेस्ट करवा रही है ।

4.      शादी के बाद वर्जिनिटी टेस्ट की अनुमति प्रदान करनी पडेगी ।जब भी दहेज का कोई मुकदमा होगा बचाव में लडके पक्ष के द्वारा लडकी के बदचलन और लास आफ़ वर्जिनिटी का मुकदमा किया जायेगा । न्यायालय ने नारायण दत तिवारी के ब्लड सैंपल देने के आदेश के साथ हीं उसने उज्जवला शर्मा के शादी के बाद गैर मर्द के साथ संबंध पर मुहर लगा दी । यह सही है कि यह मुहर उज्जवला शर्मा के बेटे के आवेदन पर लगाइ गई है लेकिन अगर मर्द की तरफ़ से इस तरह की जांच की मांग की जायेगी तो न्यायालय ईंकार नही कर सकता ।

5.      अभीतक तो स्थापित परंपरा रही है उसके अनुसार अगर शादी की अवधि  के दौरान बच्चा पैदा होता है तो यह माना जाता है कि उसका पिता वही है जिसके साथ उसकी मां की शादी हुई है । न्यायालय के इस आदेश के बाद हर मर्द स्वतंत्र होगा अपनी पत्नी से पैदा हुये बच्चे का डीएनए टेस्ट करवाने के लिये और न्यायालय द्वारा किया गया ईंकार गलत होगा  क्योंकि इस मुकदमे में न्यायालय ने यह मान लिया है कि शादी की अवधि के दौरान दुसरे मर्द के साथ सेक्स संबंध स्थापित करके उज्जवला शर्मा ने बच्चा पैदा किया है ।

6.        स्थापित नियमो के अनुसार गैर शादीशुदा औरत को अगर बच्चा पैदा होता है तो संभावित पिता का डीएनए टेस्ट करवाया जाता है । डिएनए टेस्ट का उद्देश्य बच्चे के पिता की संपति में हिस्सा तथा कानूनी अधिकार प्राप्त करना है न कि सिर्फ़ यह जानकारी लेना कि कौन उसका पिता है ।

7.      डिएनए टेस्ट की दो पद्ध्ति है एक्सक्लूजन : यानी उस  व्यक्ति के डीएनए की जांच करना जो कानूनी पिता है , अगर उसका डीएनए बच्चे से नही मिलता तब उस व्यक्ति के डीएनए की जांच करनी है जो संभावित पिता हो । न्यायालय को पहले रोहित शेखर के पिता, दादा , चाचा के डीएनए की जांच करने का आदेश देना चाहिये था ।

8.      दुसरी पद्ध्ति है इन्क्लूजन : यानी संभावित पिता के डीएनए की जंच .

9.      डीएनए टेस्ट में सबसे पहले उसका टेस्ट किया जाता है जो प्रत्यक्ष रुप में बच्चे का पिता है । इस मामले में रोहित शेखर के पिता , दादा, चाचा का टेस्ट लेना चाहिये था ।।

10.  डीएनए टेस्ट में भी .001  प्रतिशत गलती की संभावना रहती है । डीएनए टेस्ट कितना सही है यह निर्भर करता है लैबोरेटरी पर जिस लैबोरेटरी का टेस्ट का प्रतिशत ९९ से उपर होगा वही लैबोरेटरी कुX हद तक सक्षम मानी जा सकती है ।

11.  दो जुडवा व्यक्तियों का डीएनए एक समान होगा और वैसे हालात में डीएनए के आधार पर पिता का निर्णय करना संभव नही होगा ।

अब हम चर्चा करते हैं देश के संविधानिक  प्रावधानों की । दो व्यक्तियों के बीच स्थापित सेक्स संबंध उनकी निजता की श्रेणी में आता है । शारिरिक संबंध स्थापित करते समय और उसके दशको बाद तक उज्जवला शर्मा ने कभी भी उसका खुलासा नही किया । संबंध भी आपसी सहमति से बने । मात्र रोहित शेखर की याचिका पर डिएनए टेस्ट का आदेश नारायण दत तिवारी के निजता के अधिकार का हनन है । अगर रोहित शेखर का कोई कानूनी पिता नही होता तो न्यायालय का आदेश कुछ हद तक जायज माना जा सकता था लेकिन जब उनकी मां  उज्जवला शर्मा ने नारायण दत तिवारी के साथ सेक्स संबंध बनाया उस समय उज्जवला शर्मा के पति जिवित थें ।

संपति के मुमदमो में अब डीएनए टेस्ट की मांग एक अहम मुद्दा होगा । क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने कानूनी पिता के रहते हुये पैटरनिटी जांच का आदेश दिया है , न्यायालय इस आधार पर संपति के मुकदमे या गुजारा भता के मुकदमें मे पैटरनिटी टेस्ट से ईंकार नही कर सकता कि बच्चे का कानूनी पिता है तथा सरकारी दस्तावेजो में बच्चे के पिता के नाम की जगह पर उसके कानूनी पिता का नाम दर्ज है ।

उच्चतम न्यायालय के द्वारा इस मुकदमे में पास किये सभी आदेश आश्चर्यचकित करनेवाले तथा देश के बहुत सारे कानूनो के प्रावधान के खिलाफ़ हैं ।

उच्चतम न्यायालय को भावनात्मक मुद्दो के आधार पर  सुनवाई करने से बचना चाहिये था । इस मुकदमे के और भी बहुत सारे पहलू हैं लेकिन उनका जिक्र हम अगले लेख में करेंगें ।







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Comments

  1. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से आभार।

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