संतोष भारतीय एक बिका हुआ पत्रकार
संतोष भारतीय एक बिका
हुआ पत्रकार
एक सप्ताहिक है चौथी
दुनिया । इस अखबार के संपादक हैं संतोष भारतीय । संतोष भारतीय कभी जयप्रकाश आंदोलन
से जुडे रहे हैं। वक्त का तकाजा कहें या पैसे और पद की चाह ,
आज संतोष भारतीय चौथी दुनिया के संपादक के रुप में इन दोनो चीजों को
हासिल करना चाहते हैं। संतोष भारतीय को मैं व्यक्तिगत रुप से नहीं जानता । एकबार एक
कार्यक्रम में मुलाकात है । एक पत्रकार थें आलोक तोमर जिन्हें कैंसर की बिमारी हो गई थी । पिछले साल होली में उनकी
मौत हो गई । मैं उनसे कभी नही मिला था । भडास एक पोर्टल है । उसके संपादक यशवंत का
एस एम एस आया । यशवंत भी अपने गांव में थें । खुबा रोया मैं । होली नही मनाई । गम मनाया
। उन्हीं आलोक तोमर की याद में एक कार्यक्र्म( यादों में आलोक ) दिल्ली के कंस्टिच्यूसन क्लब में था।
मैं भी आमंत्रित था । वहीं संतोष भारतीय को
पहली बार देखा । वहां पूण्य प्रसून वाजपेयी सहित बहुत सारे नामी पt्त्रकार थें। संतोष भारतीय अलोक तोमर के बारे में बोलते हुये भावुक हो गयें।
उनकी आंखों में पानी भर आया और मेरे जैसा आदमी जो दिमाग की जगह दिल को तबज्जो देता
है , यह मान बैठा कि संतोष भारतीय सही माने में पत्रकार हैं।
अब लगता है यह मेरी गलती थी।
अब आता हूं उस घटनाक्रम
पर जिसके कारण मुझे यह लेख लिखना पड रहा है । कई बार मेरे पास फ़ेसबुक पर चैट के दौरान
चौथी दुनिया के सहायक संपादक और बिहार – झारखंड के
प्रभारी सरोज सिंह का संदेश आया कुछ मामलों पर लिखने के लिये । मैने नही लिखा । कारण
था कि मुझे गया चौथी दुनिया के गया प्रभारी सुनील सौरभ ने बताया था कि चौथी दुनिया
मासिक वेतन पर अपने यहां पत्रकारों को रखती है । मुझे लगा , अगर
मै लिखूंगा तो अन्य पत्रकार जो मासिक पर काम कर रहे हैं उनके पेट पर लात मारना होगा ।
इधर एक आफ़र आया निरमल बाबा पर लिखने का। उस समय तक देश के किसी भी चैनल या अखबार में उनके उपर कुछ नही आया था । इसकी जांच इंदर सिंह नामधारी और राजद के सांसद रामकर्पाल यादव से प्राप्त की जा सकती है । मैने दोनो को फ़ोन किया था। सुबोधकांत सहाय को भी फ़ोन लगाया था। मैने निरबल बाबा के इमेल पर मेल भेजा था , उससे भी पता चल जायेगा कि मैं निरमल बाबा के उपर किसी भी तरह की खबर आने के पहले से काम कर रहा था। लिखने का आफ़र चौथी दुनिया के सरोज सिंह जी द्वारा आया था । आफ़र लेकर चौथी दुनिया के गया प्रभारी सुनील सौरभ आये थें। उनका मैं सम्मान करता हूं , हालांकि उनके अंदर भी कुछ खामियां है , उसे सुधारने की जरुरत है । मैने सरोज सिंह जी से बात की । मैने स्पष्ट रुप से उन्हें बताया , यह राजनीतिक ड्रामा भर है और जैसे अन्ना के आंदोलन को भाजपा का समर्थन प्राप्तहै उसी तरह निरमल बाबा को झरखंड के एक कांग्रेसी नेता का समर्थन है। रामदेव के खिलाफ़ निरमल बाबा का उपयोग किया जायेगा। उसके बाद भी उन्होने कहा कि लिखिये न ।
जब मै लिखने लगा तो कोई भी आर्थिक अपराध निरमल बाबा के खिलाफ़ नहीं नजर आया । मैने पुन: फ़ोन से बात की , निरमल बाबा पर देश के कानून के अनुसार ठगी या भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं बनता। अधंविश्वास फ़ैलाने तथा दान में प्राप्त रकम को बैंकिगं नियम के अनुसार ट्रांसफ़र नहीं करने का आरोप बनता है । मैने चार दिन , दिन रात एक कर के मेहनत की । बार – बार सरोज सिंह का रिक्व्र्स्ट आया जल्दी भेजें। मैने लेख भेज दिया।
इधर एक आफ़र आया निरमल बाबा पर लिखने का। उस समय तक देश के किसी भी चैनल या अखबार में उनके उपर कुछ नही आया था । इसकी जांच इंदर सिंह नामधारी और राजद के सांसद रामकर्पाल यादव से प्राप्त की जा सकती है । मैने दोनो को फ़ोन किया था। सुबोधकांत सहाय को भी फ़ोन लगाया था। मैने निरबल बाबा के इमेल पर मेल भेजा था , उससे भी पता चल जायेगा कि मैं निरमल बाबा के उपर किसी भी तरह की खबर आने के पहले से काम कर रहा था। लिखने का आफ़र चौथी दुनिया के सरोज सिंह जी द्वारा आया था । आफ़र लेकर चौथी दुनिया के गया प्रभारी सुनील सौरभ आये थें। उनका मैं सम्मान करता हूं , हालांकि उनके अंदर भी कुछ खामियां है , उसे सुधारने की जरुरत है । मैने सरोज सिंह जी से बात की । मैने स्पष्ट रुप से उन्हें बताया , यह राजनीतिक ड्रामा भर है और जैसे अन्ना के आंदोलन को भाजपा का समर्थन प्राप्तहै उसी तरह निरमल बाबा को झरखंड के एक कांग्रेसी नेता का समर्थन है। रामदेव के खिलाफ़ निरमल बाबा का उपयोग किया जायेगा। उसके बाद भी उन्होने कहा कि लिखिये न ।
जब मै लिखने लगा तो कोई भी आर्थिक अपराध निरमल बाबा के खिलाफ़ नहीं नजर आया । मैने पुन: फ़ोन से बात की , निरमल बाबा पर देश के कानून के अनुसार ठगी या भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं बनता। अधंविश्वास फ़ैलाने तथा दान में प्राप्त रकम को बैंकिगं नियम के अनुसार ट्रांसफ़र नहीं करने का आरोप बनता है । मैने चार दिन , दिन रात एक कर के मेहनत की । बार – बार सरोज सिंह का रिक्व्र्स्ट आया जल्दी भेजें। मैने लेख भेज दिया।
मैने पत्रकारिता धर्म
का पालन करते हुये निष्पक्षता बरतते हुये लिखा और उसमे अन्ना तथा अरविंद केजरीवाल और
नारायन मुर्ति का भी जिक्र किया । सरोज सिं ने मुझे थैं यू कहा। लेख को इनलोगों ने
नही छापा । इतनी हिम्मत भी सरोज सिंह नही जूटा पाये कि मुझे सूचित करते ,
न छापने
के बारे में । मुझे अहसास था कि मेरा लेखा संतोष भारतीय को अपच पैदा कर देगा। संतोष
भारतीय आजकल अन्ना के माध्यम से राजनीति में आना चाहते हैं ।
मेरे लेख में अरविंद और अन्ना की भी आलोचना थी। मुझे तकलीफ़ इस बात की कतई नही है कि क्यों नहीं छपा । तकलीफ़ यह है कि मुझे उस विषय पर लिखने का आमंत्रण दिया गया और जब लिखा तो इस कारण नहीं छपा कि क्यों कि मेरे लेख में अरविंद केजरीवाल की आलोचना जो आजकल संतोष भारतीय के साथ मिलकर राजनीति कर रहे हैं। ।। जब अखबारो में और टीवी पर निरमल बाबा के बारे में आने लगा तब मैने सरोज सिंह को फ़ोन कर के कहा , क्या लिखा जाय बहुत कुछ सही-गलत आ गया है, उन्होनें कहा , नही नहीं आप लिखिये न । छपना न छपना मेरे जैसे के लिये कोई मायने नहीं रखता । दस हजार प्रतिदिन के सर्कुलेशन वाले सांध्य दैनिक के कार्यकारी संपादक के पद को सिद्धांत के लिये छोड दिया था।
लेकिन क्या मैं संतोष भारतीय का नौकर था ? मेरे समय को बर्बाद क्यों किया , मात्र इस लिये न की तु्म्हारे चमचे मनीष और रुबी अरुण की तरह मैं पक्षपातपूर्ण नही लिख सकता ।
संतोष भारतीय को एक संदेश : आप सिर्फ़ एक दलाल है। अभी कमल मोरारका की दलाली कर रहे हैं और प्रयास में हैं कि कुछ अरविंद केजरीवाल और नारायनमूर्ति से हासिल हो जाये । मैं शेखर गुप्ता नहीं हूं । खोजपूर्ण पत्रकारिता क्या है यह आपको सिखा सकता हूं और जब आपके बारे में खोजपूर्ण खबर लाउंगा तो चेहरा छुपाने की जगह नही मिलेगी। माननीय संतोष भारतीय । देश के खिलाफ़ जो षडयंत्र रच रहो हो उससे बाज आओ । मुझे पता है अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के आगे आपकी क्या औकात है। फ़िलहाल अन्ना उन दोनों से स्वंय छुटकारा पाना चाह रहे हैं। रह गई नारायनमूर्ति की बात तो देश के बजाय चीन का सामन खरीदनेवाले नारायनमूर्ति भारत पर शासन करने की बात भुल जायें ।
एक और बात भी हुई थी । मैने झारखंड के एक नेता की ओर इशारा किया था जिसका सानिध्य निरमल बाबा को प्राप्त था। मैने सरोज सिंह जी को उक्त नेता का नाम भी बता दिया था।
उक्त नेता से संतोष भारतीय के पुराने संबंध रहे हैं। अब मैं नाम भी खोल देता हूं। वह नेता हैं केन्द्र में मंत्री सुबोधकांत सहाय । जयप्रकाश आंदोलन की देन संतोष भारतीय और सुबोध कान्त दोनो रहे हैं।
मैने सुबोध कांत की जिंदगी का वह कच्चा चिठ्ठा बयां किया था , जब वह मुफ़सिल्ली की जिंदगी गुजार रहे थें । आज से तकरीबन २०-२२ साल पहले । उस वक्त वह कांग्रेस में नही थें। सुबोधकांत सहाय की पत्नी रेखा सहाय फ़िल्मों में काम करती थीं। अंधेरी वेस्ट लोखंडवाला में उनका घर था जो आज भी है । सुबोधकांत सहाय अक्सर वहां जाते थें। वहां के कुछ मुस्लिम संगठनों की सभा में सुबोधकांत सहाय भाग लेते थें और उनकी लाबिंग दिल्ली में करते थें । कांग्रेस की सरकार दिल्ली में थी । मुस्लिम संस्थाओं की लाबिंग के एवज में करोडो की रकम होती थी । उनके पक्ष में कानून बनवाने से लेकर सरकार की मदद तक की लाबिंग करते थें। यह एक प्रकार से दलाली थी। सुबोधकांत सहाय के दो साले हैं राजीव सहाय और संजीव सहाय । संजीव सहाय मुंबई में गुटका का काम करते थें टेंशन गुटका नाम था । बाद में सजीव सहाय ने स्मगलिंग में भी हाथ आजमाने की योजना बनाई थी। फ़ायनेंसर द्वारा अंतिम क्षण में हाथ खिंच लेने से यह काम नही कर पायें। आजकल दोनो सुबोधकांत सहाय के दायें बायें रहते हैं ।
सुबोधकांत सहाय द्वारा मुस्लिम संगठनों की लाबिंग करने के बारे में कुछ साक्ष्य थें मेरे पास अगर सुबोधकांत सहाय इंकार करते यां चुनौती देते की वह लाबिंग नहीं करते थें तो साक्ष्यों के आधार पर जांच हो सकती थी । एक चालाकी मैने की थी । साक्ष्य को नही सौंपा था और न सुत्र का नाम बताया था । यह मैं करता भी नहीं हूं। सूत्र की जान का खतरा रहता है। हां जब बात फ़सती है या कोई चुनौती देता है या कानूनी मसला आता है तब उसका नाम जाहिर करता हूं । मुझे नही पता कि सरोज सिंह जी ने सुबोधकांत सहाय के बारे में जिक्र किया था या नही । लेकिन ऐसा होता नही है । मामला जब किसी हाई प्रोफ़ाईल का हो तो सबकुछ खुलकर बताया जाता है । शायद सुबोधकांत के साथ अपने पुराने रिश्तों को ताजा करने के लिये संतोष भारतीय ने मेरे लेख का सहारा लिया । खैर मैं उनमें से नहीं हूं कि किसी संपादक की चमचागिरी करते रहूं। अधिकांश संपादक तो स्वंय अपने आका प्रकाशक की यानी कारपोरेट घरानों की चमचागिरी करते हैं , चमचों की चमचागिरी क्या करना ।
मेरे लेख में अरविंद और अन्ना की भी आलोचना थी। मुझे तकलीफ़ इस बात की कतई नही है कि क्यों नहीं छपा । तकलीफ़ यह है कि मुझे उस विषय पर लिखने का आमंत्रण दिया गया और जब लिखा तो इस कारण नहीं छपा कि क्यों कि मेरे लेख में अरविंद केजरीवाल की आलोचना जो आजकल संतोष भारतीय के साथ मिलकर राजनीति कर रहे हैं। ।। जब अखबारो में और टीवी पर निरमल बाबा के बारे में आने लगा तब मैने सरोज सिंह को फ़ोन कर के कहा , क्या लिखा जाय बहुत कुछ सही-गलत आ गया है, उन्होनें कहा , नही नहीं आप लिखिये न । छपना न छपना मेरे जैसे के लिये कोई मायने नहीं रखता । दस हजार प्रतिदिन के सर्कुलेशन वाले सांध्य दैनिक के कार्यकारी संपादक के पद को सिद्धांत के लिये छोड दिया था।
लेकिन क्या मैं संतोष भारतीय का नौकर था ? मेरे समय को बर्बाद क्यों किया , मात्र इस लिये न की तु्म्हारे चमचे मनीष और रुबी अरुण की तरह मैं पक्षपातपूर्ण नही लिख सकता ।
संतोष भारतीय को एक संदेश : आप सिर्फ़ एक दलाल है। अभी कमल मोरारका की दलाली कर रहे हैं और प्रयास में हैं कि कुछ अरविंद केजरीवाल और नारायनमूर्ति से हासिल हो जाये । मैं शेखर गुप्ता नहीं हूं । खोजपूर्ण पत्रकारिता क्या है यह आपको सिखा सकता हूं और जब आपके बारे में खोजपूर्ण खबर लाउंगा तो चेहरा छुपाने की जगह नही मिलेगी। माननीय संतोष भारतीय । देश के खिलाफ़ जो षडयंत्र रच रहो हो उससे बाज आओ । मुझे पता है अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के आगे आपकी क्या औकात है। फ़िलहाल अन्ना उन दोनों से स्वंय छुटकारा पाना चाह रहे हैं। रह गई नारायनमूर्ति की बात तो देश के बजाय चीन का सामन खरीदनेवाले नारायनमूर्ति भारत पर शासन करने की बात भुल जायें ।
एक और बात भी हुई थी । मैने झारखंड के एक नेता की ओर इशारा किया था जिसका सानिध्य निरमल बाबा को प्राप्त था। मैने सरोज सिंह जी को उक्त नेता का नाम भी बता दिया था।
उक्त नेता से संतोष भारतीय के पुराने संबंध रहे हैं। अब मैं नाम भी खोल देता हूं। वह नेता हैं केन्द्र में मंत्री सुबोधकांत सहाय । जयप्रकाश आंदोलन की देन संतोष भारतीय और सुबोध कान्त दोनो रहे हैं।
मैने सुबोध कांत की जिंदगी का वह कच्चा चिठ्ठा बयां किया था , जब वह मुफ़सिल्ली की जिंदगी गुजार रहे थें । आज से तकरीबन २०-२२ साल पहले । उस वक्त वह कांग्रेस में नही थें। सुबोधकांत सहाय की पत्नी रेखा सहाय फ़िल्मों में काम करती थीं। अंधेरी वेस्ट लोखंडवाला में उनका घर था जो आज भी है । सुबोधकांत सहाय अक्सर वहां जाते थें। वहां के कुछ मुस्लिम संगठनों की सभा में सुबोधकांत सहाय भाग लेते थें और उनकी लाबिंग दिल्ली में करते थें । कांग्रेस की सरकार दिल्ली में थी । मुस्लिम संस्थाओं की लाबिंग के एवज में करोडो की रकम होती थी । उनके पक्ष में कानून बनवाने से लेकर सरकार की मदद तक की लाबिंग करते थें। यह एक प्रकार से दलाली थी। सुबोधकांत सहाय के दो साले हैं राजीव सहाय और संजीव सहाय । संजीव सहाय मुंबई में गुटका का काम करते थें टेंशन गुटका नाम था । बाद में सजीव सहाय ने स्मगलिंग में भी हाथ आजमाने की योजना बनाई थी। फ़ायनेंसर द्वारा अंतिम क्षण में हाथ खिंच लेने से यह काम नही कर पायें। आजकल दोनो सुबोधकांत सहाय के दायें बायें रहते हैं ।
सुबोधकांत सहाय द्वारा मुस्लिम संगठनों की लाबिंग करने के बारे में कुछ साक्ष्य थें मेरे पास अगर सुबोधकांत सहाय इंकार करते यां चुनौती देते की वह लाबिंग नहीं करते थें तो साक्ष्यों के आधार पर जांच हो सकती थी । एक चालाकी मैने की थी । साक्ष्य को नही सौंपा था और न सुत्र का नाम बताया था । यह मैं करता भी नहीं हूं। सूत्र की जान का खतरा रहता है। हां जब बात फ़सती है या कोई चुनौती देता है या कानूनी मसला आता है तब उसका नाम जाहिर करता हूं । मुझे नही पता कि सरोज सिंह जी ने सुबोधकांत सहाय के बारे में जिक्र किया था या नही । लेकिन ऐसा होता नही है । मामला जब किसी हाई प्रोफ़ाईल का हो तो सबकुछ खुलकर बताया जाता है । शायद सुबोधकांत के साथ अपने पुराने रिश्तों को ताजा करने के लिये संतोष भारतीय ने मेरे लेख का सहारा लिया । खैर मैं उनमें से नहीं हूं कि किसी संपादक की चमचागिरी करते रहूं। अधिकांश संपादक तो स्वंय अपने आका प्रकाशक की यानी कारपोरेट घरानों की चमचागिरी करते हैं , चमचों की चमचागिरी क्या करना ।
यहां यह है वह लेख जो मैने लिखा था। इस लेख के साथ बहुत सारे फ़ोटो और कगजात को भी मैने भेजा था ।
बाबा देश को चंगा कर दो !
बाबाओं पर टिकी देश की राजनीति
मदन कुमार तिवारी
विगत दो दशक से यानी पूंज़ीवाद की स्थापनाकाल के
बाद से बढती हुई महंगाई , गरीबी , बेरोजगारी और बीमारियों के महंगे इलाज ने आमलोगों
के अंदर निराशा और हताशा की भावना पैदा कर दी है । इसका दुष्परिणाम है कि जहां कहीं
भी लोगों को इससे निदान की संभावना दिखती है , बगैर उस निदान की असलियत या
सत्यता की जांच पडताल किये समस्या से निजात पाने के लिये लाईन लगा देते हैं। समस्याग्रस्त
लोगों की इस तरह की आस्था की चरम परिणति है अंधविश्वास
।
लोगों के इस बदलते मनोविग्यान के कारण आस्था के रुप में फ़ैल रहे इस तरह के अंधविश्वास को आधार बनाकर शोषण करनेवाला एक नया व्यवसाय “बाबा प्रोफ़ेशन “ भी बहुत तेजी से उभरा है । इस प्रोफ़ेशन में पारंगत बाबाओं के प्रचार का माध्यम अमीर से लेकर गरीब तक की घरों में देखा जानेवाला टीवी है । समय को बेचनेवाले इलेक्ट्रोनिक चैनलो ने भी अंधविश्वास फ़ैला रहे बाबाओं के प्रचार को अपनी कमाई का नया जरिया बना लिया है । यहां तक की न्यूज चैनल भी रात के समय आनलाइन शापिंग तथा प्रात: काल में प्रवचन की शक्ल में बाबाओं का प्रचार कर के अच्छा खासा पैसा कमा रहे हैं । बाबा व्यवसाय का एक और फ़ायदा है कि इसके लिये किसी योग्यता की परीक्षा नही देनी पडती है तथा इसमें सम्मान, शोहरत और पैसा भरपूर है ।
लोगों के इस बदलते मनोविग्यान के कारण आस्था के रुप में फ़ैल रहे इस तरह के अंधविश्वास को आधार बनाकर शोषण करनेवाला एक नया व्यवसाय “बाबा प्रोफ़ेशन “ भी बहुत तेजी से उभरा है । इस प्रोफ़ेशन में पारंगत बाबाओं के प्रचार का माध्यम अमीर से लेकर गरीब तक की घरों में देखा जानेवाला टीवी है । समय को बेचनेवाले इलेक्ट्रोनिक चैनलो ने भी अंधविश्वास फ़ैला रहे बाबाओं के प्रचार को अपनी कमाई का नया जरिया बना लिया है । यहां तक की न्यूज चैनल भी रात के समय आनलाइन शापिंग तथा प्रात: काल में प्रवचन की शक्ल में बाबाओं का प्रचार कर के अच्छा खासा पैसा कमा रहे हैं । बाबा व्यवसाय का एक और फ़ायदा है कि इसके लिये किसी योग्यता की परीक्षा नही देनी पडती है तथा इसमें सम्मान, शोहरत और पैसा भरपूर है ।
बाबा रामदेव ने योग क्रिया का टीवी पर प्रचार
कर के ख्याति अर्जित की और देखते हीं देखते आयुर्वेदिक औषधियों के व्यवसाय का हजारो
करोड का साम्राज्य खडा कर लिया । जब पैसा आयेगा तो सता की चाह पैदा होना स्वभाविक है
। रामदेव ने कालेधन को आधार बनाकर आंदोलन की शुरुआत की और देश की राजनीति में भूचाल
ला दिया ।उन्होने भी लोगो को चमत्कार का रास्ता दिखाया यह कहकर कि खरबो रुपया कालेधन
की शक्ल में विदेश में जमा है और उस रुपया के भारत आते हीं गरीबी दूर हो जायेगी । लोग
को अपनी आर्थिक समस्या का समाधान विदेश से वापस आनेवाले काले धन में दिखा और बाबा रामदेव
एक चमत्कारी व्यक्तित्व बन गये जो विदेश से रुपया लाकर गरीबी दूर कर सकता है ।
इधर बहुत कम समय में एक और नये बाबा की ख्याति फ़ैली है । निर्मल बाबा । मात्र एक साल के अंदर हीं बाबा हर घर में पहुंच चुके हैं। बाबा की तस्वीर प्रत्येक दुसरे घर में मौजूद है । बाबा की इस ख्याति के पीछे टीवी चैनलों की प्रमुख भूमिका है । बाबा की प्रचारशैली भी निराली है । अपने सबसे प्रसिद्ध कार्यक्र्म “समागम” जिसमें भाग लेने का शुल्क दो हजार रुपया है , उस समागम में बाबा एक राजसिंहासन पर विराजमान रहते हैं , सामने लगी कुर्सियों पर भक्तगण बैठे रहते हैं। उन्हीं भक्तों में से कोई एक कैमरे के सामने आता है और बाबा के समक्ष अपनी आर्थिक, व्यवसायिक, नौकरी से संबंधित समस्या, बीमारी या शादी की समस्या को रखता है , बाबा अपने उस भक्त की समस्या का चमत्कारिक समाधान जैसे कांच के बर्तन में मनी प्लट लगाना, दस के नोटों की नई गड्डी को अलमारी में रखना तथा पन्द्रह दिन में एकबार उस गड्डी का दर्शन करने जैसा समाधान बताते हैं। कभी कभी बाबा अचानक अपने सामने बैठे भक्तों को अपना पर्स खोलने का आदेश देते हैं। भक्त आनन फ़ानन में पर्स खोल लेते हैं । बाबा उन्हें सलाह देते हैं कि काले रंग का महंगा पर्स रखें, साल में एकबार पर्स बदल दें । इस तरह के समाधान का कोई तार्किक कारण नही होता है । उसी समागम में वैसे भक्तों को भी कैमरे के सामने लाया जाता है जो यह दावा करते हैं कि उन्हें बाबा के चमत्कार से फ़ायदा हुआ है । बाबा उन्हें दशवंत देने की सलाह देते हैं । अपने प्रचार के शुरुआती दौर में मुफ़्त में फ़ोन से सलाह देनेवाले बाबा की सलाह आज की तारीख में दो हजार रुपये अदा कर के समागम में भाग लेने पर हीं उपलब्ध है ।
देश और विदेश के 33 चैनलों पर कुल मिलाकर ४६ कार्यक्रम बाबा के प्रसारित होते हैं। सर्वव्यापी ईश्वर की तरह बाबा भी सुबह साढे पांच बजे से लेकर रात्री दस बजे तक किसी न किसी चैनल पर व्याप्त मिलते हैं । बाबा के कार्यक्रम का प्रसारण करनेवालों में देश के तकरीबन सभी राष्ट्रीय चैनल तथा हिंदीभाषी क्षेत्रों के क्षेत्रीय चैनल शामिल हैं। न्यूज चैनल से लेकर मनोरंजन चैनल और धार्मिक चैनलों पर बाबा का प्रसारण होता है । राष्ट्रीय स्तर के न्यूज चैनलों में स्टार न्यूज, आइ बी एन 7 , आजतक, न्यूज 24, इंडिया टीवी, पी 7 न्यूज, टोटल टीवी और सहारा समय शामिल है । क्षेत्रीय चैनलों में सहारा बिहार- झारखंड, सहारा यूपी, एम पी, राजस्थान, मुंबई, इंडिया न्यूज हरियाणा, साधना न्यूज, जी छतीसगढ शामिल हैं वहीं मनोरंजन चैनलों में स्टार उत्सव, हिस्ट्री टीवी 18, सोनी, सब टीवी, लाईफ़ ओके, सहारा वन , ए एक्स एन, डी वाई 365, दिव्या सौभाग्य, कात्यायनी एंव ए 2जेड चैनल हैं। विदेश में नेपाल वन तथा कलर यूएसए और धार्मिक चैनलों में दर्शन 24, प्रार्थना उडिया , बाबा के कार्यक्रमों का प्रसारण करते हैं। लेकिन इतने सारे चैनलों पर दिखने वाले बाबा देश के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक चैनल आस्था पर नहीं दिखते हैं । इसका कारण यह है कि आस्था चैनल का मालिकाना हक बाबा रामदेव का है और आज इन्हीं दो बाबाओं के मध्य लोकप्रियता का टकराव है ।
इधर बहुत कम समय में एक और नये बाबा की ख्याति फ़ैली है । निर्मल बाबा । मात्र एक साल के अंदर हीं बाबा हर घर में पहुंच चुके हैं। बाबा की तस्वीर प्रत्येक दुसरे घर में मौजूद है । बाबा की इस ख्याति के पीछे टीवी चैनलों की प्रमुख भूमिका है । बाबा की प्रचारशैली भी निराली है । अपने सबसे प्रसिद्ध कार्यक्र्म “समागम” जिसमें भाग लेने का शुल्क दो हजार रुपया है , उस समागम में बाबा एक राजसिंहासन पर विराजमान रहते हैं , सामने लगी कुर्सियों पर भक्तगण बैठे रहते हैं। उन्हीं भक्तों में से कोई एक कैमरे के सामने आता है और बाबा के समक्ष अपनी आर्थिक, व्यवसायिक, नौकरी से संबंधित समस्या, बीमारी या शादी की समस्या को रखता है , बाबा अपने उस भक्त की समस्या का चमत्कारिक समाधान जैसे कांच के बर्तन में मनी प्लट लगाना, दस के नोटों की नई गड्डी को अलमारी में रखना तथा पन्द्रह दिन में एकबार उस गड्डी का दर्शन करने जैसा समाधान बताते हैं। कभी कभी बाबा अचानक अपने सामने बैठे भक्तों को अपना पर्स खोलने का आदेश देते हैं। भक्त आनन फ़ानन में पर्स खोल लेते हैं । बाबा उन्हें सलाह देते हैं कि काले रंग का महंगा पर्स रखें, साल में एकबार पर्स बदल दें । इस तरह के समाधान का कोई तार्किक कारण नही होता है । उसी समागम में वैसे भक्तों को भी कैमरे के सामने लाया जाता है जो यह दावा करते हैं कि उन्हें बाबा के चमत्कार से फ़ायदा हुआ है । बाबा उन्हें दशवंत देने की सलाह देते हैं । अपने प्रचार के शुरुआती दौर में मुफ़्त में फ़ोन से सलाह देनेवाले बाबा की सलाह आज की तारीख में दो हजार रुपये अदा कर के समागम में भाग लेने पर हीं उपलब्ध है ।
देश और विदेश के 33 चैनलों पर कुल मिलाकर ४६ कार्यक्रम बाबा के प्रसारित होते हैं। सर्वव्यापी ईश्वर की तरह बाबा भी सुबह साढे पांच बजे से लेकर रात्री दस बजे तक किसी न किसी चैनल पर व्याप्त मिलते हैं । बाबा के कार्यक्रम का प्रसारण करनेवालों में देश के तकरीबन सभी राष्ट्रीय चैनल तथा हिंदीभाषी क्षेत्रों के क्षेत्रीय चैनल शामिल हैं। न्यूज चैनल से लेकर मनोरंजन चैनल और धार्मिक चैनलों पर बाबा का प्रसारण होता है । राष्ट्रीय स्तर के न्यूज चैनलों में स्टार न्यूज, आइ बी एन 7 , आजतक, न्यूज 24, इंडिया टीवी, पी 7 न्यूज, टोटल टीवी और सहारा समय शामिल है । क्षेत्रीय चैनलों में सहारा बिहार- झारखंड, सहारा यूपी, एम पी, राजस्थान, मुंबई, इंडिया न्यूज हरियाणा, साधना न्यूज, जी छतीसगढ शामिल हैं वहीं मनोरंजन चैनलों में स्टार उत्सव, हिस्ट्री टीवी 18, सोनी, सब टीवी, लाईफ़ ओके, सहारा वन , ए एक्स एन, डी वाई 365, दिव्या सौभाग्य, कात्यायनी एंव ए 2जेड चैनल हैं। विदेश में नेपाल वन तथा कलर यूएसए और धार्मिक चैनलों में दर्शन 24, प्रार्थना उडिया , बाबा के कार्यक्रमों का प्रसारण करते हैं। लेकिन इतने सारे चैनलों पर दिखने वाले बाबा देश के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक चैनल आस्था पर नहीं दिखते हैं । इसका कारण यह है कि आस्था चैनल का मालिकाना हक बाबा रामदेव का है और आज इन्हीं दो बाबाओं के मध्य लोकप्रियता का टकराव है ।
बाबा के कार्यक्रमों के प्रसारण का व्यय करोडो में है । सामान्यत: बीस मिनट के प्रसारण का मासिक खर्च चार लाख से
छह लाख रुपया है । पांच लाख औसत के हिसाब से
४६ चैनलों पर दो करोड तीस लाख रुपया प्रतिमाह सिर्फ़ टीवी चैनलों का व्यय है । लेकिन
इस व्यय की पूर्ति के लिये बाबा के अपने आय के स्रोत हैं।
बाबा के आय का स्रोत : बाबा के आय के मुख्य स्रोतों
में समागम,
दशवंत, चढावा , दान तथा पूजा है ।
समागम: इसका कार्यक्रम चरणबद्ध तरीके से चलता
है तथा समागम में भाग लेने के लिये अग्रिम भुगतान करके बुकिंग करानी पडती है । समागम
में भाग लेने का शुल्क दो हजार रुपया है एवं दो वर्ष से उपर के बच्चे का भी शुल्क लगता
है । एक समागम में ढाई हजार भक्त शामिल होते हैं । प्रत्येक माह में दस से लेकर बीस समागम का आयोजन किया जाता
है । अप्रील माह में कुल सतरह समागम का कार्यक्रम है । एक समागम से पचास लाख की आय
होती है माह में पन्द्र्ह समागम से औसत आय साढे सात करोड रुपये होती है । इसके अतिरिक्त
समागम में आये भक्त चढावा भी चढाते हैं जो समागम के आयोजन का व्यय निकालने के लिये
काफ़ी होता है ।
दशवंत से आय : दशवंत से तात्पर्य है भक्त की
आमदनी का दसवां हिस्सा । यह कुछ कुछ सरकार द्वारा लिये जा रहे आयकर की तरह है । बाबा
के चमत्कार से हुये फ़ायदे का दसवां भाग उनके भक्त बाबा को दशवंत के रुप में दान करते
हैं । भ्रष्टाचार में लिप्त लोग नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूढू रे सावंरिया की तर्ज
पर हर स्थान पर इसी मनोकामना से मत्था टेकते चलते हैं कि उनकी भ्रष्टाचार की कमाई में
इजाफ़ा हो । वैसे लोगों के लिये आय का दसवें हिस्से का दान कोई मायने नही रखता और वह उसे नाजायज दस प्रतिशत के रुप में आराम से देते हैं । लेकिन यह जांच
का विषय है कि क्या बाबा के दरबार में आनेवाले भक्तों को उनके चमत्कार से आय होती है
या एक दुसरे से व्यापारिक रिश्ता स्थापित करवा कर बाबा भक्तों के लिये सुविधादाता का
काम करते हैं। बाबा यह भी नही बता पाते हैं कि
उनकी कर्पा से ईमानदार भक्तों को अगर नौकरी लगी है तो क्या वह भक्त अपनी पगार का दस प्रतिशत हिस्सा देते
हैं
?
निरमलजीत सिंह नरुला से निरमल
बाबा तक का सफ़र : बाबा का अधिकारिक नाम निर्मलजीत सिंह नरुला है । भारत-पाक बंटवारे के बाद
बाबा का परिवार पाकिस्तान से आकर पंजाब के पटियाला के सामना गांव में बस गया । बाबा के पिता का नाम एस एस नरुला हैं । एस एस
नरुला की पुत्री मालविंदर कौर के साथ झारखंड बिधानसभा के पूर्व अध्यक्ष तथा चतरा संसदीय
क्षेत्र से निर्दलीय सांसद इंदर सिंह नामधारी का विवाह 10 सितंबर १९६४ को हुआ। नामधारी रिश्ते में निरमल बाबा के
सगे जीजा हैं । नामधारी का जन्म स्थल भी पाकिस्तान के गुजरात प्रांत का नौशेरा गांव
में हुआ था । बाबा 1970-71 में अपने परिवार सहित झारखंड जो पहले संयुक्त बिहार था , वहां आकर बस गये। बाबा
ने अनेको व्यवसाय में अपनी किस्मत अजमाई .लाइम स्टोन, कपडे की दुकान जो गढवा
में थी,
निरमल
ब्रांड ईंट्ट भट्टा से लेकर माइनिंग की ठेकेदारी
तक का काम बाबा ने किया । बाबा का एक निवास झारखंड की राजधानी रांची के पिस्का मोड
स्थित पेट्रोल पंप के पास भी था लेकिन १९८४ के सिक्ख विरोधी दंगो के
बाद उसे बेचकर बाबा झारखंड से निकलकर देश की राजधानी दिल्ली में स्थापित हो गये। ऐसा
प्रचारित है कि माइनिंग की ठेकेदारी के दरम्यान ही बहरागोडा नामक स्थान पर बाबा को अपने अंदर चमत्कारी शक्ति होने का अनुभव
हुआ। बाबा के बारे में उनके परिवार और मित्रों के बीच यह बात फ़ैल गई कि बाबा के पास
चमत्कारी शक्तियां हैं तथा बाबा किसी भी समस्या का निराकरण कर सकते हैं। बाबा ने अपनि
इन शक्तियों का प्रयोग अपने रिश्तेदारों से शुरु किया । रिश्तेदारों के माध्यम से समाज
में बाबा के चमत्कारी व्यक्तित्व होने की बात प्रचारित होने लगी और इसके साथ चढावे
आने भी शुरु हो गये। वैसे बाबा के दिल्ली के प्रारंभिक काल के उनके एक मित्र जो उनके
साथ मिलकर प्रापर्टी का व्यवसाय करते थे उनका कहना है कि बाबा के
पास कोई शक्ति नही थी, अपने व्यवसाय के पूजा –पाठ के लिये भी बाहर से पंडित बुलाते थे । बाबा
को संस्कर्त या पंजाबी का भी ग्यान नही है । बाबा ने समस्याग्रसित
व्यक्तियों को चमत्कारी उपाय से दूर करने वाले कार्य को अपना व्यवसाय बना लिया । व्यवसाय
को जमाने के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तर्ज पर शुरुआती दौर में बाबा फ़ोन के माध्यम
से मुफ़्त सलाह भी देते थे । बाद में बाबा ने अपने व्यवसाय को व्यवस्थित रुप देते हुये
बकायदा मिलने से लेकर पूजा-पाठ के लिये शुल्कों का निर्धारण कर दिया । तकरीबन पांच
साल पहले बाबा ने टीवी के माध्यम से प्रचार की भी शुरुआत कर दी। इंटरनेट का जमाना आ
चुका था इसलिये बाबा ने www.nirmalbaba.com के नाम से एक वेबसाईट का निबंधन
बुधवार ३० जुलाई २००८ में करवाया । निबंधन कागजात में बाबा का पता निरमल दरबार , निरमलजीत नरुला , M-5 lower ground floor res G.K-II, New delhi
-110048 दर्ज
है । इमेल nirmaldarbar666@gmail.com तथा
nirmalbaba6@gmail है तथा मोबाईल नंबर +91.9971666888
है। इस
प्रकार पंजाब के एक छोटे से गांव सामना से सफ़र की शुरुआत करनेवाले निरमलजीत सिंह नरुला
झारखंड के रास्ते विभिन्न व्यवसायिक रास्तों पर चलते हुये १९९० के दशक में दिल्ली पहुंच
गये और वहां धर्म के व्यवसाय की स्थापना की और हाईटेक हो गये ।
आज बाबा की आय अरबो में है। उपलब्ध सूचना के अनुसार
अभीतक देश के तीन बैंको में बाबा के खाते हैं । यस बैंक, आइ सी आइ सी आइ तथा पंजाब नेशनल
बैंक । बाबा के एक खाते में 109 करोड रुपये की राशि मात्र तीन माह में जमा होने का पता
चला है । यह भी पता चला है कि बाबा का 25 करोड का फ़िक्स्ड डिपोजीट भी है । बाबा के खाते
की नामिनी उनकी पत्नी सुषमा नरुला हैं। बाबा दो प्रकार के खातों का संचालन करते हैं
। एक चालू खाता जो निरमल दरबार के नाम से है और बचत खाता जो उनके अधिकारिक नाम निरमलजीत सिंह नरुला के नाम पर है । चालू खाते में जमा
हुये पैसों को तुरंत बाबा के निजि खाते में ट्रांसफ़र कर दिया जाता है । बाबा का कहना है कि वह कोई व्यवसाय
नही करते हैं और उन्होनें किसी प्रकार की कोई धार्मिक संस्था का निबंधन नहीं करवाया
है । इस हालात में यह प्रश्न स्वाभाविक रुप से पैदा होता है कि जब वह कोई व्यवसाय नही
करते हैं और उन्होनें किसी धार्मिक संस्था का निबंधन नही कराया है तो चालू खाता किस
आधार पर खुला । चालू खाता संस्था या व्यवसाय के लिये हीं खोला जाता है । निरमल दरबार
के चालू खाते से निरमलजीत सिंह नरुला के बचत खाते में पैसे का ट्रासफ़र होना भी कानूनी पेचदगी भरा मामला है । बचत खाता में जमा
होनेवाली राशि का ग्यात स्रोत होना आवश्यक है और बचत खाते में करोडो रुपये जमा होने
की अवस्था में बैंक का दायित्व बनता है कि वह आर बी आइ को इसकी सूचना दे। बाबा का निवेश रियल स्टेट में है।
उनके खाते से एक निलम कपूर नामक महिला के खाते में पैसे के भुगतान का भी मामला सामने
आ रहा है लेकिन बाबा इसकी सफ़ाई में कहते हैं कि वह
भुगतान उनसे खरीद किये गये फ़्लैट का है । बाबा स्वंय यह दावा करते है कि उनके खाते
में वर्तमान में 238 करोड रुपये हैं तथा
वह आयकर का भुगतान करते हैं । चालू खाते से बचत खाते में पैसे के ट्रांसफ़र पर बाबा का जवाब है कि उनके पंजाब नेशनल बैंक वाले खाते
से एकबार करोड रुपये का गबन हो चुका है इसलिये सुरक्षा के दर्ष्टिकोण
से बाबा पैसे का ट्रांसफ़र करते हैं । गबन के संबंध
में एक मुकदमा भी बाबा ने अपने एक भक्त पर किया है जिसने बाबा के हस्ताक्षरयुक्त चेक
के माध्यम से
105 करोड रुपया अपने खाते में जमा
करवाया था और किस्तों में उसे निकाल भी लिया । उक्त भक्त दंपति का कहना है उन्हें वह
चेक एक परिचित ने दिया था और उसको अपने खाते में जमा करवा कर निकालने पर पांच लाख रुपया कमीशन देने की बात कही
थी । पुलिस का कहना है कि उक्त दंपति ने उस रकम को निकालकर अपने बच्चों के नाम पर जमा
कर दिया था तथा यह प्रत्यक्ष रुप से धोखाधडी का मामला है । बाबा ने होटल व्यवसाय में
भी निवेश किया है । बाबा का सबसे ज्यादा नि्वेश रियल स्टेट तथा जमीन –जायदाद के व्यवसाय में
है ।
बाबा के भक्त दशवंत के रुप में बाबा के चमत्कार के कारण हुई अपनी कमाई का
दस प्रतिशत हिस्सा दान में देते हैं । समागम और चढावे से अलग आय होती है । चूंकि बाबा निरमल दरबार के नाम से चल रहे कारोबार से
हुई आय का उपयोग व्यक्तिगत नाम पर संपति खरीदने में करते है इसलिये निरमल दरबार को
कानूनी रुप से धार्मिक संस्था नही कहा जा सकता है और न हीं उसका निबंधन धार्मिक या
सामाजिक संस्था के रुप में हो सकता है । संविधान के अनुच्छेद 26 जो धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता से संबंधित
है
, उसकी
उप-धारा (ग) के अनुसार चल एवं अचल
संपति अर्जित करने एवं उसके स्वामित्व का अधिकार है वहीं उप-धारा (घ ) इस तरह से प्राप्त संपति
के प्रबंधन का भी अधिकार प्रदान करती है परन्तु यह स्वतंत्रता धार्मिक संप्रदाय या
उसके अनुभाग को हासिल है न कि किसी निजि व्यक्ति को । धार्मिक या सामाजिक संस्थाओं
के निबंधन से संबंधित कानून के तहत इस तरह की संस्थायें गैर लाभकारी होनी चाहिये तथा उनके द्वारा प्राप्त आय का उपयोग संस्था
के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये होना अनिवार्य है । संस्था से जुडे
किसी व्यक्ति द्वारा संस्था की आय का अपने लिये उपयोग अपराध की श्रेणी में आता है । अन्ना हजारे को भी उनके खिलाफ़ जांच कर रहे जस्टिस पीबी सांवत ने संस्था के पैसे का उपयोग अपने लिये
करने का दोषी पाया था तथा अपनी रिपोर्ट में भी उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया था । अन्ना हजारे के मामले में यह पाया गया था कि उन्होनें अपनी संस्था का दो लाख रुपया अपने
जन्मदिन के समारोह मनाने में व्यय किया था । हालांकि बाद में एक व्यक्ति ने वह रकम
संस्था के खाते में जमा भी कर दी परन्तु जस्टिस
पी बी सांवत ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि वह रकम
भी संस्था की आय मानी जायेगी और उन्होने अन्ना हजारे को
भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त करने की उनकी प्रार्थना को ठुकरा दिया था ।
बाबा पर आरोप : निरमलजीत सिंह नरुला
उर्फ़ निरमल बाबा पर अंधविश्वास को बढावा देने तथा चमत्कार से निदान करने के नाम पर
भक्तों से समागम एवं दशवंत के रुप में पैसा लेने का आरोप है । बाबा स्वंय को धार्मिक
व्यक्ति मानते हैं इसलिये संविधान के अनुच्छेद 25 का जिक्र अनिवार्य है । इसमें “अंतकरण का और धर्म का अबाध रुप से मानने और आचरण करने की स्वतंत्रता का प्रावधान
है । लेकिन इस धार्मिक स्वतंत्रता के साथ एक अनिवार्य शर्त यह है कि इसके कारण लोक
व्यवस्था
, सदाचार
एवं स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पडे । बाबा बीमारियों का चमत्कारी इलाज बताते
हैं और चंगा हो जाने का आशीर्वाद देते हैं तथा कोई न कोई अतार्किक उपाय बताते हैं । इसका प्रचार
भी उनके समागम के दौरान दिखाया जाता है । इसके अलावा ड्रग एवं मैजिक रिमेडी एक्ट (ओबजेक्सनेबुल एडवर्टाईजिंग एक्ट
१९५४
) के तहत
किसी भी बीमारी का चमत्कारी इलाज बताना और प्रचारित करना एक अपराध है । इस कानून की
धारा दो की उप-धारा “सी “में चमत्कारी निदान
की व्याख्या देते हुये बताया गया है कि कवच , मंत्र, ताबीज या वैसी कोई भी
वस्तु जिसके द्वारा बीमारी के इलाज होने का दावा किया जाता
उसे चमत्कारी निदान की श्रेणी में रखा जायेगा जो उक्त कानून की धारा 7 के तहत दंडनीय अपराध
है । इसी कानून की तर्ज पर अंधविश्वासों के निवारण हेतु महाराष्ट्र सरकार ने एक कानून
अंध श्रद्धा निर्मूलन कानून २००५ बनाया गया है । इस कानून को भी कडे विरोध का सामना करना पडा था तथा टीवी पर प्रचार करने वाले अधिकांश बाबाओं ने इसका
विरोध किया था जिसमे आशाराम बापू भी शामिल थें ।
निरमल बाबा के खिलाफ़ विवाद : निरमलजीत सिंह नरुला उर्फ़ निरमल
बाबा की खिलाफ़त की मुहिम एक वेबसाइट पर छपे लेख के बाद से शुरु हुई । बाबा के चमत्कारी
कार्यों पर सवालिया निशान उठाते हुये इंडीजाब नाम के एक ब्लागर ने www.hubpages.com वेबसाइट पर एक लेख लिखा जिसमे उसने बाबा को रहस्मय व्यक्ति
बताते हुये यह लिखा था कि बाबा के पास काला जादू जैसी शक्ति है , वह पूरे विश्वास के
साथ कह सकता है कि बाबा वशीकरण मंत्र का प्रयोग करते हैं तथा वह किसी भी व्यक्ति के
सोचने की शक्ति को नियंत्रित कर सकते हैं । बाबा एक पाखंडी है जो स्वंय को अध्यात्मिक
गुरु के रुप में प्रस्तुत करते हैं । उसने तर्क वितर्क के लिये यह प्रश्न भी उठाया
था कि क्या बाबा फ़्राड हैं ? निरमलजीत सिंह नरुला उर्फ़ निरमल बाबा ने कानूनी नोटिस
भेजकर उक्त वेबसाईट को लेख हटाने के लिये कहा , परन्तु वेबसाइट ने ऐसा करने
से इंकार कर दिया । बाबा ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा CS ( OS ) no. 871/2012 उक्त वेबसाइट के उपर दाखिल किया । निरमल बाबा के वकील
के द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बाबा एक अतिसम्मानीय अध्यात्मिक गुरु हैं तथा अपने अध्यात्मिक प्रवचनो के
लिये देश विदेश में निरमल बाबा के नाम से प्रसिद्ध है । बाबा अध्यात्मिक शिक्षा तथा
उपचार की शक्ति
( हिलिंग
पावर
–healing power ) के लिये जाने जाते हैं । वह
निर्बाध रुप से समागम नाम से धार्मिक सभाओं का संचालन संपूर्ण भारत में करते हैं ।
जिसमे वे लोगो को अध्यात्मिक निर्देश देते हैं । उनके उपदेशों का प्रसारण तीस चैनलों
पर होता है तथा इसमें सोनी टीवी, आजतक, सब टीवी और आइ बी एन 7 शामिल है । बाबा का
अपना वे्बसाइट www.nirmalbaba.com है , उक्त वेबसाइट पर प्रतिदिन द्स लाख व्यक्ति आते हैं अत: बाबा एक प्रतिष्ठित
व्यक्ति हैं और उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा आवश्यक है । इस याचिका में वेबसाइट पर प्रकाशित
लेख को हटाने का आदेश देने की प्रार्थना की गई थी । इसकी सुनवाइ 30 मार्च २०१२ को माननीय न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह की पीठ
में हुई तथा न्यायालय ने वेबसाइट को, उस लेखक का पता, आइ पी एड्रेस, लाग - इन डाटा , अगली तारीख को न्यायालय
में प्रस्तुत करने का और अगली तारीख तक बाबा के खिलाफ़ छापी गई सामग्री को हटा देने
एवं कोई भी अपमान जनक सामग्री नही प्रकाशित करने का आदेश प्रदान किया । मुकदमे की अगली
तारीख चार मई निर्धारित की गई है । इस आदेश के बाद वेबसाइट ने उस लेख को हटा भी दिया
है । उस लेख का वेबसाइट लिंक था । http://indijobs.hubpages.com/hub/Is-Nirmal-Baba-a-Fraud,. इसके बाद नई मीडिया के नाम से चर्चा में आये ब्लांगिग, न्यूज पोर्टल और सोशल
मीडिया साइट्स पर निरमल बाबा के खिलाफ़ आलोचनाओं की बाढ आ गई । बाबा का अपना फ़ेसबुक पेज भी है https://www.facebook.com/nirmalbabaji जहां बाबा के चाहनेवालों की संख्या 356,689
।
लेकिन बाबा के आलोचको ने एक फ़ेसबुक पेज का भी निर्माण कर लिया था www.facebook.com/nirmalbabadarbar.
हालांकि
शिकायत होने के बाद फ़ेसबुक से वह पेज हटा दिया गया है । इसी तरह बाबा के वेबसाइट से
मिलते हुये नामवाले एक साइट का भी निर्माण २० जनवरी २०१२ को हुआ है । www.nirmalbaba.net.in उपलब्ध कागजातों के अनुसार किसी निर्वाण शर्मा नामक व्यक्ति
ने जो स्वंय को दिल्ली के द्वारका नामक स्थान का वासी बताता है, उसने इस साइट का निबंधन
कराया है । उसका फोन नंबर हमेशा बंद रहता है । बाबा ने अपने फ़ेसबुक पेज पर इसे फ़र्जी
साइट बताया है तथा कार्रवाई करने की चेतावनी दी है । इस साइट का आइ पी एड्रेस 208.91.198.47 है । इसी व्यक्ति ने
एक और साइट का निबंधन कराया है aboutpeople.net.in तथा इसका लिंक निरमल
बाबा नाम के फ़र्जी साइट से जोड दिया है । निर्मल बाबा के नाम वाली साइट नही खुलती है
लेकिन वहां पर दुसरा लिंक उपलब्ध है । इस तरह के फ़र्जी या प्रसिद्ध
नामों से मिलते जुलते वेबसाइट का अपना गोरख धंधा है।
पर्दे के पीछे का खेल : देश की राजनीति में
एक खतरनाक बदलाव विगत एक साल के अंदर आया है । निर्मल बाबा का झारखंड से पुराना रिश्ता
है और वहां से संबंध रखनेवाले केन्द्र के सताधारी दल के एक नेता का सानिध्य बाबा को
प्राप्त है। उक्त नेता जी का मुंबई की दुनिया से भी गहरा नाता है । आज से तकरीबन २२-२४ साल पहले जब वह नेता
जी दुसरे दल में थें , अक्सर अपने परिवार से मिलने मुंबई जाते थें। नेता जी के लिये वह उनके
जीवन का दुर्दिन था । नेता जी मुंबई में संप्रदाय विशेष की बैठकों में भाग लेते थें
और उनके लिये केन्द्र में लाबिंग करते थें। बदले में अच्छी – खासी रकम का भुगतान
उन्हें होता था । इधर एक साल के अंदर बाबा रामदेव ने भी देश की जनता को यह विश्वास
दिलाना शुरु कर दिया था कि देश की सभी आर्थिक समस्याओं का समाधान एक दिन में हो जायेगा
अगर विदेशी बैंको में जमा काला धन को वापस भारत लाया जाय । उन्हीं की तर्ज पर महाराष्ट्र
के एक तथाकथित समाजसेवी अन्ना हजारे को सामने रखकर कुछ व्यक्तियों ने जिनमें प्रमुख
रुप से अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, किरन बेदी तथा प्रशांत भुषण
शामिल हैं
, ने एक
नये कानून लोकपाल को देश में फ़ैले भ्रष्टाचार का निदान बताते हुये आंदोलन की शुरुआत
कर दी। इस आंदोलन में भी अन्ना हजारे को मात्र एक बिकाउ चेहरा के रुप में प्रस्तुत
किया गया । असली कर्ता-धर्ता अरविंद केजरीवाल तथा मनीष सिसोदिया थें। इनकी एक
संस्था थी
“कबीर “जिसे अमेरिका की संस्था
फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से करोडो का अनुदान मिला है , भारत, श्रीलंका एवं नेपाल
में पारदर्शी सरकार की स्थापना के लिये । फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन पर उसके स्थापना काल से हीं
यह आरोप लगता रहा है कि उसका हर कार्य अमेरिकी हितों के पोषण के लिये होता है । अमेरीकी
जासूसी संस्था सी आई ए में कार्यरत अधिकारी बाद में फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन में उच्च पदो पर
विराजमान हुये हैं । जबकि दोनो का कार्यक्षेत्र सर्वथा अलग है । फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन के
बोर्ड आफ़ ट्रस्टी में भारत के प्रमुख उद्योगपति नारायन मूर्ति भी हैं । ये फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन
की तीन कमेटियों में हैं । कभी नारायन मूर्ति का नाम देश के राष्ट्रपति पद के लिये
चर्चा में आया था । रामदेव एवं अन्ना टीम के बीच कुछ मतभेदों के बावजूद अच्छे संबंध
हैं । इन दोनो का आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ़ था तथा भाजपा और आर एस एस की संलिप्ता भी
आंदोलन में थी। ऐसी परिस्थिति में निर्मल बाबा हीं इनका काट हो सकते हैं । जहां रमदेव –अन्ना टीम का देश की
समस्या का चमत्कारिक निदान का आधार विदेश में जमा कालेधन को वापस लाना एवं लोकपाल नाम
के एक नये कानून का निर्माण हैं , वहीं निर्मल बाबा के
पास प्रत्येक व्यक्ति की समस्या के
लिये तुरंत-फ़ुरंत निदान उपलब्ध
है । आम जनता जो आर्थिक समस्याओं से जूझ रही है , उसने रामदेव – अन्ना टीम के निदान
की बजाय निर्मल बाबा के निदान को ज्यादा महत्व दिया और निर्मल बाबा ने लोकप्रियता के
पैमाने पर कुछेक महिनों के अंदर हीं रामदेव – अन्ना टीम को बहुत पीछे ढकेल
दिया । आनेवाले लोकसभा चुनाव में निर्मल बाबा कांग्रेस के लिये काफ़ी फ़ायदेमंद साबित
हो सकते हैं । यह बात भाजपा के लिये चिंतनीय थी। सोशल साइट्स , न्यूज पोर्टल एवं ब्लागर
जो कभी अपनी निष्पक्षता के लिये जाने जाते थें , आज खेमों में विभाजित हो चुके
हैं । रामदेव
– अन्ना
के पक्ष में इसी नई मीडिया ने मुहिम छेडी थी तथा रातो रात अन्ना को गांधी बना दिया
था । आज वही लोग निरमल बाबा के खिलाफ़ सोशल साईट्स , न्यूज पोर्टल और ब्लांगिग पर
अभियान चला रहे हैं । हालांकि नई मीडिया में एक तबका ऐसा भी है जो इन तीनों का विरोध
करता है लेकिन उस तबके की आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है । वस्तुत: रामदेव-अन्ना टीम एवं निर्मल
बाबा राजनीति की बिसात के मोहरे भर हैं । पर्दे के पीछे से यह खेल देश के दो प्रमुख
दल खेल रहे हैं और सोशल साइट्स, न्यूज पोर्टल , ब्लांगिग शतरंज की बिसात के
बादशाहों के प्यादे यह लडाई लड रहे हैं । शुरुआत में बचाव की मुद्रा में आये निर्मल
बाबा के प्यादों ने भी मैदान में मोर्चा जमा लिया है । देश की राजनीति के लिये यह एक
अशुभ संकेत है । रामदेव-अन्ना टीम एवं निर्मल बाबा जैसे लोग पहले अपना हित साधेंगें
न की देश का । ये लोग “कबीरा खडा बाजार में लिये लूगाठी हाथ जो घर जारे
आपना चले हमारे साथ “वाले नही हैं । आज अपने उपयोग के लिये राजनीतिक दल भले
हीं इनका इस्तेमाल कर रहे हों , लेकिन आनेवाले कल में उन्हें ठीक उसी तरह पछताना पडेगा
जिस तरह अपराधियों का इस्तेमाल करने के कारण पछताना पड रहा है । कभी नेताओं के लिये
बुथ लूटने वाले अपराधी आज स्वंय नेता बन बैठे हैं । कहीं ऐसा न हो कि आनेवाले समय में
भारत की संसद पर चमत्कारिक बाबा एवं विदेशी दान से संस्था चलानेवालों का कब्जा हो जाये
। आशीर्वाद से अगर बीमारी दूर होती तो मां काली के अन्यनय भक्त रामकर्ष्ण
परमहंस की मौत कैंसर से नही होती । चमत्कार से अपने भक्तों की समस्या का निदान करने
वाले निर्मल बाबा से यही प्रार्थना है कि व्यक्तिगत निदान के बजाय देश की सारी समस्याओं का निदान कर दें। देश बीमार है । बाबा देश को
चंगा कर दो
!
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