शिवदीप लेंडे: एस पी या हवालदार


शिवदीप लेंडे: एस पी या हवालदार !

निरमल बाबा उर्फ़ निरमलजीत सिंह नरुला के खिलाफ़ एक मुहिम चल पडी है । जिसे देखो वही यह साबित करने में लगा है कि निरमल बाबा ठग हैं , चार सौ बीस यानी धोखेबाज हैं, लोगों को भयभीत करके पैसे वसूलते हैं। निरमल बाबा के खिलाफ़ यह मुहिम भारत  से नही शुरु हुई । इसकी शुरुआत विदेश के एक वेबसाईट्स  www.hubpages.com  से हुई । भारत में एक विवादास्पद अखबार जो उषा मार्टिन का है , “प्रभात खबरने सबसे पहले निरमल बाबा पर एकपक्षीय हल्ला बोला ।  पत्रकारिता जगत के लोगों को पता है प्रभात खबर के संपादक हरिवंश जी देश की राजनीति के कौन से खेमे का  हितपोषण करते हैं । निरमल बाबा पर मुकदमा की भी शुरुआत हो गई । सबसे पहले एक आइ पी एस अमिताभ ठाकुर जो यूपी के मेरठ में पोस्टेड हैं , उन्होने अपने बेटा एवं बेटी के माध्यम से मुकदमा दर्ज करवाया । यूपी पुलिस ने केस दर्ज करने से इंकार कर दिया तो न्यायालय में कंप्लेन दर्ज कर के उसे थाने भेजने की प्रार्थना की अमिताभ ठाकुर ने । अमिताभ ठाकुर से एक बार दिल्ली में मुलाकात है । फ़ोन पर भी एकदो बार बातचीत हुई है । उनकी पत्नी नूतन ठाकुर भी सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अमिताभ ठाकुर से ज्यादा सुलझे विचार की महिला हैं। इन दोनो पर भी भ्रष्टाचार से अर्जित संपति का आरोप लगा था । आरोप लगानेवाले ने इनकी संपति का ब्योरा तक दिया था । मैने नूतन ठाकुर से बात की । लखनउ में स्थित अपनी जायदाद यानी जमीन के खरीद के श्रोत का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई नूतन ठाकुर । बिहार मीडिया अपने स्तर से हर पहलू की जांच करता है । मैने अमिताभ- नूतन ठाकुर के एक मित्र जो मेरे भी मित्र हैं, उनसे बात करके भ्रष्टाचार के आरोपो की सच्चाई जानने का प्रयास किया । सच यही था कि थोडा- बहुत भ्रष्टाचार तो किया था अमिताभ ठाकुर ने । दोनो पति- पत्नी ढेर सारे अच्छे कार्य भी कर रहे थें इसलिये मैने सब साक्ष्य रहते हुये भी कुछ लिखना मुनासिब नहीं समझा । वैसे भी वर्तमान व्यवस्था में सौ प्रतिशत इमानदार आदमी का मिलना भगवान के मिलने जैसा है । यह सबकुछ बताने का अर्थ मात्र इतना है कि अमिताभ ठाकुर की हीं तर्ज पर बिहार के आइ पी एस शिवदीप लेंडे चल रहे हैं । पटना के सिटी एस पी रहते हुये लेंडे ने फ़िल्मों के हिरो की तरह हरकते की और पटना की लडकिया तथा अपनी बेटियों पर सतत निगरानी रखनेवाले अभिभावको के नायक बन गयें। साईबर कैफ़े में छापा मारना , तेज गति से बाईक चलानेवाले आवारा लडकों के बाईक के सामने खुद खडे हो जाने जैसी हरकतों ने शिवदीप लेंडें को हिरो बना दिया । जो हारकते शिवदीप लेंडे ने पटना में की , उस तरह का काम हवालदार या ज्यादा से ज्यादा सब - इंस्पेक्टर का है , एस पी का नही । लेंडे का तबादला नकली दवा बनाने वाले माफ़िया ने अररिया करवा दिया (यह भाजपा के विधायक चौरसिया का कथन है जो उन्होने एक संसदीय सेमिनार में बोधगया के संबोधि रिसार्ट में व्यक्त किये थें । मैं भी वहां वक्ता के रुप में आमंत्रित था, राज्य सरकार के आला अधिकारी तथा विपक्ष के रामचंद्र पूर्वे और राजनीति प्रसाद भी उपस्थित थें   ) । अभी जब निरमल बाबा का विवाद पैदा हुआ तो एक मुकदमा अररिया में भी दर्ज हुआ । राकेश कुमार सिंह नामक एक व्यक्ति ने यह आरोप लगाया है कि निरमल बाबा ने उससे एक हजार रुपया शोहरत एवं दौलत दिलवाने का वादा कर के उससे जबरदस्ती देने के लिये बाध्य किया । सिंह ने तीन किस्तों में , चार सौ, तीन सौतीन सौ रुपया निरमल बाबा के खाते में जमा करवाया । श्रीमान लेंडे जी ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में निरमल बाबा के खिलाफ़ गिरफ़्तारी का वारंट निर्गत करने की प्रार्थना की । लेंडे जी का कहना है कि उनके पास प्रथम दर्ष्ट्या साक्ष्य उपलब्ध है । मुकदमे के स्वरुप को देख कर हीं पता चल जाता है कि यह मुकदमा मात्र नाम के लिये दाखिल किया गया है । कोई किसी के खाते में पैसा जमा कराता है तो यह उसकी मर्जी । प्रथम दर्ष्ट्या साक्ष्य तब माना जाता जब कोई साक्ष्य इस बात का उपलब्ध होता कि निरमल बाबा ने जबरदस्ती या प्रलोभन देकर पैसा जमा कराया । न सिर्फ़ यह मुकदमा नाम कमाने के लिये दाखिल किया है , ऐसा लगता है बल्कि शिवदीप लेंडे का इस मुकदमे में जो रोल है वह भी नाम कमाने और अखबार की खबरों में बने रहने के लिये है यह साफ़ प्रतीक होता है । अभ्यानंद जी को चाहिये इस तरह के एस पी को कम से कम यह तो जरुर अहसास करा दें कि वे एक आई पी एस हैं थाने के हवालदार नही । इस मुकदमे के सिवाय और भी काम है पुलिस के पास जो ज्यादा अहमियत रखते हैं । अच्छा होता कि इस तरह की बचकानी हरकत छोडकर अपराध नियंत्रण का कार्य करते लेंडे जी । अगर अपनी उलूल जलुल हरकत को बंद नही किया तो आनेवाले समय में अमिताभ ठाकुर जैसे बन जायेंगें जिनकी किसी भी बात को अब कोई भी समझदार व्यक्ति गंभीरता से नही लेता है और वे मात्र मनोरंजन के पात्र बन कर रह गये हैं ।





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