नार्वे बच्चा विवाद : भारतीय मीडिया का ड्रामा
नार्वे बच्चा विवाद : भारतीय मीडिया का ड्रामा
आजकल नार्वे के में भारतीय दंपति का विवाद टीवी तथा अखबारों में छाया हुआ है। सभी टीवी तथा अखबार यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं जैसे नार्वे की सरकार अत्याचार कर रही है । उक्त दोनो को उनके बा बाप को सौपनें के लिये धरना – प्रदर्शन भी हो रहा है । भाजपा नेत्री सुषमा स्वराज तो इस मुद्दे पर राजनीति करने से भी नहीं बाज आ रही हैं । उन्होने नार्वे की सरकार को कोसते हुये यह कहा कि नार्वे की सरकार अगर अत्याचार कर रही है तो भारत की सरकार भी असंवेदनशील है जो इस मसले के लिये नार्वे की सरकार के खिलाफ़ नही बोल रही है । मुझे तरस आता है सुषमा स्वराज की बुद्धि पर और भारत की मीडिया पर जिसने इस केस को पूरी तरह समझे बगैर हंगामा करना शुरु कर दिया है । इस पूरे प्रकरण में बच्चों के मां बाप दोषी हैं । पहले यह पूरा माजरा क्या है यह मैं बता देता हूं । नार्वे के स्टावेनगर नामक शहर का यह मामला है । नार्वे एक विकसित राष्ट्र है तथा वहां बच्चो के कल्याण के लिये सरकार की संस्था है । उस संस्था का काम बच्चो के मानसिक विकास के लिये समुचित व्यवस्था करना है । यह संस्था चाइल्ड वेलफ़ेयर एक्ट के तहत कार्य करती है । किसी भी बच्चे को मां बाप से अलग देखभाल केन्द्र में रखने का निर्णय तभी लिया जाता है जब यह पाया जाता है कि सभी सुविधा उपलब्ध कराने के बावजूद बच्चे के मां बाप बच्चे की उचित देखभाल नहीं कर रहे हैं या उनका व्यवहार बच्चे के प्रति ्गलत या हिंसक है । (नार्वे भारत नही है जहां बिना कारण आप अपने बच्चे को दे दनादन सिर्फ़ इसलिये करने लगें की वह लगातार रो रहा है ) । बच्चे को मां बाप से अलग करके केयर होम में रखने के पहले फ़ेमिली कोर्ट वहां की बाल कल्याण सेवा द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को देखती है तथा बच्चे के मां बाप के पक्ष को सुनती है । वर्तमान मामले में बच्चों के मा बाप ने यह अभियोग लगाया है कि बच्चों को दूध पिलाने के तरीके तथा सुलाने की व्यवस्था के आधार पर नार्वे के न्यायालय ने उन्हें चाइल्ड केयर होम में रखने का फ़ैसला दिया था । यह आरोप गलत है तथा भारत की सरकार को न्यायालय के फ़ैसले की कापी नार्वे सरकार द्वारा उपलब्ध करा दी गई है । बच्चों को चाईल्ड केयर होम में रखने का फ़ैसला लेने का कारण था बच्चों के प्रति मा-बाप का दुर्व्यवहार जिसके कारण बच्चों के स्वास्थ्य तथा विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पडने की संभावना थी । नार्वे का बच्चों से संबंधित यह कानून वहां के सभी निवासियों के उपर बिना किसी भेदभाव के लागू होता है । २८ नवंबर को बच्चों को अलग चाईल्ड केयर होम में रखने का फ़ैसला न्यायालय ने दिया । बच्चों के मां बाप ने फ़ेमिली कोर्ट के उक्त आदेश के खिलाफ़ टिन्ग्रेटन जिला न्यायालय में अपील की है लेकिन अभी उसकी सुनवाई के लिये कोई तारीख निर्धारित नही की गई है । भारत की सरकार ने भी भावनात्मक ड्रामा करते हुये वीजा समाप्त हो जाने के बाद बच्चों को नार्वे में रखे जाने पर यह प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि बच्चे न तो अनाथ है और न हीं राज्यविहिन । वे भारत के नागरिक हैं और वीजा अवधि के बाद उसके विस्तार का निर्णय लेने का अधिकार बच्चो के मा बाप या देश की सरकार को है । यह एक बेहूदगी भरा तर्क है । वैसे नार्वे की सरकार बच्चों को उसके एक चाचा जो वहीं ओस्लो में रहता है, उसे सौपने पर विचार कर रही है । इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा दोषी भारतीय टीवी चैनल तथा अखबार हैं जिन्होने सिर्फ़ एक पक्ष की बात दिखलाने या प्रकाशित करने का कार्य किया है । नार्वे में सरकार द्वारा बच्चों की देखभाल की उत्तम व्यवस्था है और वहां " हम बाट के आधा खा लेंगें थोडे में गुजारा कर लेंगें" जैसी बकवास डायलाग का कोई महत्व नही है । पैदा करने का अर्थ यह नही कि बच्चे आपकी मालकियत हो गयें और आप जैसा चाहें वैसा व्यवहार उनके साथ करें ।
भारत में भी बच्चों की रक्षा के लिये कानून है लेकिन मात्र दिखावे भर को । हमारे देश में बच्चों के साथ सबसे ज्यादा दूरव्यवहार उसके मा-बाप करते हैं, गुस्सा होकर तमाचा जड देना तो एक आम बात है । एक दो छोटी –छोटी घटना बता देता हूं ताकि आप भारत और नार्वे के बीच का अंतर समझ जायें । मेरे बच्चे क्रेन स्कुल में पडते थें जो अपने अनुशासन के लिये प्रसिद्ध है और उसका अनुशासन का आधार बच्चो की पिटाई थी । फ़ादर नाम का जीव हाथ में एक छडी लेकर घूमता रहता था बच्चे उसके खौफ़ में रहते थें। एक फ़ादर आया उसका नाम फ़ादर जोस था । उसके भय से गार्जीयन तक डरते थें । एक बार एक मैने उसे कहा , फ़ादर आपको पता है न बच्चों को मारना गलत है तथा सरकार एवं न्यायालय ने भी रोक लगा रखी है । बच्चों की पिटाई तभी न करनी पडती है जब वह आपकी कोई बात नही मानतें ? फ़ादर अगर आप बच्चों को बात से नहीं समझा पाते है तो यह आपकी पराजय है बच्चों की गलती नही । उस दिन के बात उसने छडी रख दी ।
एक और घटना रेल की है । एक महिला चार पाच बच्चों के साथ जा रही थी , बच्चा बिस्कीट के लिये जिद्द कर रहा था , महिला ने दे दनादन चांटा जड दिया । बच्चा रोने लगा , मैने सवाल किया क्यों मारा बच्चे को ? उसका एक पढा लिखा बाप झट से टपक पडा मेरा बच्चा है हम जो करें । जो करें ? यानी जान भी मार दें ? डब्बे के अन्य यात्त्रियों के लिये मैं अजूबा था । खैर मैने उसे समझाया बच्चे हैं जिद्द करते हैं मारने के बजाय समझाना सिखो ।
भारत में बच्चों के साथ सबसे ज्यादा दुर्व्यवहार होता है । नार्वे के फ़ेमिली न्यायालय का फ़ैसला सही है। मा बाप और बच्चों के अन्य परिवार को बढावा देने की जरुरत नही है । भारत में गर्भ के अंदर पल रहे बच्चे को सिर्फ़ इसलिये मार दिया जाता है कि वह लडकी है । अपनी जवानी बरकरार रखने के लिये मां स्तनपान नही कराती है ।
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