तू चोर , तू चोर : टूजी मामला
टूजी मामले में कैग की रिपोर्ट आने के बाद एक तूफ़ान सा आ गया । एक लाख छहतर हजार करोड का घोटाला , हरेक की जुबां पर यही चर्चा । आर्थिक समीक्षक से लेकर सभी मीडिया घराने एक स्वर
में चिल्लाने लगें। आजादी के बाद का सबसे बडा घोटाला करार दिया गया । क्या वाकई ऐसा कुछ था ? क्या एक लाख छहतर करोड का कोई घोटाला हुआ था ? कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल ने जब कहा कि यह एक काल्पनिक रकम है तो उन्हें गालियां मिली । प्रश्न यह था कि इस राशी का निर्धारण कैसे हुआ ? कैग ने स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में अनियमितता पाई । आवंटन पक्षपातपूर्ण था। लेकिन यह देखना कैग के कार्यक्षेत्र में नही आता , उसे सिर्फ़ आर्थिक मामले देखने का अधिकार है । । कैग ने निष्कर्ष निकाला की सरकार की पहले आओ , पहले पाओ नीति की जगह पर अगर स्पेक्ट्रम की निलामी हुई रहती तो एक लाख छहतर करोड रुपये की आय होती , यानी मामला आवंटन की नीति पर आ टिका। पहले आओ , पहले पाओ की नीति सही थी , आम जनता के हित में थी । निलामी एक प्रकार से कर है। चाहे बालु के घाट की हो या शराब के ठेके की । निलामी से सरकार को जो आय होती है , उससे ज्यादा की वसूली निलामी लेनेवाला ठेकेदार जनता से करता है , अगर स्पेक्ट्रम की निलामी होती तो जनता को फ़ोन काल के लिये ज्यादा पैसे चुकाने पडतें। अब प्रश्न उठता है कि यह मामला है क्या और क्या सच में सरकार को स्पेक्ट्रम आवंटन के कारण हानि उठानी पडी ? यह पूरा मामला मात्र भ्रष्टाचार का है । कंपनियों को पता था कि पहले आओ पहले पाओ की नीति के आधार पर स्पेक्ट्रम का आवंटन होगा । उन्हें यह भी पता था कि दूर संचार मंत्री की इसमें अहम भूमिका होगी और वहीं से सारा खेल शुरु हुआ । सर्वप्रथम राजा को मंत्री बनाने के लिये लाबी शुरु की गई , राडिया , प्रभु चावला, बरखा दत से लेकर टाटा , अनील अंबानी जैसे लोग लग गयें । राजा मंत्री बने, पक्षपातपूर्ण तरीके से पैसे लेकर स्पेक्ट्रम का आवंटन हुआ। सरकार को एक पैसे की हानि नही हुई । हां जनता के उपर बोझ पडा , पहले आओ पहले पाओ नीति को आवंटन का आधार बनाने का कारण था , सस्ते दर पर जनता को मोबाइळ फ़ोन की सुविधा उपलब्ध कराना , वह न हो सका , कंपनिया चाहे निलामी से खरीद करें या घूस देकर आवंटन ले , उसकी वसूली तो करेंगीं हीं । टूजी घोटाले की जांच करनेवाली सीबीआई ने जानबूझकर पूरे षडयंत्र की जांच नही की बल्कि राजा के मंत्री बनने के बाद स्पेक्ट्रम आवंटन में हुये भ्रष्टाचार की जांच तक खुद को सिमित रखा , जांच की शुरुआत राजा को मंत्री बनाये जाने के लिये की गई लाबिंग से होनी चाहिये थी। लेकिन अगर ऐसा होता तो बडे बडे उद्योग्पति घराने गिरफ़्त में आते ,, यह सभी दलो के लिये घातक था , वे घराने सभी दलों को चंदा देते हैं। चाहे सुब्र्ह्मण्यम स्वामी हों या अन्य राजनीतिक दल , टूजी घोटाले को मात्र एक राजनीतिक हथियार बनाया ज रहा है ।
बार बार एक लाख छिहतर करोड के घोटाले की बात कर के न्यायालय में भी पहले आओ पहले पाओ नीति पर सारी बहस केन्द्रित हो गई है । यह खतरनाक संकेत है , इसका फ़ायदा स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुये भ्रष्टाचार के दोषी उठायेंगें। न्यायलयों को बहुत साफ़ सुथरा समझना गलत है।
न्यायालय को यह अधिकार है कि अगर जांच सही दिशा में न हो रही हो , तो जांच एजेंसी को निर्देश दे , लेकिन टूजी घोटाले में ऐसा नही हुआ । अंबानी भाइयों के बीच तेल की किमत के विवाद वाले मामले में हम लोगों ने उस समय के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के जी बालाक्र्ष्णन का फ़ैसला देखा था। मामला दो भाइयों के बीच तेल की किमत का था, धीरु भाई अंबानी की मौत के बाद दोनो भाइयों क्र बीच बटवारा हुआ था, तथा एक प्रयवेट एग्रीमेंट बना था जिसके अनुसार मुकेश की फ़र्म आर आइ एल , अनील की कंपनी आर एन आर एल को कम कीमत पर तेल की आपूर्ति करेगी । बाद में मुकेश ने इस एग्रीमेंट को मानने से इंकार कर दिया । यह एग्रीमेंट दोनो भाइयों के दरम्यान बतवारे का आधार था , इसे न मानने का अर्थ डिमर्जर को इंकार करना था। लेकिन देवडा मुकेश के मित्र हैं , उन्होनें सरकार को भी इस मुकदमें में एक पक्ष बना डाला , सरकार के तरफ़ से दलील दी गई , तेल खनिज पदार्थ है , उस पर सरकार का अधिकार है , मुकेश अपनी मर्जी से उसकी किमत कम नही तय कर सकते , इस तरह के भावनात्मक बहस को आधार बनाते हुये केजी बाला क्र्ष्णन ने मुकेश के पक्ष में फ़ैसला दिया ।जबकि सरकार के द्वारा पूर्व में कभी इस तरह की बात नही उठाई गई थी । जानबुझकर भावनात्मक मुद्दा उठाया गया कि समुंद्र के अंदर से निअकले तेल पर सरकार का अधिकार है, उस मुकदमे में सरकार के अधिकार को किसी ने चैलेंज हीं नही किया था और न हीं यह विवाद का मुद्दा था, मामला मात्र इतना सा था कि मुकेश की कंपनी जो तेल का उत्पादन कर रही है , उसको परिवारिक एग्रीमेंट के तहत कम दाम पर अनील की कंपनी को देगी या नही , बटवारे के समय अनिल ने अंबानी ग्रुप की तेल उत्पादक कंपनी आर आइ एल पर दावा सस्ते तेल की शर्त वाली एग्रीमेंट के आधार हीं छोडा था । के जी बालाकर्ष्णन ने अपने रिटायरमेंट के ठीक पहले इस विवाद पर फ़ैसला सुनाया और मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी उसे प्राप्त हुई । अमूमन न्यायाधिश रिटायरमेंट के पहले इस तरह के मामलों पर फ़ैसला नही देते हैं ताकि उनके उपर लांछन न लगे। मैने अपने एक ब्लाग में उसी समय लिखा था यह भ्रष्टाचार का मामला है , केजीबी पूर्व मुख्य न्यायाधीश इसका दोषी है , एक मामले में केजीबी के बेटे के पास आय से अधिक संपति का मुकदमा भी दर्ज हुआ , लेकिन यह जांच नही हुई कि आखिर वह संपति केजीबी के बेटे के पास कैसे आइ थी ? उसका स्त्रोत क्या था। आज वही हालात पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है । मुख्य अपराधी जिन्होनें ए राजा को मंत्री बनवाने में अहमं भूमिका अदा की , उनके खिलाफ़ कोई जांच नही हुई । घोटाला के नाम पर एक लाख छिहतर हजार करोड का नारा बार बार उछाला जा रहा है जो अदालत में साबित हीं नही होगा। टूजी घोटाले की जांच में राजा को मंत्री बनानेवालों की भुमिका की जबतक जांच नही होती तबतक असली दोषी नही पकडे जायेंगें , और जो आसार है, उसके हिसाब से भाजपा तथा कांग्रेस दोनो तू चोर तू चोर के खेल में जनता को उलझा रहे हैं , उधर अन्ना नाम के उस शख्स ने टूजी घोटाले के समय हीं जानबूझकर आंदोलन खडा कर दिया जिससे इस घोटाले की तरफ़ से जनता का ध्यान बट जायें । अन्ना के आंदोलन की शुरुआत में हीं मैने यह प्रश्न अपने लेख के माध्यम से उठाया था कि जब टूजी घोटाले की जांच चल रही है, सीबीआई ए राजा के खिलाफ़ चार्जशीट दाखिल करने जा रही है ऐन उसी मौके पर इस आंदोलन का अर्थ क्या है ? किसे बचाने के लिये यह आंदोलन हो रहा है ? नारायन मूर्ति फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन की कमेटी में थें और फ़ोर्ड ने अरविंद तथा मनीष की संस्था कबीर को करोडो का दान , भारत , श्रीलंका और नेपाल में पारदर्शी सरकार को प्रोत्साहित करने के लिये दिया था। फ़ोर्ड , सीआईए की कवर एजेंसी है । उसके उद्देश्यों के लिये काम करती है ।
बार बार एक लाख छिहतर करोड के घोटाले की बात कर के न्यायालय में भी पहले आओ पहले पाओ नीति पर सारी बहस केन्द्रित हो गई है । यह खतरनाक संकेत है , इसका फ़ायदा स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुये भ्रष्टाचार के दोषी उठायेंगें। न्यायलयों को बहुत साफ़ सुथरा समझना गलत है।
न्यायालय को यह अधिकार है कि अगर जांच सही दिशा में न हो रही हो , तो जांच एजेंसी को निर्देश दे , लेकिन टूजी घोटाले में ऐसा नही हुआ । अंबानी भाइयों के बीच तेल की किमत के विवाद वाले मामले में हम लोगों ने उस समय के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के जी बालाक्र्ष्णन का फ़ैसला देखा था। मामला दो भाइयों के बीच तेल की किमत का था, धीरु भाई अंबानी की मौत के बाद दोनो भाइयों क्र बीच बटवारा हुआ था, तथा एक प्रयवेट एग्रीमेंट बना था जिसके अनुसार मुकेश की फ़र्म आर आइ एल , अनील की कंपनी आर एन आर एल को कम कीमत पर तेल की आपूर्ति करेगी । बाद में मुकेश ने इस एग्रीमेंट को मानने से इंकार कर दिया । यह एग्रीमेंट दोनो भाइयों के दरम्यान बतवारे का आधार था , इसे न मानने का अर्थ डिमर्जर को इंकार करना था। लेकिन देवडा मुकेश के मित्र हैं , उन्होनें सरकार को भी इस मुकदमें में एक पक्ष बना डाला , सरकार के तरफ़ से दलील दी गई , तेल खनिज पदार्थ है , उस पर सरकार का अधिकार है , मुकेश अपनी मर्जी से उसकी किमत कम नही तय कर सकते , इस तरह के भावनात्मक बहस को आधार बनाते हुये केजी बाला क्र्ष्णन ने मुकेश के पक्ष में फ़ैसला दिया ।जबकि सरकार के द्वारा पूर्व में कभी इस तरह की बात नही उठाई गई थी । जानबुझकर भावनात्मक मुद्दा उठाया गया कि समुंद्र के अंदर से निअकले तेल पर सरकार का अधिकार है, उस मुकदमे में सरकार के अधिकार को किसी ने चैलेंज हीं नही किया था और न हीं यह विवाद का मुद्दा था, मामला मात्र इतना सा था कि मुकेश की कंपनी जो तेल का उत्पादन कर रही है , उसको परिवारिक एग्रीमेंट के तहत कम दाम पर अनील की कंपनी को देगी या नही , बटवारे के समय अनिल ने अंबानी ग्रुप की तेल उत्पादक कंपनी आर आइ एल पर दावा सस्ते तेल की शर्त वाली एग्रीमेंट के आधार हीं छोडा था । के जी बालाकर्ष्णन ने अपने रिटायरमेंट के ठीक पहले इस विवाद पर फ़ैसला सुनाया और मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी उसे प्राप्त हुई । अमूमन न्यायाधिश रिटायरमेंट के पहले इस तरह के मामलों पर फ़ैसला नही देते हैं ताकि उनके उपर लांछन न लगे। मैने अपने एक ब्लाग में उसी समय लिखा था यह भ्रष्टाचार का मामला है , केजीबी पूर्व मुख्य न्यायाधीश इसका दोषी है , एक मामले में केजीबी के बेटे के पास आय से अधिक संपति का मुकदमा भी दर्ज हुआ , लेकिन यह जांच नही हुई कि आखिर वह संपति केजीबी के बेटे के पास कैसे आइ थी ? उसका स्त्रोत क्या था। आज वही हालात पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है । मुख्य अपराधी जिन्होनें ए राजा को मंत्री बनवाने में अहमं भूमिका अदा की , उनके खिलाफ़ कोई जांच नही हुई । घोटाला के नाम पर एक लाख छिहतर हजार करोड का नारा बार बार उछाला जा रहा है जो अदालत में साबित हीं नही होगा। टूजी घोटाले की जांच में राजा को मंत्री बनानेवालों की भुमिका की जबतक जांच नही होती तबतक असली दोषी नही पकडे जायेंगें , और जो आसार है, उसके हिसाब से भाजपा तथा कांग्रेस दोनो तू चोर तू चोर के खेल में जनता को उलझा रहे हैं , उधर अन्ना नाम के उस शख्स ने टूजी घोटाले के समय हीं जानबूझकर आंदोलन खडा कर दिया जिससे इस घोटाले की तरफ़ से जनता का ध्यान बट जायें । अन्ना के आंदोलन की शुरुआत में हीं मैने यह प्रश्न अपने लेख के माध्यम से उठाया था कि जब टूजी घोटाले की जांच चल रही है, सीबीआई ए राजा के खिलाफ़ चार्जशीट दाखिल करने जा रही है ऐन उसी मौके पर इस आंदोलन का अर्थ क्या है ? किसे बचाने के लिये यह आंदोलन हो रहा है ? नारायन मूर्ति फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन की कमेटी में थें और फ़ोर्ड ने अरविंद तथा मनीष की संस्था कबीर को करोडो का दान , भारत , श्रीलंका और नेपाल में पारदर्शी सरकार को प्रोत्साहित करने के लिये दिया था। फ़ोर्ड , सीआईए की कवर एजेंसी है । उसके उद्देश्यों के लिये काम करती है ।
उस समय केजीबी के उपर भी जांच की बात उठी थी लेकिन उसे दबा दिया गया । एक दो समाचार पत्रों ने केजीबी के खिलाफ़ लिखा भी था ।
K G Balakrishnan Tue, 03/01/2011
Former CJI Verma wants Balakrishnan to resign
One day following the making of the revelation by the Income Tax Department regarding the kin of ex-Chief Justice of India (CJI) and the current National Human Rights Commission (NHRC) chairperson K G Balakrishnan owning “black money”, ex CJI J S Verma told Balakrishnan to quit his position of the NHRC head on Sunday
Country's first schedule caste Chief Justice KG Balakrishnan who is currently working as a Chairman of National Human Rights Commission (NHRC) is again in news over his disproportionate assets.
CBI, country's premier investigation agency, has been waiting for the approval of Registrar-General of the Supreme Court for initiating probe into his assets. It is required to get nod of Registrar for initiating probe against any sitting or former judge of Supreme Court.
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