वर्तमान प्रजांतांत्रिक व्यवस्था , अधिनायकवादी एवं अलोकतांत्रिक है ।


वर्तमान प्रजांतांत्रिक व्यवस्था , अधिनायकवादी एवं अलोकतांत्रिक है ।

दो दिन पहले अन्ना चौकडी में शामिल विदेश से करोडो का दान प्राप्त कर के मौज मस्ती करने वाले केजरिवाल ने सांसदों  को चोर लूटेरा कहकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है । कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने उसके जवाब में ट्विट करते हुये सवाल किया है कि अगर संसदीय प्रजातंत्र खराब है तो क्या केजरिवाल के दिमाग में कोई और व्यवस्था है , सैन्य शासन , तानाशाही एकदलीय शासन पद्धति ?

केजरिवाल को दिक्कत होगी दिग्विजय सिंह के सवालों का जवाब देने में क्योंकि केजरिवाल का मानसिक स्तर इन प्रश्नों का जवाब देने लायक नही है । मैं दे रहा हूं दिग्गी राजा का जवाब ।

 हां दिग्गी राजा वर्तमान संसदीय प्रजातांत्रिक व्यवस्था अलोकतांत्रिक एवं अधिनायकवादी है लेकिन उसका विकल्प सैन्य शासन , तानाशाही या एकदलीय शासन पद्धति नही है क्योंकि वर्तमान व्यवस्था इन सबका का मिलाजुला रुप है ।


अब खामियां बताता हूं दिग्गी राजा



1.      वर्तमान संसदीय व्यवस्था में निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनता की कोई भागीदारी नही होती है ।

2.     वर्तमान संसदीय व्यवस्था में किसी भी विधान सभा या लोकसभा क्षेत्र की संपूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व नही होता है , बल्कि अल्पमत से चुने हुये प्रतिनिधियों  के द्वारा सभी निर्णय लिये जाते हैं।

3.     लोकसभा या विधान सभा के प्रतिनिधि का चुनाव उक्त क्षेत्र में खडे प्रत्याशियों के बीच से अधिकतम मत पानेवाले के आधार पर किया जाता है । यानी अगर विधान सभा या लोकसभा क्षेत्र में चार उम्मीदवार खडे हैं , तथा मतदाता की संख्या दस लाख है, चुनाव में कुल छह लाख मत पडे हैं  और चार उम्मीदवार मैदान में है तो उस हालात में मतो के विभाजन होने की स्थिति में चुनाव लड रहे उम्मीदवारों को एक लाख साठ हजार , एक लाख नब्बे हजार,  पचास हजार एवं दो लाख मत प्राप्त होने की स्थिति में जिसे दो लाख मत मिलेंगें वह विधायक या सांसद बन जायेगा । यानी दस लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने वाला उम्मीदवार वास्तिव रुप में मात्र दो लाख मतदाताओं का प्रतिनिधि है । उक्त प्रतिनिधि के खिलाफ़ चार लाख मत पडे हैं , क्या यह सही व्यवस्था है ?

4.     इसके अलावा अलगअलग विचारधारा एवं एक दूसरे के विरोध में चुनाव लडनेवाले दल बहुमत न मिलने की अवस्था में आपस में गठबंधन करके सरकार का गठन करते हैं , क्या यह सही है ?

5.     संसदीय व्यवस्था में चुने हुये प्रतिनिधि निष्पक्ष नही होते हैं वे किसी न किसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह अधिनायकवादी भी है सांसद या विधायक पार्टी व्हीप का उलंघन्न नहीं कर सकते और पार्टी का व्हिप जनता की राय के आधार पर नही बल्कि दल के नेता के आदेश पर जारी किया जाता है ।

6.     संसदीय व्यवस्था संसद के अंदर विचारणीय किसी विषय पर मतदान होने की स्थिति हां या ना के आधार पर उक्त विषय को स्वीकार्य या इंकार किया जाता है । इंकार का कारण चाहे कितना भी सही हो निर्णय हमेशा मत के आधार पर होता है । क्या यह टके सेर खाजा टके सेर भाजी वाली प्रणाली नही है जहां बहस की कोई सार्थकता नही है ?

दिग्गी राजा जी वर्तमान संसदीय व्यवस्था राजतंत्र से भी खराब है । अब प्रश्न यह है कि इसके जगह कौन सी व्यवस्था स्थापित हो जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया में जनता की भागेदारी हो । इस प्रश्न का जवाब मुफ़्त में नही दुंगा । आप लोग संसद में बैठकर सोने का पैसा लेते हैं तो बिना माल खर्च किये  जवाब की आशा न करें। रह गई बात केजरिवाल की तो वह बेचारा मुंगेरी लाल के हसीन सपने जिसे हवा देने का काम सीआइए कर रही है, उसमें खोया हुआ है , कम से कम सपने में तो केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद पर बैठे रहने दें ।




टिप्पणी के साथ अपना ई मेल दे जिस पर हम आपको जवाब दे सकें

Comments

Popular posts from this blog

भूमिहार :: पहचान की तलाश में भटकती हुई एक नस्ल ।

आलोकधन्वा की नज़र में मैं रंडी थी: आलोक धन्वा : एक कामलोलुप जनकवि भाग ३

origin and socio-economic study of kewat and Mehtar