बलूचिस्तान की आजादी जरुरी है
बलूचिस्तान की आजादी जरुरी है
जैसे फ़िलस्तीन अपने लिये एक घर की लडाई लड रहा है ठिक उसी तरह पाकिस्तान –अफ़गानिस्तान – ईरान के बीच स्थित बलूचिस्तान भी अपने हक की लडाई लड रहा है । बलुचिस्तान को तीन हिस्सों में बाटकर के तीनो देशो ने कब्जा जमा रखा है । इसके दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान , दक्षिण –पश्चमी हिस्से पर अफ़गानिस्तान और पश्चमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है । सबसे बडा हिस्सा तकरीबन ४४ प्रतिशत पाकिस्तान के कब्जे मे है ।
१९४७ में जब पाकिस्तान आजाद हुआ , बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राज्य था । पाकिस्तान की सेना ने हमला करके उस पर कब्जा जमा लिया लेकिन वहां की आवाम ने कभी भी पाकिस्तानी कब्जे को स्वीकार नही किया । वर्ष १९४८ से हीं वहां सशस्त्र विद्रोह हो रहा है। वहां के राजकुमार अब्दुल करीम खान के नेतर्त्व में विद्रोह की शुरुआत हुई थी और गोरिल्ला पद्धति से पाकिस्तानी सेना के खिलाफ़ सशस्त्र संघर्ष शुरु हुआ जो अबतक जारी है ।
१९५८ में इस सशस्त्र संघर्ष का नेतर्तव कर रहे नवाब नवरोज खान को उनके सहयोगियों के साथ गिरफ़्तार कर के जेल में डाल दिया गया और नवरोज खान के बेटों और भतीजों को फ़ांसी दे दी गई । नवरोज खान की भी मौत जेल में रहने के हीं दौरान हो गई ।
नवरोज खान के द्वारा किये गये विद्रोह को ध्यान में रखते हुये पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या बढा दी तथा नया सैन्य अड्डा स्थापित किया जिससे कि उनके विद्रोह को दबाया जा सके । लेकिन इसके बाद भी यह संघर्ष जारी रहा और शेर मोहम्मद बिजरानी मारी ने पुन: बलूचिस्तान के लडाको को इकठ्ठा करके पाकिस्तानी सेना के उपर गोरिल्ला हमला करना शुरु कर दिया । इनकी मुख्य मांगों में सुई गैस क्षेत्र के आय का बटवारा तथा बलुचिस्तान के विभिन्न कबीलों को स्वायतता देना शामिल था । हार मानते हुये पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को अपना चौथा राज्य घोषित करते हुये उसे मान्यता प्रदान की । लेकिन इसके बाद भी बलुचिस्तान में आजादी की जंग जारी रही। भुट्टो ने १९७३-७४ के दौरान वहां मार्शल ला लागू कर दिया और वहां कि सरकार को बर्खास्त कर दिया । उस दौरान बलूचिस्तानी आंदोलनकारियों के उपर दमनात्मक कार्रवाई भी हुई तथा सात – आठ हजार बलूचिस्तानी जनता को अपनी जान गवांनी पडी लेकिन साथ हीं साथ पाकिस्तान की सेना के भी चार सौ से ज्यादा जवान मारे गयें। आंदोलन को दबाने के लिये उसके नेताओं को गिरफ़्तार करके सरेआम गोली मार देने का सिलसिला जारी रहा । आंदोलनकारी भी सशस्त्र विरोध करते रहे और हार नही मानी। अकबर खान बुगती जो ७९ वर्ष के थें उनकी मौत लडते हुये हो गई लेकिन इस लडाइ में कम से कम सौ पाकिस्तानी सेना के जवानों की भी मौत हुई । सशस्त्र क्रांतिकारियों द्वारा परवेज मुशरफ़ के उपर राकेट से हमला किया गया जिसमें वे बाल –बाल बच गयें। हालांकि भारत पर उन क्रांतिकारियों की मदद करने का आरोप लगता रहा है लेकिन उनके पास जिस तरह के हथियार हैं , उसे देखकर नहीं लगता कि किसी बाहरी देश से उन्हें सहायता मिल रही है। अत्यंत सामान्य हथियार और पाकिस्तान की सेना से लूटे गये हथियारों की बदौलत बलूचिस्तान के क्रांतिकारियों का संघर्ष जारी है । दुनिया के अन्य देशों द्वारा मदद न मिलने का परिणाम है कि तालिबान ने उनके बीच घुसपैठ ्करके जगह बनानी शुरु कर दी है ।
आज भी पाक सेना द्वारा हत्या करने और लाश गायब कर देने का सिलसिला जारी है । बलूचिस्तान आजाद तो होगा लेकिन अगर सभ्य दुनिया के देशों ने हस्तक्षेप नही किया तो आजाद बलूचिस्तान एक कट्टरपंथी तालिबान के रुप में आजाद होगा जिससे सबको खतरा हो सकता है । यह एक मौका है दुनिया के सभ्य मुल्कों के लिये कि वे सामने आये , बलूचिस्तान को आजाद कराये ताकि उसे तालिबानियों के चंगुल में जाने से बचाया जा सके ।
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