किशन जी की मौत के बाद
किशन जी की मौत के बाद
नक्सलवादी नेता किशन जी की हत्या से नक्सलवादी आंदोलन को गहरा झटका लगा है इसे एक प्रमुख नक्सल नेता।तथा माओवादी प्रवक्ता अभय ने स्वीकार किया है . माओवादियों ने एक बयान जारी किया है तथा भारत बंद का आह्वान किया है । यहां हम माओवादियों के प्रवक्ता अभय की आडियो सुना रहे हैं जिसे बीबीसी ने रिलीज किया है । आप यहां दिये गये लिंक पर क्लिक करें।
बिहार मीडिया का मानना है कि समाचारो की सार्थकता तभी है जब उनमें निष्पक्ष विचारों का सामावेश हो और उनका विश्लेषण किया जाय अन्यथा समाचार मात्र सूचना भर बनकर रह जायेंगे । दुर्भाग्य से हिंदुस्तान, दैनिक जागरण और प्रभात खबर जैसे अखबार मात्र सता के प्रचारतंत्र बनकर रह गये हैं।
्किशन जी की हत्या के बाद की परिस्थितियों का विश्लेषण करें तो एक बाद बहुत स्पष्ट है कि आम जनता की भागेदारी नक्सल आंदोलन में नही है और न हीं उनके साथ सहानूभुति है । हत्या के बाद हुये बंद में जनता की भागेदारी नही नजर आई । नक्सलवादी आम जनता के लिये संघर्ष की बात करते है तो फ़िर कमी कहां है ? बंद का आह्वान करने, ट्रेनों को रोकने या बम से उडाने का अर्थ क्या है ? निर्दोष जनता को मारने का हक न तो नक्सलवादियों को है और न हीं सरकार को । हमारे जैसे लोग पुलिस द्वारा किये गये फ़र्जी एनकाउंटर का विरोध करते रहे हैं लेकिन नक्सलवादियों द्वारा निर्दोष लोगों की हत्या और ट्रेनों को उडाने की हरकत का भी हम विरोध करते हैं। नक्सलवादियों को यह समझने की और इसपर विचार करने की जरुरत है कि आज के बदले हुये हालात और पूंजीवादी व्यवस्था में शब्दो के मायने बदल गये हैं । पचास बिघा जमीन का मालिक आज सामंत नही रहा , भ्रष्ट नौकरशाह वास्तविक सामंत हैं। जमीन का मालिक तो बस शोषित बनकर रह गया है । नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपराध कम हुआ है , भ्रष्टाचार बढा है । पुलिस का अत्याचार भी बढा है । नक्सलियों का समर्थन है इनके बढने में। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थित थानों के साथ नक्सलवादी तालमेल बैठाकर काम करते हैं। थाने के स्टाफ़ को नक्सलवादी तकलीफ़ नहीं देते और बदले में थाने के स्टाफ़ नक्सलियों को खुलेआम अपना कार्य करने देते हैं। इससे भ्रष्टाचार को बढावा मिलता है । थानों के द्वारा आम जनता का शोषण होता है । राजनीतिक कार्यकर्ता भी विरोध नहीं करते हैं क्योंकि नक्सलवादियों का समर्थन रहता है । उसी प्रकार ग्राम पंचायत में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नक्सलवादी खामोश रहते है , कारण है पंचायत के चुने हुये प्रतिनिधियों के द्वारा नक्सलियों को सुविधा उपलब्ध कराना । व्यवस्था के खिलाफ़ , व्यवस्था को सहयोग करते हुये लडाई नहीं लडी जा सकती है । जन संघर्ष के लिये उस देश की व्यवस्था के अनुसार हीं लडाई लडनी पडेगी । अहिंसक आंदोलन से अच्छा रास्ता नही हो सकता है । नक्सलवादियों को अपने तौर तरिकों में बदलाव लाना होगा अन्यथा उनका संघर्ष सफ़ल नही होगा।
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