पैसे लेकर दलाल जैसी रिपोर्टिंग करता है प्रभात खबर का कंचन
नगर निगम के भ्रष्टाचार को बढावा दे रहा है कंचन
दलाली के अनेको तौर तरीके हैं। रिझाना उन्हीं में से एक है । प्रभात खबर गया का ब्यूरो चीफ़ रह चुका है कंचन । कंचन की रिपोर्टिंग बहुत हीं अच्छी है , लिखने की शैली, शब्दों का चुनाव से लेकर तथ्यों का संकलन और समावेश तक ।
आप कह सकते हैं कि अगर किसी परफ़ेक्ट हसीना के सौंदर्य का वर्णन कंचन करे और नारी के समर्पण को कलम से साकार करे तो लगेगा जैसे साक्षात पतिव्रता सावित्री प्रभात खबर के पन्ने पर आकर खडी हो गई । लेकिन जब आप गैर से देखेंगे तो लगेगा अरे नही , यह तो वेश्या है जिसे सावित्री का आवरण पहनाया है कंचन नें। आजकल अखबारों में तो होड लगी हीं है शासन की रखैल बनने की , स्थानीय पत्रकारों के बीच भी होड है कि कौन कि्तनी तेजी के साथ पैंट उतार कर पिछे मुड सकता है । वैसे तो कडवे शब्द लिखने की आदत है , लेकिन जब कुछ इस तरह का घटित हो जिससे मेरी आत्मा को चोट पहुंचे तो बर्दाश्त नहीं कर पाता हूं।
आज एक लेख छपा है , गया के प्रभात खबर में “मैं हूं राजेंद्र टावर “लेख गया के प्राचीन टावर की गाथा है जिसे वह टावर बयां कर रहा है । लेख बहुत हीं सटीक एवं मार्मिक है । एक एतिहासिक धरोहर जिससे किसी शहर की पहचान झलकती हो , उसे इस हालात में पहुंचाने का दोषी गया नगर निगम है । नगर निगम में भ्रष्टाचार का जैसा आलम है उसे निपटने का एक हीं रास्ता बचता है , निगम को हीं जेल में परिवर्तित कर देना।
खैर कंचन के लेख पर आता हूं। इस लेख में टावर के अस्तित्व में आने से लेकर के आजतक की दुर्दशा का वर्णन है । कंचन की दलाली, लेख के अंत में “ नेताओं का जमावडा “ उपशीर्षक को गौर से पढने पर, पता चलती है । इसके अन्तर्गत टावर के उपर ग्रेनाइट पत्थर लगाने की नगर निगम की योजना को न्यायोचित ठहराने का प्रयास कंचन ने किया है तथा उसकी पुरजोर वकालत भी की है । लेकिन जब आप अपने दिल से नहीं लिखते तो चूक हो हीं जाती है । टावर को कंचन यह कहने के लिये बाध्य करता है कि “ सोचता हूं , ग्रेनाइट पत्थर लगने से मेरा वास्तविक स्वरुप बिल्कुल बदल जायेगा , लेकिन मेरी जो पहचान है कि मैं कभी शहर को जगाता था, वह सफ़ल हो पायेगा , (अब आगे टावर से जो बयां करवाता है कंचन उससे उसका दलाल वाला रुप सामने आ जाता है ) ग्रेनाइट व घडियां लगाने की प्रस्तावित योजना का विरोध भी हो रहा है , लोग कहते फ़िर रहे हैं कि आखिर फ़िर घडियां लगाने की आवश्यकता क्यों पडी , जबकि इस पर लगभग दो लाख रुपये पहले हीं खर्च हुए हैं। विरोध होना लाजिमी है , लेकिन इस विरोध की वजह से आखिर इंतजार हीं तो करना पडेगा ! “ वाह क्या रुप दिखाया है कंचन नें दलाली का ।
ग्रेनाइट लगाने की योजना पहले से है , मैने उसका पुरजोर विरोध किया था । नगर निगम की मेयर और उनके पति दोनों मेरे क्लायंट हैं । मैने मेयर सहित और लोगों को भी कहा टावर का स्वरुप मत बदलों , महाबोधि मंदिर की तर्ज पर पुरातत्व विभाग से राय लेकर टावर को अपने मूल स्वरुप में हीं संरक्षित करने का प्रयास करो। मेरी बातें बुरी लगी , यहां तक लोगों ने कहा , आप तो बिना मतलब का विरोध कर रहे हैं , हमलोग टावर का सौन्द्रियकरण करना चाहते हैं । मैने पहले वाले निगमायुक्त को भी साफ़ शब्दों में कहा , अगर टावर से छेडछाड हुई , तो मैं वहां धरने पर बैठ जाउंगा । जहां तक चौदह लाख रुपया टावर के नाम पर लूटने की बात है , तो उस पैसे से कहीं और कुछ बनवाकर लूट लो मुझे उससे मतलब नही है लेकिन टावर के अस्तित्व के साथ छेडखानी सहन नहीं करुंगा । काम नही लगा। कंचन नेताओं की दलाली करते हुए इतना मत गिर जाओ कि खुद पर भी शर्म महसुस हो । रह गई राजेन्द्र टावर की बात तो उसका संरक्षण बिना मूल रुप में परिवर्तन किए किया जा सकता है । ग्रेनाइट पत्थर की सबसे बडी खराबी है कि यह कुछ समय बाद टूट कर गिरने लगता है , शहर के बहुत सारे लोगों ने अपने घर में लगाया लेकिन जब गिरने लगा तो उखडवा दिया । यह चिपक नही पाता । मैं तो अपने कहे पर कायम हूं । अगर टावर के मूल अस्तित्व के साथ कोई छेडछाड हुई तो संघर्ष करुंगा । नीचे कंचन के उस द्लाली वाले लेख की कापी दे रहा हूं। आप स्वंय निर्णय करें , क्या यह लेख एक दलाल पत्रकार का लिखा हुआ नही लगता है ?
कंचन का लेख पढने के लिये यहां क्लिक करें
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