भ्रष्टाचार से लडना है तो पागल बनना पडेगा
दुनियादारी की बात करनेवाला नही लड सकता भ्रष्टाचार से
यू पी के डी आई जी मिश्रा के साथ खडे होने का वक्त है
भगवान महावीर , बुद्ध से कबीर तक सब पागल थें
भ्रष्टाचार से लडने के लिये समाजवाद लाना पडेगा
जातिवादी समजवादियों को नजरिया बदलना पडेगा
जिसे धर्म और इतिहास का थोडा सा भी ग्यान होगा , उन्हें यह अ्च्छी तरह पता होगा कि जब भगवान महावीर अपने वस्त्रों को त्याग कर सडक पर उतरे तो उनके उपर पागल-पागल कहकर पत्थर फ़ेके गयें। बुद्ध ने घर का त्याग किया और ब्राह्मणवाद के खिलाफ़ लडाई छेडी तो उन्हें हिंदु धर्म का पथ भ्रष्टक कहा गया । कबीर तो घोषित पागल थें। भ्रष्टाचार का मूल कारण हीं दुनियादारी या व्यवहारिकता है । पैसा चाहिये , घर बनाने के लिये , बच्चों की पढाई के लिये , बेटियों की शादी के लिये । भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग का अर्थ है इन सभी कार्यो के लिये आवश्यक पैसे का अभाव । भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लडाई वही लड सकता है जिसमे हिम्मत हो अपने घर को जलाने की । “ कबीरा खडा बाजार में लिये लुगाठी हाथ , जो घर जारे आपना चले हमारे साथ “। यू पी के डी आई जी मिश्रा को यह लगा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लडाई लडनी चाहिये, उन्होने शुरुआत कर दी । भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लडनेवाला हर व्यक्ति अवसाद में जिंदगी गुजारता है । कोई आश्चर्य नही होना चाहिये अगर डी आई जी मिश्रा की पत्नी, बेटा और बेटी भी यह कहें कि वे अवसाद में हैं , मानसिक रुप से अस्वस्थ हैं। परिवार और रिश्तों का अपना स्वार्थ है । अगर मिश्रा कबीर बन जायेंगे , महावीर बन जायेंगें तो सबसे पहले और सबसे ज्यादा क्षति परिवार को होगी । हो सकता है भ्रष्टाचार से कमाई हुई अपनी सारी दौलत को त्याग दें, बहुत कष्टदायक होगी यह स्थिति परिवार के लिये । उम्र के जिस पडाव पर मिश्रा हैं , अगर मर भी जाते हैं तो परिवार को कोई अंतर नही पडनेवाला । परिवार के लिये मिश्रा मात्र एक साधन हैं , सम्मान , पैसा और प्रतिष्ठा प्राप्त करने का।
अवसाद का अर्थ उसके कारण का गलत होना नही है। कारण से न लड पाने की मजबूरी है अवसाद । हर आदमी को अवसाद के पल का सामना करना पडता है । मिश्रा का अवसाद भ्रष्टाचार से न लड पाने की मजबूरी है । वैसे चाहे मिश्रा हो या अन्य कोई , भ्रष्टाचार से जंग व्यवस्था को परिवर्तित कर के हीं जिता
जा सकता है । दिक्क्त यह है कि इस जंग में सबसे बडे अवरोधक राजनीतिक दल हैं। मिश्रा को माध्यम बनाकर शुरु हो गई है राजनीति । जो लोग यू पी के और खासकर के लखनउ के हैं और अपने आप को भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग का सिपाही बताते हैं, अन्ना जैसों के दिखावटी ड्रामे के लिये सभा करते हैं , उनकी परीक्षा की घडी है । आगे आयें , मिश्रा के साथ खडे हों , मिश्रा के परिवार के खिलाफ़ खडे हों। हम सबको जो लडना चाहते हैं , आगे आना होगा। हर स्तर पर एक आवाज उठनी चाहिये।
व्यवस्था का परिवर्तन एक अनिवार्य शर्त है भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग की । पूंजीवाद हमेशा एक तत्कालिक व्यवस्था रही है । जब राजतंत्र था तब भी समाजवाद था। राजा देखता था , उसके शासन में कोई भूखा तो नही है । दुर्भाग्य से भारत में समाजवाद को पाने के लिये जातिवाद का रास्ता अख्तियार किया , यहां के समाजवादियों ने। कर्पूरी , लालू , मुलायम , इन सब ने समाजवाद को एक ्हथियार के रुप में प्रयोग किया सता पर काबिज होने के लिये । उसका नतीजा भी इन्हें भोगना पडा । आज भी वक्त नही बदला है । समाजवाद हीं एक रास्ता बचा है । अगर ये तथाकथित समाजवादी अपनी जातिवादी सोच नही बदलते तो इन्हें बदल देने की जरुरत है । भारत की सत्तर प्रतिशत जनता समाजवाद चाहती है , वैसे तो ९९ प्रतिशत लोग समाजवाद चाहते हैं लेकिन इन नकली समाजवादियों की हरकतों के कारण उन्हें अभी भी अंदेश है कि कहीं यह समाजवाद जातिवाद हीं बनकर न रह जाये । आज जरुरत है , हम समाजवाद के लिये स्वंय को तैयार करें।
यह गाना भी सुने गरीबी और उसका प्यार क्या है पता चलेगा .
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Kaise jayeebai ge (1).MP3
sadak ko photo khinch kar paise demend karna aur phir khaber chapne ki dhamki dene wale bharstachar ki ladayi kya ladenge,gaya ke log aapko achchi tarah se jante hai.khud to patarkarita karni nahi aata hai aur chale hai patarkarita ka patth padahne.aap pagal kyu nahi ho jate hai.
ReplyDeleteजब इतना जानते हैं तो यह भी पता हीं होगा कि वह खबर छपी थी। अगर पैसा हीं लेना होता तो फ़िर छापता क्यों। एक और बात मैने अगर खबर बना ली तो कोई ताकत या पैसा उसे छापने से नहीं रोक सकता । एक और सिद्धांत मेरा सुन लें , अगर नहीं छापने के लिये पैसा दोगे तो पैसा ले भी लूंगा और खबर भी छापुंगा। यानी मुझे पैसा दो न दो कोई फ़ायदा नहीं । खबर तो हर हाल में छ्पेगी । आपको एक और घटना बताता हूं , आपको नही पता होगा । जब मैं बिहार रिपोर्टर में था तब बेला से जदयू के उम्मीदवार अमजद के खिलाफ़ एक मुकदमें का पता मुझे चला। मैं बोकारो गया , सारा डीटेल्स लाया । लेकिन वहां के एक दारोगा ने अमजद को इसकी खबर कर दी , उसका आदमी मेरे पास आया । पैसा लेकर , मैने उसे समझाया कोई फ़ायदा नही है। नही माना , मैने प्रेम से पैसा ले लिया दुसरे दिन एक अच्छी शराब की बोतल खरीद कर सेलीब्रेट किया , फ़िर उस खबर को छाप दिया । श्रीमान आप को भी मेरी सलाह है यह गलती मत करियेगा , मेरे साथ । और हां मैं भ्रष्ट भी हूं , लेकिन वह भ्रष्टाचार सिर्फ़ २-३ हजार तक सीमित है। वह भी जिस महिने घर का खर्च नही निकल पाता है , उसी माह करता हूं। लेकिन पत्रकारिता में नही । मैने कभी यह नही कहा कि मैं भ्रष्ट नही हूं। हां एक वादा है ३-४ साल बाद यानी बेटी की शादी कर दूंगा उसके बाद आप मेरा एक और रुप देखेंगें जिसकी कल्पना भी आप जैसा आदमी नही कर सकता है । शायद कोई नही कर सकता । अगर जिंदा रहा तब । वैसे आप सामने आकर यह सब बोले कसम से मुझे प्रसन्नता होगी विश्वास करें मैं बुरा नही मानूंगा । एक मर्द का वादा है । मुझे खुशी होगी आपसे मिलकर । रह गई पागल होने की बात तो वह तो कब का हो चुका हूं।
ReplyDeleteनुक्कड़ की पोस्ट पर आपकी टिप्पणी के संदर्भ में विनम्र निवेदन :
ReplyDeleteमैं तो सीख ही रहा हूं और सीखते रहना चाहता हूं। आपसे भी जरूर सीखूंगा, पीछे नहीं हटूंगा मदन कुमार तिवारी जी। अपने गर्म तवा को कुछ ठंडा करें तो हम आपकी ओर बढ़ें। नहीं तो डर के मारे आपको दूर से ही देखते रहें खड़ें। रही पुस्तक बेचने और छापने की बात तो न हमने छापी है और न हम बेच रहे हैं। जो सीखना चाहते हैं उन्हें बतला रहे हैं। आप क्या समझे थे कि हम किताब बेच-छाप कर कमीशन खा रहे हैं। बेचने वाले तो पूरा वतन बेच गए और हम अपने वेतन से घर और ब्लॉग दोनों चला रहे हैं। क्या आपको खबर है ? आज तो पूरा देश ही बना धुरंधर है। सब भ्रष्टाचार का तो विरोध कर रहे हैं परंतु अपने गिरहबान में नहीं झांक रहे हैं। वैसे यह जरूरी नहीं है कि जो भ्रष्टाचारी नहीं होगा, वही इसका विरोध करेगा। बुराई का विरोध बुराईधारक करे तो जल्दी असर होता है। उसी असर की प्रतीक्षा में हैं हम, आदरणीय तिवारी सर।
समाजवाद या साम्यवाद के अलावे इस कुव्यवस्था से मुक्ति का कोई विकल्प बचता ही नहीं…
ReplyDeleteअविनाश जी , मुझे माफ़ करें । मैं एक द्वंद से गुजर रहा हूं। आपकी साईट पर विग्यापन देखा ब्लागिंक की किताब का । यह सिखाने की चीज नही है। ब्लांगिग जब श्रु हुई थी तो उसके पिछे यह अवधारणा थी कि यह हीं असली पत्रकारिता होगी । हुई भी , लेकिन बाजारवाद अब इसे समाप्त कर रहा है । हमें बहुत सारि चीजों का ध्यान रखना है, कापी राईट के खिलाफ़ जंग भी उनमें से एक है । मेरी मंशा आपको ठेस पहुंचाने की नही थी , बस चाहता हूम ब्लागिंग को व्यवसायिकता से बचायें। आप तो नौकरी से भी घर चला ले रहे हैम , यह बंदा कभी - कभी इलाज भी नही कराता क्योंकि पैसे नही रहते , ऐसा नहि है , पैसे आते हैं । सिर्फ़ अपने व्यवसाय कालत पर ध्यान दु तो बडे आराम से घर चला सकता हूं। लेकिन बस मन नही लगता । वहां भी वही सबकुछ । खैर अगर मेरी बात बुरी लगी हो तो माफ़ करेंगें। वैसे मैं एक भ्रष्ट आदमी हूं, २-३ हजार रुअपये तक का भ्रष्टाचार करना पडता है कभी-किसी महिने , परिवार को दो जून की रोटी के लिये ।
ReplyDeleteचंदन जी एक और उपाय है , आज संपति की हदबंदी का कानून बना दे । एक महिने में महंगाई से लेकर भ्रष्टाचार से तक पर बहुत हद तक लगाम लग जायेगी ।
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