पेडे कटहल , होठे तेल : तीसरा मोर्चा और पीएम मुलायम
पेडे कटहल , होठे तेल; तीसरा मोर्चा , मुलायम पीएम
मुलायम प्रधानमंत्री बनेगें , यह बयान दिया है सपा के भाट आजम खान ने । देश के सभी चैनल आज यही दिखा रहे थें कि तीसरा मोर्चा बनने की संभावना है , लोकसभा की सीटो को भी दिखा रहे थें कि कौन से दल के पास कितनी सीटे हैं । अच्छा उल्लू बनाते हैं ये चैनलवाले दर्शकों को । यह तीसरा मोर्चा – चौथा मोर्चा उस गुजरे जमाने की बात है जब देश में मुख्य रुप से दो दल हुआ करते थें । हालांकि देश के दोनो प्रमुख राष्ट्रीय दलों की पूंजीवादी नीतियों को देखते हुये एक नये मोर्चे की जरुरत महसूस हो रही है लेकिन यह मोर्चा भाजपा – कांग्रेस के सहयोगी दलों से बनेगा तो कितना कारगर होगा , कौन बता सकता है । रातो रात तो विचार बदलने से रहा । सबसे मजेदार बात यह है कि सारे चैनल जब तीसरे मोर्चे को सता तक पहुंचने का एक नया रास्ता बता रहे हैं और उस मोर्चे के भागीदारों की सीटों का आकलन कर रहे तब यह भूल जा रहे हैं कि मोर्चे में शामिल सभी संभावित दलों को अपने हीं राज्य के अन्य दलो से कडी टक्कर लेनी होगी और नये समीकरण भी बनेंगें । टीवी चैनल वाले जो तस्वीर पेश कर रहे हैं अगर वाकई उस तरह का कोई तीसरा मोर्चा बन गया तो उक्त मोर्चे में शामिल दलों की हालत चौबे गये छब्बे बने दुबे बन के लौटे हो जायेगी यानी पहले से जो सीटे हैं , वह भी गवां देंगें । अब जरा विस्तार से ।
तीसरे मोर्चे के वजीरे आजम हैं मुलायम । यूपी में २१ सीट आई थी । तीसरे मोर्चे का गठन होते हीं बसपा का गठजोड भाजपा या कांग्रेस से होगा , परिणाम शायद पांच सीट भी मुलायम न ला पायें । अब चलते हैं बंगाल , ममता बनर्जी के खिलाफ़ वहां वामदल हैं , जब ममता हटेंगी तो वमदलों का कांग्रेस के साथ तालमेल तय है । ममता के लिये राह मुश्किल ्है । पंजाब को भी देख लिया जाय , बसपा के सामने विकल्प है कांग्रेस के साथ जाना , मुस्लिम मतों का भी सवाल है । पंजाब में कांग्रेस और बसपा के एकसाथ आने का अर्थ है अकाली दल का बंटाधार । बिहार को क्यों छोडा जाय । बिहार में नीतीश का साथ सपा चाहेगी , भाजपा से नीतीश के अलग होने का अर्थ है आत्महत्या । नीतीश का अपना कोई वोट बैंक नही है । दो-चार सीट भी निकालना कठिन होगा । अब इसके बाद रह क्या जाता है ? यूपी के चुनाव में जीत हासिल करना और देश के प्रधानमंत्री बनने में बहुत अंतर है । मुलायम की स्वीकारिता यूपी से बाहर नही है । जिस तीसरे मोर्चे की बदौलत पेडे कटहल होठे तेल लगाकर बैठे हैं मुलायम , उधर तीसरे मोर्चे के हर दल का नेता प्रधानमंत्री का दावेदार है । पहले परिस्थितियां कुछ और थी , अधिकांश राज्यों में कांग्रेस भाजपा के अलावा एक –दो दल हुआ करता था , आज परिस्थितियां बदल गई हैं राज्यों के क्षेत्रीय दल टुकडे में विभाजित हो चुके हैं । चाहे बिहार मे राजद –जदयू –एलजेपी हो या पंजाब में मनप्रीत बादल । यूपी में दसो दल हैं ।इस तरह के हालात में और मुलायम का लगातार कांग्रेस को समर्थन देते रहने के इतिहास को देखते हुये ज्यादा संभावना इस बात की है कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में मुलायम कांग्रेस को कमजोर होने का इंतजार करेंगें ताकि उसकी बदौलत कटहल खाने को मिल जाये । हालांकि ऐसा लगता नही । वैसे यूपी में कांग्रेस की हार बिहार के कांग्रेसियों और लालू के लिये वरदान साबित हुई है । बिहार में लालू के साथ मिलकर चुनाव लडने में हीं अब दोनो की भलाई है ।
तीसरे मोर्चे के वजीरे आजम हैं मुलायम । यूपी में २१ सीट आई थी । तीसरे मोर्चे का गठन होते हीं बसपा का गठजोड भाजपा या कांग्रेस से होगा , परिणाम शायद पांच सीट भी मुलायम न ला पायें । अब चलते हैं बंगाल , ममता बनर्जी के खिलाफ़ वहां वामदल हैं , जब ममता हटेंगी तो वमदलों का कांग्रेस के साथ तालमेल तय है । ममता के लिये राह मुश्किल ्है । पंजाब को भी देख लिया जाय , बसपा के सामने विकल्प है कांग्रेस के साथ जाना , मुस्लिम मतों का भी सवाल है । पंजाब में कांग्रेस और बसपा के एकसाथ आने का अर्थ है अकाली दल का बंटाधार । बिहार को क्यों छोडा जाय । बिहार में नीतीश का साथ सपा चाहेगी , भाजपा से नीतीश के अलग होने का अर्थ है आत्महत्या । नीतीश का अपना कोई वोट बैंक नही है । दो-चार सीट भी निकालना कठिन होगा । अब इसके बाद रह क्या जाता है ? यूपी के चुनाव में जीत हासिल करना और देश के प्रधानमंत्री बनने में बहुत अंतर है । मुलायम की स्वीकारिता यूपी से बाहर नही है । जिस तीसरे मोर्चे की बदौलत पेडे कटहल होठे तेल लगाकर बैठे हैं मुलायम , उधर तीसरे मोर्चे के हर दल का नेता प्रधानमंत्री का दावेदार है । पहले परिस्थितियां कुछ और थी , अधिकांश राज्यों में कांग्रेस भाजपा के अलावा एक –दो दल हुआ करता था , आज परिस्थितियां बदल गई हैं राज्यों के क्षेत्रीय दल टुकडे में विभाजित हो चुके हैं । चाहे बिहार मे राजद –जदयू –एलजेपी हो या पंजाब में मनप्रीत बादल । यूपी में दसो दल हैं ।इस तरह के हालात में और मुलायम का लगातार कांग्रेस को समर्थन देते रहने के इतिहास को देखते हुये ज्यादा संभावना इस बात की है कि आनेवाले लोकसभा चुनाव में मुलायम कांग्रेस को कमजोर होने का इंतजार करेंगें ताकि उसकी बदौलत कटहल खाने को मिल जाये । हालांकि ऐसा लगता नही । वैसे यूपी में कांग्रेस की हार बिहार के कांग्रेसियों और लालू के लिये वरदान साबित हुई है । बिहार में लालू के साथ मिलकर चुनाव लडने में हीं अब दोनो की भलाई है ।
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