रिजल्ट के पहले सन – पापा पार्टी ने दिखाये तेवर


रिजल्ट के पहले सनपापा पार्टी ने दिखाये तेवर

कल एक बयान में कांग्रेस के बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा था कि गुंडो की पार्टी से बेहतर है दलितों की पार्टी । बेनी प्रसाद का कथन चुनाव के बाद गठजोड से था । आज सन- पापा (सपा ) पार्टी के एक शिवपाल यादव ने बेनी प्रसाद बर्मा के बयान से तिलमिलाते हुये बयान दिया कि सन-पापा पार्टी में एक हीं गुंडा था बेनी प्रसाद बर्मा और उनके जाने के बाद पार्टी शरीफ़ों की पार्टी बन गई है । शिवपाल भी सन-पापा कुनबे से आते हैं। हो सकता है बेनी प्रसाद बर्मा भी गुंडागर्दी करते रहे हों , लेकिन यह कहना कि सिर्फ़ बेनी प्रसाद गुंडा थें , हास्यापद है । हर दल के अंदर उसके मुखिया की जाति की गुंडागर्दी चलती है , सनपापा पार्टी भी इसका अपवाद नही थी । जैसे कांग्रेस में दलितों ने तो नही लेकिन सतीश मिश्रा के प्रिय ब्राह्मण विधायको ने खुब गुंडागर्दी की थी । बिहार में कहने के लिये तो यादवमुस्लिम ( my )  समीकरण था लेकिन गुंडागर्दी यादव जाति  के अपराधी तत्वों ने की । हालांकि किसी भी सताधारी दल की जात के सभी नेता अपराधी या गुंडा नही होते हैं , इसका सबसे उत्तम उदाहरण राजद के राम कर्पाल यादव हैं। चाहें राजद सता में रहा हो तब या अभी , रामकर्पाल एक ऐसे नेता रहें जिनके उपर इस तरह का दाग नही लगाया जा सकता है । यूपी में भी सन-पापा पार्टी के शासनकाल में यही स्थिति थी , यादव जाति के गुंडे हीं अत्याचार करते थें , हां साथ साथ रहने के कारण दुसरी जात के भी गुंडे थोडी बहुत गुंडागर्दी कर लेते हैं लेकिन वह भी छत्रछाया में। जैसे बिहार में राजद के काल में कायस्थ जाति के वैसे तत्व जो राजद में थें , वह भी अपने आप को गुंडा समझने लगे थें। यह संगत से गुण आत है संगत से गुण जात की कहावत को चरितार्थ करता है । यूपी में सता परिवरतन के आसार लग रहे हैं। लोहिया ने कहा था रोटी तभी खिलती है जब तवे पे उल्टी-पल्टी जाती है यानी प्रजातंत्र में सता का परिवर्तन एक स्वस्थ संकेत है , इससे सबक भी मिलता है और गलतियों को सुधारने का अवसर भी । अखिलेश यादव एक पढे लिखे युवा हैं, प्रयास करेंगें तो अपराधी तत्वों को किनारे रख सकते हैं। संकेत भी दिया है लेकिन वहीं शिवपाल जैसे मंजे और पुराने नेता वही गुंडागर्दी वाला सुर अलाप रहे हैं। देखना है किसकी चलती है , अखिलेश की या शिवपाल की ।



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