पत्रकारों की मूर्खतापूर्ण हरकत
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सैयद मोहम्मद अहमद काजमी एक फ़्री लांस जर्नलिस्ट है। यह तेहरान रेडियो तथा टीवी के लिये कार्य करते रहे है . इजरायल के दूतावास की गाडी में हुये विस्फ़ोट के सिलसिले में काजमी को गिरफ़्तार किया गया है । काजमी खुद को निर्दोष बता रहे हैं। दिल्ली के कुछ पत्रकारों ने एक संगठन बनाकर काजमी की रिहाई की मांग की है । पत्रकार बडे चालू जीव होते हैं, इनके कमीनेपन को भापना कठिन है । काजमी की रिहाई के लिये तुरंत –फ़ुरंत में बनाये गये इस बैनर को इन्होनें नाम दिया है ANHAD एक्ट नाउ फ़ार हारमोनी एंड डेमोक्रेसी। ये पत्रकार खुद को सिविल सोसायटी का प्रतिनिधि बताते हैं । यह सिविल सोसायटी क्या है तथा इसके प्रतिनिधि का चुनाव कैसे होता है यह एक रहस्मय प्रश्न है । रिहाई की मांग करनेवाले पत्रकारों में शामिल हैं मनीष सेठी , अध्यक्ष जामिया मिलिया टिचर्स सोलिडरिटी एसोसियेसन , शबनम हाशमी, सीमा मुस्तफ़ा, सुकुमार मुरलीधरन. । इन पत्रकारों का यह कहना है कि गिरफ़्तारी इजरायल और अमेरिका के दबाव में की गई है । सेठी को तो शाक मार गया है यह जानकर कि इजरायल के इंटेलिजेंस सर्विस के लोग भी पुछताछ करने के लिये आ रहे हैं। दुसरी तरफ़ सीमा मुस्तफ़ा को सरकार के बदलते स्टैंड पर आश्चर्य हो रहा है । सीमा का मानना है कि सरकार ने पहले अपने बयान में यह कहा था कि विस्फ़ोट में इरान का कोई हाथ नही है फ़िर अचानक सरकार के स्टैंड में बदलाव कैसे आ गया । एक अधिवक्ता महोदय भी विरोध कर रहे हैं , नाम है एन डी पंचोली । अधिवक्ता महोदय की आपति यह है कि पुलिस ने न्यायालय को बताया कि यह अन्तराष्ट्रीय आतंकवाद से संबंधित मसला है फ़िर इसकी जांच एन आई ए या सीबीआई से क्यों नही करवाई जा रही है । सुकुमार मुरलीधरन का कहना है कि अभीतक जो सूचना इनलोगों के पास उपलब्ध है उसके अनुसार काज़मी को उनके राजनीतिक विचारधारा के कारण गिरफ़्तार किया गया है , तथा पुलिस के पास कोई ठोस साक्ष्य नही है । इसके साथ हीं मुरलीधरन ने दिल्ली पुलिस को साक्ष्य उपलब्ध कराने तथा काज़मी निर्दोष हैं कि अवधारणा के साथ जांच करने का निवेदन किया है । शबनम हाशमी ने तो एक कदम आगे जाकर बयान दिया है कि काज़मी को मुसलमान होने के कारण गिरफ़्तार किया गया है । ये सारे पत्रकार लाख रुपया सैलरी पानेवालों में हैं तथा जुगाडू पत्रकार यानी इधर उधर का काटा फ़िट करके विदेश यात्रा से लेकर दलाली करने वाले पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं। पूरे प्रकरण का दुखद पहलू यह है कि अपने आप को धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करनेवाले इन पत्रकारों को बिना हिंदु –मुस्लिम चश्में के कुछ दिखता नही है । देश में न्यायालय है , उसके समक्ष यह सारा मसला या शक संदेह को उठाया जा सकता था । पत्रकारों के द्वारा देश की प्रतिष्ठा से संबंधित इतने गंभीर मसले को सार्वजनिक रुप से उठाना खतरनाक संदेश है । देश के युवाओं के अंदर उबाल है । युवा भाषणबाजी में यकीन नहीं करतें , हो सकता है कोई संगठन इनकी पिटाई शुरु कर दे , जैसा की बंगलौर में वकीलों ने किया । या फ़िर कश्मीर के आतंकवादियों के समर्थन में बयान देनेवाले प्रशांत भुषण की पिटाई एक युवक ने की थी । हमने प्रशांत भुषण की पिटाई करनेवाले युवक के पक्ष में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों कों फ़ोन किया था तथा जानना चाहा था कि उस युवक का मुकदमा क्यों नही दर्ज किया गया । मुझे उस केस के आई ओ का नंबर पुलिस ने दिया था । युवक का ईलाज अस्पताल में हो रहा था मैने उस केस आई ओ से बात भी की थी । देश की प्रतिष्ठा से जुडे मसलों पर सावधानी बरतने की जरुरत है । काज़मी के पक्ष में जिस तरह से पत्रकारों ने आनन फ़ानन में सभा और दबाव बनाने का कार्य किया है उससे पत्रकारों की गरिमा को क्षति पहुंची है । पहले भी संवेदनशील मसलों पर ये पत्रकार इस तरह की हरकते करते रहे हैं । पुलिस को यह भी जांच करना चाहिये कि कहीं पत्रकारो को काज़मी के पक्ष में सहानुभूति पूर्ण माहौल बनाने के लिये विदेशी संस्था या आतंकवादी संगठनो से पैसा तो नही मिला है । आप भी विचार करें कि जब जांच चल रही तो पत्रकारों की इस तरह की हरकत जायज है या नाजायज ।
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ANHAD ho aapne thik se research nahi kiya.. aur badi jaldi me conclude kar gaye. meri aapse gujarish hai ki isko ek baar jarur gaur karen.
ReplyDeletehttp://en.wikipedia.org/wiki/ANHAD
funding agency
http://en.wikipedia.org/wiki/Global_Fund_for_Women
बड़ा जालिम है आपका लेख किसी को नहीं छोड़ने वाले आप समझिये कैसे कलम को कुंद किया जाता है. और पहले भी किया जाता रहा है.
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