मुख्य न्यायाधीश कपाडिया जी बेटे का जिक्र क्यों नही किया

मुख्य न्यायाधीश कपाडिया जी बेटे का जिक्र क्यों नही किया  . 





   अभी कुछ दिनों पहले टैक्स से संबंधित एक मुकदमें में जो वोडाफ़ोन और सरकार के बीच था,उच्चतम न्यायालय ने वोडाफ़ोन के पक्ष में फ़ैसला दिया था तथा सरकार को वोडाफ़ोन से वसूली गई टैक्स की राशी को वापस करने का आदेश दिया था  । वाक्या यह है कि वोडाफ़ोन ने हांगकंग की फ़र्म हचसन की हिस्सेदारी वाली  भारतीय फ़र्म हच इस्सार में ६७ प्रतिशत भागीदारी खरीदी थी ।सरकार ने वोडाफ़ोन के उपर ११ हजार करोड रुपये का टैक्स लगाया था । वोडाफ़ोन ने सरकार के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि सौदा देश से बाहर हुआ है इसलिये उसे टैक्स अदा करने के लिये नही कहा जा सकता है । इस मुकदमें की सुनवाई उच्चतम न्यायालय के तीन सदस्यीय पीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिय़ा , न्यायाधीश के एस राधाकूष्णन तथा स्वतंत्र कुमार ने की थी और यह फ़ैसला दिया था कि सरकार द्वारा टैक्स वसूलना गलत था , सौदा विदेश में हुआ था , भले हीं सौदे की संपति भारत में स्थित थी । मैं इस लेख में सौदे की बारीकियों में नहीं जाना चाहता यह लंबी बहस का मुद्दा है । जिस फ़र्म वोडाफ़ोन के पक्ष में न्यायालय ने फ़ैसला दिया था , उक्त फ़र्म को अर्नस्ट एंड यंग नामक ला फ़र्म ने टैक्स मामले में सलाह दी थी और माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय के बेटा होशनार कपाडिया उक्त फ़र्म अर्नेस्ट एंड यंग में कार्य करते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने बेटे के कारण वोडाफ़ोन के पक्ष में फ़ैसला दिया या नही इसकी भी चर्चा मैं नहीं करना चाहता हूं । चर्चा का विषय यह है कि   मुख्य  न्यायाधीश महोदय  ने इस बात का खुलासा नही किया कि वोडाफ़ोन को सलाह देनेवाली फ़र्म में उनका बेटा काम करता है । मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने बेटे का मुकदमें की एक पार्टी को सलाह देनेवाली फ़र्म में काम करनेवाली बात का उजागर न करना   गलत था ।
न्यायालयों में जो स्थापित परंपरा है , उसके अनुसार न्यायाधीश उन मुकदमों की सुनवाई करने में परहेज करते है जिसमें उनके परिवार का कोई सदस्य वकील हो या उसका परिवार किसी भी तरह से जुडा हुआ हो । उस तरह के मुकदमों को दुसरे जज के यहां हस्तांत्रित कर देते हैं।
 मैं एक उदाहरण दे रहा हूं । यह वर्ष २००३ की बात है । पटना उच्च न्यायालय में एक मुकदमे में ताराकांत झा जी को रखना चाहता था मैं । दो विकल्प थें राणा जी या ताराकांत झा । ताराकांत झा ने मुकदमों को इस आधार पर लेने से इंकार कर दिया कि जज महोदय उनके दूर के रिश्तेदार हैं। हम लोगों ने जब प्रार्थना की कि केस अच्छा है , रिश्तेदार होने का कोई अर्थ नही है तो उन्होनें कहा कि अगर मैं मुकदमा ले भी लेता हूं तो हो सकता है कि सुनवाई के दौरान मुझे देखकर जज साहब इसे दूसरे जज के यहां ट्रांसफ़र कर दें । ताराकांत झा जी ने मुकदमा नही लिया ।
वोडाफ़ोन के मामले में एक वकील  एम एल शर्मा द्वारा इसी आधार पर दाखिल याचिका को आज उच्चतम न्यायालय के दो जज आफ़ताब आलम एवं रंजना प्रकाश देसाई  की खंडपीठ ने खारिज कर दिया तथा उक्त याचिका को न्यायपालिका का अपमान करने वाला , गलत और सनसनी फ़ैलाने वाला बताया । शर्मा ने मात्र यह प्रश्न उठाया था कि मुख्य न्यायाधीश कपाडिया ने इस बात का खुलासा क्यों नही किया कि उनका पुत्र वोडाफ़ोन को सलाह देनेवाली कंपनी में कार्यरत है । न्यायालय ने उल्टे पचास  हजार रुपये का जुर्माना भी याचिका कर्ता पर लगाया । यहां एक बात का और जिक्र कर देना संदर्भित होगा ।  ला कमीशन की २३० वीं रिपोर्ट जो न्यायिक सुधार से संबंधित है उसमें  ला कमीशन ने न्यायिक सुधार के लिये अनेको उपाय बताये हैं तथा अनुशंसा की है , उनमे से एक है उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश का चुनाव और नियुक्ति । इस के संबंध में एक मुहावरे का जिक्र किया गया हैअंकल जज
अंकल जज से तात्पर्य है वैसे जज जो  जो उच्च न्यायालय में बहुत दिनो से वकालत कर रहे हों या जिला न्यायालय से प्रोन्नति पा कर उच्च न्यायालय के जज बने हों । कमीशन ने माना है कि इस तरह से बने जज के बारे में अक्सर शिकायत मिलती है कि अपने वकालत के समय की मित्र या अपने रिश्तेदारों की जो वकालत कर रहे हैं उनकी प्रति अंकल जजों का रवैया सहानुभूति भरा होता है । ला कमीशन का चेयरमैन उच्चतम न्यायालय के रिटायर्ड जज होते हैं । अगर उच्चतम न्यायालय के ्रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाला कमीशन उच्च न्यायालय के लिए एक मानक निर्धारित करता है तो उसका पालन उच्चतम न्यायालय को भी करना चाहिये।  ।

ला कमीशन का जिक्र इस लिये कर दिया कि मुख्य न्यायाधीश को फ़ैसले देते समय कम से कम यह ध्यान में रखना चाहिया था कि मुकदमे की एक पार्टी को सलाह देनेवाली फ़र्म में उनका बेटा काम करता है । कपाडिया महोदय को स्वंय को इस मुकदमें से अलग कर लेना चाहिया था और अगर अलग करने में कोई दिक्कत थी तो इस बात का खुलासा मुकदमें की सुनवाई के दौरान कर देना चाहिये था । न्याया का एक सिद्धांत है
समानता यह मांग करती है कि न सिर्फ़ न्याय देना महत्वपूर्ण है बल्कि यह भी मह्त्वपूर्ण है कि न्याय हुआ यह महसूस हो
दुर्भाग्य से वोडाफ़ोन के मामले में मुख्य न्यायाधीश कपाडिया के निर्णय को लेकर हमेशा संशय बना रहेगा ।  इस संबंध में वकील शर्मा द्वारा दाखिल याचिका को खारिज करना तथा याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाना भी दुखद  है । न्यायपालिका को अपनी आलोचना सुनने की आदत डालनी पडेगी , अन्यथा उसका खामियाजा भुगतना पडेगा । जैसे अरुंधती राय ने अवमानना के मुकदमें में सरेआम उच्चतम न्यायालय को उसकी औकात बताते हुये एक दिन की जेल काट कर पूरी दुनिया के सामने भारत की न्यायिक व्यवस्था को नंगा कर दिया था ।

यहां वोडाफ़ोन के फ़ैसले की  कापी तथा ला कमीशन की रिपोर्ट की कापी लोड है । आप भी पढें ।





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