भ्रष्टाचारियों की धमकी
पैसा एक ताकतवर हथियार के रुप में स्थापित हो चुका है । यहां आज की एक घटना का जिक्र कर रहा हूं । पत्रकारिता का शौक , भ्रष्टाचार के खिलाफ़ गुस्सा और आर्थिक असमानता कुछेक ऐसी समस्यायें रहीं जिसके कारण शौक के तैर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और कुछ लिखने पढने लगा । साप्ताहिक समाचार पत्रों से शुरु हुई इस यात्रा में एक नया पडाव नजर आया सांध्य दैनिक जिसकी शुरुआत मेरे शहर गया से हुई है । अबतक बिहार नाम है । दो रोज यानी परसो एक समाचार मोबाइल टावर के खतरे से संबंधित लिखा । बाजार में एक मकान पर पहले से एक टावर रहते हुये दुसरा लगाया जा रहा था , स्थानीय विरोध हुआ , मामला थाने पहुंच गया । थाने पर जो सिस्टम है , आम आदमी जाने से, बात करने से डरता है , कारण है पुलिस वालों का अपमानजनक व्यवहार । वे मानकर चलते हैं कि वर्दी पहन ली देश मेरे बाप का हो गया , किसी को अपमानित करने का अधिकार इंन्हे हासिल हो गया । यह दिगर बात है कि जब नक्सलवादियों से पाला पडता है तो अर्द्ध सैनिक बल याद आने लगते हैं। खैर बात मोबाइल टावर के विवाद की हो रही थी । थाने मे मारपीट का मामला जाने के बाद वहां दोनो पक्षों से पैरवी करने वालों की जमात आ गई , ये पैरवी करनेवाले वस्तुत: पुलिस के दलाल होते हैं , कुछ आमदनी पुलिस को कराते हैं , कुछ अपने जेब के लिये व्यवस्था करते हैं। उन्ही में शामिल था गया नगर निगम का एक पार्षद पहले यह नेताओं को खैनी खिलाने , पावं छूकर प्रणाम करने का काम करता था । वोट में जनता के पैर छूयें जनता ने चुन लिया । मूर्ख जनता कब क्या करेगी कोई नही बता सकता । इस पार्षद का नाम है शिशु उर्फ़ शिशु किशोर । नगर निगम से अपने भाई परिवार के नाम पर ठेके लेता है । पैर पूजन संस्कर्ति की देन है इसलिये अधिकारियों का पैर छूते चलता है , अधिकारी भी खुश । गया का एक भ्रष्ट कलक्टर था संजय सिंह आजकल पटना का जिलाधिकारी है , उसके पाव इस भ्रष्ट पार्षद को ज्यादा पसंद थें। रोजाना एक आध बार जाकर पाव छू हीं लेता था । यह इस मोबाइल टावर वाले मामले में थाने में दलाली करने पहुंच गया । लिखने में समझौते की आदत है नही, मैने लिख मारा कि मारपीट के इस मामले में एक दो पार्षद थाने में दलाली करते नजर आयें। मुझसे बोलने की हिम्मत नही है । सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का तेवर रखता हूं , गाली दोगे तो थप्पड मारुंगा के सिंद्धांत पर चलता हूं । ह्रष्टचारियों को बलात्कारी से भी गिरा हुआ समझता हूं। मेरे अखबार के प्रधान संपादक हैं बिमलेंदु चैतन्य, कभी लोकल केबल चैनल चलाते थें । अखबार और वह भी जनपक्षधर पत्रकारिता का कोई अनुभव नही और न हीं तेवर हैं। उनको फ़ोन पर इस भ्रष्ट पार्षद ने मुकदमा करने की धमकी दी । मुझे इन्होने कहा सर पार्षद सब छुछुरबुद्ध होता है उन सब के खिलाफ़ क्या लिखना । मेरे जैसे टेंपरामेंट वाले के लिये यह राय हीं अपमानजनक थी । सोचा लिखना छोड देना बेहतर है समझौता करने से। हालांकि बात में बिमलेंदु को अहसास हुआ लेकिन एक बार जो बात जबान से निकल जाये वह वापस नही आती । मुझे अपना ब्लाग भाता है , जिस साले हरामी के पिल्ले को हिम्मत हो करे मेरे उपर मुकदमा , ब्लाग पर लिखने के कारण मुकदमा होगा तो मेरे उपर होगा कोइ मुझे न तो सलाह देगा कि क्या लिखू और नहीं लिखने के बाद कहेगा कि गलत लिखा या सही । अब मैं आता हूं उस विषय पर जिसके कारण यह सब ब्लाग पर लिखने की जरुरत पडी । सबसे पहले तो उस भ्रष्ट पार्षद को फ़िर उसकी औकात बता रहा हूं ताकि वह अपने आका पुलिस वालों का पाव छूकर मेरे उपर मुकदमा करे । अभी जो लिखुंगा उसका एस एम एस भी भेजुंगा उस हरामी पार्षद जिसका नाम शिशु है । कोई भ्रष्ट मुझे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष धमकी दे यह बर्दाश्त नही । मुकदमें को ठेंगे पर रखकर चलता हूं । हत्या के एक झूठे मुकदमे का सामना कर रहा हूं जिसमें माले वालों ने मुझे फ़साया था , उन्हें भी मेरे स्वभाव से तकलीफ़ थी । उस मुकदमे में जांच करने वाले उतराखंड उच्च न्यायालय के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बारेन घोष के बारे मे बार –बार मैने लिखा है कि उसे क्रिमिनल मामलो का कोई अनुभव नही है , यह वही बारेन घोष है जिसने काश्मीर में एक नहर में डूबकर मरनेवाली दो लडकियों के मामले में वहां के पुलिस पदाधिकारियों पर मुकदमा करवाकर जेल भेजा था तथा यह भी आदेश दिया था कि निचली अदालत उनके जमानत आवेदन पर सुनवाई नही करेगी । बाद में यह आदेश उच्चतम न्यायालय में रद्द हो गया और उस मामले कीसीबीआई जांच में पाया गया कि दोनो लडकियां डूबकर मरी हैं , उन दोनो लडकियों के फ़ेफ़डे में नहर की मिट्टी के अंश पाये गये थें । अभी उतराखंड के निगमानंद के मामले में भी इस बारेन घोष पर अभियोग है । दुर्भाग्य है भारत में जज अपने को भगवान समझता है । यह सब लिखने का मात्र इतना हीं कारण है कि मैं सभी भ्रष्टाचारियों को यह संदेश देना चाहता हूं कि चोरो अपनी औकात समझों । मुकदमे का भय मेरे जैसे व्यक्ति को न दिखाओ । खासकर उस चोर पार्षद को । हरामी की हिम्मत थी तो मुझे फ़ोन करता । कमीने ने दबाव बनाने का प्रयास किया । चेतावनी भी दे रहा हूं साले केस कर अगर अपने बाप की औलाद है तो फ़िर देख तेरे भ्रष्टाचार का भंडाफ़ोड कैसे होता है । गया के सारे लोग जानते हैं कि वह पुलिस का दलाल है , उसका बाप एक दारोगा था तथा एक पत्नी के जिंदा रहते उसने इस पार्षद की मां से शादी की थी । शादी के जायज या नाजायज होने का मामला मैम नहीं उठाना चाहता क्योंकि यह पार्षद जिस दारोगा को अपना बाप बताता है उसकी भी मर्त्यु हो गई है और इसकी मां भी बुढी हो गई है । जवानी में लोगों से गलतियां होती है फ़िर मेरा मनना है कि अगर दो बालिग सहमति से कुच भी करें दुसरे को मोरल पुलिसिंग नही करनी चाहिये ।
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