गया में उपद्रवियों का दंगा फ़ैलाने का प्रयास विफ़ल



गया में उपद्रवियों का दंगा फ़ैलाने का प्रयास विफ़ल

रामनवमी के दिन से हीं कट्टरवादी हिंदुवादी तत्वों ने शहर को अशांत करने का प्रयास किया । शुरुआत पंत नगर माडनपुर महल्ले से हुई जो वार्ड संख्या 46  है । उक्त वार्ड से संतोष कुमार सिंह वार्ड पार्षद हैं, वार्ड पार्षद अच्छा आदमी है और उसका इस घटना से किसी तरह का कोई संबंध नही है । बगल में हीं वार्ड नंबर ४५ है, जहां से गया की महिला मेयर शगुफ़्ता परवीन वार्ड पार्षद हैं और इसी वार्ड के कुछ शरारती तत्वों की साजिश के कारण यह घटना हुई । । घटना कुछ इस तरह से शुरु हुई कि कुछ उपदर्वी तत्वों ने जानबूझकर एक जमीन जो एक मुसलमान का था उसके उपर रामनवमी झंडा गाड दिया तथा एक महावीर जी की मूर्ति भी स्थापित कर दी। स्वाभाविक था कि विवाद बढेगा । जिसकी जमीन थी उसने आपति उठाई परिणाम हुआ तनाव । प्रशासन को खबर हुई , प्रशासन ने सराहनीय कदम उठाते हुये मूर्ति को एक मंदिर में जाकर स्थापित कर दिया और उपद्रवियों को वहां से भगा दिया । हालांकि धार्मिक नियम के अनुसार वहां जो महावीर जी की मूर्ति स्थापित की गई थी , उसे भगवान की मूर्ति नही कहा जा सकता क्योंकि जबतक किसी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा नही की जाती वह मात्र एक मूर्ति है , उसकी पुजा अर्चना नही हो सकती है । इस मामले में मूर्ति स्थापित करने वाले पक्ष का कहना था कि वह जमीन गैर मजरुआ आम यानी सरकारी है , लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या किसी को भी सरकारी  जमीन पर मंदिर बनाने का अधिकार है ? और वह कौन सा कारण था कि अचानक रामनवमी के दिन हीं मुर्ति स्थापित करनेवालों को यह ध्यान आया कि वह जमीन सरकारी है इसलिये उनके बाप का मालिकाना हक है इस जमीन पर  और उन्होनें मूर्ति स्थापित करने का गंदा प्रयास किया । इस के बाद एक और घटना हुई , मुरारपुर मुहल्ले से रामनवमी का एक जुलूस छता मस्जिद से गुजर रहा था , उस जुलूस पर कुछ उपद्रवी तत्वों ने पत्थर फ़ेका तथा दोनो तरफ़ से तनाव पैदा हो गया । एक धार्मिक स्थल को क्षति पहुंचाई गई तथा जूते की एक दुकान में आग लगा दिया गया । हालांकि गया प्रशासन ने बहुत हीं तत्परता से कदम उठाते हुये मामले को काबू में कर लिया । गया में अफ़वाहों का बाजर गर्म था जिसे देखो वह खुद को प्रत्यक्षदर्शी बताते हुये यहां तक कह रहा था कि मौत भी हुई है। प्रशासन ने अपने स्तर से प्रचार करवा रहा था कि इस तरह की अफ़वाहों पर ध्यान न दें । वैसे गया शहर के समझदार लोगों ने इसकी भ्रत्सना की है । सिवाय उनलोगों के जिनका अपना राजनीतिक स्वार्थ है , अधिकांश लोग प्रशासन की तत्परता की प्रशंसा  कर रहे हैं। प्रशासन ने बडे पैमाने पर फ़ैलने की आशंका वाली घटना पर काबू पाकर गंदे और संप्रदायिक चरित्र के नेता तथा तत्वों के मंसूबों को विफ़ल कर दिया है । बहुत सारे अखबार छपाउं नेता प्रशासन पर यह आरोप लगा रहे हैं कि रामनवमी की शोभा यात्रा के दौरान प्रशासन ने मुस्तैदी नही दिखाइ । एक कोई भाजपा का महानगर का अध्यक्ष है यह आरोप उसने हीं लगाया है । रामनवमी के अवसर पर जो यात्रा हथियारों से लैस होकर निकाली गई थी, वह शोभा यात्रा नही थी , बल्कि गुंडा यात्रा थी । समीर तकिया मुहल्ले से भी एक इसी तरह का जूलूस गुजर रहा था , डीजे की आवाज इतनी ज्यादा थी कि घर में सो रहे छोटे छोटे बच्चे उठकर रोने लगें। यह कैसी शोभा यात्रा है ? जो चेहरे रामनवमी की इस गुंडा यात्रा में शमिल थें वे अधिकांश गुंडे चरित्र के निकम्मे लोग थें बहुत सारे तो शराब पीकर नारे लगा रहे थें। जो लोग प्रशासन की आलोचना कर रहे है पहले अपने गिरेबां में झांककर देखें । आलोचना करने वाले पहले यह बतायें कि उ्न्होने अपने बाल बच्चों को इस तथाकथित शोभा यात्रा में क्यों नही भेजा ? यह घटना स्वस्फ़ूर्त नही है । गया में नगर निगम का चुनाव होनेवाला है । वर्तमान में गया की मेयर एक मुस्लिम महिला है । अच्छी संख्या में मुसलमान भी निगम का चुनाव जितकर आते हैं। नगर निगम का उप मेयर मोहन श्रीवास्तव हैं , इस बार मेयर पद पर अपनी पत्नी को लाना चाहते हैं इसलिये यह जरुरी है कि कम से कम संख्या में मुसलमान पार्षद बनें तथा किसी तरह से वर्तमान मेयर चुनाव हार जायें। मुरारपुर से जो शोभा यात्रा निकली थी, उसको आयोजित करने वाले बजरंग दल तथा विश्व हिंदु परिषद के लोग थें । उप मेयर मोहन श्रीवास्तव ने फ़ुलों से उस जुलूस का जिसमें आवारा और लंपट दारु पीकर तलवार, लाठी और हाकी स्टिक  लहरा रहे थें , स्वागत किया था । उनमें से एक दोलोग वर्तमान में नगर निगम के चुनाव में प्रत्याशी भी हैं । इस जुलूस में हाकी स्टिक तक  असमाजिक तत्व हाथ  में लिये हुये लहरा रहे थें। एक मस्जिद में आग लगाने का असफ़ल प्रयास भी इन दंगाइयों ने किया लेकिन सबसे दुखद बात यह हुई कि उस मस्जिद के बगल में टोपी की दुकान लगाने वाले समीर तकिया मुहल्ले के एक मुसलमान की दुकान में भी दंगाइयों ने आग लगा दी। यह तो विश्व हिंदु परिषद के महान  नेता हीं बता सकते हैं कि उस गरीब मुसलमान का क्या दोष था ? किसी तरह अपने बच्चों का पालन पोषण कर रहे उस दुकानदार की दुकान में आग लगाने का पाठ हिंदु धर्म की कौन सी किताब में लिखा हुआ है ? विश्व हिंदु परिषद के सुरेन्द्र सिंह तथा बारिक नामक का एक नेता मुरारपुर के जुलूस का नेतर्त्व कर रहे थें , दोनो पर कठोर कार्रवाई आवश्यक है । दंगाईयों ने माहौल बिगाडने के लिये अफ़वाहें भी फ़ैलाई । जिला प्रशासन की तत्परता के कारण कोई बडा हादसा नही हुआ । हालांकि कुछ स्वार्थी तत्वों ने प्रशासन पर यह आरोप लगाया कि शोभा यात्रा के दौरान पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नही थी । एक दो लोगों ने यह भी यह भी आरोप लगाया कि जिलाधिकारी कोतवाली थाने में बैठी थीं तथा कुछ दूरी पर स्थित जूते की दुकान में उपद्रवी आग लगा रहे थें। पुलिस प्रशासन ने कोई कोताही नही बरती थी , हर साल की तरह इस साल भी व्यवस्था थी लेकिन इस वर्ष जुलूस में दंगाई तत्व थें । जिलाधिकारी का काम अपने अधीनस्थ को निर्देश देना है कि न कि लाठी भाजना । गया के प्रशासन ने पितर्पक्ष ,दशहरा और होली के दौरान अच्छा काम किया था । आज गया में बडा हादसा होते होते बचा इसका श्रेय प्रशासन को हीं जाता है अन्यथा दंगाईयों ने महौल खराब करने में कोई कसर नही छोडी थी। बिहार मीडिया प्रशासन की प्रशंसा नही करता है , हमारा मानना है कि इमानदारी की अपेक्षा हर अफ़सर से की जाती है और इमानदार होना अफ़सर का गुण नही होता हां बेइमान होना निश्चित रुप से अवगुण है ।लेकिन कभी-कभी प्रशासन कुछ ऐसा कार्य करता है जिसकी प्रशंसा करने से खुद को रोकना संभव नही है । गया नगर के विभिन्न क्षेत्रो में इस तरह की घतना होना तथा अफ़वाह फ़ैलाना एक साजिश का हिस्सा लगता है । दंगों में सिर्फ़ जान या संपति का नुकसान नही होता है बल्कि समाज में एक गहरा विभाजन हो जाता है जिसे पाटने में दशको लग जाते हैं। 
बिहार मीडिया गया प्रशासन के द्वारा की गई तत्परतापूर्ण कार्रवाई की प्रशंसा करता है ।  गया के एस एस पी त्वरित न्यायालय में मुकदमें के निपटारे के लिये जाने जाते हैं । यह घटना चुनौती है । दंगाइयों का पता लगाकर उनका मुकदमा फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाय ।


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