आरुषी हत्याकांड: न्यायपालिका के कारण असली अपराधी को फ़ायदा ?
आरुषी हत्याकांड: न्यायपालिका
के कारण असली अपराधी को फ़ायदा ?
आज देश के सबसे चर्चित
हत्याकाड की अभियुक्त नूपुर तलवार की जमानत याचिका खारिज करते हुये न्यायालय ने उसे
न्यायिक हिरासत मे ले लिया ।न्यायालय द्वारा जमानत न देना, हतप्रभ कर देनेवाला फ़ैसला था ।
व्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान प्रदत मौलिक अधिकार की श्रेणी में आता है ।बगैर पर्याप्त कारण किसी को जेल में रखना इसका उल्लंघन है और कानूनविदो ने न सिर्फ़ इसे स्वीकार किया है बल्कि बहुत सारे वैसे कानून जो अपराध निषेधात्मक हैं जैसे अपराध नियंत्रण एक्ट , उसमें किसी व्यक्ति पर गंभीर अपराधिक मुकदमों की संख्या एक साल में तीन से ज्यादा होने पर दो वर्ष तक जेल का प्रावधान भी है, परन्तु उक्त कानून की प्रास्तवना में हीं यह स्वीकार किया गया है कि इस तरह के कानून संविधान द्वारा प्रदत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है परन्तु समाज को सुरक्षा प्रदान करने के लिये इनका निर्माण किया गया है ।
किसी मुकदमें में जमानत देना न्यायाधीश के विवेकाधीन नही होता । कुछ लोग यह मानते थें कि जमानत देना न्यायाधीश के स्वविवेक पर निर्भर करता है लेकिन बहुत सारे निर्णयों में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यह स्वविवेक पर निर्भर नही है । नूपुर तलवार को जमानत न देने का कोई औचित्य नही दिखता । वह पहले से जमानत पर थी । चार्जशीट दाखिल हो चुकी है , साक्ष्यों से छेडछाड का सवाल नही उठता है । उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद नूपुर तलवार ने गाजियाबाद कोर्ट में सरेंडर किया था बेल याचिका के साथ । यानी नूपुर तलवार पर न्यायालय के आदेश की अवहेलना का अभियोग भी नही लगाया जा सकता है । मुकदमा अभी ट्रायल स्टेज मे है । अपराध प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी ) की धारा 437 जिसके तहत न्यायालय में हाजिर होकर जमानत की याचना की जाती है, उक्त धारा की उपधारा 1 के क्लाज ( i ) में यह स्पष्ट रुप से उलेखित है कि अगर न्यायालय के पास विश्वास करने का पर्याप्त साक्ष्य है कि कोई व्यक्ति ऐसे अपराध में शामिल है जिसकी सजा मौत या आजीवन कारावास है तो न्यायालय जमानत देने से इंकार कर सकता है । परन्तु उसी धारा की उपधारा 1 के क्लाज ( ii )के प्रथम प्रोविजो में यह भी प्रावधान है कि अगर वह व्यक्ति १६ वर्ष से कम उम्र का हो या महिला हो या बिमार या लाचार हो तो न्यायालय जमानत दे सकती है । सीबीआई की इस दलील का अर्थ नही समझ में आया कि महिला होना जमानत का आधार नही हो सकता । न्यायालय द्वारा भी इस आधार पर जमानत न देना आश्चर्यचकित करने वाला फ़ैसला था । न्यायालय ने साक्ष्य भले हीं ले लिया हो , पुन: जांच का समय अभी समाप्त नही हुआ है । उसी धारा की उपधारा 2 में यह प्रावधान है कि अगर न्यायालय को मुकदमें के किसी भी स्तर पर यह महसुस हो कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध नही किया है और उसके अपराध के संबंध में आगे भी जांच की जरुरत है तो न्यायालय अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर सकती है । आरूषि हत्याकांड में और जांच की आवश्यकता है । अगर जांच नही होती है तो यह न्याय की हत्या होगी । असली अपराधी कौन है , इसका कोई साक्ष्य अभी तक नही उपलब्ध है । नीचे हम विस्तार से मुकदमे मे हुई जांच तथा उसकी कमियों को दर्शा रहे हैं ।
यह मुकदमा तलवार दंपति और न्यायपालिका के साथ चल रहा है । मुकदमें में चार्जशीट दाखिल करने से लेकर अभीतक जो तस्वीर उभरकर सामने आई है , उसके अनुसार न्यायपालिका निष्पक्ष नही दिखती । वह एक पार्टी बन चुकी है । सीबीआई ने इस मुकदमें की जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल की थी । कोर्ट ने सीबीआई की जांच रिपोर्ट को खारिज करते हुये तलवार दंपति के खिलाफ़ साक्ष्य लिया । न्यायपालिका के हस्तक्षेप की शुरुआत यही से हुई । न्यायालय को संग्यान लेने की जगह पर जांच को जारी रखने का आदेश देना चाहिये था । बिहार मीडिया इस कांड पर बारीकी से निगाह रख रहा था लेकिन कभी भी कोई रिपोर्ट हमने नही प्रकाशित की और उसका कारण मात्र यह था कि इस केस की जांच सही तरीके से नही हुई थी , और गहन जांच की आवश्यकता थी । न्यायालय को तलवार दंपति के खिलाफ़ साक्ष्य लेने के पहले और सघन जांच का आदेश देना चाहिये था । जो मुख्य बिंदु उभर कर सामने आये थें तथा जिसके संबंध में जांच की जरुरत थी वह थें : -
व्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान प्रदत मौलिक अधिकार की श्रेणी में आता है ।बगैर पर्याप्त कारण किसी को जेल में रखना इसका उल्लंघन है और कानूनविदो ने न सिर्फ़ इसे स्वीकार किया है बल्कि बहुत सारे वैसे कानून जो अपराध निषेधात्मक हैं जैसे अपराध नियंत्रण एक्ट , उसमें किसी व्यक्ति पर गंभीर अपराधिक मुकदमों की संख्या एक साल में तीन से ज्यादा होने पर दो वर्ष तक जेल का प्रावधान भी है, परन्तु उक्त कानून की प्रास्तवना में हीं यह स्वीकार किया गया है कि इस तरह के कानून संविधान द्वारा प्रदत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है परन्तु समाज को सुरक्षा प्रदान करने के लिये इनका निर्माण किया गया है ।
किसी मुकदमें में जमानत देना न्यायाधीश के विवेकाधीन नही होता । कुछ लोग यह मानते थें कि जमानत देना न्यायाधीश के स्वविवेक पर निर्भर करता है लेकिन बहुत सारे निर्णयों में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यह स्वविवेक पर निर्भर नही है । नूपुर तलवार को जमानत न देने का कोई औचित्य नही दिखता । वह पहले से जमानत पर थी । चार्जशीट दाखिल हो चुकी है , साक्ष्यों से छेडछाड का सवाल नही उठता है । उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद नूपुर तलवार ने गाजियाबाद कोर्ट में सरेंडर किया था बेल याचिका के साथ । यानी नूपुर तलवार पर न्यायालय के आदेश की अवहेलना का अभियोग भी नही लगाया जा सकता है । मुकदमा अभी ट्रायल स्टेज मे है । अपराध प्रक्रिया संहिता ( सीआरपीसी ) की धारा 437 जिसके तहत न्यायालय में हाजिर होकर जमानत की याचना की जाती है, उक्त धारा की उपधारा 1 के क्लाज ( i ) में यह स्पष्ट रुप से उलेखित है कि अगर न्यायालय के पास विश्वास करने का पर्याप्त साक्ष्य है कि कोई व्यक्ति ऐसे अपराध में शामिल है जिसकी सजा मौत या आजीवन कारावास है तो न्यायालय जमानत देने से इंकार कर सकता है । परन्तु उसी धारा की उपधारा 1 के क्लाज ( ii )के प्रथम प्रोविजो में यह भी प्रावधान है कि अगर वह व्यक्ति १६ वर्ष से कम उम्र का हो या महिला हो या बिमार या लाचार हो तो न्यायालय जमानत दे सकती है । सीबीआई की इस दलील का अर्थ नही समझ में आया कि महिला होना जमानत का आधार नही हो सकता । न्यायालय द्वारा भी इस आधार पर जमानत न देना आश्चर्यचकित करने वाला फ़ैसला था । न्यायालय ने साक्ष्य भले हीं ले लिया हो , पुन: जांच का समय अभी समाप्त नही हुआ है । उसी धारा की उपधारा 2 में यह प्रावधान है कि अगर न्यायालय को मुकदमें के किसी भी स्तर पर यह महसुस हो कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध नही किया है और उसके अपराध के संबंध में आगे भी जांच की जरुरत है तो न्यायालय अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर सकती है । आरूषि हत्याकांड में और जांच की आवश्यकता है । अगर जांच नही होती है तो यह न्याय की हत्या होगी । असली अपराधी कौन है , इसका कोई साक्ष्य अभी तक नही उपलब्ध है । नीचे हम विस्तार से मुकदमे मे हुई जांच तथा उसकी कमियों को दर्शा रहे हैं ।
यह मुकदमा तलवार दंपति और न्यायपालिका के साथ चल रहा है । मुकदमें में चार्जशीट दाखिल करने से लेकर अभीतक जो तस्वीर उभरकर सामने आई है , उसके अनुसार न्यायपालिका निष्पक्ष नही दिखती । वह एक पार्टी बन चुकी है । सीबीआई ने इस मुकदमें की जांच के बाद क्लोजर रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल की थी । कोर्ट ने सीबीआई की जांच रिपोर्ट को खारिज करते हुये तलवार दंपति के खिलाफ़ साक्ष्य लिया । न्यायपालिका के हस्तक्षेप की शुरुआत यही से हुई । न्यायालय को संग्यान लेने की जगह पर जांच को जारी रखने का आदेश देना चाहिये था । बिहार मीडिया इस कांड पर बारीकी से निगाह रख रहा था लेकिन कभी भी कोई रिपोर्ट हमने नही प्रकाशित की और उसका कारण मात्र यह था कि इस केस की जांच सही तरीके से नही हुई थी , और गहन जांच की आवश्यकता थी । न्यायालय को तलवार दंपति के खिलाफ़ साक्ष्य लेने के पहले और सघन जांच का आदेश देना चाहिये था । जो मुख्य बिंदु उभर कर सामने आये थें तथा जिसके संबंध में जांच की जरुरत थी वह थें : -
1.
टैरेस के रास्ते बाहरी तत्व
के अंदर आने की संभावना ।
2.
आरुषी के मोबाईल फ़ोन का १५-२० दिन बाद एक कच्चे रास्ते में पाया जाना जो नोयडा को सदरपुर एरिया से जोडनेवाले
रास्ते में एक नौकरानी कुसुम के द्वारा पाया गया । वह मोबाईल वहां कैसे पहुचा इसकी
जांच आवश्यक थी ।
3.
हेमराज के मोबाईल का लोकेशन
पंजाब में पाया गया , वह पंजाब कैसे पहुंचा । १६ मई की सुबह में
हेमराज के फ़ोन की लोकेशन तलवार दंपति के घर के आसपास का क्षेत्र था यानी उक्त कालोनी
थी , जहां तलवार दंपति रहते थें । हत्या के बाद वह फ़ोन पंजाब
कैसे पहुचा इसकी जांच जरुरी थी । क्या हत्या
करनेवालों ने फ़ोन को कालोनी में रखा था और बाद में उनमे से कोई एक पंजाब चला गया फ़ोन
लेकर ।
4.
हत्या की सुबह यानी १६ मई २००८
को जब तलवार परिवार की नौकरानी भारती काम करने आई तो बाहर का बीच का रास्ता लाक था
। वह बाहर से लाक था । नूपुर तलवार ने बालकोनी से चाभी फ़ेका जिससे भारती ने ताला खोला
। अगर न्यायालय और सीबीआई की इस बात पर यकीन कर लिया जाय की बाहर से किसी के आने की
संभावना नही थी तो प्रश्न उठता है बीच वाले गेट का ताला बाहर से कैसे लाक था और भारती
उसे बाहर से हीं खोलकर अंदर आई । इसकी भी जांच आवश्यक थी ।
5.
घर के डायनिंग टेबल पर मौजूद
स्काच की बोतल पर हेमराज और आरुषी के खुन के दाग के साथ फ़िंगर प्रिंट भी था जिसकी पहचान
नही हो सकी ।
इसकी जांच आवश्यक थी । सीबीआई का यह अनुमान की रात को हत्या करनेवाला शराब की बोतल
लेकर नही आयेगा तार्किक नही है । एक प्रश्न का जवाब देने में सीबीआई तथा न्यायालय भी
असफ़ल रहें कि अगर तलवार दंपति ने हत्या की थी तो फ़िर खुन लगी फ़िंगर प्रिंट वाली शराब
की बोतल को डायनिंग टेबल पर क्यो रखतें , उसे साफ़ करके हटा सकते
थें । यह एक बहुत बडा साक्ष्य था .
6.
हत्या के बाद पुलिस ने तलवार दंपति के जो कपडे बरामद किये
। राजेश तलवार के कपडे पर सिर्फ़ आरुषी के खुन के दाग पाये गयें। जबकि हेमराज की भी
हत्या हुई थी , उसके लाश को घसीट कर घर के टैरेस पर ले जाया गया
था । यह एक अकाटय साक्ष्य था जो साबित करता है कि राजेश तलवार ने कम से कम हेमराज की
हत्या नही की । नूपुर तलवार ने रात में जो कपडे पहने थें उसपर कोई खुन का दाग नही पाया
गया । हेमराज के बिस्तर पर खुन का कोई दाग नही था , यानी चादर बदली गई थी । टैरेस पर जानेवाली सिढियों को साफ़ किया गया था । घर के अंदर खुन की सफ़ाई की गई थी । यह सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है । तलवार दंपति का हत्या के बाद पुलिस के आने तक घर से बाहर जाने का कोई साक्ष्य नही मिला , ;लेकिन हेमराज की खुन वाली चादर, हेमराज को जिस चादर में रखकर घसिटते हुये टैरेस पर ले जाया गया वह चादर, घर में खुन साफ़ किये जाने वाला कपडा और हत्या में प्रयुक्त हथियार नही मिला । यह एक बडा साक्ष्य है कि हत्या करनेवाले यह सबकुछ लेकर चले गये । यह संकेत करता है कि हत्या बाहरी तत्व ने की . सी बी आई यह मानकर चल रही थी कि हेमराज की हत्या उसके कमरे मे हुई है तथा हत्या के बाद उसके बिस्तर की चादर को बदल दिया गया है । सी बी आई का यह अनुमान हास्यापद है । खुन या पानी अगर बिस्तर पर गिरेगा तो चादर के अलावा बिस्तर पर बिछाये गये गद्दे के अंदर तक जायेगा ।
7.
गोल्फ़ की जिस स्टिक से सिर पर
मारने का जिक्र है , वह स्टिक हेमराज के कमरे में हत्या के कुछ
दिन पहले राजेश तलवार के ड्रायवर ने रखा था क्योंकि वह स्टिक तलवार दंपति के सैन्ट्रो कार
में रखी हुई थी और उस कार को सर्विसिंग के लिये देना था । दो स्टिक थी जिसे ड्रायवर
ने हेमराज के कमरे में रख दिया था । १ जून को जब फ़ोरेंसिक विभाग ने हेमराज के कमरे
की फ़ोटो ली थी तो उस स्टिक की भी तस्वीर आई थी ।
8.
सिर पर गोल्फ़ स्टिक से चोट करने
की बाद जांच में आइ है । जिस स्टिक से चोट की बात सीबीआई कर रही है, वह स्टिक एक साल बाद तलवार दंपति के घर के अंदर जो छ्ज्जा होता है उसमें सफ़ाई
के दौरान मिली थी । जब सीबीआई ने मांगा तो तलवार दंपति ने वह स्टिक दे दी। सीबीआई का
कहना है कि तलवार ने दंपति ने वह स्टिक स्वंय नही दी और इस पर विवाद है। लेकिन अगर
वह मर्डर का हथियार था और तलवार दंपति हत्या में शरीक थें तो उसे नष्ट कर सकते थें,
उनके पास काफ़ी समय था ऐसा करने का ।
9.
दो नौकर कर्ष्णा एवं राजकुमार ने नारको टेस्ट में स्वीकार किया था कि आरूषी का फ़ोन नेपाल
भेज दिया गया है लेकिन वह घर के पास की गली में पाया गया । इसी आधार पर उन दोनो को
सीबीआई ने निर्दोष बताया । क्या जिसे फ़ोन लेकर नेपाल जाना था उसने डर के कारण वह फ़ोन फ़ेक दिया
? इस संभावना को भी तलाशने की जरुरत थी ।
10.
जांच में शामिल विशेषग्यो ने
खुखरी के प्रयोग की संभावना से इंकार नही किया है ।
11.
तलवार दंपति का लाइ डिटेक्टर
टेस्ट, नार्को टेस्ट और ब्रेन मैपिंग टेस्ट किया
गया था और उसका कोई नतीजा नही निकला । नार्को टेस्ट को न्यायालय साक्ष्य नही मानता
। पोलिग्राफ टेस्ट में बहुत शातिर अपराधी हीं धोखा दे सकता है । तलवार दंपति शातिर
नहीं थें । ब्रेन मैपिंग टेस्ट अभीतक सबसे करगर माना जाता है । इस तकनीक में ब्रेन
की तस्वीर ली जाती है । दिमाग संबधि अधिकांश बिमारियों में इसका उपयोग किया जाता है
। अपराध के अनुसंधान में इसका उपयोग करने का अलग तरीका है । जिसकी जांच करनी है,
उसके सामने अपराध के स्थल या मारे गये व्यक्ति की तस्वीर रखी जाति है।
उसे दे्खते हीं अगर वह व्यक्ति अपराध स्थल पर मौजूद रहा हो तो उसके दिमाग के एक विशेष
भाग में रक्त का प्रवाह बढ जाता है और वह तस्वीर में दिखता है । तलवार दंपति के खिलाफ़
ब्रेन मैपिंग टेस्ट में कुछ भी नही पाया गया । न्यायालय को इस पर ध्यान देना चाहिये
था लेकिन जहां हमारे देश के जज एम एस वर्ड पर टाईप करना नही जानते उन्हें सांइस की
जानकारी होने की बहुत आशा नही की जा सकती है ।
12.
आरुषि हत्याकांड में और जांच
की जरुरत थी लेकिन न्यायालय ने तलवार दंपति के खिलाफ़ परिस्थितजन्य साक्ष्य के आधार
पर जो पूर्णत: अनुमान पर आधारित हैं , न सिर्फ़ तलवार दंपति को मुसीबत में डाल दिया बल्कि असली अपराधियों को बचने
का मौका भी प्रदान किया है । परिस्थितिजन्य साक्ष्य का आधार अनुमान नही होता है बल्कि परिस्थितियां होती हैं और उन परिस्थितियों को साबित करने के लिये साक्ष्य आवश्यक है । उदाहरण स्वरुप अगर किसी कमरे में दो व्यक्ति बैठे हुये हैं और उनमे से एक की हत्या हो जाती है तो वैसी स्थिति में हत्या का कोई चश्मदीद गवाह नही मिलेगा परन्तु मात्र इस अनुमान के आधार पर कि कमरे में सिर्फ़ दो हीं व्यक्ति थें , दुसरे व्यक्ति को गिरफ़्तार नही किया जा सकता जबतक की सिर्फ़ दो व्यक्ति थें वाली परिस्थिति को साबित करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य न हो । यानी यह साक्ष्य इकठ्ठा करना होगा कि उन दोनो व्यक्तियों के अलावा और कोई तिसरा व्यक्ति उस कमरे के अंदर हत्या के समय नही गया या नही उपस्थित था । तलवार दंपति के फ़्लैट में बाहर के किसी व्यक्ति ने प्रवेश नही किया है , यह साबित करना सी बी आई के लिये कठिन है । मात्र यह कह देना कि कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश नही कर सकता , पर्याप्त नही है । सकता यानी अनुमान ।
सैकडो मुकदमों से हमारा वास्ता
पडा है । और हम दावे के साथ यह कह सकते है
कि देश की न्यायपालिका की गलतियों का खामियाजा हजारो निर्दोष भुगत रहे हैं । निर्दोष
रहते हुये उन्हें सजा हुई तथा उच्चतम न्यायालय से भी कोई राहत नही मिली । बिहार मीडिया
अपने दावे को साबित करने के लिये तैयार है
बशर्ते उच्चतम न्यायालय बिहार मीडिया के द्वारा बताये गये मुकदमों
की जांच करे। निर्दोषों को जेल में बीस बीस साल तक रखने की दोषी है हमारी न्यायपालिका
और उसमें उच्चतम न्यायालय भी शामिल है ।
आरुषी मर्डर केस में जो साक्ष्य
उपलब्ध है , उसके अनुसार इस हत्या में बाहरी तत्वों का हाथ था
।
1. अपराधी परिचित थें
2. वे टैरेस के
रास्ते या अरुषी के निमंत्रण पर आयें। तथा आरुषी ने या हेमराज ने दरवाजा खोलकर उन्हें
अंदर बुलाया
3. उन्होनें बलात्कार किया ।
4. पकडे जाने के भय से हत्या की
5. बलात्कार के साक्ष्य को मि्टाया
इन पहलुओं पर कोई जांच सीबीआई ने नही की है ।
नेट या टीवी तथा अखबारो में लोगों की एकतरफ़ा प्रतिक्रिया पढने को मिलती है । यह गलत है । पहले पढे , समझे, तब प्रतिक्रिया दें।
सीबीआई ने जो रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल की थी । यहां हम उसका लिंक दे रहे है।
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