फेसबुक मेरी नजर से भाग 3 : गर कभी भिक्षुक बन आये गोपा तेरे द्वार .......
फेसबुक मेरी नजर से भाग 3 : गर कभी भिक्षुक बन आये गोपा तेरे द्वार .......
मन के सावंरिया बन गईल तूं
चुपके से इ का कईल तूं
नस नस में तू गइल समा
डाल दिहल परेशानी में
चुपके से इ का कईल तूं
नस नस में तू गइल समा
डाल दिहल परेशानी में
सुबह के साथ ,टी के पहले, फेसबुक । मुड ठीक रहा तो चंद पंक्तियों की पोस्ट , कभी शायरी, कभी कोई कविता , कभी कोई कटाक्ष, कभी फिल्मो की चंद लाईने ।
हमें थोड़े ही न पता था कि फेसबुक के जंगल में भेडियो के दल ने कब्जा ज़माना शुरू कर दिया है ।
पता भी कहाँ से रहता ? जहां शुरुआत के दौर में ही यशवत सिंह , विनायक विजेता , अनिता गौतम जैसे लोग वास्तविक जीवन में भी आभासी से बेहतर मिले थे ।
यह सबकुछ प्रारंभ हुआ लोकसभा चुनाव के पूर्व । हालांकि फेसबुक का आन्दोलन एंव राजनितिक के लिए नियोजित ढंग से उपयोग की शुरुआत IAC ( इंडिया अगेंस्ट करप्शन ) यानी अन्ना के आन्दोलन के दौरान केजरीवाल टीम ने बृहद पैमाने पर शुरु किया ।
बहस, तर्क वितर्क का वह सबसे अच्छा दौर था ।
बहस, तर्क वितर्क का वह सबसे अच्छा दौर था ।
मै अन्ना सहित केजरीवाल की पुरी टीम के खिलाफ था । जोरदार बहसे होती थीं । गर्मागर्म , ठीक तुरंत कढ़ाही से निकाल कर परोसे गए पकौडो की तरह जीभ को जला देने वाली लेकिन शायद ही कभी गालियों का इस्तेमाल उस आन्दोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने किया हो ।
बदलाव की आहट दिल्ली विधान सभा चुनाव से सुनाई पड़ने लगी थी । पहला वाला चुनाव जब आम आदमी पार्टी ने लड़ा और जित हासिल कर सरकार बनाई थी ।
सभी दलों को सोशल मीडिया के सबसे मजबूत प्लेटफ़ार्म की तरह उभरे फेसबुक की ताकत का अहसास होने लगा था ।
सभी दल अपने अपने तरीके से फेसबुक पर प्रवेश कर चुके थे ।
और फेसबुक के जंगल में शिकारियो ने जाल बिछाना शुरू कर दिया था । लोक सभा चुनाव आने वाले थे । राजनीतिक दलो को लग रहा था इस चुनाव में प्रचार का बेहतर मंच फेसबुक साबित होगा ।
और फेसबुक के जंगल में शिकारियो ने जाल बिछाना शुरू कर दिया था । लोक सभा चुनाव आने वाले थे । राजनीतिक दलो को लग रहा था इस चुनाव में प्रचार का बेहतर मंच फेसबुक साबित होगा ।
महंगाई से लोग त्रस्त थे । निजीकरण की कुल्हाड़ी अब कुंद हो चुकी थी । जंगल के बड़े बड़े पेड़ कट चुके थे , लकडिया कहाँ गई दिख नहीं रही थी । चूल्हे की आग के लिए आम जन परेशान था ।
खुश था तो बस एक तबका सवर्ण वर्ग का । निजीकरण उसे जातीय आरक्षण की काट के रूप में दिखा । वह भूल गया कि पूंजीवाद में नीतियाँ कालेधन वाले उद्योगपति निर्धारित करते हैं सरकारे सिर्फ ठप्पा लगाने का कार्य करती हैं ।
उधर जंतर - मंतर पर आक्रोश बढ़ रहा था इधर आर एस एस के मंसूबे बुलन्दियो पे थे ।
दुनिया की अधिकांश फेल हुई क्रांतियो का इतिहास रहा है , जब भी राजसता के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ , कोई तानाशाह , कोई फासीवादी संगठन , कोई अपराधियों का गिरोह , छात्र संगठनो से जुड़े आवारा लंपट उसकी आड़ में सताशीन हुए । तकरीबन एक सदी से अपना पंथ स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील आर एस एस को यह मौक़ा बेहतर दिखा । उसने " मै भी अन्ना , तू भी अन्ना "" टोपी पहनाकर अपने कार्यकर्ताओ को " इंडिया अग्नेस्ट करप्शन " के आन्दोलन में उतार दिया ।
इतिहास को फिर दुहराने की तैयारी हो चुकी थी ।
इतिहास को फिर दुहराने की तैयारी हो चुकी थी ।
आक्रोश ने असर दिखलाना शुरू कर दिया था । आम अवाम देख कर भी नहीं समझ पाया कि इस आन्दोलन में खतरनाक तत्व घुसपैठ कर चुके हैं
भेड़िये भेड़ो की खाल में झंडा उठाये घूम रहे हैं ।
क्रमश.........
अब चंद पंक्तियाँ आप ( my best friend ) के नाम ।
रुखसत हुए हैं तेरी दुनिया से तेरे ही वास्ते
दुआये अब भी तेरी सलामती की करते हैं ।
दुआये अब भी तेरी सलामती की करते हैं ।
ख़्वाब से हकीकत तक पल भर भूला न पायें है तुझे
बनना न चाहा देवदास तुझे बदनाम कर के ।
बनना न चाहा देवदास तुझे बदनाम कर के ।
गर कभी भिक्षुक बन आये गोपा तेरे द्वार
समझ लेना वह मै ही हूँ ,वह मै ही हूँ ,वह मै ही हूँ ।
समझ लेना वह मै ही हूँ ,वह मै ही हूँ ,वह मै ही हूँ ।
very nice baklol sir bt we r always with you
ReplyDelete