प्रणव मुख्रजी की छुट्टी की तैयारी यानी राहुल की राह आसान बनाना
प्रणव मुख्रजी की छुट्टी
की तैयारी यानी राहुल की राह आसान बनाना
राष्ट्रपति पद को सक्रिय
राजनीति से संन्यास माना जाता है । प्रणव दा अभी तक तो हठ्ठे कठ्ठे हैं फ़िर आखिर ऐसी
कौन सी मजबूरी है कि कांग्रेस उन्हें राजनीति से संन्यास दिलवाने पर t तूली है । यह बात हजम होने योग्य
नही है कि उनकी योग्यता या वफ़ादारी के कारण
कांग्रेस उन्हें राष्ट्रपति बनाना चाहती है । कांग्रेस ने हमेशा वैसे नेता को हीं राष्ट्रपति
बनाया है जिसकी सक्रिय राजनीति में कोई भूमिका नही रह गई हो या जिस नेता
से उसे प्रधानमंत्री पद के दावेदार होने का खतरा हो । चाहे वह जैल सिंह हो या प्रतिभा
पाटिल ।
कांग्रेस भ्रष्टाचार
एवं घोटालों के आरोपों से घिरी है । आम जनता कांग्रेस की आर्थिक नीति के खिलाफ़ है परन्तु
विकल्प का अभाव कांग्रेस को राहत प्रदान कर रहा है । धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अधिकांश
क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ हैं । लोकसभा का अगला चुनाव २०१४ मे है लेकिन यह २०१३
के अंत तक हो जाने की संभावना है । लगातार बढती महंगाई ने पूंजीवाद की हवा निकाल दी
है । ऐसा सिर्फ़ भारत के साथ नही है बल्कि दुनिया का सबसे बडा पूंजीवादी राष्ट्र अमेरिका भी अपने
यहां बढ रही बेरोजगारी तथा उससे पैदा हुए समाजवादी विचारधारा के आंदोलन “अक्यूपाई वाल स्ट्रीट” से भयभीत है ।
भारत में जवाहरलाल नेहरु
तथा इंदिरा गांधी की मिश्रित अर्थव्यवस्था यानी सरकारी एवं निजी क्षेत्रो की भागेदारीवाली
आर्थिक नीति से हटकर पूंजीवादी व्यवस्था की नीति को लागू करने वालों में प्रणव दा अगुआ
रहे हैं । अभी जिस आर्थिक संकट को देश झेल रहा है और मनमोहन ,
मंटोक तथा प्रणव मुखर्जी बार बार दिलासा दे रहे हैं कि यह समाप्त हो
जायेगा , वह समाप्त नही होनेवाला , देश
के सभी कल कारखानो को बेचकर दिवालिएपन के कगार पर खडा करने वाले गुनाहगारों में प्रणव
मुखर्जी भी हैं । । वस्तुत: भारत आर्थिक दिवालियेपन के कगार पर
खडा है । हमारे हालात ब्राजील जैसे हो चुके हैं । इससे छूटकारा पाना , २०१४ का लोकसभा चुनाव जितना तथा राहुल को गद्दी पर बैठाना , ये कुछ ऐसे तत्व है जिसका समाधान ढुंढने में कांग्रेस या यो कहें सोनिया गांधी
व्यस्त हैं ।
प्रणव दा का सपना रहा
है प्रधानमंत्री पद । मनमोहन सिंह इसबार विदा होंगे । राहुल के अलावा मात्र दो नेता
इस दौड में हैं । प्रणव और
ए के एंटोनी । भाजपा भी सता में आने के लिए पुरा दम लगायेगी । किसी भी दल को बहुमत
नही मिलने जा रहा है । क्षेत्रीय दल महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आयेंगें । नये राजनीतिक
समीकरण भी बनेंगें । यह मौका प्रणव दा के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकता है और वे विश्वनाथ
प्रताप सिंह की राह पकड ले सकते हैं । कांग्रेस के लिये यह चिंता का विषय है ।
उधर मुलायम सिंह यादव
भी प्रयास करेंगें प्रधानमंत्री पद का । नये समीकरण के तहत भाजपा के उम्मीदवार इसबार
भी अडवाणी होंगे और यह भावनात्मक चाल होगी भाजपा की । भारत की जनता भावनाओ में बहकर
वोट देती है । जैसे प्रकाश सिंह बादल को जिंदगी का अंतिम मौका जनता ने भावना में बहकर
दिया कुछ वैसा हीं अडवाणी के साथ भी हो सकता है ।
हालांकि लोकसभा चुनाव
में बिहार तथा यूपी दोनो जगह सताधारी दल को झटका लगेगा । यूपी में भाजपा का मायावती
के साथ गठबंधन होने के हालात हैं और वैसी स्थिति में कांग्रेस का भी गैर मुस्लिम मत
भाजपा- बसपा गठबंधन को जायेगा । मुलायम वहां कमजोर
पडेंगें ।
बिहार में नीतीश कुमार
के शासनकाल में बेलगाम अफ़सरशाही , चरम पर पहुंचा हुआ भ्रष्टाचार
और बिजली पानी की समस्या का फ़ल जदयू को भोगना पडेगा । नितीश के शासन से जनता का मोहभंग
होना शुरु हो चुका है परन्तु विकल्प की कमी है । लालू यादव का कांग्रेस के साथ गठजोड
बहुत फ़ायदा नही पहुंचाने जा रहा है । अभी भी लालू यादव के साथ वही पुराने चेहरे है
जिन्होनें राजद के शासनकाल में आतंक का राज कायम किया था । हो सकता है कि आनेवाले कुछेक
माह में राजद में परिवर्तन देखने को मिले लेकिन उसके आधार पर अभी कोई कयास लगाना उचित
नही है । वैसे बिहार में एन डी ए को जोरदार झटका लोकसभा चुनाव मे लगने जा रहा है ।
कोयरी-यादव-मुसलमान – राजपुत का समीकरण बनने के आसार हैं ।
प्रणव दा को राष्ट्रपति
बना देने से कांग्रेस को दो फ़ायदा होगा । एक तो किसी भी गठबंधन को बहुमत न आने के हालात
में प्रणव दा कांग्रेस को धोखा नही दे पायेंगें यानी वीपी सिंह नहीं बन पायेगें ।
दुसरा संकट की स्थिति
में सोनिया गांधी की ईच्छा के अनुसार काम करेंगें। प्रणव दा के लिए भी राष्ट्रपति का
पद संत्वना पुरुस्कार की तरह होगा । प्रधानमंत्री न सही राष्ट्रपति तो बन हीं जायेंगे
। वै से सही मायने मे निष्पक्ष हो कर देखा जाए तो आज की तारीख में सोमनाथ चटर्जी सबसे योग्य एवं निष्पक्ष उम्मीदवार हो सकते हैं ।
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