कलाम ने की थी प्रजातंत्र की हत्या : लोकप्रिय हैं , योग्य नही


कलाम ने की थी प्रजातंत्र की हत्या : लोकप्रिय हैं , योग्य नही

नालन्दा विश्वविद्यालय विवाद में घिरे हैं कलाम

भारत के लोगों की एक आदत है जिसे भेड चाल कहा जा सकता है । अगर कोई व्यक्ति किसी कारण से लोकप्रिय है या प्रसिद्ध है , जैसे क्रिकेट प्लेयर या सिने अभिनेता , यहां के लोग उसे भगवान की तरह पुजने लगते हैं । वह सर्वगुण संपन्न घोषित कर दिया जाता है ।

अभी देश का अगला राष्ट्रपति कौन हो इसको  लेकर राजनीतिक दलों के बीच रस्सा-कसी चल रही है । कांग्रेस को ठप्पा लगानेवाला राश्ट्रपति चाहिये और प्रणव मुखर्जी से अच्छा जी मैडम,  जी मैडम करनेवाला उम्मीदवार कोई नही हो सकता है । बाकी दल भी निष्पक्ष राष्ट्रपति नहीं चाहते हैं । सभी दलों का अपना - अपना स्वार्थ है ।

दुसरे उम्मीदवार के रुप में पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे कलाम हैं । एकबार पद पर रह चुकने के बाद आखिर वह कौन सा लालच है जिसके कारण कलाम अपनी उम्मीदवारी से ईंकार नही कर रहे हैं । कलाम एक लोकप्रिय राष्ट्रपति रह चुके हैं । इन्होने राष्ट्रपति तथा आम जनता के बीच संवाद स्थापित करने का कार्य किया था जो राजेन्द्र प्रसाद के अलावा और कोई राष्ट्रपति न कर सका था । मेरे बेटे ने भी एक पत्र लिखा था और उसे विशेष रुप से पटना मिलने के लिये आमंत्रित किया गया था । मात्र आठ लडकों को पुरे बिहार से बुलाया गया था , परन्तु जिला प्रशासन यानी जिलाधिकारी के द्वारा पटना भेजने की कोई व्यवस्था नही की गई थी । दुर्भाग्य से मैं दिल्ली से लौटा था । समयाभाव के कारण बेटे को गाडी ठीक कर के पटना न ले जा सका । बेटा दुखी था रोने लगा , मैने क्रिकेट का बल्ला खरीद कर उसे मनाया । कहने का तात्पर्य यह है कि कलाम एक संवेदनशील व्यक्ति रहे हैं लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद वर्ष २००५ में जब वह विदेश दौरे पर थें , उन्होनें बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये थें । यह प्रजातंत्र की हत्या के समान था । राष्ट्रपति शासन लगाना अगर बहुत हीं आवश्यक था तो कलाम अपनी यात्रा से वापस आकर या यात्रा बीच में हीं स्थगित करके यह कर सकते थें । इस घटनाक्रम का दुखद पहलु तो यह है कि कलाम को आजतक अपने इस गंदे एवं अप्रजातांत्रिक कर्त्य के लिये कोई अफ़सोस नही है ।

अफ़जल गुरु जो लोकसभा हमले का दोषी है , उसकी माफ़ी की अपील पर कोई निर्णय न लेने के भी दोषी ए पी जे कलाम है हालांकि उन्होने इस आरोप का बार बार यह कहकर खंडन किया है कि उनके सामने सरकार द्वारा कभी भी अफ़जल गुरु की फ़ाईल नहीं प्रस्तुत की गई ।

इन सभी मामलों से ज्यादा विस्फ़ोटक मामला है नालन्दा अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का मामला । कलाम ने वर्ष २००६ में नालन्दा विश्वविद्यालय को पुन: स्थापित करने तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्वरुप प्रदान करने की बात बिहार विधान मंडल के संयुक्त अधिवेशन में रखी थी । इस संबंध में लोकसभा में वर्ष २०१० में एक बिल पास किया गया नालंदा विश्वविद्यालय की वीसी का मामला भी विवादास्पद है । गोपा सभरवाल को वीसी बनाया गया जो उस योग्य नही थीं। इस विवाद में भी कोई निर्णय लेने या कम से कम गलत व्यक्ति को वीसी बनाने पर ए पी जे कलाम ने कोई टिपण्णी नही की बल्कि सारा मामला विश्वविद्यालय की विजिटर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल  पर छोड दिया जो गलत था । इसमें कोई शक नही है कि कलाम एक अच्छे इंसान हैं लेकिन संवैधानिक दायित्यों को कठीन परिस्थिति आने पर पुरा करने में सक्षम नही हैं और राष्ट्रपति की परीक्षा की घडी कभी कभी हीं आती है । मुख्यत: जब केन्द्र की सरकार अपने विरोधी दल के राज्य सरकार को बर्खास्त या निलंबित करके राष्ट्रपति शासन लगाना चाहती है तो वह निर्णायक घडी होती है , वही वक्त होता है राष्ट्रपति की निष्पक्षता की परीक्षा का । दुर्भाग्य से कलाम इस निर्णायक घडी में सफ़ल नही साबित हुये और २००५ में केन्द्र की कांग्रेस की सरकार की अनुशंसा पर विदेश में रहते हुये बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने के आदेश पर हस्ताक्षर किया था  । २००५ में बिहार में लगाया गया राष्ट्रपति शासन एक प्रकार से लोकतंत्र की हत्या थी ।  देश को एक निष्पक्ष राष्ट्रपति चाहिये और इस कसौटी पर सोमनाथ चटर्जी खरे उतरते हैं जिन्होनें अपने लोकसभा अध्यक्ष पद की गरिमा  की रक्षा के लिये अपने दल सीपीएम की भी बात ठुकरा दी थी । बहुत कम लोगों को पता होगा कि विदेश यात्रा के दौरान अपने परिवार का यात्रा व्यय सोमनाथ स्वंय वहन करते थें । अपने यहां मिलने आनेवालों को चाय पान में जो खर्च आता था उसका भी व्यय सोमनाथ चटर्जी स्वंय वहन करते थें ।







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