सुरेन्द्र यादव ने दी बंदना प्रेयसी को मात
सुरेन्द्र यादव ने दी बंदना प्रेयसी को मात
हार गया प्रशासन जिता भ्रष्टाचार
गया नगर निगम के मेयर – उप मेयर पद के चुनाव के लिये शुक्रवार ८ जून
को बारह बजे दिन से रातभर जो ड्रामा हुआ वह
चौकानेवाला था । खुलेआम पार्षदों को बुलाकर सुरेन्द्र यादव राजद विधायक ने पैसे बाटें।
मोहन श्रीवास्तव के खिलाफ़ कार्य कर रहे सुरेन्द्र यादव ने अचानक मोहन श्रीवास्तव को
उप मेयर बनाने की मुहिम शुरु कर दी । सुरेन्द्र यादव के घर पर पूर्व मेयर शगुफ़्ता परवीन
के पति निजाम , विभा देवी के पति इन्द्रदेव यादव तथा मोहन श्रीवास्तव
ने डेरा डाल दिया । सुरेन्द्र यादव के लिये नैतिकता कोई मायने नही रखती । पैसे के लिये
वे कुछ भी कर सकते हैं । चितरंजन प्रसाद वर्मा उर्फ़ चितु लाल उप मेयर पद के लिये सुरेन्द्र
यादव के उम्मीदवार थें । ८ जून को ग्यारह बजे दिन मे हीं चितरंजन वर्मा को अहसास हो
गया कि वे सुरेन्द्र यादव की दोहरी राजनीति के शिकार हो गये हैं ।
सुरेन्द्र यादव ने एक एक कर के
पार्षदों को बुलाना और पैसे देते हुये मोहन श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने की हिदायत
देनी शुरु कर दी। मेयर के पद की उम्मीदवार शगुफ़्ता परवीन के पति मो० निजाम को अप्रत्यक्ष रुप से चेतावनी दी गई । सुरेन्द्र
यादव ने अच्छी-खासी रकम विभा देवी के
पति इन्द्रदेव से पूर्व मेयर के पति निजाम को दिलवाई तथा नामांकन न करने का निर्देश
दिया । नामांकन करने की स्थिति में परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। ९ जून को चुनाव था और ८ जून को रातभर यह खरीद -फ़रोख्त तथा डराने - धमकाने का खेल चलता रहा । ९ जून की सुबह सबको यह पता चल गया था कि उप - मेयर के चुनाव का क्या परिणाम होनेवाला है । प्रशासन सोया रहा और खरीद फ़रोख्त चालू रही । वस्तुत: यह करारी हार थी प्रशासन की ।
भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग के नाम पर अन्ना चाचा - अन्ना चाचा चिल्लानेवालों के गाल पर तो यह एक तगडा तमाचा था । किसी ने भी खुलेआम चल रही इस खरीद फ़रोख्त के खिलाफ़ आवाज नही उठाई । निर्भीकता का दावा करनेवाले पत्रकार भी सोये रहें। वैसे भी गया के कितने पत्रकारों के अंदर सुरेन्द्र यादव के खिलाफ़ लिखने की हिम्मत है यह सबको पता है ।
भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जंग के नाम पर अन्ना चाचा - अन्ना चाचा चिल्लानेवालों के गाल पर तो यह एक तगडा तमाचा था । किसी ने भी खुलेआम चल रही इस खरीद फ़रोख्त के खिलाफ़ आवाज नही उठाई । निर्भीकता का दावा करनेवाले पत्रकार भी सोये रहें। वैसे भी गया के कितने पत्रकारों के अंदर सुरेन्द्र यादव के खिलाफ़ लिखने की हिम्मत है यह सबको पता है ।
यह एक कटु सत्य है कि आज भी गया में सुरेन्द्र यादव का
आतंक कायम है । सुरेन्द्र यादव की कार्यशैली उसका मुख्य कारण
है । जिस व्यक्ति को भयभीत करना होगा , उसके सामने किसी अन्य
व्यक्ति को पचास गाली तथा धमकी देना ,जान से मारने की बात करना जैसे कार्य सुरेन्द्र यादव की कार्यशैली
में शामिल है ।एक ऐसा भी वक्त राजद के शासनकाल में आया था जब सरकटी लाश को मारुति वैन मे रखकर शहर मे घुमाया
गया था । तीनचार लोगों की हत्या की गई थी ।इस घटना के बाद बिंदी यादव, बच्चू यादव , सुरेन्द्र यादव का आतंक शहर में स्थापित हो गया था । उस समय पुलिस एस पी कन्नौजिया गया में
पोस्टेड थें । एस पी कन्नौजिया ने वस्तुत: इस आतंक को कायम करने में अहंम भूमिका निभाई । जब जिले का एस पी हीं शहर में सरकटी लाश को घुमाने की मौन सहमति प्रदान कर दे फ़िर बचा क्या रह जाता है ।
पुलिस के अनेको अधिकारियों को इन सभी बातों की जानकारी थी । कन्नौजिया का संरक्षण बच्चू यादव, बिंदी यादव और सुरेन्द्र यादव को प्राप्त था। एक वकील जो आज भी पुलिस की दलाली करता है , वह तथा हसनु मियां जो कभी गया का आतंक था वह भी उस निर्मम कांड में शामिल था । न सिर्फ़ कन्नौजिया बल्कि गया में डीएसपी रह चुके दीपक वर्मा का भी अपराधियों से गहरे ताल्लूकात रहे हैं और उन्होनें भी झारखंड में एक व्यवसायी के उपर जानलेवा हमला करवाया तथा उसकी जान ले ली । वहां भी इन्हीं लोगों का गिरोह हत्या करने गया था । राजद के शासनकाल का वह आतंक का समय था । मेरे जैसे लोग जो विरोध करते थें , उनकी हत्या करवाने का भी प्रयास सुरेन्द्र यादव , बच्चू यादव एवं बिंदी यादव ने किया । मेरी आदत रही है व्यर्थ में कहीं न जाना , शायद यही कारण रहा कि ये मुझे समाप्त न कर सकें । दो साल आतंक के साये में जिंदगी गुजारनी पडी । राजबाला वर्मा जिलाधिकारी थीं । सांसद का चुनाव था और फ़िल्मी स्टाईल में पचासो गाडीयों के काफ़ले के साथ खुलेआम बुथ कैप्चरिंग हुई थी । जय कुमार पालित जैसे नेता के उपर जानलेवा हमला हुआ था । हमले के कारण राजबाला वर्मा को आम जनता की भद्दी-भद्दी गालियां सुननी पडी थी और उनका अविलंब तबादला हुआ था । मतदान रद्द करके पुर्नमतदान कराया गया था । खैर यह सब बताने का अर्थ मात्र ईतना है कि इसबार के मेयर – उप मेयर के चुनाव मे जो हुआ उसने राजद के आतंकवाले दिनों की याद ताजा कर दी।
पुलिस के अनेको अधिकारियों को इन सभी बातों की जानकारी थी । कन्नौजिया का संरक्षण बच्चू यादव, बिंदी यादव और सुरेन्द्र यादव को प्राप्त था। एक वकील जो आज भी पुलिस की दलाली करता है , वह तथा हसनु मियां जो कभी गया का आतंक था वह भी उस निर्मम कांड में शामिल था । न सिर्फ़ कन्नौजिया बल्कि गया में डीएसपी रह चुके दीपक वर्मा का भी अपराधियों से गहरे ताल्लूकात रहे हैं और उन्होनें भी झारखंड में एक व्यवसायी के उपर जानलेवा हमला करवाया तथा उसकी जान ले ली । वहां भी इन्हीं लोगों का गिरोह हत्या करने गया था । राजद के शासनकाल का वह आतंक का समय था । मेरे जैसे लोग जो विरोध करते थें , उनकी हत्या करवाने का भी प्रयास सुरेन्द्र यादव , बच्चू यादव एवं बिंदी यादव ने किया । मेरी आदत रही है व्यर्थ में कहीं न जाना , शायद यही कारण रहा कि ये मुझे समाप्त न कर सकें । दो साल आतंक के साये में जिंदगी गुजारनी पडी । राजबाला वर्मा जिलाधिकारी थीं । सांसद का चुनाव था और फ़िल्मी स्टाईल में पचासो गाडीयों के काफ़ले के साथ खुलेआम बुथ कैप्चरिंग हुई थी । जय कुमार पालित जैसे नेता के उपर जानलेवा हमला हुआ था । हमले के कारण राजबाला वर्मा को आम जनता की भद्दी-भद्दी गालियां सुननी पडी थी और उनका अविलंब तबादला हुआ था । मतदान रद्द करके पुर्नमतदान कराया गया था । खैर यह सब बताने का अर्थ मात्र ईतना है कि इसबार के मेयर – उप मेयर के चुनाव मे जो हुआ उसने राजद के आतंकवाले दिनों की याद ताजा कर दी।
गया के भू-माफ़ियाओं का एक पुरा नेटवर्क इन्द्रदेव यादव
की पत्नी विभा देवी तथा मोहन श्रीवास्तव को उप मेयर बनाने के काम में लग गया । बच्चू
याद्व , राजू बर्णवाल, सुरेन्द्र यादव से
लेकर गया के व्यवसायिक घराने तक मेयर – उप मेयर के चुनाव में
व्यस्त हो गयें । अन्तोगत्वा वही हुआ जो सुरेन्द्र यादव की ईच्छा थी ।
हालांकि चुनाव में हार-जीत एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन गया नगर निगम के चुनाव में कौंसिलरों की खरीद – फ़रोख्त का जो भद्दा प्रदर्शन दिखा वह हैरानगी भरा था । वेश्याओं की तरह पार्षद बिकें। हर पार्षद ने अपने नामांकन में समाजसेवी होने का उल्लेख किया था । मेयर – उप मेयर के चुनाव में पांच – पांच लाख पार्षदों ने लिये । यह कैसी समाज सेवा थी यह तो बिकने वाले पार्षद हीं बेहतर बता सकते हैं । मेयर – उप मेयर के चुनाव में खरीद – फ़रोख्त की पुरी जानकारी जिला प्रशासन को थी । अपने यहां काउंसिलरो की बैठक कर के जिलाधिकारी तथा सिटी एस पी बाबू राम ने चेतावनी भी थी । प्रशासन ने विभिन्न होटलों में छापेमारी भी की लेकिन इन सबके बावजूद काउंसिलर वेश्याओं की तरह बिके । जिला प्रशासन इस खरीद – फ़रोख्त को रोकने में नाकामयाब रहा । यह भी न था कि कोई राजनीतिक दल इस खरीद फ़रोख्त के काम में शामिल था । मात्र एक व्यक्ति मोहन श्रीवास्तव ने सुरेन्द्र यादव की मदद से जिला प्रशासन को उसकी औकात बता दी। प्रशासन हार गया , भ्रष्टाचार जीत गया ।
मोहन श्रीवास्तव के बारे में बिहार मीडिया पहले भी बता चुका है । गया नगर निगम को भ्रष्टाचार का महासमुंद्र बनाने में उप – मेयर मोहन श्रीवासतव हीं मुख्य है । जिला प्रशासन भी भ्रष्टाचार को न रोक पाने का दोषी है । खरीद फ़रोख्त को रोकने की कवायद तो जिला प्रशासन ने खुब की , लेकिन उसके बाद भी एक आदमी पुरे सिस्टम को पराजित कर दे तो यह सोचने के लिये बाध्य होना पडता है कि क्या वाकई जिला प्रशासन ने गंभीरता से खरीद – फ़रोख्त को रोकने का प्रयास किया था या प्रशासन की कार्रवाई मात्र आम लोगों को दिखाने के लिये थी ।
गया की जिलाधिकारी वंदना प्रेयसी एक तेज तर्रार अधिकारी मानी जाती है फ़िर ऐसा क्या हुआ कि वह असफ़ल हुई । बंदना प्रेयसी की असफ़लता से यह सवाल स्वभाविक रुप से पैदा होता है कि क्या जिलाधिकारी वास्तव में खरीद फ़रोख्त रोकने के लिये गंभीर थी या प्रशासन मात्र यह चाहता था कि आमजन के बीच खरीद फ़रोख्त की बात ज्यादा न फ़ैले । अगर प्रशासन का प्रयास अपनी छवि को बचाये रखना था तब भी प्रशासन बुरी तरह असफ़ल हुआ । सीधे – सपाट शब्दों में कहा जा सकता है कि खरीद – फ़रोख्त रोकने में प्रशासन की नाकामयाबी ने आम जनता की नजरों में और वैसे लोग जो भ्रष्टाचार की लडाई लड रहे हैं उनकी नजरो में प्रशासन की छवि एक नक्कारे प्रशासन के रुप में स्थापित की है ।
अपनी इस पराजय के बाद जिलाधिकारी को सरकारी योजनाओं में चल रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिये , आंगनबाडी सेविका , जन वितरण प्रणाली के दुकानदार, इंदिरा आवास के बिचौलियों , मनरेगा और स्वच्छता अभियान के ठेकेदार तथा क्लर्क स्तर के कर्मचारियों के खिलाफ़ जांच और कार्रवाई के प्रयास को बंद कर देना चाहिये , अन्यथा लोग समझेंगें कि प्रशासन उंची पहुंच वालों को तो कुछ नही करता और उसकी सारी कवायद सिर्फ़ छोटे स्तर के लोगों के लिये होती है ।
गया जिला प्रशासन के कुछ अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है । रिटर्निंग अफ़सर रामविलास पासवान ए डी एम थें। उनके यहां बिहार मीडिया ने आवेदन देकर मेयर विभा देवी तथा उप मेयर मोहन श्रीवास्तव के नामांकन पत्र की प्रमाणित प्रति मांगी थी । २९ मई को हीं आवेदन दिया था नियमत: पांच दिनो के अंदर प्रमाणित प्रति देने का प्रावधान है परन्तु आज तक प्रति नही मिली । नामांकन के साथ संपति की जो घोषणा उप मेयर मोहन श्रीवास्तव ने की थी उसकी जांच होने से बहुत कुछ निकलकर सामने आता । रामविलास पासवान ए डी एम ने जानबूझकर प्रमाणित प्रति मेयर एवं उप मेयर के चुनाव तक नही उपलब्ध कराई ।
बिहार मीडिया का अपना आंकलन है कि जिला प्रशासन ने सिस्टेमेटिक तरीके से खरीद फ़रोख्त रोकने का प्रयास नही किया । प्रशासन मात्र खानपूर्ति में लगा रहा और प्रयास से ज्यादा अखबार में यह छपवाने में व्यस्त रहा कि प्रशासन खरीद – फ़रोख्त रोकने के लिये कटिबद्ध है । कुछ उदाहरण यहां दे देना आवश्यक है ताकि आम लोग समझ सकें कि कहां कहां प्रशासन ने गलती की और खरीद फ़रोख्त रोकने के लिये किस तरह के प्रयास की आवश्यता थी ।
1. प्रशासन ने सभा करके खरीद फ़रोख्त करने वालों को चेतावनी देने का कार्य किया जिसका कोई असर नही पडा ।
2. सबसे पहले तो प्रशासन को मेयर के पति इन्द्र्देव यादव की निगरानी आवश्यक थी।
3. सभी बैंको से इन्द्रदेव के खातों के बारे में जानकारी प्राप्त करने तथा निकासी पर निगरानी रखने की आवश्यता थी .
4. सुरेन्द्र यादव राजद विधायक पिछली बार से हीं गया नगर निगम के
मेयर –उप मेयर के चुनाव में अहंम भूमिका निभाते आ
रहे थें। सुरेन्द्र यादव पर कडी निगरानी की जरुरत थी ।
5. मोहन श्रीवास्तव पर भी निगरानी की जरुरत थी ।
6. मोहन श्रीवास्तव पहले भी उप –मेयर रह चुका है , उसके कार्यकाल में नगर निगम में जमकर
सरकारी पैसे की लूट हुई । एक दो मामलों की जांच अगर शुरु कर दी जाती तो मोहन श्रीवास्तव अभी तक जेल में होतें ।
7. गया नगर निगम ने एक करोड रुपये का ठेका वैपर लाईट लगाने के लिये
निकाला लेकिन जानबूझकर उस ठेके में एक ऐसी शर्त जोड दी जिसके कारण एक फ़र्म को छोडकर
बाकी सभी ठेकेदारों का टेंडर रद्द हो गया । सामान भी नकली लगाया गया । चालीस लाख रुपये
से ज्यादा का घोटाला मात्र एक टेंडर में हुआ ।
8. पूर्व मेयर शगुफ़्ता परवीन के पति निजाम की निगरानी की भी आवश्यक थी
।
खैर हमारी लडाई भ्रष्टाचार के खिलाफ़ है । विभा देवी पहली बार
पार्षद और मेयर बनी हैं , संभावना तो नही
है कि ये भी भ्रष्टाचार को रोक पायेंगी लेकिन बिहार मीडिया एकबार प्रयास करेगा कि वैपर
लैंप वाले घोटाले की जांच हो । जिलाधिकारी की भी यह ड्यूटी है कि भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करें। जरुरत पडे तो भ्रष्टाचार को उजागर करनेवाले लोगों की मदद लें ।
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