वह

दूर कही आज भी तुम दिखती हो,
तेरी कदमो की आहट
तेरा वह अल्हड़पन
शोखी और लहराते हुए बाल
हाँ तुम यहीं हो ,कहीं आसपास

तूने सुना ,हां वो उस नदी से आती सिसकन
जिसके पनघट पे मिलते थे कभी
और कन्धे पे रख सर सुनती थी नदी के जल का संगीत
और मैं बरगद सा समेट लेता था आगोश में

हां वही नदी फुट फुट कर  रोई थी
जब देखा था मुझे अकेले ,शांत
सजी हुई चिता पर करते तेरा इन्तजार

याद है न तुझे वह पनघट ,वह कलरव ,वह किनारा
जन्मों का वादा

आज भी तेरे इन्तजार में बैठा रहता हूँ रातभर
कुछ नहीं बदला ,न नदी ,न किनारा ,न पनघट
बस बदला है तो नदी का संगीत
सिसकती है अब नदी देखकर मुझे
करते तेरा इन्तजार ।

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