याकूब का समर्थन मुस्लिम ब्रदरहुड की जित ।
बाबरी विध्वंस के पश्चात मुस्लिम कट्टरपंथियो ने मुम्बई में 12 सीरियल ब्लास्ट किये जिनमे अनजान निर्दोष 257 व्यक्तियों की मौत हुई थी । इस घटना के तकरीबन 22 वर्ष गुजर गए । मरने वालो का परिवार न्याय की आस लगाए बैठा है । इस ब्लास्ट से संबंधित कुछ गिरफ्तारिया हुई परन्तु अधिकतर अपराधी आज भी आजाद घूम रहे है । सीरियल बम ब्लास्ट का षडयंत्र माफिया डान दाउद इब्राहिम ने रचा और उसके गुर्गो ने इसे अंजाम दिया । कुछेक छोटी मछलिया गिरफ्तार भी हुई ।
इस काण्ड में शामिल प्रत्येक साजिशकर्ता के परिवार के हरेक व्यक्ति को घटना के पूर्व से लेकर घटना को अंजाम देने एंव वर्तमान हालात की पूर्ण जानकारी है परन्तु देश के कानून की अपनी बन्दिशे है जिसके कारण ब्लास्ट में शामिल अपराधियों के परिवार वाले आजाद घूम रहे है , अपराधियों की पैरवी कर रहे है , उनके लिए भारत के चुनिन्दा स्वघोषित बुद्धिजीवियों को अपने पक्ष में सहानुभूति के वातावरण का निर्माण करने के लिए उपयोग कर रहे है ।
मुस्लिम ब्रदरहुड ने दुनिया के इस्लामिकरण के लिए एक योजना 1982 में बनाई थी जिसे कोड नेम " प्रोजेक्ट" दिया था ।
मुस्लिम ब्रदरहुड की इस योजना में एक एजेंडा आतंकवादियों और कट्टरपंथियो के लिए सहानुभूति के वातावरण के निर्माण का भी था जिसके तहत धर्म निरपेक्ष ,मानवाधिकार संरक्षक संस्थाए और व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होकर इस्लामिक आतंकवाद एंव कट्टरपन्थ के विरोध में पैदा हुए जनाक्रोश को कम करना तथा " आतंक का कोई धर्म नहीं होता " जैसे विचारों को प्रसारित करना था ताकि तत्कालीन जन आक्रोश को कम किया जा सके ।
मुस्लिम ब्रदरहुड वस्तुत: आतंकवाद की नर्सरी है जहां आतंकवादी पैदा किये जाते है ।
इसके दीर्घकालीन लक्ष्यों में भारत और इजरायल शामिल है ।
इजरायल से निपटने के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड ने पुरे विश्व में फिलस्तीन के पक्ष में जनमत तैयार करने का कार्य किया है ।
दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का सबसे प्रिय शगल है फिलस्तीन को वंचित , शोषित तथा इजरायल के अत्याचार से पीड़ित देश के रूप में प्रस्तुत करना । ऐसा करते समय ये बुद्धिजीवी यह भूल जाते है कि फिलस्तीन आन्दोलन इस्लामिक कट्टरपंथियो द्वारा नियंत्रित है जहां मानवाधिकार कोई मायने नहीं रखता है । सउदी अरब के धर्म निरपेक्ष ब्लागर Raif badawi जिन्हें धर्म निरपेक्षता के पक्ष में ब्लॉग लिखने के कारण 10 साल की कैद तथा 1000 कोड़ो की सजा दी गई है और उनका परिवार कनाडा में शरण लिए हुए है , रइफ बदावी ने अपने एक ब्लॉग में इजरायल-फिलस्तीन विवाद पर चर्चा करते हुए लिखा था कि फिलस्तीन की आजादी जरुरी है परन्तु क्या कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकियों के हाथ में आजाद फिलस्तीन सौपना उचित होगा ?
भारत में मात्र एक राज्य मुस्लिम बाहुल्य है " कश्मीर" । भारत के बुद्धिजीवी अक्सर कश्मीरी मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा का राग अलापते नजर आते है परन्तु ये कभी भी कश्मीर से निष्काषित हिन्दुओ की दुर्दशा के पक्ष में नहीं बोलते और न ही कभी कश्मीर के कट्टरपंथी इस्लामिक जमात के विरुद्ध कोई आवाज उठाते है ।
वर्तमान में याकूब मेनन के पक्ष में फांसी की सजा माफ़ करने के लिए 100 से ज्यादा स्वघोषित बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति से कल पत्र लिखकर गुहार लगाईं है ।
ये खुद को देश के आम आवाम से ऊपर की चीज समझते है । मीडिया भी इन्हें " हस्ती, eminent,progressive, intelligentsia " जैसे भारी भरभक शब्दों से अलंकृत कर के इन्हें आम आवाम से अलग दिखाने का प्रयास करता है ।
भारत के बुद्धिजीवियों की एक विशेष पहचान है । देश और राष्ट्र की अवधारण इनके लिए दकियानूसी विचार है भले ही उसी राष्ट्र के द्वारा दिए गए सम्मान को यह अपनी विशिष्टता के लिए उपयोग करने में गुरेज न करते हो, राष्ट्र के विखंडित करने वाली ताकतों का समर्थन इन बुद्धिजीवियों के लिए प्रगतिशीलता की पहचान है और यही कारण है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ये बुद्धिजीवी अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाकर अलाप करते हुए नजर आते है । मामला चाहे नार्थ ईस्ट का हो या कश्मीर का इनकी हरकत राष्ट्र विरोधी ताकतों के पक्ष में सहानुभूति के वातावरण का निर्माण करना है ।
याकूब मेनन के पक्ष में भी इन " हस्तियों " ने वही रवैया अपनाया है तथा बहुत हद तक मुस्लिम ब्रदरहुड के एजेंडे के अनुकूल मेनन के पक्ष में साहनुभूति का वातावरण निर्माण करने के साथ साथ मुस्लिम समुदाय के बिच इस भावना का कि " भारत में न्यायिक फैसला धार्मिक आधार पर होता है तथा मुस्लिमो के साथ धर्म के आधार पर न्यायपालिका भेदभाव करती है " प्रसारित करने में ये महान बुद्धिजीवी सफल हुए है ।
अलगाव जिस भावना को आधार बनाकर जिन्ना ने भारत के दो टुकड़े किये उसी भावना को भारत के बुद्धिजीवी पुन: भड़का रहे है और याकूब मेनन काण्ड में अलगाववाद को फैलाने में सफल भी हुए है ।
राम जेठमलानी का जिक्र समर्थक के रूप में कर के याकूब के मुद्दे को गंभीरता प्रदान करने का प्रयास किया गया है । जेठमलानी खुद को भले तीसमार खां समझते हो परन्तु वे विवादास्पद है क्योकि उन्होंने सीरियल ब्लास्ट के मास्टर माइंड दाउद इब्राहिम के साथ बातचित की है और वे दाउद के वकील है ।
वैसे भी जेठमलानी कभी गंभीर विचारक नहीं माने गए । वे बेपेंदी के लोटा है और अपनी उलूल जलूल हरकतो के कारण अपमानित भी होते रहे है । एक घटना हुई थी जब चंद्रशेखर ने चौधरी चरण सिंह को पीएम बनाने का प्रस्ताव रखा और चरण सिंह ने चन्द्रशेखर को धोखा देते हुए वी पी सिंह को पीएम बनाने की घोषणा कर दी थी । चन्द्र शेखर गुस्से में उठकर सभा से चले गए । उस समय इसी महानुभाव जेठमलानी ने चन्द्रशेखर के घर के सामने उन्हें मनाने के लिए धरना देने की घोषणा की तथा धरना देने पहुच गए । वहां चन्द्र शेखर समर्थक बलिया एंव यूपी के युवाओं ने जेठमलानी की धोती फाडकर पिटाई की थी तथा जेठमलानी जान बचाकर भागे थे । इनकी सारी बुद्धि सटक गई थी । पाला बलिया के लोगो से पडा था जहां हर घर में एक बुद्धिजीवी है ।
सलमान खान महेश भट्ट , शत्रुध्न सिन्हा, नसीरुद्दीन जैसे लोगो के लिए दाउद का एक संदेश भर काफी है । अभी भी दाउद का सिक्का बालीवुड में चलता है और मुस्लिम ब्रदरहुड इसका फायदा भारत में अलगाव के बीज बोने के लिए कर रहा है ।
उन सभी " महान हस्तियों " जिन्होंने याकूब के पक्ष में राष्ट्रपति को पत्र लिखा है उनके मुस्लिम ब्रदरहुड की विभिन्न संस्था तथा दाउद के साथ उनके संबंधो की जांच आवश्यक है ।
इन हस्तियों को साल दो साल कश्मीर में गुजारना चाहिए ।
समय है देश की आवाम को खड़े होकर इन " महान हस्तियो"" की देश विरोधी हरकत का पुरजोर विरोध करने और जरूरत पड़ने पर चन्द्रशेखर समर्थको ने जैसा स्वागत जेठ मलानी का किया था उसी तर्ज पर इन सभी " महान हस्तियों " के स्वागत करने की । चाहे वह शत्रुध्न सिन्हा हो , महेश भट्ट हो , सलमान हो, नसीरुद्दीन शाह हो, टी एस तुलसी वकील हो या रिटायर्ट न्यायाधीश और ब्यूरोक्रेट्स।
राष्ट्रपति को याकूब मेनन के पक्ष में पत्र लिखने वाले संप्रदायिकता को बढ़ावा देने , अलगाववाद की भावना का निर्माण करने और सीरियल ब्लास्ट में मारे गए 257 व्यक्तियों की ह्त्या के दोषी है ।
ये बुद्धिजीवी एक जघन्य काण्ड के अपराधी को ( victim ) पीड़ित प्रोजेक्ट कर रहे है जो अक्षम्य अपराध है ।
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