नितीश :मिडिया के बैलून
हम बिहारियों के लिए मिडिया द्वारा नितीश का चित्रण अचंभित करता है । मधुर मुस्कानधारी नितीश की छवि एक दृढ़ संकल्पधारी,स्वच्छ चरित्र वाले राज्य के विकास के लिए समर्पित ईमानदार मुख्यमंत्री के रूप में मीडिया प्रस्तुत करता है । मीडिया की यह हरकत इस कहावत को चरितार्थ करती है कि "" एक झूठ सौ बार बोलो वह सच दिखेगा " ।
1971 से बिहार की राजनीति को बहुत नजदीक से देखता रहा हूँ । अनेको सरकारे आई और गई । उन सभी सरकारों के कार्यकाल पर नजर डालने के बाद कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति दावे के साथ नितीश की सरकार को अभीतक की भ्रष्टत्म सरकार कह सकता है ।
नितीश कुमार के शासनकाल में घुस की राशि कई गुणा बढ़ गई । जहां पहले सौ रुपया में काम हो जाता था वहां तिन-चार सौ से कम में कोई बात भी नहीं करता है ।
बिना घुस दिए किसी काम की कल्पना नहीं की जा सकती है । यहांतक की अर्जेंट चरित्र प्रमाणपत्र , जाति और निवास प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए भी घुस देना पड़ता है अन्यथा 14 दिन के पहले इन प्रमाणपत्रों को निर्गत नहीं किया जाता है चाहे आवेदक कितनी भी अनिवार्यता में क्यों न हो ।
शिक्षक बहाली से लेकर बिहार राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से होने वाली बहालियो के लिए बजाप्ता रेट कार्ड है । एक ड्रग इंस्पेक्टर की बहाली के लिए 25 लाख रुपया घुस देना पड़ता है ।
नितीश ने न्यायपालिका को कमजोर करने और प्रशासनिक अधिकारियों के अधीन न्यायिक कार्यो को लाने के लिए बजाप्ता कानून बनाए ताकि अधिकारियों के माध्यम से घुस का लेन देन सुगम तरीके से हो सके ।
भूमि विवाद निवारण कानून 2009 उन कानूनों में से एक है । इस कानून के तहत भूमि से संबंधित सभी विवादों के निपटारा के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को अधिकार प्रदान किया गया है ।
इस विभाग के मुखिया है मंत्री रमई राम ।
इस कानून के तहत जमीन की चौहद्दी , जमीन पर नाजायज कब्जा करना या जमीन के वास्तविक मालिक को बेदखल करने , पर्चाधारी भूमिहीनों को उनके जमीन से बेदखल करने संबंधित विवादों के निवारण हेतु DCLR ( deputy collector land reform ) के समक्ष वाद दायर किया जाता है और उसकी सुनवाई की जाती है ।
बिहार के प्रत्येक प्रमंडल में एक उप समाहर्ता भूमि सुधार का कार्यालय है ।
ये अधिकारी बिना घुस लिए कोई निर्णय नहीं देते है ।
पैसे के लिए ये सरकारी जमीन को भी रैयती यानी व्यक्ति विशेष की खानदानी जमीन घोषित कर देते है ।
लालू राज में भू माफिया का जो रोल होता था वही रोल नितीश राज में DCLR का है ।
शायद एक भी DCLR ऐसा नहीं मिलेगा जिसने 25-50 करोड़ से कम की संपति अर्जित की हो ।
इन अधिकारियों द्वारा एक निश्चित रकम प्रत्येक माह विभागीय मंत्री को पहुचाना पड़ता है ।
तबादले के समय पसंदीदा जगह के लिए 50 लाख रूपये तक मंत्री को देना पड़ता है ।
ये अधिकारी अपने न्यायक्षेत्र से हटकर भी फैसला दे देते है जिसका परिणाम होता है कि विवादित पक्ष उच्च न्यायालय से लेकर सिविल कोर्ट तक मुकदमा दर मुकदमा लड़ते रहने के लिए बाध्य हो जाते है ।
Zee news के बिहार के एक पत्रकार गया आये थे उन्होंने बातचीत के क्रम में एक घटना का जिक्र किया था जब वे एक दिन रमई राम के निवास पर कवरेज हेतु गए हुए थे । वहां एक DCLR आया , उसे देखते ही रमई राम ने सबसे पहले पूछा पैसा लाया है न ? जाओ अंदर दे दो ।
इसी विभाग में DCLR से उपर का पदाधिकारी होता है अपर समाहर्ता भूमि सुधार ।
DCLR के कुछ निर्णयों से संबंधित मामलो में ADM land reform के यहाँ अपील का प्रावधान है ।
DCLR के फैसले के खिलाफ इसके समक्ष जब अपील दायर की जाती है तब इसके यहाँ भी वही लेन देन का खेल शुरू हो जाता है । चुकी यह अपीलीय अधिकारी होता है इसलिए इसका भाव भी अधिक होता है ।
चार -पांच लाख से लेकर बीस लाख तक की रकम एक मुकदमे में ली जाती है । घुस की राशि जमीन की कीमत के अनुसार तय होती है ।
यह तो था सिर्फ एक विभाग का थोडा सा सच इस तरह की कार्य पद्धति बिहार सरकार के प्रत्येक विभाग की है ।
नितीश से शिकायत का कोई परिणाम नहीं निकलता है ।
यह सबकुछ नितीश की जानकारी में होता है । सबको पता है परन्तु नितीश की इमेज सवारने/ बनाने में व्यस्त मिडिया को यह भ्रष्टाचार नहीं दिखता ।
नोट: अगली कड़ी में विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी का सच ।
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