“ बासा “ भ्रष्टो का संगठन है




बासाभ्रष्टो का संगठन है

बिहार ड्रामो का स्थल है, यहां नट का ड्रामा, बंदर  का नाच से लेकर आरा का प्रसिद्ध लौंडा नाच देखने को मिलता है । अभी मधुबनी मे एक लडकालडकी की प्रेम कहानी के बाद भाग जाने और एक सरकटी ला्श बरामद होने के बाद हुये ड्रामे ने पुरे राज्य को अस्त व्यस्त कर दिया। प्रशांत नामक वह लडका १४-१५ वर्ष की उम्र का था , एक प्रीति नाम की लडकी से प्यार करता था , दोनो भाग गये । मुकदमा दर्ज हुआ। इसी दरम्यान एक सरकटी लाश बरामद हुई । लडके के परिवार जनो का कहना था कि वह लाश प्रशांत की है। पुलिस का मानना था कि वह किसी और की लाश है। मामला बढ्ता गया। हालात बेकाबू हो गये , आगजनी, तोडफ़ोड का सिल सिला शुरु हुआ , पुलिस ने लाठी  भाजीफ़िर गोली चलाई , तिन लोगो की मौत हुई पुलिस की गोली सेमुख्यमंत्री अपनी अधिकार यात्रा मे व्यस्त रहे। जब देखा हालात बिगड रहे हैं तो आरा-बक्सर की यात्रा अस्थगित कर दी। आराबक्सर दोनो सवर्ण बहुल क्षेत्र है जो मुख्यमंत्री का समर्थक वर्ग रहा है , अपने समर्थको के बीच जाने मे भय महसुस करना , सवालिया निशान पैदा करता है।
मुख्यमंत्री की यात्रा मे हर जगह हंगामा हुआ, जूते-चप्पल चले। अभियोग विरोधी दलो पर लगाया , हो सकता  है , विरोधी दलो का हाथ रहा हो काले झंडे दिखाने मे , जूते चप्पल चलाने मे लेकिन आपार जन समर्थन की बात करने वाले मुख्यमंत्री का जन समर्थन कही नही दिखा यात्रा के दौरान। अगर समर्थन होता तो मुठ्ठी भर लोग , जैसा मुख्यमंत्री कहते है, काले झंडे नही दिखा पाते, जूते चप्पल नही चलते।
 सुशासन से मोह भंग हुआ है, भ्रष्टाचार और अफ़सरो की गुंडागर्दी के खिलाफ़ आम जन मे रोष है।  मुख्यमंत्री ने आनन फ़ानन मे एसपीडीएम का तबादला कर दिया। उन पुलिस वालो के उपर कोई कार्रवाई नही हुई जिन्होने तिन जाने ले ली। आजबासाजो बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो का संगठन है , उसने धमकी दी है किअगर गोली चलाना गलत था , तो हमारा भी करें तबादलामेरा मानना है कि हां गोली चलाना गलत था, यह पुरी तरह प्रशासनिक असफ़लता थी। उन पुलिस वालो और गोली चलाने का आदेश देने वाले अधिकारियो के उपर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिये । जैसा बयान बासा ने दिया , उस तरह का  असंवेदनशील बयान सिर्फ़ गुंडो का संगठन हीं दे सकता है। बासा के सदस्यो मे ब्लाक के बीडीओ , सीओ, डिसीएलआर, एस डी ओ, एडीएम रैंक के अधिकारी आते है। बिहार मे भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी आइ पी एस या आई ए एस रैक  के अधिकारी नही कर रहे है बल्कि यही बासा के सदस्य कर रहे हैं। 
बिहार त्रस्त है। बासा के कारण। बिहार के हालात मे रातो रात बदलाव आ सकता है अगर बासा के सभी सदस्यो यानी बिहार प्रशासनिक सेवा के सदस्यो की संपति की जांच कराई जाय और इनके खिलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपो की जांच के लिये विशेष दल का गठन किया जाय। मेरा खुद का अनुभव रहा है , इन अफ़सरो की गुंडागर्दी का। राज्य सरकार आम जनता के प्रति संवेदनहिन हो चुकी है। 
 नीतीश का जनाधार बहुत तेजी से खिसका है। एन डी ए ने संयुक्त होकर चुनाव लडा था। राजद के गुंडो के आतंक से जनता क्षुब्ध थी , बदलाव चाहती थी , जनता ने एन डी ए को सता सौंपी । राजनीति मे जाति की अहंम भूमिका होती है, यह दुनिया के सभी देशो मे है, जहं जाति नही है , वहां क्षेत्रवाद या रंगभेद है। अमेरिका के ओबामा रंगभेद के कारण जिते थें। बिहार मे सवर्ण जाति एन डी ए के पक्ष मे थी, राजद के गुंडो ने राजद को मात्र यादवो का दल बना कर रख दिया था। मुसलमानो का मत बटा था , कांग्रेस ने एक अच्छाखासा हिस्सा मुसलमानो के मत का चुरा लिया था, साम्यवादी अलग थे, दलितो के मत का भी बटवारा हुआ था , परन्तु इन सबके बावजूद धर्म निरपेक्ष दलो के वोटो का जोड , एन डी ए को प्राप्त मतो से ज्यादा था। अगर यूपीए संयुक्त होकर चुनाव लडता तो एन डी ए को  शायद सौ सीट भी नही मिलती , यह उस समय की बात है जब सवर्ण जाति एकजूट होकर एन डी ए के पक्ष मे थी । आज सवर्ण जाति का एक बडा तबका एन डी ए से अलग हो चुका है। राजपूत जाति का अस्सी प्रतिशत , ब्राह्मण का साठ प्रतिशत मतदाताओ  का नितीश से मोहभंग हुआ है। सबसे ज्यादा आगे बढकर समर्थन देने वाली जाति भूमिहार का भी दस से पन्द्रह प्रतिशत मत अलग हुआ है। मात्र कायस्थ एवं वैश्य मत एन डी ए के साथ है। यह भी सही है कि एन डी ए से अलग हुये मत अभी असमंजस की स्थिति मे हैं। अभीतक निर्णय नही ले पा रहे है किसे वोट दे।
मधुबनी कांड  मे प्रशांत की बरामदगी के बाद मुख्यमंत्री का यह बयान किअंत भला तो सब भलाहतप्रभ करने वाला है । अभी भी  बहुत सारे प्रश्न अनुतरित है, कौन था वह बदनसीब जिसकी सरकटी लाश को पुलिस ने यह जानते हुये कि यह प्रशांत की लाश नही है, उसके परिजनो को सौंप दिया। उस सरकटी लाश वाले के  परिजनो को किसकी लाश सौंपी जायेगी ? क्या किसी नई लाश की व्यवस्था करेगी पुलिस ? अगर उस सरकटी लाश के परिजनो के समर्थको ने भी हंगामा किया तब क्या होगा? उनका विरोध तो एकदम जायज होगा , कैसे निपटेगी पुलिस ?
 बासा के अधिकारियो द्वारा गोली चलाने को सही ठहराना अपराध है। जहां तक डी एमएस पी के तबादले की बात है तो चाहे कोई भी सरकार हो, अक्सर आक्रोश को शांत करने के लिये तबादले का कदम उठाती है जो गलत है। आई ए एस या आई पी एस रैंक के अधिकारी बहुत गलत नही होते हैं। हां थोडे अहंकारी जरुर होते हैं। अहंकार का कारण हमारी सामंती मानसिकता है, वे खुद को पुराने जमाने के जंमीदार की जगह पर रख के देखते है इसलिये उनका रवैया भी तानाशाह की तरह हो जाता है।मैं हीं सही बाकी गलत
राजद के शासनकाल मे भी आइ ए एस, आइ पी एस रैंक के अधिकारी गलत नही करते थे, एकाध , कनौजिया जैसे नीच, अधम और पापी आइपीएस पुलिस अधिकारियो को छोडकर , जिसके गया मे एस पी के पद पर रहते हुये राजद के अपराधियो ने अपने विरोधियो का अपहरण , हत्या और सरकटी लाश को शहर मे घुमाया था। सुशासन मे भी कनौजिया को कुछ नही हुआ , आज वह डी आई जी है।
बासाका रवैया खतरनाक है, आइ ए एस , आई पी एस लाबी को फ़सने की जरुरत नही है। अनर्थ हो जायेगा अगर बासा के लोगो की बात मान ली जाय तो। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कदम उठाने मे दिक्कत होगी। बासा के लोग आम जनता को धमकाने , गाली देने और अपमानित करने मे सबसे आगे हैं। मेरे साथ भी हुआ है, मैने झेला है, झेल रहा हूं। एक भ्रष्ट , भू-माफ़िया का संरक्षक डीसीएलआर नंद किशोर चौधरी और एडीएम राम विलास पासवान  को। डीसीएलआर ने तो मेरे उपर गलत मुकदमा भी कर दिया है। जिसकी जांच के लिये डीजीपी से लेकर एस पी तक को लिखा , आजत्क कुछ नही हुआ। राम विलास ने अपमानित किया , शिकायत की , कुछ नही हुआ। इन अधिकारियो के उपर कार्रवाई न करना प्रशासनिक विफ़लता है।
नक्सलवाद गहरी पैठ जमा चुका है, कभी लोग नक्सलवाद के खिलाफ़ थे , आज आम जनमानस मानसिक स्तर पर उसका समर्थक है। फ़ेसबुक जैसे सोशल साईट्स पर ढेर सारे लोग हैं जो खुद को अहिंसक नक्सलवादी कहते है, साफ़ जाहिर है, नक्सलवाद के सिद्धांत को समर्थन मिल रहा है, ऐसा क्यो हो रहा है ? जब शांति के साथ अपनी बात रखने वालो को न्याय नही मिलेगा, नक्सलवाद से जुडाव बढेगा। मार्च से आजतक यानी सात माह बाद भी मुझे न्याया नही मिला, क्या मुझसे आशा की जा सकती है नक्सलवाद के खिलाफ़ बोलने  की ?
आमजन यह अपेक्षा नही करता कि बासा के अधिकारी गांधी जी बन जायें, उसे चाय- पानी , मिठाई वाले भ्रष्टाचार से भी बहुत तकलीफ़ नही है, उसका गुस्सा फ़िक्स रेट-चार्ट वाले भ्रष्टाचार से  है। वह आक्रोशित है कि जब वह अपने बच्चो की फ़िस देने के पैसे मुश्किल से जुगाड कर पाता है तो बासा के अधिकारियो के बच्चो  की फ़िस, बेटी की शादी और मेम साहब की मार्केटिंग का पैसा कहां से जुगाड करे ?
अभी वक्त है , संभल जाये मुख्यमंत्री। युद्ध स्तर पर पुरी संजीदगी के साथ बासा के भ्रष्ट अधिकारियो के खिलाफ़ कदम उठाये। जरुरत हो तो सबको जेल भेजे , नयेपढे लिखे युवाओ की कमी नही है। वे संभाल लेंगे । बासा के अधिकारी जेल जायेंगे तो अरबो का कालाधन बाकर आयेगा , राज्य के विकास मे लगेगा । अंत मे एक और बात , एकाध प्रतिशत अधिकारी अच्छे है परन्तु अपवाद नियम नही बनता। 

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