बेटियो की बिक्री

आठ-नौ साल पुरानी बात है, मेरी शादी से दो दिन पहले ससुराल पक्ष की एक भद्र महिला (जो इस गुरूर से चौबीसों घंटे ओत-प्रोत रहती हैं, कि वह दुनिया की सबसे बुद्धिमान और पढ़ी-लिखी महिला हैं.) ने मुझसे पूछा, "तुम कौन सी गाड़ी ला रही हो? इनोवा या स्कॉरपियो या फिर कोई और लंबी गाड़ी?" इतने वाहियात सवाल का जवाब देने का मतलब की मैं अपना समय बरबाद करती, इसलिए 'अभी थोड़ा व्यस्त हूं' कहकर फोन काट दिया. वह बात वहीं, खत्म नहीं हुई... बल्कि की शादी के बाद भी इन मोहतरमा ने (जब भी मिलीं) जाने-अनजाने मुझसे कई तरह के लीचड़ और बेहूदे सवाल किये, लेकिन मैंने इनकी किसी भी बात का कभी भी जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा. खैर, कल शाम सुनील अंकल का फोन आया बता रहे थे, कि "प्रज्ञा (इनकी बेटी उम्र 30 बरस) की शादी तय हो गयी है. तुम्हें बच्चों और प्रतीक के साथ शादी में ज़रूर आना है." मैंने कहा, "जी अंकल पूरी कोशिश करूंगी, लेकिन वादा नहीं कर सकती." फिर देर तक बातें हुईं. अंकल जी चूंकी मुझे मेरे बचपन के दिनों से जानते हैं, इसलिए हमलोग आपस में परिवार जैसे ही हैं. बातों-बातों में मालूम चला (जिसे कि अंकल जी ने मुझे बड़े गर्व से बताया) कि "प्रज्ञा की शादी में लड़के वालों ने 20 लाख कैश, इनोवा और सभी रिश्तोंदारों के लिए रुकने, खाने-पीने और पहनने की अच्छी व्यवस्था की मांग की हैं. लड़के को सोने की चेन-अंगुठी, सास-ससुर के लिए सोने की चेन और अंगुठी और रिश्तेदारों के लिए कपड़े-लत्ते.... बाकी शादी-वादी रस्में-वस्में" यानी कि कुल मिलाकर 60-70 लाख का खर्च. अंकल जी बैंक में मैनेजर की पोस्ट से रिटायर हुए हैं और यह चूंकि सबसे छोटी बेटी की शादी है, तो बड़ी धूम-धाम से शादी करना चाहते हैं. मैंने कहा, "अंकल शादी हो रही है, यह तो बहुत ही खुशी की बात है, लेकिन शादी में इतना खर्च क्यों?" अंकल जी, "अरे तुम्हें क्या लगता है, शादियां फ्री में हो जाती हैं? आजकल लड़के बहुत महंगे हो गये हैं. टीचर 20 लाख, इंजीनियर 40-50 लाख, बाकी डाक्टर्स वगैरेह तो रेंज से ही बाहर हैं. फिर हमारे छोटे वाले दमाद जी तो बैंगलोर की एक मल्टीनेशनल कंपनी में आईटी प्रोफेशनल हैं. उन्होंने तो कुछ नहीं मांगा. हम अपनी खुशी से दे रहे हैं"

या फिर, कहीं ऐसा तो नहीं, कि लड़के वाले अपने बेटे पर जन्म से पढ़ाई और पढ़ाई से नौकरी तक का खर्च सुनील अंकल से वसूल कर रहे हैं... मैं, "लेकिन अंकल जी आप तो दहेज दे रहे हैं." अंकल जी- "नहीं दहेज थोड़े ना, मैं तो अपनी बेटी को दे रहा हू, उसे जितना अधिक दूंगा वो उतना खुश रहेगी." मैं- "फिर आप अपने दामाद की उम्र भर की पेंशन भी बांध दीजिये, हर महीने के हिसाब से... फिर तो आपकी बेटी और खुश रहेगी." अंकल जी- "अरे तुम तो फिर से फेसबुक पोस्ट स्टाईल में बात करने लगी. असल ज़िंदगी फेसबुक जैसी नहीं होती, जो आपने लिख दिया, वो लोगों ने आखिरी सच मान कर लाईक और कमेंट ठोक दिया. खैर, इस बारे में तुमसे क्या बात करनी. बस तुम लोग शादी में आ जाना और आकर देखना मैं क्या रॉयल शादी कर रहा हूं अपनी बेटी की." अच्छी गुंडई है, लड़कों वालों की. साथ ही इस तरह के लड़की वालों ने पूरे माहौल को खराब कर रखा है. अब एक नया ट्रेंड चल गया है, लोग दहेज को दहेज न कहकर यह कहते हैं... ये तो हम आपनी बेटी को दे रहा हैं या फिर यह तो आप अपनी बेटी को अपनी खुशी से दे रहे हैं. गद्दा, रजाई, तकिया, बिछोना, लेऊनी, बेना, पंखी, हांडी, कुकर, गिलास, थाली, लोटा, चम्मच, कूड़ेदान सबकुछ ले आओ. लोगों की चले तो लड़की के लिए साल भर का साबुन, पेस्ट, कपड़े धोने का पाउडर भी भिजवा दें. सास-ससुर, जेठ-जेठानी, ननद-नन्दोई, सब भूखों-नंगों का पेट भर दें, जिंदगी भर का राशन भी अपने यहां से ही भेजें. लड़का शादी होकर ससुराल पहुंचा नहीं, कि रिश्तेदार पूछना शुरु कर देते हैं, घड़ी-चेन-अंगुठी मिली? लड़के की चेन और अंगुठी उतरवाकर हाथ में लेकर वजन कर कर के देखने लगते हैं. अब तो लेनदेन और अधिक बढ़ गया है, फरक सिर्फ इतना है, कि अब लड़की वाले साईलेंट होकर दहेज देते हैं. जिसे लड़के वाले बिना मुंह खोले अपने 'दस किलो की तोंद वाले बेटे' के लिए मांग लेते हैं. लोग कहते हैं, कि लड़की दो जोड़े कपड़ों में चाहिए और मैंने तो सचमुच दो जोड़ी कपड़ों से ही अपनी गृहस्थी शुरु की थी... मैं इनोवा ले जा रही थी कि नहीं, इसकी चिंता उस लड़के को नहीं थी जिससे मैंने शादी की... लेकिन गुछ गैरज़रूरी रिश्तेदारों को ज़रूर थी, जिनसे मैं शायद सालों से ना मिली होऊं.

मैं तो मारूती 800 भी नहीं लेकर गयी. अब ऐसे में जब कोई ये कहता है कि रंजना अच्छा लड़का मार लिया तो बड़ी खीझ होती है और गुस्सा भी आता है. क्यों जी, मैं मुझमें कोई कमी है क्या, जो मुझे अपनी कमी को ढंकने के लिए दहेज का सहारा लेना पड़े? मेरी अच्छाइयों के साथ जिसे गाड़ी भी चाहिए, बंगला भी चाहिए, सोना भी चाहिए, अपने नंगे बदन को ढंकने के लिए कपड़े भी चाहिए तो ऐसे लालची का मैं क्या करती!!! कौन कहता है, कि अब लड़कियां दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं की जातीं. अब लड़के वालों के पास सबसे अच्छा तरीका होता है.... कुछ समय तक लड़की को घर पर रखते हैं और मांग पूरी न होने पर तलाक दे देते हैं. अभी हाल फिलहाल में मेरे करीबी रिश्तों में ऐसे तीन केस हुए... एक में लड़के ने पत्नी को 3 साल के बच्चे के साथ मां-बाप के घर छोड़ दिया, एक में लड़की को शादी के एक महीने बाद ही घर से निकाल दिया गया और एक में लड़की (चूंकि लड़की आत्मनिर्भर थी इसलिए...) खुद ही अपनी 2 महीने की बच्ची के साथ घर छोड़कर चली गयी, साथ ही मूवर्स एंड पैकर्स को बुलाकर चम्मच से लेकर गाड़ी तक सबकुछ लदवाकर ले गयी. दहेज के लोभी वही लोग हैं जो गैस का नॉब खोल कर या मिट्टी का तेल छिड़क कर हमारी बेटियों को जलाने की साजिशें रचते हैं. क्यां आपको मालूम नहीं, कि प्रेम और संबंधों को कभी हरे-हरे नोटों, बड़ी-बड़ी गाड़ियों, कीमती गहनों और 10-10 सूटकेस भरे कपड़ों से नहीं खरीदा जा सकता. जिन बच्चियों या जिनकी बच्चियों की अब तक शादियां नहीं हुई हैं, उन्हें यह बात सोचनी चाहिए, कि शादी से पहले वर पक्ष का किया जानेवाला लालच चाहे वो 500 रुपये की मांग हो या फिर 50 लाख.... दोनों ही घातक हो सकते हैं और पूरा किया जाने वाला लालच ससुराल पक्ष के लालच को और अधिक बढ़ावा देता है. यदि आप उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं, तो इस बात के लिए तैयार रहियेगा कि किसी भी दिन आपकी बगिया के फूल को मिट्टी का तेल छिड़क या गैस का नॉब आन करके जलाया जा सकता है... ज़हर दिया जा सकता है... पंखें पर लटकाया जा सकता है. जी हां, वही बगिया का फूल जिसके हाथों में सजी लाल-लाल मेंहदी को चूमते वक्त आप बिलख कर रो उठे थे. याद रहे, कोशिश कभी भी की जा सकती है शादी के दूसरे ही दिन भी या फिर दो-पांच-दस साल बाद भी.
- सुनील अंकल माफ करें, यदि मेरी इस पोस्ट ने आपकी भावनाओं को किसी तरह से ठेस पहुंचायी हो तो... मेरे लिए तो वही सच आखिरी सच है, जिसे मैं फेसबुक पर लिखती हूं... बाकियों का नहीं पता.

साभार : from face wall of ranjana tripathy ।

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