मोहन श्रीवस्तव को हो सकती है जेल। पुन: हो सकती है अतुल प्रकाश अपहरण केस की सुनवाई।




मोहन श्रीवस्तव
मोहन श्रीवस्तव को हो सकती है जेल।

गया नगर निगम के उप मेयर है मोहन।

वैसे तो राजनीति मे अब अच्छे लोगो का मिलना मुश्किल हो गया है लेकिन कुछ लोग तो इस स्तर के है जिनके बारे मे सोचकर के भी आश्चर्य होता है कि कैसे ये जीत  कर  आते हैं ? कौन है  जो इन्हे वोट देता है ? इसी तरह के एक आदमी के बारे मे बता रहा हूं। वह ्है गया नगर निगम का उप मेयर मोहन श्रीवास्तव । इस आदमी ने निगम के गठन के बाद से आजतक कभी भी निगम को सुचारु रुप से नही चलने दिया। इसके चरित्र और क्रियाकलाप को समझने के लिये इसके जिवन के बारे मे जानना जरुरि है। एक सामान्य घर का कामचलाउ सिक्षा प्राप्त इस व्यक्ति ने अपने राजनीतिक  जीवन की शुरुआत स्व० राजेश कुमार एम पी के यहां नौकर बनकर  की । बात बनाने मे माहिर मोहन धिरे धिरे राजेश कुमार का पीए बन गया । वेतन तो मिलता नही था , एम पी के लेटर पैड का इस्तेमाल रेलवे का टिकट बनवाने, किसी की पैरवी करने मे इसने शुरु किया। फ़र्जी काम का यह माहिर था। हस्ताक्षर भी फ़र्जी बनाता था। लेकिन राजेश कुमार तेज एम पी थे इसलिये बहुत ज्यादा इसकी दाल वहां नही गली । उसके बाद यह भगवतिया देवी एम पी जो पूरी तरह अशिक्षित थी , उनका यह पीए बन गया। मुफ़्त के नौकर सबको चाहिये और इसी का फ़ायदा उठाकर यह एम पी लोगो के यहां घुसपैठ बनाता था। भगवतिया देवी के अशिक्षित होने का खुब फ़ायदा इसने उठाया । उनसे बहुत सारे गलत काम करवा दिये। पता लगने पे भगवतिया देवि की बेटी ने इसके उपर मुकदमा करने की धमकी दी तो यह वहां से भागा । किस्मत ने साथ दिया , राजद का शासन आया , ्सुरेन्द्र यादव मंत्री बने, यह उनका पीए बन गया । शराब के मंत्री थे सुरेन्द्र यादव। व्यवसायियो से पैसे उगाहने का काम इसने शुरु किया। रात मे मंत्री की सरकारी गाडी लेकर शराब व्यवसायियो के ठिकाने पर छापा मारता था, पाच –दस लेता था , उसमे से लाख दो लाख सुरेन्द्र यादव को देता था बाकि खुद रख लेता था। सुरेन्द्र यादव को अन्य चीजो का भी शौक था जिसकी आपूर्ति यह करता था। सुरेन्द्र यादव ने खुद मुझे बताया था कि मोहन से उनकी नजदीकी का कारण यह था कि वह कम उम्र की लडकिया उपलब्ध करवाता था। राजद के शासन काल मे अपने इसी खुबी की बदौलत मोहन साधु यादसुभास यादव के नजदीक पहुंच गया । चारा घOtaale का पैसा लेकर अतुल प्रकाश नामक एक शख्स भाग गया था, उसके उपर पटना मे गलत मुकदमा कर के , उसे पकडवाया गया परन्तु पटना न ले जाकर उसे गया स्टेशन पर पुलिस लेते आई। गया स्टेशन से मोहन ने उसका अपहरण कर लिया और सुरेन्द्र यादव के आवस पर ले जाकर टार्चर करने लगा। साथ आये पुलिस वलो ने अपनी नौकरी खतरे मे देख , गया के एस पी रविन्द्र शंकरण को फ़ोन किया। रविन्द्र शंकरण ने सुरेन्द्र यादव को फ़ोन लगाया अतुल को छोड देने के लिये लेकिन फ़ोन मोहन ने उठाया , सता के नशे मे चूर मोहन ने रविन्द्र शंकरण कि बात नहि मानी , मजबुरन उन्हे अतुल प्रकाश के अपहरण का मुकदमा दर्ज करना पडा। मुकदमा दर्ज होने के बाद सुरेन्द्र यादव को त्यागपत्र देना पडा, मोहन को जेल जाना पडा। उस मुकदमे मे अतुल प्रकाश का धारा १६४ मे बयान भी हुआ था लेकिन मुकदमे मे रिहाई हुई । जज ने पच्चीस लाख रुपये से ज्यादा घूस लिया था। यह दिगर बात है कि९ किसी ने उच्च न्यायालय मे शिकायत नहि कि अन्यथा मोहन के साथ –साथ जज महोदय को भी जेल जाना पडता । आज भी  जांच होगी तो वही होगा। मुकदमे से रिहा होने के बाद इसने कांग्रेस के टिकट पर गया नगर से चुनाव लडा। मेरे पास भी आया था कि आप फ़ोन कर दे आब्जर्वर को । इसके प्रत्याशी बनने का भरपूर विरोध हुआ। मैने सागर राइका को फ़ोन लगाकर खुब खरि-खोटी सुनाई थी, उन्होने माना भी था कि गलत आदमी को टिकट मिल गया है। मुकुल वासनिक की अहम भूमिका थी टिकट देने मे और गया मुफ़्फ़सिल विधायक अवधेश सिंह की भी मेन भूमिका थी। अवधेश सिंह का भी वही शौक है जो सुरेन्द्र यादव का था। एक वक्त था कि बिना वेश्या और शराब के अवधेश सिंह को एक रात भी  निंद नही आती थी।

                                           गया नगर निगम के दुसरी बार गठन के समय पार्षदो को खरीद कर मोहन उप मेयर बना । ललिता  देवी मेयर थी। मोहन ने हमेशा ललिता देवी को तंग किया , कभी भी शांति से निगम को नही  चलने दिया। ललिता देवी की असामयिक मौत हो गई । गया के मेयर का पद महिला के लिये सुरक्षित था परन्तु निगम के कानून मे प्रावधान है कि मेयर के नहि रहने या अनुपस्थिति मे उप मेयर उनका काम देखेंगे । मोहन चाहता था कि ललिता देवी छुट्टी लेकर इसको काम करने दे ताकि यह नगर निगम की जमीन को बेच खाये। ललिता देवी की मौत के बाद शगुफ़्ता परवीन मेयर बनी , उनके साथ भी यही रवैया रहा इसका । इसने निगम के प्रावधान के विपरित जाकर अपने लिये अलग कुर्सी लगवाइ थी निगम कार्यालय में। शगुफ़्ता परवीन को हटाने के लिये ४५ पार्षदो के हस्ताक्षयुक्त आवेदन के साथ इसने आयुक्त मगध के यहां मुकदमा दायर किया। यह मेरा सौभाग्य रहा कि निगम का नया कानून बनने के बाद से सबसे ज्यादा मुकदमा मैने लडा है पूरे बिहार मे। गया, जहानाबाद , औरंगाबाद , और यहां तक की पटना  के मेयर भी सलाह लेते थे। मुकदमे मे कुछ नहि हुआ । मैं मेयर का वकील था। २०१२ मे विभा देवी गया की मेयर बनी , उनके साथ भी ड्रामा मोहन ने शुरु कर दिया लेकिन यह पढी –लिखी महिला है , इसने सबसे पहले मोहन की कुर्सी हटवाई, उसके बाद इसके खिलाफ़ ठेकेदारो के भुगतान की संचिका पर अनुमोदन के लिये दो लाख रुपये मांगने का उलेख कार्यवाहि मे दर्ज करते हुये सरकार को भेजा है। मोहन इससे तिलमिला गया । अवधेश सिंह इसकी मदद को आगे आयें , उन्होने अपने बेटे से एक गलत मुकदमा मोफ़्फ़सिल थाने मे दर्ज करवाया । मेयर के खिलाफ़ दोनो एक हो गयें। यह एक गंदा उदाहरण था राजनीतिक  गिरावट का। उधर मेयर ड्टी हूई है कि लडाई लडेंगें। हार नही मानेंगे । बात अगर ज्यादा बढी तो अतुल प्रकाश केस मे हुई रिहाई का मुद्दा उठ सकता है और अगर ऐसा हुआ तो निश्चित रुप से मोहन के अलावा रिहा करने वाले जज महोदय भी नपेंगे । हालांकि यह होना जरुरी है । न्यायपालिका मे पनप रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिये।
इधर मोहन ने मेयर विभा देवी के उपर दबाव बनाने तथा डराने के लिये नियम के विपरित जाकर पार्षदो की एक बैठक बुलाने का ड्रामा किया परन्तु निगम के अधिवक्ता ने अपनी सहमति नही प्रदान की । पार्षदो के हस्ताक्षरयुक्त एक पत्र मे गलत एवं अपमानजन्क शब्दो के ईस्तेमाल के कारण मेयर विभा देवी ने १८ पार्षदो के उपर कानूनी नोटिस दी है। तथा माफ़ी मांगने को कहा है।






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